समाजशास्‍त्र / Sociology

सांस्कृतिक विलम्बना का सिद्धान्त की व्याख्या कीजिये।

सांस्कृतिक विलम्बना का सिद्धान्त
सांस्कृतिक विलम्बना का सिद्धान्त

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सांस्कृतिक विलम्बना

सांस्कृतिक विलम्बना का सिद्धान्त आगर्बन की प्रथम पुस्तक ‘सोशल चेन्ज’ में प्रतिपादित किया गया। शाब्दिक अर्थ में सांस्कृतिक विलम्बना का अर्थ पिछड़ जाना, विलम्ब हो जाना अथवा सांस्कृतिक दौर में पीछे रह जाना है।

आधुनिक समाजशास्त्रीय परिभाषा के अनुसार जो कुछ भी आज मानव के पास है वह उसकी संस्कृति है ताथा इसमें भौतिक, अभौतिक सभी तथ्यों का समावेश रहता है। संस्कृति के इन दोनों पक्षों का सामान्तर विकास नहीं होता, जब संस्कृति का एक पक्ष पिछड़ जाता है, तो उसको सांस्कृतिक विलम्बना कहते हैं। ऑगबर्न ने संस्कृति के दो पक्षों भौतिक तथा अभौतिक का उल्लेख किया है। चूंकि भौतिक संस्कृति का सम्बन्ध हमारी सुख-सुविधाओं से होता है। यह उपयोगितावादी होती है। इसलिये अभौतिक संस्कृति की अपेक्षाकृत परिवर्तन इसमें तीव्र गति से होता है। उदाहरणस्वरूप जिस तेजी के साथ हमने वैज्ञानिक प्रगति की है, टेलीफोन जहाज आदि का निर्माण किया है, उस तेजी से हमारे विचार प्रथाओं, विश्वासों आदि का विकास नहीं हुआ। इस प्रकार हमारी भौतिक संस्कृति आगे बढ़ जाती है। तथा दोनों संस्कृतियों के मध्य दूरी बन जाती है। संस्कृति के एक पक्ष के पिछड़ जाने को ही ऑगबर्न ने सांस्कृतिक विलम्बना कहा है। के

सांस्कृतिक विलम्बना की परिभाषा (Definition of Cultural Lag)

ऑगबर्न ने – सांस्कृतिक विलम्बना की परिभाषा निम्न शब्दों में दी है “संस्कृति के उन दो सम्बन्धित भागों (भौतिक तथा अभौतिक) पर तनाव इसलिए पड़ता है क्योंकि वे असमान गति से बदलते है ऐसी अवस्था में हम उसे उस भाग की विलम्बना कहते है जो मन्द गति से बदलता है क्योंकि एक दूसरे के पीछे रह जाता है।” ऑगबर्न ने इसे उदाहरण द्वारा समझाने का प्रयास किया उन्होंने कहा कि किसी समाज में जनसंख्या जितनी तेजी से घटती या बढ़ती है वहाँ की पुलिस की संख्या उतनी तेजी से घटती या बढ़ती है। अर्थात् जनसंख्या में परिवर्तन के बाद पुलिस घटती या बढ़ती है। इस आधार पर जनसंख्या आगे है व पुलिस पीछे।

ऑगबर्न के अनुसार, भौतिक व अभौतिक संस्कृतिक एक-दूसरे से सम्बन्धित होती है व एक के पिछड़ने का प्रभाव दूसरे पर पड़ता है। ऑगबर्न के अनुसार, भौतिक संस्कृति में तेजी परिवर्तन होता है जबकि अभौतिक संस्कृति में धीमी गति से परिवर्तन होता है क्योंकि अभौतिक संस्कृति हमारे मूल्यों, विश्वासों व आदर्शों को ग्रहण करती है। उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति हिन्दू धर्म छोड़कर शीघ्रता से इस्लाम धर्म नहीं अपना सकता जबकि व्यक्ति मशीनों, औजारो, परिवहन के साधनों को शीघ्रता से अपना सकता है जबकि धर्म, जाति-पाँति को इतनी शीघ्रता से नहीं अपना सकते इसी कारण भौतिक संस्कृति अभौतिक संस्कृति की अपेक्षा शीघ्रता से परिवर्तित होती है तथा अभौतिक संस्कृति भौतिक संस्कृति से पिछड़ जाती है। ऑगबर्न के अनुसार, हमें जो भी समाज से अर्जन होता है उसे संस्कृति कहा जाता है। इसके अन्तर्गत मकान, मशीन, कपड़ा, भाषा, धर्म, कला, विज्ञान सभी का समावेश होता है इसी कारण ऑगबर्न ने संस्कृति को दो भागों में बाँटा –

(1) भौतिक संस्कृति, (2) अभौतिक संस्कृति।

भौतिक तथा अभौतिक दोनों संस्कृतियाँ मनुष्य को प्रभावित करती है एक में होने वाला परिवर्तन दूसरे को प्रभावित करता है। भौतिक संस्कृति तेजी से परिवर्तित हो जाती है।

ऑगबर्न के अनुसार, “भौतिक संस्कृति में परिवर्तन पहले होता है तथा इसी के कारण अभौतिक संस्कृति में परिवर्तन होता है। भौतिक संस्कृति में परिवर्तन की गति तीव्र होती है, जबकि अभौतिक संस्कृति में परिवर्तन की गति धीमी होती है। इसी कारण भौतिक संस्कृति अभौतिक संस्कृति से पिछड़ जाती है। इसी को सांस्कृतिक विलम्बना या पश्चायन कहा जाता है।”

  1. अल्फ्रेड रेडक्लिफ- ब्राउन के प्रकार्यवाद की आलोचना
  2. पारसन्स के प्रकार्यवाद | Functionalism Parsons in Hindi
  3. मैलीनॉस्की के प्रकार्यवाद | Malinaski’s functionalism in Hindi

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