बाल-अपराध की परिभाषा दीजिये और भारत में इस समस्या के समाधान के उपाय एवं रणनीति की चर्चा कीजिए।
बाल-अपराध का अर्थ-
बाल-अपराध का अर्थ- प्रत्येक व्यक्ति की कुछ इच्छाएँ, आवश्यकताएँ व आकांक्षाएँ हुआ करती हैं और व्यक्ति यह चाहता है कि उनकी इन इच्छाओं, आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति समाज के प्रचलित ढंग व सर्वमान्य तरीकों और राज्य द्वारा बनाये गये कानून के अनुसार होती रहे ताकि व्यक्ति की समाज में बेहतर स्थिति और स्थान बना रहे लेकिन कभी-कभी व्यक्ति की आवश्यकता और इच्छाओं की पूर्ति समाज द्वारा मान्य ढंग व कानून के अनुसार नहीं हो पाती है। अतः या तो व्यक्ति की इच्छाएँ दबी रह जाती है या व्यक्ति उनको पूरा करने के लिए समाज-विरोधी व्यवहार को अपराध कहा जाता है और व्यक्ति को अपराधी। जब यह प्रकृति या व्यवहार 16-17 वर्ष तक के बच्चों में पाया जाता है, उनके इस व्यवहार को बाल-अपराध कहा जाता है और उनको बाल-अपराधी।
बाल-अपराध की परिभाषा-
बाल-अपराध की परिभाषा निम्नलिखित है-
1. डॉ. सेधना– “बाल अपराध में एक राज्य विशेष में उस समय प्रचलित कानून निर्धारित एक निश्चित आयु से कम के बच्चों या युवकों द्वारा किये गये अनुचित कार्यों का समावेश होता है।”
2. हीली– “व्यवहार के सामाजिक नियमों से विचलित होने वाले बालक को बाल- अपराधी कहा जाता है।”
3. न्यूमेर– “एक बाल-अपराधी निर्धारित आयु से कम आयु का वह व्यक्ति है जो समाज विरोधी आचरण का दोषी है और जिसका वह आचरण कानून का उल्लंघन करता है।”
4. मावरर– “बाल-अपराधी वह व्यक्ति है जो जान-बूझकर इरादे के साथ एवं समझते हुए उस समाज की रूढ़ियों की उपेक्षा करता है जिससे उसका सम्बन्ध है।”
5. डॉ. सुशील चन्द्र– “स्थापित आदर्श आचरण जो सामाजिक सामान्य आचरण होता है, जो विचलन अपराधी-व्यवहार का प्रतीक होता है।”
समाधान-
देश में बालकों से जुड़े अपराधों के कलंक से निजात पाने के लिए बहुत ठोस कार्यक्रमों का क्रियान्वयन नहीं हो पाया है। इस ओर विशेष ध्यान देकर विभिन्न प्रकार के कार्यों में लगे बाल श्रमिकों को ठीक-ठीक संख्या, उनकी ठीक-ठीक आयु, पारिवारिक स्थिति, शैक्षिक स्तर, कार्य के घंटे, कार्य की दशाएं, वेतन तथा पाश्रिमिक आदि की सही सूचनाएं संकलित की जानी अपरिहार्य है, तभी उनके पुनर्वास अथवा कल्याण की योजनाओं को मूर्त रूप दिया जाना संभव हो सकेगा।
बालकों की समस्या तथा उनसे जुड़े अपराधों की समस्या का गंभीर कारण देश में बाल व्याप्त अशिक्षा गरीबी और बेरोजगारी है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने दिसंबर 1996 के श्रम से संबंधित निर्णय में बालश्रम के लिए ‘गरीबी’ को उत्तरदायी मानते हुए कहा है कि ‘जब तक परिवार के लिए आय की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हो पाती, तब तक बालश्रम से निजात पाना मुश्किल है। यह निर्विवाद सत्य है कि देश में अधिकांश बालश्रमिक पारिवारिक गरीबी अथवा उद्देश्य से अभिभावकों द्वारा उन्हें असमय ही परिवार के बोझ को उठाने के लिए विवश किया सदस्य को रोजगार के अवसरों की गारंटी प्रदान करने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नजर जाता है। अतः इस समस्या से निजात पाने के लिए प्रत्येक परिवार के कम से कम एक प्राक्ष नहीं आता है। इसके लिए सरकार को बेरोजगारी निवारण की अधिक व्यावहारिक, कारगर और प्रभावी योजनाएं बनाकर उनको ठीक से क्रियान्वित करना होगा तथा ऐसे परिवारों को जिनमें कोई प्रौढ़ अथवा रोजगार युक्त सदस्य नहीं है, उनको नियमित आय के साधन जुटाने हेतु आवश्यक कदम उठाने होंगे।
इस समस्या से निजात पाने के लिए बाल अधिकारों से समर्थित अंतर्राष्ट्रीय संगठनों एवं विभिन्न देशों द्वारा बाल श्रमिकों के हाथों से बने सामान के बहिष्कार एवं उनके आयात पर लगाये गये प्रतिबंधों से ठोस कदम भी अपने देश के नागरिकों द्वारा उठाये जा सकते हैं और इसके लिए जरूरत होगी देश में जनचेतना लाने हेतु जनांदोलन चलाने की।
पिछले कुछ वर्षों में इस समस्या के निराकरण के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को अनुच्छेद 45 की याद दिलाते हुए कहा कि शिक्षा का बच्चों को मौलिक अधिकार है, उन्हें निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाए। इसके अनुपालन में देर से सही लेकिन वर्ष 2003 में 93वां संविधान संशोधन पास कर दिया गया। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी निर्णित किया कि श्रम निरीक्षक यह भी देंखे कि बाल श्रमिकों के काम के घंटे 4-6 के बीच हों और उन्हें प्रतिदिन काम के दौरान नियोजकों के खर्च पर दो घंटे का समय शिक्षा प्राप्ति के लिए उपलब्ध कराया जाय।
पिछले कुछ वर्षों से बाल श्रमिकों को गरीबी से उत्पन्न हुए आपराधिक कृत्यों से दूर रखने के लिए बालश्रम पुनर्वास के लिए विशेष विद्यालय एवं पुनर्वास केन्द्रों की व्यवस्था भी की गयी है जहाँ रोजगार हटाये गये बच्चों को अनौपचारिक शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, अनुपूरक पोषाकार आदि की विशेष व्यवस्था की गयी है। इस परियोजना के अंतर्गत देश में अभी तक आंध्र प्रदेश, बिहार तथा उड़ीसा में दो लाख 13 हजार बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था की गयी है।इनमें से करीब 1,33 लाख बच्चे औपचारिक स्कूलों की मुख्यधारा में सम्मिलित किये जा चुके हैं।
बालश्रमिकों की स्थिति तथा उनसे जुड़े अपराधों को दूर करने के लिए बालकों को मनोवैज्ञानिक तरीकों से समझाने के उचित अवसर तथा उचित परिवेश पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। बच्चों को ‘योग’, ‘ध्यान’ आदि के माध्यम से उनके मन में संचित विकारों को दूर किया जा सकता है। बालगृहों तथा बाल-संरक्षण गृहों आदि में क्रिया चिकित्सा तथा परिवेश चिकित्सा आदि का सहारा लेकर बच्चों में आपराधिक प्रवृत्ति को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।
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