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शिक्षा मनोविज्ञान का कार्य क्षेत्र (Scope of Educational Psychology)

शिक्षा मनोविज्ञान का कार्य क्षेत्र (Scope of Educational Psychology)

शिक्षा मनोविज्ञान का कार्य क्षेत्र

शिक्षा मनोविज्ञान का कार्य क्षेत्र

शिक्षा मनोविज्ञान का कार्य क्षेत्र – शिक्षा मनोविज्ञान के अर्थ तथा उसके उद्देश्य से स्पष्ट है कि शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षार्थी (Learner), अध्यापक (Teacher) तथा शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया (Teaching-Learning Process) का मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन करता है। शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र को स्पष्ट करते हुए स्किनर ने लिखा है कि शिक्षा मनोविज्ञान के कार्य क्षेत्र में वह सभी ज्ञान तथा प्राविधियाँ सम्मिलित हैं जो सीखने की प्रक्रिया को अधिक अच्छी प्रकार से समझने तथा अधिक निपुणता से निर्देशित करने से सम्बन्धित हैं। आधुनिक शिक्षा मनोवैज्ञानिकों के अनुसार शिक्षा मनोविज्ञान के प्रमुख कार्यक्षेत्र निम्नवत हैं-

(i) वंशानुक्रम (Heredity) –

वंशानुक्रम व्यक्ति की जन्मजात योग्यताओं से सम्बन्धित होता है। किसी व्यक्ति के वंशानुक्रम में ऐसी समस्त शारीरिक, मानसिक अथवा अन्य विशेषतायें आ जाती हैं जिन्हें वह अपने माता-पिता अथवा अन्य पूर्वजों से (जन्म के समय नहीं वरन्) जन्म से लगभग नौ माह पूर्व गर्भाधान समय प्राप्त करता है। मनोवैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि बालक के विकास के प्रत्येक पक्ष पर सके वंशानुक्रम का प्रभाव पड़ता है। शारीरिक संरचना, मूल प्रवृत्तियाँ, मानसिक योग्यता, व्यावसायिक ममता आदि पर व्यक्ति के वंशानुक्रम का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। शैक्षिक विकास की दृष्टि में वंशानुक्रम का अध्ययन करना अत्यधिक महत्वपूर्ण है। वंशानुक्रम के ज्ञान के आधार पर अध्यापक अपने छात्रों का वांछित विकास कर सकता है।

(ii) विकास (Development) –

शिक्षा मनोविज्ञान के अंतर्गत भ्रूणावस्था से लेकर मृत्युपर्यन्त होने वाले मानव के विकास का अध्ययन किया जाता है। मानव जीवन का प्रारम्भ किस प्रकार से होता है तथा जन्म के उपरान्त विभिन्न अवस्थाओं – शैशवावस्था, वाल्यावस्था, किशोरावस्था तथा प्रौढ़ावस्था में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक आदि पक्षों में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं, इसका अध्ययन करना शिक्षा मनोविज्ञान का एक महत्वपूर्ण विषय क्षेत्र है। बालकों की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले विकास के ज्ञान से उनकी सामर्थ्य तथा क्षमता के अनुरूप शिक्षा प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान मिलता है।

(ii) व्यक्तिगत भिन्नता (Individual Differences)-

संसार में कोई भी दो व्यक्ति एक दूसरे के पूर्णतया समान नहीं होते हैं। शारीरिक, सामाज सामाजिक व मानसिक आदि गुणों में व्यक्ति एक दूसरे से पर्याप्त भिन्न होते हैं। अध्यापक को अपनी कक्षा में ऐसे छात्रों का सामना करना होता है जो परस्पर काफी भिन्न होते हैं। व्यक्तिगत विभिन्नताओं के ज्ञान की सहायता से अध्यापक अपने शिक्षण कार्य को सम्पूर्ण कक्षा
की आवश्यकताओं तथा योग्यताओं के अनुरूप व्यवस्थित कर सकता है।

(iv) व्यक्तित्व (Personality)-

शिक्षा मनोविज्ञान मानव के व्यक्तित्व तथा उससे सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं का भी अध्ययन करता है। मनोविज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि मानव के विकास तथा उसकी शिक्षा में व्यक्तित्व की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शिक्षा का उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास करना है। अतः बालक के व्यक्तित्व का संतुलित विकास करना शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व हो जाता है। मनोविज्ञान व्यक्तित्व की प्रकृति, प्रकारों, सिद्धान्तों का ज्ञान प्रदान करके संतुलित व्यक्तित्व के विकास की विधियां बताता है। अतः शिक्षा मनोविज्ञान का एक कार्यक्षेत्र व्यक्तित्व का अध्ययन करके बालक के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त करना भी है।

(v) अपवादात्मक बालक (Exceptional Child)-

शिक्षा मनोविज्ञान अपवादात्मक बालकों के लिए विशेष प्रकार की शिक्षा व्यवस्था का आग्रह करता है। वास्तव में तीव्र बुद्धि या मन्द बुद्धि बालकों तथा गूंगे, बहरे, अंधे बालकों के द्वारा सामान्य शिक्षा का समान लाभ उठाने की कल्पना करना त्रुटिपूर्ण ही होगा। ऐसे बालकों के लिए इनकी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा व्यवस्था का आयोजन करना होता है। शिक्षा मनोविज्ञान इस कार्य में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करता है।

