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व्यक्तित्व का शीलगुण उपागम | ऑलपोर्ट का योगदान | कैटेल का योगदान

व्यक्तित्व का शीलगुण उपागम
व्यक्तित्व का शीलगुण उपागम

व्यक्तित्व का शीलगुण उपागम (Trait Approach of Personality)

शीलगुण उपागम “प्रकार सिद्धान्त” से भिन्न एवं विषम है। शीलगुण उपागम अनुसार व्यक्ति की संरचना भिन्न-भिन्न प्रकार के शीलगुण से होती है। शीलगुण का सामान्य अर्थ है व्यक्ति के व्यवहारों का वर्णन । जैसे सक्रिय, सतर्क, मन्द्रित आदि ऐसे शब्द हैं जिनके द्वारा मानव व्यवहार का वर्णन होता है। यहाँ यह प्रश्न उठता है कि क्या सभी शब्द जिनसे मानव व्यवहार का वर्णन होता है, शीलगुण हैं या नहीं। शीलगुण कहलाने के लिए यह आवश्यक है कि उसमें संगति का गुण हो। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति प्रत्येक परिस्थिति में ईमानदारी दर्शाता है तो हम कहते हैं कि उसके व्यवहार में संगीत है और उसमें ईमानदारी का शीलगुण है, परन्तु जब वह कुछ परिस्थितियों में ईमानदारी दर्शाता है और कुछ में नहीं तो यह नहीं कहा जा सकता है कि उस व्यक्ति में ईमानदारी का शीलगुण हैं। हाँ, कुछ समय के लिए कहा जा सकता है कि उसमें ईमानदारी दर्शाने की आदत है जिसे वह कभी दर्शाता है और कभी नहीं। किसी व्यवहार को शीलंगुण कहलाने के लिए संगति के अतिरिक्त उसमें स्थिरता का भी गुण होना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति कुछ समय तक प्रत्येक परिस्थिति में ईमानदारी दर्शाता है किन्तु बाद में नहीं तो इसे शीलगुण नहीं कहा जायेगा।

शीलगुण सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति का व्यवहार व्यक्तित्व के किसी “प्रकार” द्वारा नियन्त्रित नहीं होता है बल्कि भिन्न-भिन्न प्रकार के शीलगुणों द्वारा नियन्त्रित होता है जो प्रत्येक व्यक्ति में उपस्थित रहता है। इस प्रकार शीलगुण उपागम में व्यक्तित्व के उन महत्त्वपूर्ण विमाओं की पहचान करने का प्रयास किया जाता है जिनके आधार पर व्यक्ति एक-दूसरे से भिन्न माने जाते हैं। शीलगुण सिद्धान्त में मुख्य रूप से दो मनोवैज्ञानिकों ऑलपोर्ट और कैटेल के विचारों का उल्लेख किया जाता है। यहाँ इनकी चर्चा संक्षेप में की जा रही है।

(1) ऑलपोर्ट का योगदान (Contribution of Alport)

शीलगुण सिद्धान्त के साथ ऑलपोर्ट का नाम विशेष रूप से जुड़ा हुआ है और यही कारण है कि ऑलपोर्ट द्वारा प्रतिपादित व्यक्तित्व के सिद्धान्त को “आलॅपोर्ट का शीलगुण सिद्धान्त” कहा जाता है। ऑलपोर्ट ने शीलगुण को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया है-

(i) सामान्य शीलगुण (Common trait)- सामान्य शीलगुण से अभिप्राय ऐसे शीलगुणों से होता है जो किसी समाज अथवा संस्कृति में पाया जाता है। फलस्वरूप सामान्य शीलगुण ऐसा शीलगुण है जिसके आधार पर किसी समाज अथवा संस्कृति के लोगों की तुलना आपस में की जा सकती है।

