शिक्षा के प्रकार | Types of Education:-
शिक्षा के प्रकार
Types of Education
शिक्षा जीवनपर्यन्त चलने वाली अनवरत् क्रिया है। बालक अपने वातावरण में प्रत्येक समय कुछ न कुछ सीखता रहता है। प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे से सीखता रहता है। यह सीखना सिखाना ही शिक्षा है किन्तु कैसे सीखा जाय? सीखना क्या है, कहाँ सीखा जाये, कैसे सीखा जाय इत्यादि सभी बातों का उत्तर पाने के लिये हमें शिक्षा के प्रकारों को समझना होगा। शिक्षा का कार्य मात्र औपचारिक केन्द्र विद्यालय में ही पूरा नहीं होता वरन् वह अनेक प्रकार से प्राप्त होती है। समय, प्रत्यक्षता संख्या तथा विशिष्टता के दृष्टिकोण से शिक्षा को निम्नलिखित भागों में बाँट सकते हैं-
- औपचारिक शिक्षा (Formal Education)
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अनौपचारिकया निरौपचारिक शिक्षा (Informal Education)
औपचारिक शिक्षा
Formal Education
नियमित शिक्षा को औपचारिक शिक्षा कहा जाता है। जो किसी निर्धारित समय तथा समझ से आरम्भ की जाती है। इस शिक्षा योजना के बारे में छात्र को पहले से ही यह ज्ञात होता है कि क्या शिक्षा दी जा रही है ? इस शिक्षा के लिये पहले योजना बना ली जाती है तथा शिक्षा के उद्देश्य निर्धारित कर लिये जाते हैं। उद्देश्यों के अनुकूल शिक्षा के लिये पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम की शिक्षा के लिये शिक्षण की विधियों का निर्धारण किया जाता है। औपचारिक शिक्षा केवल विद्यालय की सीमा में ही दी जाती है। इसके अतिरिक्त चर्च, मदरसा, पुस्तकालय, पुस्तकों तथा चित्रों आदि के द्वारा भी शिक्षा दी जा सकती है। इस प्रकार की सभी संस्थाओं का निर्माण समाज करता है। यह संस्थाएँ शिक्षा की संस्थाएँ कहलाती हैं। यह छात्र को क्रिया करने का अवसर प्रदान करती हैं। छात्र को अनुभव प्रदान करती हैं। उसके व्यवहार को परिमार्जित करती हैं।
औपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ-
औपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ अग्रलिखित प्रकार हैं-
- औपचारिक शिक्षा नियमित होती है।
- औपचारिक शिक्षा में पहले योजना बना ली जाती है।
- इसमें शिक्षा के उद्देश्य पहले से ही निर्धारित होते हैं।
- औपचारिक शिक्षा में उद्देश्यों की प्राप्ति के अनुसार ही पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है।
- औपचारिक शिक्षा शिक्षण संस्थाओं की सीमा में दी जाती है।
- इस शिक्षा के निर्धारित पाठ्यक्रम के शिक्षण हेतु शिक्षण विधियाँ निर्धारित होती हैं।
- औपचारिक शिक्षा चर्च तथा मदरसा आदि में भी दी जा सकती है।
- वे संस्थाएँ जिनका निर्माण समाज करता है। औपचारिक शिक्षा प्रदान करती हैं
- औपचारिक शिक्षा के उद्देश्य सामान्य तथा आदर्शात्मक होते हैं।
- यह शिक्षा सामाजिक जीवन की आकांक्षाओं, मान्यताओं, आदर्शों तथा आवश्यकताओं की प्रतीक है
- इस शिक्षा का पाठ्यक्रम व्यापक, बहुद्देशीय एवं जीवन से सम्बद्ध होता है।
- यह शिक्षा वर्तमान, अतीत एवं भावी जीवन की तैयारी है।
अनौपचारिकया निरौपचारिक शिक्षा
Informal Education
