विद्यालय मध्याह्न भोजन से आप क्या समझते है ? भोजन के विभिन्न कार्यों पर टिप्पणी लिखिए।
अधिकांश भारतीय गरीबी एवं निरक्षता के कारण न तो सन्तुलित भोजन के महत्त्व को समझ पाते हैं और न उसकी व्यवस्था कर पाते हैं। स्वास्थ्य मन्त्रालय के पोषण सलाहकार बोर्ड के अनुसार भारत में लगभग 12 से 14 हजार बच्चे विटामिन ‘ए’ की कमी के कारण प्रतिवर्ष अन्धे हो जाते हैं। भोजन में विटामिन ‘ए’ की कमी के कारण बच्चों में होने वाले अन्धेपन को रोकने के लिए उन्हें हर 6 महीने बाद स्वास्थ्य केन्द्रों के द्वारा विटामिन ‘ए’ की एक तेज खुराक दी जाती है। बालकों को पौष्टिक आहार प्रदान करने एक लिए सन् 1961 में विद्यालय मध्याह्न भोजन कार्यक्रम लागू किया गया। साथ ही विभिन्न विद्यालयों में स्कूल कैण्टीन की व्यवस्था के लिए सन् 1961 में विद्यालय मध्याह्न भोजन कार्यक्रम लागू किया गया। साथ ही विभिन्न विद्यालयों में स्कूल कैण्टीन की व्यवस्था के लिए कदम उठाये गये जिसमें बच्चों को पौष्टिक भोज्य पदार्थों की उपलब्धि पर बल दिया गया। बहुत से विद्यालयों ने अवकाश के समय छात्रों को भुने चने या उबले चने देने की भी व्यवस्था की। इन विभिन्न प्रावधानों के द्वारा छात्रों को विभिन्न भोज्य पदार्थों के माध्यम से आवश्यक कैलोरी प्रदान की गयी। विद्यालय मध्याह्न भोजन की व्यवस्था के लिए सरकार, धर्मार्थ संगठनों, ऐच्छिक संगठनों आदि द्वारा आर्थिक सहायता प्रदान की जानी चाहिए, जिससे सभी विद्यालयों में इसकी व्यवस्था सम्भव हो सके।
प्रायः भजोन में सभी तरह के पौष्टिक पदार्थ भिन्न-भिन्न अनुपात में होते हैं। ऐसा कोई भी आहार भोजन पदार्थ नहीं है जो सम्पूर्ण हो अर्थात् संतुलित भोजन के सभी तत्त्व एक ही पदार्थ में हो ऐसा सम्भव नहीं है। इसी प्रकार के शरीर में भी विभिन्न कार्य हैं।
भोजन के इस कार्य को हम सामान्य रूप से तीन भागों में बाँटते हैं-
- शारीरिक कार्य
- मनोवैज्ञानिक कार्य
- सामाजिक कार्य
1. शारीरिक कार्य- शारीरिक क्रियाओं को सुचारू रूप से करने के लिए आहार की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके अन्तर्गत भोजन तीन तरह से शारीरिक कार्यों में सहायता करता है।
(i) ऊर्जा प्रदान करना— भोजन का मुख्य कार्य कायिक है, यह कार्य शरीर को ऊर्जा देता है। कोशिकाओं तथा ऊतकों का निर्माण करने व उन्हें बनाये रखने और शारीरिक प्रक्रियाओं को करने के लिए भोजन सामग्री उपलब्ध कराता है ऊर्जा पैदा करने वाले खाद्य पदार्थ हैं बसा, कार्बोहाइड्रेट, अनाज, मेवे और शर्करा ।
(ii) ऊतकों का निर्माण- भोजन का दूसरा मुख्य कार्य है शरीर का निर्माण करना। यह निर्माण करने वाले सबसे प्रचुर पदार्थ जल, प्रोटीन, दूध, मांस, मछली, अंडे, दाले, तिलहन तथा काष्ठ फल आते हैं।
(iii) शरीर की क्रियाओं को नियमित करना- भोजन का तीसरा कार्य शरीर के प्रक्रियाओं को निमियत करना है भोजन के पोषण देने वाले सभी तत्त्व कार्बोहाइड्रेट को छोड़कर शारीरिक प्रक्रियाओं को नियमित करने में योगदान करते हैं जैसे द्रव्यों का संचालन, अम्ल या पित में संतुलन कायम करने में रक्त के जमाव, एंजाइम को क्रियाशील करने शरीर के तापमान को सामान्य बनाना आदि।
2. भोजन के मनोवैज्ञानिक कार्य- भोजन हमारी कुछ भावनात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। हमारी भूख और प्यास सम्बन्धी प्रेरकों की संतुष्टि होती है। भावनाओं को प्रकट करने के लिए भी भोजन का प्रयोग किया जाता है। भोजन का निमन्त्रण या आयोजन मित्रता का प्रतीक है। रुचिकर भोजन कराने का अर्थ है विशेष आदर देना और मान्यता प्रदान करना आहार आत्म प्रदर्शन करने का भी एक अच्छा साधन है घर में जब मेहमान आते हैं तो गृहिणी स्वादिष्ट व अच्छा खाना बनाकर खिलाती हैं और ऐसे खाने की जब प्रशंसा की जाती है तो गृहिणी को आनन्द की अनुभूति होती है। अतः कहा जा सकता है कि आहार से हमें मनोवैज्ञानिक संतुष्टि भी प्राप्त होती है।
3. सामाजिक कार्य- भोजन एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा सामाजिकता को बढ़ावा मिलता है। कुछ सामाजिक अवसरों पर आयोजित भोज अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक निकटता स्थापित करने में सहायक होते हैं। इसी कारण जब कोई भी आयोजन या कार्यक्रम होते हैं तो उसकी समाप्ति पर अन्त में जलपान या भोजन की व्यवस्था की जाती है जिससे आपसी सहयोग ..को बढ़ावा मिलता है तथा सामाजिक गुणों का विकास होता है। सामाजिक समारोह के अवसर पर आयोजित भोज में पौष्टिकता के तत्त्वों का कम और मेहमानों की रुचि का अधिक ध्यान रखा जाता है। अतः हम कह सकते हैं कि आहार केवल शरीर की आवश्यकताओं का ही ध्यान नहीं रखता बल्कि मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक कार्यों की भी पूर्ति करता है।
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