(ii) व्यक्तिगत शीलगुण (Personal trait)- ऑलपोर्ट के अनुसार व्यक्तिगत शीलगुण दूसरा महत्त्वपूर्ण शीलगुण है। इनका विचार है कि व्यक्तिगत प्रवृत्ति का अभिप्राय ऐसे शीलगुणों से होता हो जो किसी समाज अथवा संस्कृति के सभी व्यक्ति विशेष तक ही सीमित होता है अर्थात् उस समाज अथवा संस्कृति के सभी व्यक्तियों में वह नहीं पाया जाता है। ऑलपोर्ट ने व्यक्तिगत प्रवृत्ति और सामान्य शीलगुण में दो अन्तर बताये हैं

(अ) सामान्य शीलगुण समाज अथवा संस्कृति के अधिकांश व्यक्तियों में पाया जाता है जबकि व्यक्तिगत प्रवृत्ति समाज अथवा संस्कृति के कुछ व्यक्ति विशेष में ही पाई जाती

(ब) सामान्य शीलगुण के आधार पर कई व्यक्तियों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है जबकि व्यक्तिगत प्रवृत्ति के आधार पर एक ही व्यक्ति के विभिन्न शीलगुणों का आपस में तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है।

ऑलपोर्ट ने सामान्य शीलगुण की अपेक्षा व्यक्तिगत प्रवृत्ति के अध्ययन पर अधिक बल दिया है। उसने व्यक्तिगत प्रवृत्ति को तीन भागों में विभाजित किया है-

(i) कार्डिनल प्रवृत्ति (Cardinal Disposition)- इस प्रकार की व्यक्तिगत प्रवृत्ति  व्यक्तित्व का इतना प्रबल गुण होता है जिसे छिपाया नहीं जा सकता और व्यक्ति के प्रत्येक व्यवहार की व्याख्या इस प्रकार से कार्डिनल प्रवृत्ति के रूप में की जा सकती है। सभी व्यक्तियों में कार्डिनल प्रवृत्ति नहीं होती परन्तु जिनमें होती है वे उसी प्रवृत्ति अथवा गुण से चर्चित होते हैं।

(ii) केन्द्रीय प्रवृत्ति (Central Disposition)- इस प्रकार की प्रवृत्ति सभी व्यक्तियों पाई जाती है। प्रत्येक व्यक्ति में पाँच से दस ऐसी प्रवृत्तियाँ अथवा गुण होते हैं जिनके भीतर उसका व्यक्तित्व अधिक सक्रिय होता है। इन गुणों अथवा प्रवृत्तियों को केन्द्रीय प्रवृत्ति कहा जाता है। आत्मविश्वास, सामाजिकता आदि केन्द्रीय प्रवृत्ति के उदाहरण हैं।

(iii) गौण प्रवृत्ति (Secondary Disposition)- गौण प्रवृत्ति ऐसे गुणों को कहा जाता है जो व्यक्तित्व के लिए कम संगत, कम अर्थपूर्ण एवं कम स्पष्ट होते हैं, जैसे- खाने-पीने की आदत, वेशभूषा आदि ऐसी प्रवृत्तियाँ हैं जिनके आधार पर व्यक्तित्व को समझने में कोई विशेष सहायता नहीं मिलती और न ही इनके द्वारा व्यक्तित्व के सम्बन्ध में कोई अर्थ लगाया जा सकता है। ऑलपोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि एक व्यक्ति के लिए एक गुण केन्द्रीय प्रवृत्ति हो सकता। परन्तु दूसरे के लिए वही गुण गौण प्रवृत्ति हो सकता है-

(2) कैटेल का योगदान (Contribution of Ketel)