अनौपचारिक या निरौपचारिक शिक्षा अनियमित शिक्षा कहलाती है। अनियमित शिक्षा, वह शिक्षा है जिसमें किसी निश्चित समय, पाठ्यक्रम, शिक्षण, विद्यालय, अनुशासन तथा वातावरण की आवश्यकता नहीं है। भारतीय विचारधारा के अनुसार तो शिक्षा माँ के गर्भ से ही प्रारम्भ हो जाती है और मृत्यु तक चलती रहती है; जैसे- चक्रव्यूह का तोड़ना अभिमन्यु ने अपनी माँ के गर्भ में ही सीख लिया था। व्यावहारिक रूप में हम देखते हैं कि छात्र आरम्भ में अपनी माँ से, उसके उपरान्त पिता, भाई, बहन, परिवार, पड़ोस, समाज, देश, शिक्षक तथा वातावरण आदि से अनेक तथ्यों को सीखता है। प्राथमिक शिक्षा के सार्वजनीकरण के लक्ष्य की प्राप्ति निर्धारित अवधि में न होने के कारण वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में प्रदेश में अनौपचारिक शिक्षा योजना’ का आरम्भ किया गया है।
व्यक्ति जीवन की यथार्थ समस्याओं और आवश्यकताओं से सम्बन्ध रखता है। इस प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु की जाती है। जो संस्थाएँ अनौपचारिक शिक्षा का प्रबन्ध करती हैं, उन्हें अनौपचारिक संस्थाएँ कहा जाता है। अनौपचारिक शिक्षा के शाब्दिक अर्थ से स्पष्ट होता है कि जो शिक्षा औपचारिक नहीं है, अनौपचारिक कहलाती है। अनौपचारिक शिक्षा व्यावहारिक होती है और उसका सम्बन्ध मनुष्य की विशिष्ट आवश्यकताओं से होता है। अनौपचारिक शिक्षा में अनौपचारिकताओं का स्थान गौण होता है तथा अप्रधानता लिये रहता है, जबकि औपचारिक शिक्षा नियमबद्ध होती है तथा उसका विधान होता है। अनौपचारिक शिक्षा के नियम ढीले तथा लचीले रहते हैं। इसमें शिक्षा का पाठ्यक्रम, संगठन तथा व्यवस्था का अभाव रहता है।
राज्य शिक्षा संस्थान के अनुसार, “अनौपचारिक शिक्षा औपचारिकता से मुक्त एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था है, जो औपचारिक शिक्षा की सीमाओं और कमियों की पूर्ति करती है। इस व्यवस्था में वे औपचारिक तत्त्व नहीं हैं, जो जन शिक्षा की दिशा में उनकी क्षमता को सीमित करते हैं। अत: यह औपचारिकता से मुक्ति की शिक्षा व्यवस्था है। यह एक सुनियोजित लचीली शिक्षा व्यवस्था है, जो समुदाय की आवश्यकतानुसार नगर और ग्राम क्षेत्र की स्थानीय पृष्ठभूमि में छात्रों को शिक्षित करती है तथा स्थानीय परिवेश में प्रविष्ट समाजोपयोगी कार्यों द्वारा जीवनोपयोगी व्यवस्था हेतु तैयार करती है। यह योजना कम समय में एक लचीले पाठ्यक्रम द्वारा एक निरक्षर अथवा अपूर्ण रूप से अशिक्षित को शिक्षित करती है।”
अनौपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ-
अनौपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ निम्नलिखित प्रकार हैं-
- अनौपचारिक शिक्षा का उद्देश्य वास्तविक तथा समयानुसार होता है। यह व्यक्ति की आवश्यकताओं एवं समस्याओं की जानकारी तथा उनकी पूर्ति एवं समाधान से सम्बन्धित होता है।
- यह शिक्षा व्यावहारिक होती है। इसका सम्बन्ध मनुष्य की प्रत्यक्ष आवश्यकताओं से होता है।
- इस शिक्षा का क्षेत्र सीमित होता है। अनौपचारिक शिक्षा के नियमों तथा क्रमों में लचीलापन होता है
- यह शिक्षा वर्तमान पर अधिक बल देती है।
- इस शिक्षा के पाठ्यक्रम का उद्देश्य सीमित तथा सम-सामयिक वातावरण हेतु होता है।
- इस शिक्षा की शिक्षण विधियाँ, उद्देश्य एवं आवश्यकताओं के अनुरूप होती हैं।
- इस शिक्षा का संगठन एवं प्रशासन व्यक्ति की मूल आवश्यकताओं, समस्याओं, भौतिक साधनों की उपलब्धि एवं मानवीय साधनों की प्राप्ति हेतु होता है।
- अनौपचारिक शिक्षा व्यावहारिक होती है। इसका सम्बन्ध मनुष्य की प्रत्यक्ष आवश्यकताओं से होता है। अनौपचारिक शिक्षा का आधार यथार्थ होता है।
- इसका लक्ष्य भी विशिष्ट होता है।
- अनौपचारिक शिक्षा पाठ्यक्रम के चयन का मुख्य आधार आसन्न समस्याएँ होती हैं। इसी कारण इसके उद्देश्य सीमित होते हैं।
अनौपचारिक शिक्षा के उद्देश्य (Aims of informal education)
