परिवार का अर्थ एवं परिभाषा
परिवार एवं विवाह एक-दूसरे के पर्यायवाची बन गये हैं इनका अस्तित्व ही एक-दूसरे पर निर्भर करता है। वास्तव में विवाह एक सम्बन्ध है। जिसके पश्चात् ही परिवार की नींव पड़ती है। परिवार एक समूह है, संगठन एक समिति है। संस्कृति के सभी स्तरों में चाहे उन्हें उन्नत कहा जाये या निम्न किसी न किसी प्रकार का पारिवारिक संगठन अनिवार्यतः पाया जाता है।
परिवार को विभिन्न समाजशास्त्रियों ने परिभाषित किया है –
‘‘परिवार पर्याप्त निश्चित यौन सम्बन्ध द्वारा परिभाषित एक ऐसा समूह है, जो बच्चों के जनन एवं लालन-पालन की व्यवस्था करता है।”– मैकाइवर एवं पेज
परिवार के प्रकार
बहुविवाही परिवार के 5 अन्य उप स्वरूपों को वर्णित किया है। इस वर्गीकरण में निम्न आधारों को ग्रहण किया गया है –
1. संख्या के आधार पर
परिवार के सदस्यों की संख्या के आधार पर परिवार के यह रूप निश्चित किये गये हैं –
(i) केन्द्रीय परिवार या नाभिक परिवार- यह परिवार का सबसे लघु रूप है, जो पति पत्नी तथा उनके आश्रित बच्चों से मिलकर बना होता है, इसमें अन्य रिश्तेदारों को सम्मिलित नहीं किया जाता है। इन परिवारों में व्यस्क बच्चे अपना पृथक नाभिक परिवार बनाते हैं।
(ii) संयुक्त परिवार- संयुक्त परिवार में तीन या तीन से अधिक पीढ़ियों के सदस्य साथ-साथ एक ही घर में निवास करते हैं, उनकी संपत्ति सामूहिक होती है, वे एक ही रसोई में भोजन करते हैं, सामूहिक पूजा पूजा में भाग लेते हैं, इसके सदस्य परस्पर अधिकारों एवं दायित्वों को निभाते हैं। अधिकांशतः सबसे बुजुर्ग सदस्य इसका मुखिया होता है।
(iii) विस्तृत परिवार- इस प्रकार के परिवारों में सभी रक्त सम्बन्धी तथा अन्य सम्बन्धी भी सम्मिलित होते हैं। यह एक (मातृ या पितृ) या द्विपक्षीय भी हो सकते हैं। इनमें सदस्यों की संख्या बहुत ज्यादा होती है। इन सभी सदस्यों का निवास एवं कार्य एक ही होता है।
2. निवास के आधार पर
विवाह के पश्चात् पति-पत्नी का निवास स्थान जहाँ बच्चों सहित होता है, उसी के अनुसार यह विभाजन किया गया है-
(i) पितृ-स्थानीय परिवार- यदि विवाह के पश्चात् पत्नी अपने पति एवं पति के माता पिता के साथ रहने लगती हो, तो उसे पितृ-स्थानीय परिवार कहते हैं। भारतीय समाज में इसी परिवार की प्रथा पायी जाती है।
(ii) मातृ-स्थानीय परिवार- पितृ स्थानीय परिवार के ठीक विपरीत है इस परिवार की स्थिति, इसमें विवाह के पश्चात् पति अपनी पत्नी एवं उसके माता-पिता के निवास स्थान पर रहने लगता है तो उसे मातृ- स्थानीय परिवार कहते हैं।
(iii) नव- स्थानीय परिवार- जब परिवार में पति-पत्नी विवाह के पश्चात् किसी पक्ष में न रहकर स्वतंत्र परिवार बनाकर रहते हैं तो उसे नव- स्थानीय परिवार कहते हैं।
(iv) मातृ-पितृ स्थानीय परिवार- कई परिवार विवाह के पश्चात् दम्पत्ति को किसी भी पक्ष में रहने की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं। उन परिवारों को मातृ-पितृ स्थानीय परिवार कहते हैं।
(v) मातुल स्थानीय परिवार- इसमें विवाह के पश्चात् दम्पत्ति पति की माँ के भाई के परिवार के साथ रहने चला जाता है। यह प्रथा ट्रोबियाण्डा द्वीपवासियों में पायी जाती है।
