राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन संस्थान पर निबन्ध
राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन संस्थान- आपदा प्रबन्धन अधिनियम 2005 के – स्थापित राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन संस्थान को मानव संसाधन विकास, क्षमता निर्माण, प्रशिक्षण, अनुसंधान, प्रलेखन और आपदा प्रबन्धन के क्षेत्र में नीति की वकालत के लिए नोडल राष्ट्रीय जिम्मेदारी सौंपी गई है। 16 अक्टूबर, 2003 को भारतीय लोक प्रशासन संस्थान के आपदा प्रबन्धन राष्ट्रीय केन्द्र से उन्नत राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन संस्थान, सभी स्तरों पर रोकथाम और तैयारियों की संस्कृति को विकसित कर व बढ़ावा देकर आपदा के प्रति सहिष्णु भारत निर्मित करने के अपने मिशन को पूरा करने हेतु तेजी से अग्रसर है।
प्रबन्धन संरचना-
केन्द्रीय गृह मंत्री इस संस्थान के अध्यक्ष होते हैं जो 42 सदस्यों का एक सामान्य निकाय है जिनमें प्रख्यात विद्वानों, वैज्ञानिकों और चिकित्सकों के अलावा भारत सरकार और राज्य सरकारों के विभिन्न नोडल मंत्रालयों और विभागों के सचिव और राष्ट्रीय स्तर के वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी संगठनों के प्रमुख शामिल होते हैं। इस संस्थान का 16 सदस्यीय शासी निकाय होता है जिसके अध्यक्ष राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण के उपाध्यक्ष होते हैं। कार्यकारी निदेशक इस संस्थान का दिन-प्रतिदिन का प्रशासन संचालित करते हैं।
मिशन-
नीति निर्माण और सहायता प्रदान करके सरकार के लिए एक थिंक टैंक के रूप में काम करना और इनके माध्यम से आपदाओं के प्रभाव को कम करने में सुविधा प्रदान करना-
सामरिक सीखने सहित प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण सेवाओं का नियोजन एवं उन्हें देना। बढ़ावा देना।
राष्ट्रीय स्तर की जानकारी का अनुसंधान, प्रलेखन और विकास। प्रभावी आपदा तैयारियों और शमन के लिए प्रणाली का विकास और विशेषज्ञता को सभी हितधारकों के ज्ञान और कौशल को बढ़ावा देना और जागरूकता बढ़ाना। सभी हितधारकों के सभी स्तरों पर प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के लिए संस्थागत तंत्र को मजबूत बनाना।
“नेटवर्किंग और जानकारी, अनुभव और विशेषज्ञता के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करना।
कार्य-
आपदा प्रबन्धन अधिनियम 2005 के तहत संस्थान को अन्य बातों के अलावा, साथ-साथ में, निम्नलिखित कार्य सौंपे गए हैं-
प्रशिक्षण मॉड्यूल्स का विकास, आपदा प्रबन्धन में अनुसंधान और प्रलेखन कार्य और प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन।
आपदा प्रबन्धन के सभी पहलुओं को शामिल करते हुए एक व्यापक मानव संसाधन विकास योजना तैयार कर लागू करना। राष्ट्रीय स्तर पर नीति निर्माण में सहायता प्रदान करना।
विभिन्न हितधारकों के लिए प्रशिक्षण और अनुसंधान कार्यक्रमों के विकास हेतु प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थाओं को आवश्यक सहायता प्रदान करना।
आपदा प्रबन्धन के उपाय (Preventive measures of Disasters in Hindi) –
भूकम्प- भूकम्प प्राकृतिक आपदा के सर्वाधिक विनाशकारी रूपों में से एक हैं, जिसके कारण व्यापक तबाही हो सकती है। भूकम्प का साधारण अर्थ है ‘भूमि का कम्पन’ अर्थात् भूमि का हिलना । भूकम्प पृथ्वी की आन्तरिक क्रियाओं के परिणामस्वरूप आते हैं। पृथ्वी के आन्तरिक भाग में होने वाली क्रियाओं का प्रभाव पर्पटी पर भी पड़ता है और उसमें अनेक क्रियायें होने लगती हैं। जब पर्पटी की हलचल इतनी शक्तिशाली हो जाती है कि वह चट्टानों को तोड़ देती है और उन्हें किसी भ्रंश के साथ गति करने के लिए मजबूर कर देती है, तब धरती के सतह पर कम्पन या झटके, उत्पन्न हो जाते हैं। कम्पन ही भूकम्प होते हैं, भूकम्प का पृथ्वी पर विनाशकारी प्रभाव भूस्खलन धरातल का धसाव मानव निर्मित पुलों, भवनों जैसी संरचनाओं की क्षति या नष्ट होने के रूप में दृष्टिगोचर होता है। वैसे तो भूकम्प पृथ्वी पर कहीं भी व कभी भी आ सकते हैं लेकिन इनके उत्पत्ति के लिए कुछ क्षेत्र, बहुत ही संवेदनशील होते हैं। संवेदनशील क्षेत्र से तात्पर्य पृथ्वी के उन दुर्बल भागों से है जहाँ बलन और भ्रंश