अनौपचारिक शिक्षा के उद्देश्य इस प्रकार हैं-
- भावी जीवन की उन्नति तथा समृद्धि हेतु।
- संवैधानिक लक्ष्यों की पूर्ति हेतु।
- औपचारिक शिक्षा की कमियों तथा उनकी पूर्ति हेतु।
- शैक्षिक स्तर के उन्नयन हेतु।
- शिक्षा स्तर में गिरावट तथा छात्रों में उसके प्रति उदासीनता के समाधान हेतु।
- जनसंख्या वृद्धि से उत्पत्र कठिनाइयों के निवारण हेतु ।
परोक्त उद्देश्यों की पूर्ति औपचारिक शिक्षा के द्वारा नहीं हो सकती, परम्परागत शिक्षा व्यवस्था उपयोगी सिद्ध नहीं होगी। इसी कारण आजकल अनौपचारिक शिक्षा पर विशेष बल दिया जा रहा है। अनौपचारिक शिक्षा अब केवल कल्पना ही नहीं, वरन् अनिवार्य आवश्यकता भी बन गयी है। भारत जैसे निर्धन देश में सभी छात्रों को औपचारिक शिक्षा नहीं दी जा सकती। सभी छात्रों को शिक्षित करने के लिये न तो सरकार के पास धन है और न ही सभी अभिभावक अपने छात्रों को शिक्षा देने में समर्थ हैं। जो कुछ औपचारिक शिक्षा विद्यालयों में दी जाती है, वह भी अनुपयोगी सिद्ध होती है। इसी कारण औपचारिक शिक्षा प्रणाली का कोई विकल्प ढूँढना ही होगा। अनौपचारिक शिक्षा ही इसका विकल्प है। यह शिक्षा औपचारिक शिक्षा के पूरक की भाँति कार्य करेगी।
अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम (Informal education programme)-
उन व्यक्तियों को अनौपचारिक शिक्षा दी जानी चाहिये, जो अपना और समाज का भला करना चाहते हैं। इसके अन्तर्गत उन सभी स्त्री-पुरुषों को सम्मिलित किया जा सकता है, जो भविष्य के प्रति आशावान हैं और आज की समस्याओं को सुलझाना चाहते हैं। अनौपचारिक शिक्षा किसी एक प्रकार के व्यक्ति को नहीं दी जाती। इसमें अनेक प्रकार के व्यक्ति सम्मिलित किये जा सकते हैं।
साधारणतया निम्नलिखित प्रकार के व्यक्तियों को अनौपचारिक शिक्षा दी जा सकती है-
- निरक्षर छात्र, जो 6 से 14 आयु वर्ग के हैं।
- निरक्षर प्रौढ़, जो 15 से 25 आयु वर्ग के हैं।
- अर्द्धशिक्षित प्रौढ़ों के लिये।
- व्यवसायपरक प्रशिक्षण हेतु।
- सभी के लिये निरन्तर प्रदान की जाने वाली शिक्षा व्यवस्था।
- कृषकों तथा मजदूरों के लिये अनौपचारिक शिक्षा।
- विश्वविद्यालयी अनौपचारिक शिक्षा।
उत्तर प्रदेश में अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम ( Informal education programme in Uttar Pradesh )-
उत्तर प्रदेश में अनौपचारिक शिक्षा की तीन पूर्ण योजनाएँ और एक अग्रगामी योजना चल रही है। प्रथम तीन योजनाएँ उत्तर प्रदेश सरकार चला रही है और चौथी योजना राष्ट्रीय शैक्षिक शोध एवं प्रशिक्षण परिषद् (N.C.E.R.T.) द्वारा चलायी जा रही है।
इन योजनाओं का विवरण अग्रलिखित प्रकार है-
- अंशकालिक शिक्षा केन्द्र : 11 से 14 वर्षीय छात्रों हेतु।
- प्रौढ़ साक्षरता योजना।
- किसान साक्षरता योजना।
- भूमियाधार अग्रगामी परियोजना।
अनौपचारिक एवं औपचारिक शिक्षा में सम्बन्ध
Relation Between Formal and Informal Education
अनौपचारिक तथा औपचारिक शिक्षा के सम्बन्ध को देखा जाय तो दोनों एक-दूसरे की विरोधी नहीं बल्कि सहयोगी हैं। अनौपचारिक शिक्षा ही औपचारिक शिक्षा को सफल बना सकती है, जो बिना किसी महत्त्वपूर्ण नियोजन के निरन्तर चलती रहती है। इसके प्रमुख साधन परिवार, समाज, राज्य, देश, खेलकूद, संगीत, समाचार-पत्र, किताबें, नाटक, चलचित्र एवं मानव समूह आदि हैं, जो किसी भी समय, किसी भी प्रकार से छात्र पर प्रभाव डालते हैं और छात्र की रुचि को एक निश्चित दिशा प्रदान करते हैं।
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