(vi) द्विस्थानीय परिवार- इन परिवारों में विवाह के पश्चात् भी पति-पत्नी अपने-अपने – परिवारों में रहते हैं। पति रात्रि में पत्नी के परिवार में चला जाता है तथा दिन में वह अपने परिवार में रहता है। लक्षद्वीप, केरल में इस प्रकार के परिवार पाये जाते हैं।
3. अधिकार के आधार पर
पारिवारिक नियंत्रण को आधार मानकर इन परिवारों का वर्गीकरण हुआ है।
(i) पितृ सत्तात्मक परिवार- ऐसे परिवारों में पिता का नियंत्रण होता है। सत्ता परिवार के पुरुषों के हाथ में होती है।
(ii) मातृ सत्तात्मक परिवार- ऐसे परिवारों में माता का नियंत्रण होता है। पितृ सत्तात्मक परिवार के विपरीत होते हैं तथा परिवार की सत्ता स्त्री के हाथ में होती है।
4. उत्तराधिकार के आधार पर
परिवार के आधार पर उत्तराधिकार वर्गीकरण निम्न है-
(i) पितृमार्गी परिवार- ऐसे परिवारों में उत्तराधिकार के नियम पितृपक्ष के आधार पर तय किये जाते हैं।
(ii) मातृमार्गी परिवार- ऐसे परिवारों जिनमें उत्तराधिकार के नियम मातृपक्ष के आधार पर तय किये जाते हैं।
5. वंशनाम के आधार पर
परिवार के वंशनाम के आधार पर वर्गीकरण निम्न प्रकार है-
(i) पितृवंशीय परिवार- वह परिवार जिनमें वंश परम्परा पिता के नाम से चलती है। पुत्रों को पिता का वंश नाम प्राप्त होता है।
(ii) मातृवंशीय परिवार- वह परिवार जिनमें वंश परम्परा माता के नाम से चलती है और माँ से पुत्रियों को वंश नाम मिलते हैं।
(iii) उभयवाही परिवार- उभयवाही परिवार में व्यक्ति अपने दादा-दादी एवं नाना-नानी चारों सम्बन्धियों से समान रूप से सम्बद्ध रहता है।
6. विवाह के आधार पर
विवाह के आधार पर परिवार का वर्गीकरण निम्न है-
(i) एक विवाही परिवार- सामान्य तौर पर एक स्त्री एवं एक पुरुष के सम्मिलन से परिवार बनता है। इस प्रकार एक विवाह परिवार में पति-पत्नी एवं अविवाहित सन्तानें होती हैं।
(ii) बहु-विवाही परिवार- ऐसे परिवारों में एक स्त्री को कई जीवन साथी रखने का अधिकार मिलता है। कई पत्नी वाले बाल विवाह को बहुपत्नी विवाह एवं कई पति रखने वाले विवाह को बहुपति विवाह कहा जाता है।
(iii) समूह विवाही परिवार- जब कोई भाई या कई पुरुष मिलकर एक स्त्री समूह से विवाह करें और सब पुरुष सभी स्त्रियों के समान रूप से पति हों वह समूह विवाही परिवार कहलाता है।
अधिकार के आधार पर परिवार के प्रकार
परिवार में माता-पिता में से किस की सत्ता चलती है या किसे अधिक अधिकार प्राप्त है, इस आधार पर परिवारों को दो भागों में बांटा गया है।
1. पितृ सत्तात्मक परिवार- ऐसे परिवारों में सत्ता एवं अधिकार पिता व पुरुषों के हाथ में होते हैं, वे ही परिवार का नियन्त्रण करते हैं।
2. मातृ सत्तात्मक परिवार- ऐसे परिवारों में पितृसत्तात्मक के विपरीत माता में या स्त्री में ही अधिकार तथा सत्ता निहित होती है, वही पारिवारिक नियन्त्रण बनाये रखने का कार्य करती है। भारत में नायर, खासी, गारों, आदि लोगों में इस प्रकार परिवार पाये जाते है।
परिवार के कार्य
परिवार द्वारा किये जाने वाले विभिन्न कार्य इस प्रकार हैं-
1. प्राणिशास्त्रीय कार्य