(vi) अधिगम प्रक्रिया (Learning Process)-

शिक्षा प्रक्रिया का प्रमुख आधार अधिगम है। सीखने के अभाव में शिक्षा की कल्पना की ही नहीं जा सकती। शिक्षा मनोविज्ञान सीखने के नियमों, सिद्धान्तों तथा विधियों का ज्ञान प्रदान करता है। प्रभावशाली शिक्षण के लिए यह आवश्यक है कि अध्यापक सीखने की प्रकृति, सिद्धान्त, विधियों के ज्ञान के साथ-साथ सीखने में आने वाली कठिनाइयों को समझे तथा उनको दूर करने के विभिन्न उपायों से भी भलीभांति परिचित हो। सीखने का स्थानान्तरण कैसे होता है? तथा शैक्षिक दृष्टि से इसका क्या महत्व है? यह जानना भी अध्यापक के लिए उपयोगी होता है। इन सभी प्रकरणों की चर्चा शिक्षा मनोविज्ञान करता है।

(vii) पाठ्यक्रम निर्माण (Curriculum Development)-

वर्तमान समय में पाठ्यक्रम को शिक्षा प्रक्रिया का एक जीवन्त अंग स्वीकार किया जाता है तथा पाठ्यक्रम निर्माण में मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों, प्रयोग किया जाता है। विभिन्न स्तरों के बालक व बालिकाओं की आवश्यकताएँ, विकासात्मक विशेषताएँ, अधिगम शैली आदि भिन्न-भिन्न होती हैं। पाठ्यक्रम निर्माण के समय इन सभी का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक तथा महत्वपूर्ण होता है।

(viii) मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) –

अध्यापकों तथा छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य का शैक्षिक दृष्टि से विशेष महत्व है। जब तक अध्यापक तथा छात्रगण मानसिक दृष्टि से स्वस्थ तथा प्रफुल्लित नहीं होंगे, तब तक प्रभावशाली अधिगम सम्भव नहीं है। मनोविज्ञान मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों का ज्ञान प्रदान करता है तथा कुसमायोजन से बचने के उपायों को खोजता है।

(ix) शिक्षण विधियाँ (Teaching Methods) –

शिक्षण का अभिप्राय छात्रों के सम्मुख ज्ञान को प्रस्तुत करना मात्र नहीं है। प्रभावशाली शिक्षण के लिए यह आवश्यक है कि छात्र प्रभावशाली ढंग से ज्ञान को ग्रहण करने में समर्थ हो सके। शिक्षा मनोविज्ञान बताता है कि जब तक छात्रों को पढ़ने के प्रति अभिप्रेरित नहीं किया जायेगा, तब तक अध्यापन में सफलता मिलना संदिग्ध होगा। यह भी स्मरणीय होगा कि सभी स्तर के बालकों के लिए अथवा सभी विषयों के लिए कोई एक सर्वोत्तम शिक्षण विधि सम्भव नहीं होती है। शिक्षा मनोविज्ञान प्रभावशाली शिक्षण के लिए उपयुक्त शिक्षण विधियों का ज्ञान प्रदान करता है।

(x) निर्देशन व समुपदेशन (Guidance and Counselling) –

शिक्षा एक अत्यंत व्यापक तथा बहु-आयामी प्रक्रिया है। समय-समय पर छात्रों को तथा अन्य व्यक्तियों को शैक्षिक व्यक्तिगत तथा व्यावसायिक निर्देशन व परामर्श प्रदान करना अत्यंत आवश्यक है। छात्रों को किस पाठ्यक्रम में प्रवेश लेना चाहिए, किस व्यवसाय में वे अधिकतम सफलता अर्जित कर सकते हैं, उनकी समस्याओं का समाधान कैसे हो सकता है जैसे प्रश्नों का उत्तर शिक्षा मनोविज्ञान ही प्रदान कर पाता है।

(xi) मापन तथा मूल्यांकन (Measurement and Evaluation) –

छात्रों की विभिन्न योग्यताओं, रुचियों तथा उपलब्धियों का मापन व मूल्यांकन करना अत्यन्त महत्वपूर्ण तथा आवश्यक होता है। मापन तथा मूल्यांकन की सहायता से एक ओर जहाँ छात्रों की सामर्थ्य, रुचियों तथा परिस्थितियों का ज्ञान होता है, वहीं दूसरी ओर शिक्षण-अधिगम की सफलता-असफलता का ज्ञान भी प्राप्त होता है। शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययनों में छात्रों की योग्यताओं तथा उपलब्धियों का मापन व मूल्यांकन करने वाले विभिन्न उपकरण बहुतायत से प्रयुक्त किए जाते हैं।

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत है तथा इसमें मनोविज्ञान से सम्बन्धित उन समस्त बातों का अध्ययन किया जाता है जो शिक्षा प्रक्रिया का नियोजन करने, संचालन करने तथा परिमार्जन करने की दृष्टि से उपयोगी हो सकती है।

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