शीलगुण सिद्धान्त में ऑलपोर्ट के बाद कैटेल का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। कैटेल ने प्रमुख शीलगुणों की खोज ऑलपोर्ट द्वारा बताये गये 18000 शीलगुणों में से 4500 शीलगुणों को चुनकर किया। कालान्तर में इनमें से समानार्थी शब्दों को एक साथ मिलाकर इसकी संख्या उसने 200 कर दी और तत्पश्चात् विशेष सांख्यिकीय विधि अर्थात् कारक-विश्लेषण के आधार पर अन्तर सहसम्बन्ध द्वारा उसकी संख्या 35 कर दी। कैटेल ने शीलगुणों को कई प्रकार से विभाजित कर अध्ययन किया। उसका सबसे महत्त्वपूर्ण वर्गीकरण वह है जिसमें उसने व्यक्तित्व के शीलगुणों को सतही शीलगुण और मूल अथवा स्रोत शीलगुण के रूप में विभाजित किया है।

(i) सतही शीलगुण (Surface trait)- इस तरह का शीलगुण व्यक्तित्व के ऊपर सतह अथवा परिधिं पर होता है अर्थात् इस तरह के शीलगुण ऐसे होते हैं जो व्यक्ति के दिन-प्रतिदिन की अन्तः क्रिया में आसानी से अभिव्यक्त होते हैं। इसकी अभिव्यक्ति इतनी स्पष्ट होती है कि सम्बन्धित शीलगुण के सम्बन्ध में व्यक्ति में कोई दो मत नहीं हो सकता, यथा- प्रसन्नता, परोपकारिता, सत्यनिष्ठा आदि सतही शीलगुण के उदाहरण हैं।

(ii) मूल अथवा स्त्रोत शीलगुण (Source trait)- कैटेल के अनुसार मूल अथवा स्रोत शीलगुण व्यक्तित्व की अधिक महत्त्वपूर्ण संरचना है और इनकी संख्या सतही शीलगुण की अपेक्षा कम होती है। मूल शीलगुण सतही शीलगुण के समान व्यक्ति के दिन-प्रतिदिन की अन्तः क्रिया में स्पष्ट रूप से व्यक्त नहीं हो पाते हैं। कैटेल के अनुसार मूल शीलगुण व्यक्तित्व की आन्तरिक संरचना होते हैं जिसके सम्बन्ध में हमें ज्ञान तब होता है जब हम उससे सम्बन्धित सतही शीलगुण को एक साथ मिलाने का प्रयास करते हैं; यथा- सामुदायिकता, निःस्वार्थता एवं हास्य ऐसे सतही शीलगुण हैं जिनको एक साथ मिलाने पर एक नया मूल शीलगुण बनता है जिसे ‘मित्रता’ कहा जाता है। इससे स्पष्ट है कि मूल शीलगुण की अभिव्यक्ति सतही शीलगुणों के रूप में ही होती है इसीलिए कैटेल ने सतही “शीलगुण सूचक” (Trait indicators) भी कहा है।

सामान्यतः मूल शीलगुण को कैटेल ने दो भागों में विभाजित किया है- (i) पर्यावरण प्रभावित शीलगुण (Environmental mold trait) और (ii) स्वाभाविक शीलगुण (Natural trait)। कुछ मूल शीलगुण इस तरह के होते हैं जिनके विकास में आनुवंशिकता की अपेक्षा वातावरण सम्बन्धी कारकों का प्रभाव अधिक पड़ता है जिन्हें पर्यावरण-प्रभावित शीलगुण कहा जाता है। कुछ इस तरह के शीलगुण होते हैं जिनके विकास में वातावरण की अपेक्षा आनुवांशिकता का प्रभाव अधिक पड़ता है। इस तरह के शीलगुण को स्वाभाविक शीलगुण कहा जाता है। केटैल ने शीलगुणों का विभाजन उस व्यवहार पर भी किया है जिससे वे सम्बन्धित होते हैं। इस आधार पर शीलगुण तीन प्रकार के हैं- (i) गत्यात्मक शीलगुण (Dynamic trait), (ii) क्षमता शीलगुण (Ability trait) और चित्तप्रकृति शीलगुण (Temperament trait)। गत्यात्मक शीलगुण को ऐसे शीलगुण कहा जाता है जिनसे व्यक्ति का व्यवहार एक विशेष लक्ष्य की ओर अग्रसारित होता है। क्षमता शीलगुण से तात्पर्य ऐसे शीलगुणों से होता है जो व्यक्ति को किसी लक्ष्य तक पहुँचाने में प्रभावकारी सिद्ध होते हैं। चित्तप्रकृति शीलगुण से अभिप्राय ऐसे शीलगुणों से होता है जो किसी लक्ष्य पर पहुँचने के प्रयास से उत्पन्न होता है और जिसका सम्बन्ध व्यक्ति की संवेगात्मक स्थिति, अनुक्रिया करने की शक्ति एवं दर आदि से सम्बन्धित, होता है।

