आदिम कानून की परिभाषा
आदिम कानून उन नियमों या रीति-रिवाजों को संदर्भित करता है जो कम संस्कृति में समाजों को नियन्त्रित करते हैं वे प्रथाएँ जो बर्बरता को नियन्त्रित करती हैं। लोग इन रीति-रिवाजों की वैधता उनकी स्वीकृति और मान्यता पर निर्भर थे, क्योंकि लिखित कानून नहीं थे। यह क्रूर लोगों को नियन्त्रित करता है। आदिम कानून बन्धु व्यवस्था पर आधारित होता है। व भूमिगत सम्बन्धों पर आधारित नहीं होता। यह बहुत कुछ नैतिक नियमों और जनमत के विरूद्ध भी हो सकता है। आदिम कानून के पीछे सामूहिक उत्तरदायित्व होता है।
जनजातीय समाज में आदिम कानून का महत्व
जनजातीय समाज में आदिम काननू का महत्व निम्नलिखित वर्णन से स्पष्ट है –
(1) प्रथाओं व परम्पराओं के सम्वर्धन में सहायक
आदिम समाज जटिल समाज से प्रायः विलग रहता है। आदिम समाज में बहुत अधिक सादगी व सरलता पायी जाती है। आदिम समाज कानूनों के माध्यम से प्रथाओं व परम्पराओं को संचेतना प्रदान करते हैं। जिस भी समाज में स्वस्थ परम्परायें व व्यवस्थित प्रथाएं सम्वर्धित होंगी वह समाज निश्चित रूप से विकास के मार्ग पर अग्रसर होगा। आदिम समाज में लिखित कानूनों का अभाव होता है यहाँ समूह में ही समाजीकरण की प्रक्रिया हायी जाती है। जीवन जीने के तरीके और अनेक गुटों व कबीलों में अनेक स्वस्थ परम्परायें होती हैं और जब इन स्वस्थ परम्पराओं को कबीलाई समाज में व्यवस्थित तरीके से अधिरोपित कर दिया जाए तो जनजातीय समाज श्रेष्ठता की ओर अग्रसर होने लगता है।
(2) आदर्श कानून के निर्माण में सहायक
स्वतन्त्रता के बाद जनजातियों के परम कल्याण के लिये सरकार द्वारा अनेक प्रावधान किये गये। देश की भौगोलिक विविधता के कारण जनजातीय समाज में अलग-अलग प्रथायें व परम्परायें पायी जाती हैं जिसके फलस्वरूप आदर्श कानून बनाने के लिये सरकार प्रयास करती है जब प्रथाओं, परम्पराओं को ध्यान में रखकर कानूनों का अधिनियमन होता है तो निश्चित रूप से जनजातीय समाज की दिशा व दशा में आर्मूल-चूल परिवर्तन होता है। जनजातीय समाज में युवाओं को समाजीकृत करने के लिये ‘घोटुल’ नामक संस्था है। उपहार देने व विवाह के अवसर पर दहेज देने व लेने के लिये शामली, गिमाएँ, उमाएँ नामक प्रथाएँ पायी जाती हैं। प्रतिष्ठा, प्रदर्शन के लिये ‘कुला’ व ‘पोटलेच’ जैसी परम्परायें आदिम समाज में आज भी व्यवहारित है। सरकार का एकमेव उद्देश्य होता है कि जनसाधारण की अधिक से अधिक प्रगति व विकास हो। जब मूल्यों को प्रतिस्थापित करने के लिये कानून बनाये जाते हैं तो जनजातीय समाज का अधिक से अधिक कल्याण होता
(3) जनजातीय संस्कृति के विकास में सहायक
भारतीय संस्कृति विश्व की श्रेष्ठतम संस्कृतियों में से एक है। प्रागैतिहासिक स्रोतों से अपनी संस्कृति अत्यधिक प्राचीन है परन्तु लिखित साक्ष्य के आधार पर 7,000 वर्ष पूर्व संस्कृति का उल्लेख है, जय संहिता नामक ग्रन्थ से अभिज्ञात होता है। अपनी संस्कृति की विशेषताओं में यह, प्रमुख विशेषता है कि
‘परहित सरसि धर्म नहीं भाई,
परपीड़ा सम् नहीं अधिमाई,,
जनजातीय समाज भारतीय सभ्यता व संस्कृति को सम्वर्धित करता है। अनेक संस्कृतियाँ जटिल समाज का हिस्सा बनी हुई हैं। आदिम कानून जनजातीय संस्कृति के विकास में बहुत सहायक है। आदिम कानूनों के कारण ही जन-जातीय समाज विकास के मार्ग पर अग्रसर है। यदि आदिम कानून ही नहीं होंगे तो संस्कृतियों को विकसित होने का अवसर ही नहीं प्राप्त होगा।
(4) जनजातीय शिक्षा को प्रोत्साहन
जनजातीय समाज आदिम कानूनों के माध्यम से ही शिक्षा के क्षेत्र में प्रोत्साहित होता है। जनजातियों में शैक्षणिक स्तर बहुत निम्न स्तर का है और जो भी शैक्षिक स्तर है वह आदिम कानूनों के कारण ही है। सरकार द्वारा जनजातीय समाज विर्निमित है फिर भी जटिल समाज के अनुपात में जनजातियों का शैक्षिक अनुपात बहुत कम है। जब विभिन्न जनजातियों के सदस्य मुख्य धारा से जुड़ेगें और अपने समाज के हितों को ध्यान में रखकर शैक्षिक संस्थानों को बढ़ावा देगें तो निश्चित रूप से जनजातीय समाज का अधिक से अधिक भला होगा। जनजातियों की प्रमुख विशेषताओं में धुमन्तू पन का पाया जाना है। धुमन्तूपन के कारण इनकी व्यवस्थित शिक्षा नहीं हो पाती केवल परम्पराओं व प्रथाओं के आधार पर आदिम कानूनों के माध्यम से इनका सामाजीकरण होता है।
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