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पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएं| Characteristics of Capitalism in Hindi

पूँजीवाद (पूंजीवादी अर्थव्यस्था)

आधुनिक पूंजीवाद का जन्म यूरोप में 18वीं सदी में हुआ जब उद्योगों में मशीनों का प्रयोग होने लगा और मशीनों को चलाने के लिए मानव एवं पशु शक्ति के स्थान पर जड़-शक्ति का प्रयोग किया जाने लगा। पश्चिमी देशों एवं विश्व के कई अन्य देशों में पूंजीवादी अर्थव्यावस्था का प्रचलन पाया जाता है। पूंजीवाद को परिभाषित करते हुए ऑगबर्न एवं निमकॉफ लिखते हैं, ‘पूँजीवाद से तात्पर्य उस व्यवस्था से है जिसमें पूंजी का अर्थ मुद्रा से लगाया जाता है किन्तु जो वास्तव में उत्पादन के साधनों को पूंजी के रूप में अपने में सम्मिलित किए हुए होती है।’

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएं

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की निम्नांकित विशेषताएँ हैं-

1. बड़ी मात्रा में उत्पादन- पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना की जाती है जिनमें विशाल मात्रा में तीव्र गति से उत्पादन होता है। बड़ी मात्रा में उत्पादन होने पर ही पूँजीपति को लाभ होता है।

2. अधिकाधिक लाभ-पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाता है और उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है जो अधिक मुनाफा दें।

3. एकाधिकार- पूँजीवादी व्यवस्था में उद्योगों एवं उत्पादित माल पर कुछ मुट्ठी भर लोगों का एकाधिकार होता है। अतः वे वस्तुओं को मनमाने भाव पर बेचते हैं। इससे पूँजी का भी कुछ ही लोगों के हाथ में केन्द्रीयकरण हो जाता है।

4. प्रतियोगिता – खुली आर्थिक प्रतियोगिता पूँजीवाद की विशेषता है। इससे उत्पादन बढ़ता है, किन्तु जब गला काट प्रतियोगिता होती है तो छोटे-उत्पादकों के समक्ष टिक नहीं सकते। उन्हें अपना उत्पादन बन्द करना होता है। वे या तो बेकार हो जाते हैं या श्रमिकों के रूप में काम करने लगते हैं।

5. शोषण- पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में पूंजीपति श्रमिकों को कम से कम देना चाहता है और स्वयं अधिकाधिक प्राप्त करना चाहता है। अतः है। अतः वह श्रमिकों का शोषण करता हैं।

6. व्यक्तिगत सम्पत्ति- पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में व्यक्तिगत सम्पत्ति पर व्यक्ति का पूर्ण अधिकार होता है जिसका उपयोग व मनमाने ढंग से करता है।

7. बैकिंग- पूंजीवादी व्यवस्था में मुद्रा की व्यवस्था एवं लेन-देने हेतु बैंक व्यवस्था पायी जाती है।

8. केन्द्र एवं साख– वस्तुओं के विनिमय के लिए पूंजीवाद में द्रव्य एवं साख की व्यवस्था की जाती है। मुद्रा धातु की एवं कागज की भी हो सकती है।

9. आश्रम विभाजन- फैक्टरी प्रणाली से उत्पादन करने के लिए काम को कई छोटे-छोटे टुकड़ों में बांट दिया जाता है, इसमें श्रम विभाजन एवं विशेषीकरण को प्रोत्साहन मिलता है।

10. वर्ग-संघर्ष- पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में हमें प्रमुख रूप से दो वर्ग- पूंजीपति एवं श्रमिक वर्ग दिखायी देते हैं। दोनों वर्ग अपने-अपने हितों की रक्षा के लिए संगठन बनाते एवं संघर्ष करते हैं। श्रमिक संगठनों देते हैं। दोनों लोग तोड़-फोड़ हड़ताल, घेराव, आदि के द्वारा अपनी वेतन वृद्धि, बोनस, काम के घण्टे कम द्वारा श्रमिक कराने एवं अनन्य सुविधाएं प्राप्त करने के लिए पूंजीपतियों से संघर्ष करते हैं।

इन विशेषताओं के अतिरिक्त पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में ठेका प्रणाली, स्वतन्त्र समझौता, श्रम संघों का निर्माण, होल्डिंग कम्पनियों एवं सहकारी समितियों द्वारा कार्य करना, आदि पाया जाता है जिनका उल्लेख हम पहले कर चुके हैं।

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