कैटेल ने यह भी स्पष्ट किया कि व्यक्तित्व के शीलगुणों का अध्ययन करने के लिए मूलतः तीन स्रोत- जीवन अभिलेख, आत्म रेटिंग एवं वस्तुनिष्ठ परीक्षण।

ऑलपोर्ट एवं कैटेल के योगदानों पर विचार करने से यह प्रश्न उठता है कि मानव व्यक्तित्व के प्रमुख शीलगुण अथवा कारक अथवा विमा (Dimensions) कौन-कौन से हैं ? विगत दो दशकों में किये गये प्रमुख शोधों के आधार पर मनोवैज्ञानिक इस सम्बन्ध में कुछ प्रमुख विमाओं के विषय में सहमत होते नजर आते हैं। प्रमुख शोधकर्ता हैं- कोस्टा एवं मैकके, होगानस, नोल्लर, ला एवं कोमरे । इन शोधकर्त्ताओं के मध्य इस बात की सहमति है कि व्यक्तित्व की पाँच महत्त्वपूर्ण विमायें हैं जो सभी द्विध्रुवीय हैं-

(i) बहिर्मुखता (Extroversion)- व्यक्तित्व का यह ऐसा विमा है जिसमें एक परिस्थिति में व्यक्ति सामाजिक मजाकिया, स्नेहपूर्ण, बातूनी आदि शीलगुण दर्शाता है और दूसरी परिस्थिति में वह संयमी, शान्त, गम्भीर, सचेत रहने का शीलगुण दर्शाता है।

(ii) सहमतिजन्यता (Agreeableness)- इस विमा के भी दो ध्रुव बताये गये हैं। इस विमा के अनुसार व्यक्ति एक परिस्थिति में सहयोगी, दूसरों पर विश्वास करने वाला, उदार, सीधा-सादा, उत्तम प्रकृति आदि से सम्बद्ध व्यवहार प्रदर्शित करता है तो दूसरी परिस्थिति में वह असहयोगी, शंकालु, चिड़चिड़ा, जिद्दी व्यवहार करता है

(iii) कर्त्तव्यनिष्ठता (Conscientiousness)- इस तरह के विमा में एक परिस्थिति में व्यक्ति आत्मानुशासित, उत्तरदायी, सावधान और काफी सोच-विचार कर व्यवहार करने से सम्बद्ध शीलगुण प्रदर्शित करता है तो दूसरी परिस्थिति में वह बिना सोचे-समझे, असावधानीपूर्वक, कमजोर आदि व्यवहार करने से सम्बद्ध शीलगुण प्रदर्शित करता है।

(iv) स्नायुविकृति (Neuroticison)- इस तरह की विमा में व्यक्ति कभी-कभी सांवेगिक रूप से शान्त, सन्तुलित, भ्रमित विचारों से अपने आप को मुक्त पाता है और दूसरा ओर कभी-कभी अपने आप को सांवेगिक रूप से काफी उत्तेजित, असन्तुलित एवं भ्रमिक विचारों से ग्रस्त पाता है।