की घटनाएँ होती हैं। इसके साथ ही महाद्वीप और महासागरीय सम्मिलन के क्षेत्र ज्वालामुखी भी भूकम्प उत्पन्न करने वाले प्रमुख स्थान हैं। चक्रवात- हम सभी जानते हैं कि इसमें वायु बाहर की ओर से केन्द्र की ओर घूमती हुई ऊपर उठती है। इसके केन्द्र में न्यून वायुदाब तथा चारों ओर उच्च वायुदाब रहता है। वायु की क्षैतिज एवं लम्बवत दोनों ही गति तेज रहती है जिसमें आंधी, तूफान के साथ-साथ ओलावृष्टि तथा भारी वर्षा होती है। थोड़ी ही देर में मौसम परिवर्तित हो जाता उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों हरिकेन तथा टाईफून का उल्लेख करना महत्त्वपूर्ण है। चीन में इन्हें । इस संदर्भ में टाईफून तथा दक्षिणी संयुक्त राज्य एवं अमेरिका एवं मैक्सिको में इन्हें हरिकेन कहा जाता है। इसकी गति 90-125 किमी प्रति घंटा तक देखी गयी है। वायु की तीव्र गति के कारण समुद्री जल के खम्भे बनकर तटवर्ती क्षेत्रों में घुसकर विनाश का भ्यावह ताण्डव करते हैं।
भूस्खलन- भूस्खलन भी एक प्राकृतिक घटना है। भूस्खलन भूमि उपयोग को सीधा प्रभावित करता है। प्रायः पर्वतीय भागों जैसे भारत के हिमालयी पर्वत के ढालू भागों में घटती है। चट्टानों का नीचे खिसकना भूस्खलन कहलाता है। यह क्रिया प्राकृतिक एवं मानवीय कारणों से हो सकती है। इसमें सड़क अवरुद्ध हो जाती है। बाँध टूट जाते हैं तथा गाँव शहर नष्ट हो जाते हैं, भूस्खलन के लिये प्राकृतिक कारणों में भूकम्प सबसे प्रभावशाली कारक है। इसके साथा ही वनों के ह्रास, जल के रिसाव, अपश्रय भू-क्षरण तथा अधिक वर्षा के साथ ही मानवीय क्रियायें जैसे- सड़क निर्माण, उत्खनन, सुरंग, बांध, जलाशाय से भूस्खलन को बढ़ावा मिलता है। सिक्किम, भूटान तथा नेपाल जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन के कारण प्रायः मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं।
बाढ़ आपदा- किसी बड़े शहर या भू-भाग का जलमग्न होना जिसमें अपार जनधन की हानि होती है, बाढ़ कहलाती है। इसके उत्तरदायी कारकों को अतिवृष्टि पर्यावरण विनाश, भूस्खलन, बांध, तटबन्ध तथा बैराज का टूटना, सड़क तथा अन्य निर्माण कार्य नदियों में गाद बढ़ना, नदियों में निर्मित बांधों में तलछट भरना आदि है। केन्द्रीय बाढ़ आयोग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1953 से 1990 के मध्य औसत रूप से प्रतिवर्ष 7944 मि.हे. क्षेत्र बाढ़ प्रभावित होता रहता है। बाढ़ द्वारा सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र वर्ष 1978 में 17500 मि.हे. क्षेत्र भी रहा है। 19953 से 1990 के मध्य की अवधि में औसत रूप से प्रतिवर्ष 12,18,690 भवन तथा 1532 व्यक्ति बाढ़ आपदा के शिकार हुए हैं। जबकि इसी अवधि में सर्वाधिक 3507542 भवनों का विनाश वर्ष 1978 में तथा सर्वाधिक 11316 व्यक्ति वर्ष 1977 में बाढ़ के शिकार हुए हैं। हमारे देश में न केवल बाढ़ प्रभावित भूभाग बढ़ता जा रहा है बल्कि बाढ़ प्रभावित जनसंख्या भी बढ़ती जा रही है। खाद्य एवं कृषि संगठन के एक ताजा अनुमान के अनुसार देश की लगभग 25 करोड़ आबादी उन क्षेत्रों में निवास कर रही है जहाँ बाढ़ के प्रकोप की आशंका है।
सुनामी आपदा- सुनामी दो शब्दों से मिलकर बना है। TSU का अर्थ है बन्दरगाह M और NAMI का अर्थ है लहरें। इसे ज्वारीय या भूकम्पीय लहरें भी कहते हैं। समुद्र की सतह हिलने के कारण तली के ऊपर भरा पानी ऊपर नीचे उठता गिरता है। जिससे सुनामी लहरें पैदा होती हैं। भारत में सुनामी का मुख्य केन्द्र उत्तरी भाग एक ही संवेदनशील भूकम्पीय पट्टी से जुड़ा है। यह पट्टी गुजरात के भुज क्षेत्र से हिमालय की तलहटी और म्यांमार होती हुयी सुमात्रा द्वीप तक है।
बादल फटना- इनमें हवायें तजी से उठती हैं। बिजली की चमक एवं बादलों की गरज के साथ तीव्र वर्षा होती है। ओलापात भी हो सकता है। मूसलाधार वृष्टि के कारण गाँव के गाँव बह जाते हैं। इसके अतिरिक्त अनेक मानव जनित आपदायें होती हैं। इनका निराकरण हमारी सूझबूझ, सावधानी, विवेक व परस्पर सहयोग से सम्भव है। देश में लगभग हर समय किसी न किसी प्रकार की प्राकृतिक मानव-जनित या अन्य प्रकार की आपदायें आती रहती हैं। इसका प्रबन्धन करने की आवश्यकता होती है।
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