यौन इच्छाओं की पूर्ति एवं नियमन करना सन्तानोत्पत्ति करके सृष्टि की निरन्तरता में योगदान देने का कार्य करता है। इस विषय में गुडे ने लिखा है कि – “यदि परिवार मानव की प्राणिशास्त्रीय आवश्यकताओं के लिए व्यवस्था न करें तो समाज समाप्त हो जायेगा।”
2. शारीरिक कार्य
परिवार अपने सदस्यों को शारीरिक संरक्षण प्रदान करता है, – वृद्धावस्था, बीमारी, दुर्घटना, असहाय अवस्था, अपाहिज होने आदि की अवस्था में परिवार ही अपने सदस्यों की देखभाल व सेवा करता है। बच्चों का पालन-पोषण भी उचित तरीके से होता है।
3. आर्थिक कार्य
परिवार उत्पादन एवं उपभोग की इकाई है। श्रम विभाजन का सबसे सरल रूप परिवार में देखा जा सकता है। स्त्री पुरुष, बच्चों सभी को उनके अनुरूप कार्य किया जाता है। आय तथा सम्पत्ति का प्रबन्ध उच्च तरीके से होता है।
4. धार्मिक कार्य
परिवार से ही बालक को अपने पारिवारिक धर्म, धार्मिक कृत्यों, अनुष्ठानों का ज्ञान प्राप्त होता है। आराधना और पूजा भी परिवार वालों से ही ग्रहण किया जाता है।
5. राजनीतिक कार्य
परिवार में मुखिया के कार्यों से ही अन्य उच्च संस्थाओं के प्रतिनिधि की भूमिका स्पष्ट होती है। शासक के समान अधिकारों से युक्त परिवार का मुखिया सबसे लघु इकाई का सर्वोच्च होता है।
6. शिक्षात्मक कार्य
परिवार अपने सदस्यों को मानसिक सुरक्षा प्रदान करता है। सदस्यों के मध्य परस्पर प्रेम, सहानुभूति तथा सद्भाव पाया जाता है और इन्हीं के द्वारा वह अपने शेष जीवन में सामंजस्य स्थापित कर पाता है।
7. मनोवैज्ञानिक कार्य
परिवार अपने सदस्यों को मानसिक सुरक्षा प्रदान करता है। सदस्यों के मध्य परस्पर प्रेम, सहानुभूति तथा सद्भाव पाया जाता है और इन्हीं के द्वारा वह अपने शेष जीवन में सामंजस्य स्थापित कर पाता है।
8. सांस्कृतिक कार्य
परिवार ही समाज की संस्कृति की रक्षा करता है तथा नयी पीढ़ी को संस्कृति का हस्तान्तरण करता है।
9. मनोरंजनात्मक कार्य
परिवार अपने सदस्यों के लिए मनोरंजन के कार्य भी सम्पन्न करता है। परिवार में छोटे बच्चों की प्यारी बोली, उनके साथ खेलना, बड़ों के मध्य हास-परिहास, उत्सव, धार्मिक कर्मकाण्ड आदि एक बदलाव एवं समागम के अवसर प्रदान करते हैं।
- नातेदारी का अर्थ एवं परिभाषा | नातेदारी के प्रकार | नातेदारी की श्रेणियाँ
- परिवार की विशेषताएँ | Characteristics of Family in Hindi
- परिवार में आधुनिक परिवर्तन | Modern Changes in Family in Hindi
- परिवार की उत्पत्ति का उद्विकासीय सिद्धान्त
Important Links
- थारू जनजाति – निवास क्षेत्र, अर्थव्यवस्था एवं समाज
- गद्दी जनजाति – निवास क्षेत्र, अर्थव्यवस्था एवं समाज Gaddi Tribe in hindi
- सेमांग जनजाति – निवास क्षेत्र, अर्थव्यवस्था तथा सामाजिक संगठन की प्रकृति
- बुशमैन जनजाति – निवास क्षेत्र, अर्थव्यवस्था एवं समाज Bushman Janjati in hindi
- एस्किमो जनजाति – निवास क्षेत्र, अर्थव्यवस्था एवं समाज eskimo janjati in hindi
- खिरगीज जनजाति – निवास क्षेत्र, अर्थव्यवस्था एवं समाज kirghiz tribes in hindi
- पिग्मी जनजाति निवास स्थान Pigmi Janjaati in Hindi