(v) संस्कृति अथवा अनुभूतियों का खुलापन (Culture or openess to experiences) – इस तरह की विमा में व्यक्ति एक तरफ काफी संवेदनशील, बौद्धिक, भद्र, काल्पनिक आदि व्यवहार से सम्बद्ध शीलगुण प्रदर्शित करता है तो दूसरी तरफ वह काफी

असंवेदनशील, संकीर्ण, असभ्य और अशिष्ट व्यवहारों से सम्बद्ध शीलगुण प्रदर्शित करता है। यद्यपि शीलगुण सिद्धान्त प्रकार सिद्धान्त से अधिक वैज्ञानिक और पूर्ण लगता है, परन्तु मनोवैज्ञानिकों ने इसकी भी आलोचना की है, जो निम्न प्रकार हैं-

(1) शीलगुण सिद्धान्त में कारक विश्लेषण कर शीलगुण सिद्धान्तवादी शीलगुणों की कोई एक निश्चित संख्या निर्धारित करने में असमर्थ रहे हैं।

(2) शीलगुण सिद्धान्तवादियों द्वारा बताये गये प्रमुख शीलगुणों की संख्या के विषय में असहमति तो है ही साथ ही ऐसे शीलगुण एक-दूसरे से पूर्णतः स्पष्ट, भिन्न एवं स्वतन्त्र नहीं हैं।

(3) शीलगुण सिद्धान्त में व्यक्तित्व की व्याख्या भिन्न-भिन्न शीलगुणों के रूप में की जाती है। आलोचकों का विचार है कि इस तरह के विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से व्यक्तित्व की एक पूर्ण व्याख्या नहीं की जा सकती है।

(4) शीलगुण सिद्धान्त में परिस्थितिजन्य कारकों के महत्त्व को स्वीकार नहीं किया गया है। इस सिद्धान्त के अनुसार यदि किसी व्यक्ति में प्रभुत्व का शीलगुण है तो इसका तात्पर्य यह हुआ कि प्रत्येक परिस्थिति में वह प्रभुत्व दिखायेगा और दूसरों पर आधिपत्य स्थापित करने का प्रयास करेगा, परन्तु ऐसा नहीं होता।

(5) शीलगुण उपागम का स्वरूप वर्णनात्मक है। इसमें व्यक्तित्व के मौलिक और महत्त्वपूर्ण विमाओं का केवल वर्णन किया जाता है परन्तु इस बात की व्याख्या नहीं की जाती कि किस तरह से विभिन्न शीलगुणों का विकास होता है।

(6) कई दशकों तक किए गए शोधों के बावजूद अभी तक मनोवैज्ञानिकों के मध्य इस बात की सहमति नहीं हो पाई है कि वे कौन-कौन से शीलगुण हैं जिन्हें व्यक्तित्व का महत्त्वपूर्ण शीलगुण माना जा सकता है और व्यक्तित्व का मौलिक विमा कहा जा सकता है।

(7) मैक्एडम्स एवं ब्लॉक ने शीलगुण सिद्धान्त की आलोचना करते हुए यह मत व्यक्त किया कि व्यक्तित्व में शीलगुण के अतिरिक्त बहुत कुछ है जिसकी चर्चा तक इसमें नहीं की गयी है, जैसे व्यक्ति की संज्ञानात्मक शैली।

(8) शालगुण सिद्धान्त से इस प्रश्न का उत्तर नहीं प्राप्त होता कि क्या व्यक्तित्व शीलगुणों का मात्र एक समूह होता है अथवा यह इन शीलगुणों का एक संगठन होता है।

(9) शीलगुण सिद्धान्त व्यक्तित्व में परिवर्तन की व्याख्या करने में भी समर्थ नहीं है। उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद व्यक्तित्व का शीलगुण उपागम काफी महत्त्वपूर्ण है और इसके माध्यम से व्यक्तित्व के स्वरूप को समझने का प्रयास किया गया है।

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