भारतीय समाज पर हिन्दू धर्म का प्रभाव (Impact of Hindusim on Indian Society)
भारतीय समाज पर हिन्दू धर्म के पड़ने वाले प्रभाव को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है-
1. भारतीय संस्कृति की रक्षा
संसार में कई संस्कृतियों व सभ्यताओं ने जन्म लिया तथा मौत की नींद सो गयीं किन्तु आज भी भारतीय संस्कृति अजर-अमर है। इसका श्रेय हिन्दू धर्म ही है। हिन्दू धर्म ने अपने अनुयायियों को पुरुषार्थी बनाया. उन्हें निष्काम कर्म की प्रेरणा दी, दूसरों के हित व कल्याण और दया, सहानुभूति, सहिष्णुता व सेवा भाव जैसे मानवीय गुणों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति अपनी निरन्तरता बनाये रख सकी।
2. सामाजिक एकता में सहायक
हिन्दू धर्म ने समाज में एकता पैदा करने का कार्य भी किया है। हिन्दू धर्म समाज कल्याण को प्रमुख स्थान देकर सामाजिक एकीकरण में वृद्धि करता है। इसके अतिरिक्त धर्म सामाजिक मूल्यों के महत्व को स्पष्ट करके भी एकीकरण में वृद्धि करता है। दुर्खीम के अनुसार “धर्म इन सभी लोगों को एकता के सूत्र में पिरोता है जो इसमें विश्वास करते हैं।” सामुदायिक व धार्मिक दंगों के समय धार्मिक उत्सवों को मनाने के समय हिन्दू धर्म के मानने वालों में एकता देखी जा सकती है।
3. मनोरंजन प्रदान करता है
यदि धर्म केवल व्यक्ति को कर्म करने पर ही जोर देता तो मनुष्य यन्त्रवत् व जड़ हो जायेगा । अतः धर्म-कर्म करने के साथ-साथ मनोरंजन भी प्रदान करता है। विभिन्न उत्सवों, त्योहारों, कर्मकाण्डों तथा विधि-विधानों के अवसरों पर लोग मनोरंजन करते हैं। अवसरों पर एक-दूसरे के सम्पर्क से भावनात्मक एकता व साहचर्य बढ़ता है।
4. सद्गुणों का विकास
यद्यपि समाज के सभी सदस्य तीर्थस्थलों व मंदिरों आदि में नहीं जाते लेकिन समाज के सदस्यों पर धर्म का प्रभाव किसी न किसी रूप में अवश्य पड़ता है, चाहे वह प्रभाव प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष। असंख्य व्यक्तियों का व्यक्तित्व व चरित्र धार्मिक विश्वासों के कारण ही रूपान्तरित हो जाता है। इस प्रकार हिन्दू धर्म भारतीयों के नैतिक व आध्यात्मिक जीवन की अभिव्यक्ति है।
5. व्यक्तित्व के विकास में सहायक
हिन्दू धर्म न केवल समाज को ही संगठित रखा बल्कि वह व्यक्तित्व को भी संगठित रखा है। व्यक्तित्व का विघटन सामान्यतया सांसारिक निराशाओं का परिणाम होता है।
6. भावात्मक सुरक्षा
मनुष्य अपने जीवन में अनेक प्रकार की अनिश्चितता, निर्बलता, असुरक्षा तथा अभाव को महसूस करता है। ऐसे समय में धर्म मानव की एक बहुत बड़ी शक्ति बन जाता है। अर्थात् धर्म ही एकमात्र ऐसी संस्था है जो व्यक्ति को अपनी परिस्थितियों को अपने अनुकूल करने में सहायता देती है।
7. सामाजिक संगठन का आधार
हिन्दू धर्म की अपनी एक आचार संहिता है जो हिन्दूओं के कुछ कर्त्तव्य, आदेश व निषेध निर्धारित करती है जिनका पालन अलौकिक शक्ति व ईश्वर के भय के कारण किया जाता है।
8. सामाजिक नियंत्रण का प्रभावपूर्ण साधन
हिन्दू धर्म बताता है कि समाज में किस प्रकार का आचरण करना चाहिए। एक मानव के दूसरे मानव के साथ कैसे सम्बन्ध हों, परिवार के सदस्यों के पारस्परिक कर्त्तव्य क्या हों आदि।
9. पवित्रता की भावना को जन्म देता है
हिन्दू धर्म व्यक्तियों को अपवित्र कार्यों से दूर रखकर पवित्र कार्य करने की प्रेरणा देता है क्योंकि पवित्र जीवन व्यतीत करना ही धार्मिक जीवन की अभिव्यक्ति है।
10. कर्त्तव्य का निर्धारण
विस्तृत अर्थ में धर्म केवल अलौकिक दिव्य शक्ति में ही विश्वास नहीं करता है, बल्कि यह तो मानव को नैतिक कर्त्तव्यों का पालन व कर्म करने के लिए प्रेरित करता है।
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