सोहनलाल द्विवेदी जी का जीवन परिचय
सोहनलाल द्विवेदी हिंदी के प्रसिद्ध कवि हैं। द्विवेदी जी हिंदी के राष्ट्रीय कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए। ऊर्जा और चेतना से भरपूर रचनाओं के इस रचयिता को राष्ट्रकवि की उपाधि से अलंकृत किया गया। महात्मा गाँधी के दर्शन से प्रभावित, द्विवेदी जी ने बालोपयोगी रचनाएँ भी लिखीं। 1969 में भारत सरकार ने आपको पद्मश्री उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया था।
जीवन परिचय –
22 फरवरी सन् 1906 को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के बिंदकी नामक स्थान पर सोहनलाल द्विवेदी का जन्म हुआ। इनका परिवार एक संपन्न परिवार था। अत: बाल्यकाल से ही शिक्षा की समुचित व्यवस्था रही। हाईस्कूल की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए ये वाराणसी गए। वहाँ काशी हिंदू विश्वविद्यालय से इन्होंने एम.ए. तथा एल.एल.बी.की परीक्षाएँ उत्तीर्ण की। इनके पिता का नाम श्री वृंदावन द्विवेदी था।
कार्यक्षेत्र-
सन् 1941 में देश प्रेम से लबरेज ‘भैरवी’ उनकी प्रथम प्रकाशित रचना थी। उनकी महत्वपूर्ण शैली में ‘पूजागीत’, ‘युगाधार’, ‘विषपान’ वासंती ‘चित्रा’ जैसी अनेक काव्य कृतियाँ सामने आई थी। उनकी बहुमुखी प्रतिभा के दर्शन उसी समय हो गए थे, जब 1937 में लखनऊ से उन्होंने दैनिक पत्र ‘अधिकार’ का संपादन शुरू किया था। चार वर्ष बाद उन्होंने अवैतनिक संपादन के रूप में ‘बालसखा’ का संपादन भी किया। देश में बाल साहित्य के वे महान आचार्य थे। राष्ट्रीयता से संबंधित कविताएँ लिखने वालों में आपका स्थान अनन्य है। महात्मा गाँधी पर आपने कई भावपूर्ण रचनाएँ लिखी हैं, जो हिंदी जगत में अत्यंत लोकप्रिय हुई हैं। आपने गाँधीवाद के भावतत्व को वाणी देने का सार्थक प्रयास किया है तथा अहिंसात्मक क्रांति के विद्रोह व सुधारवाद को अत्यंत सरल, सबल और सफल ढंग से काव्य बनाकर जन साहित्य’ बनाने के लिए उसे मर्मस्पर्शी और मनोरम बना दिया है।
द्विवेदी जी पर लिखे गए एक लेख में अच्युतानंद मिश्र जी ने लिखा है- “मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन, रामधारी सिंह दिनकर, रामवृक्ष बेनीपुरी या सोहनलाल द्विवेदी राष्ट्रीय नवजागरण के उत्प्रेरक ऐसे कवियों के नाम हैं, जिन्होंने अपने संझल्प और चिंतन, त्याग और बलिदान के सहारे राष्ट्रीयता की अलख जगाकर, अपने पूरे युग को आंदोलित किया था, गाँधी जी के पीछे देश की तरुणाई को खड़ा कर दिया था। सोहनलाल जी उस शृंखला की महत्वपूर्ण कड़ी थे।
डा.हरिवंशराय बच्चन ने एक बार लिखा था जहाँ तक मेरी स्मृति है, जिस कवि को राष्ट्रकवि के नाम से सर्वप्रथम अभिहित किया गया, वे सोहनलाल द्विवेदी थे। गांधी जी पर केंद्रित उनका गीत ‘युगावतार’ या उनकी चर्चित कृति ‘भैरवी’ की यह पंक्ति वंदना के इन स्वरी में एक स्वर मेरा मिला लो, हो जहाँ बलि शीश अगणित एक सिर मेरा मिला लो’ में कैद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का सबसे अधिक प्रेरणा गीत था। सन् 1988 ई.में सोहनलाल द्विवेदी जी का देहावसान हो गया।
भाषा-शैली –
सोहनलाल द्विवेदी जी की भाषा शुद्ध, परिमार्जित व सरल खड़ीबोली है। इन्होंने मुहावरों तथा व्यावहारिक शब्दावली का यथास्थान प्रयोग किया है। कविता में व्यर्थ के अलंकारों का प्रदर्शन नहीं है। कुछ स्थानों पर उर्दू तथा संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग भी देखने को मिलता है। उन्होंने काव्य-सृजन के लिए प्रबंध व मुक्तक दोनों ही शैलियों को अपनाया है। इनकी शैली में प्रवाह और रोचकता है। राष्ट्रीय कविताएँ ओजपूर्ण हैं।
हिंदी साहित्य में स्थान –
अपनी ओजपूर्ण राष्ट्रीय कविताओं के माध्यम से सुप्त भारतीय जनता को जागरण का संदेश देने वाले कवियों में सोहनलाल द्विवेदी का विशिष्ट स्थान है। गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित होकर द्विवेदी जी ने राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लिया और राष्ट्रीय भावना प्रधान रचनाओं के लिए कवि सम्मेलनों में सम्मानित हुए। द्विवेदी जी की कविताओं का मुख्य विषय ही राष्ट्रीय उद्बोधन है। खादी प्रचार, ग्राम सुधार देशभक्ति, सत्य, अहिंसा और प्रेम द्विवेदी जी की कविताओं के मुख्य विषय है। इनकी गणना राष्ट्रीयता एवं स्वदेश-प्रेम का शंख फूंकने वाले प्रमुख कवियों में की जाती है।
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