रहीमदास का जीवन परिचय,जन्म परिचय तथा उनकी रचनाएँ,और भाषा-शैली
रहीमदास का जीवन परिचय
रहीमदास मध्यकालीन भारत के कुशल राजनीतिवेत्ता, वीर बहादुर योद्धा और भारतीय सांस्कृतिक समन्वय का आदर्श प्रस्तुत करने वाले मर्मी कवि माने जाते हैं। उनकी गिनती विगत चार शताब्दियों से ऐतिहासिक पुरुष के अलावा भारत माता के सच्चे सपूत के रूप में की जाती रही है। आपके अंदर वह सब गुण मौजूद थे, जो महापुरुषों में पाए जाते हैं।
आप ऐसे सौ भाग्यशाली व्यक्तियों में से थे, जो अपनी उभयविध लोकप्रियता के कारण केवल ऐतिहासिक न होकर भारतीय जनजीवन के अमिट पृष्ठों पर यश शरीर से भी जीवित पाए जाते हैं। एक मुसलमान होते हुए भी हिंदू जीवन के अंतर्मन में बैठकर आपने जो मार्मिक तथ्य अंकित किए थे, वे आपकी विशाल हृदयता का परिचय देते हैं। हिंदू देवी- देवताओं, धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं का जहाँ भी आपके द्वारा उल्लेख किया गया है, पूरी जानकारी एवं ईमानदारी के साथ किया गया है। रहीम ने अपने काव्य में रामायण, महाभारत, पुराण तथा गीता जैसे ग्रंथों के कथानकों को उदाहरण के लिए चुना है और लौकिक जीवन व्यवहार पक्ष को उसके द्वारा समझाने का प्रयत्न किया है, जो सामाजिक सौहार्द एवं भारतीय संस्कृति की झलक को पेश करता है, जिसमें विभिन्नता में भी एकता की बात की गई है।
जन्म परिचय –
अब्दुर्रहीम खानखाना का जन्म संवत् 1613 (सन् 1556) में इतिहास प्रसिद्ध बैरम खाँ के घर लाहौर में हुआ था। संयोग से उस समय सम्राट हुमायूँ सिकंदर सूरी के आक्रमण का प्रतिरोध करने के लिए सैन्य के साथ लाहौर में मौजूद थे। बैरम खाँ के घर पुत्र की उत्पति की खबर सुनकर वे स्वयं वहाँ गए और उस बच्चे का नाम रहीम’ रखा। रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। एक बार अकबर इनके पिता बैरम खाँ से नाराज हो गए। विद्रोह का आरोप लगाते हुए बैरम खाँ को हज करने मक्का भेज दिया। उनके शत्रु मुबारक खाँ द्वारा बैरम खाँ की हत्या कर दी गई। अकबर ने ही रहीम की शिक्षा का प्रबंध किया। रहीम ने तुर्की, अरबी, फारसी, हिंदी व संस्कृत आदि भाषाओं का समुचित ज्ञान प्राप्त कर लिया। इनकी योग्यता से प्रभावित होकर अकबर ने इन्हें ‘नवरत्नों में स्थान दिया।
रहीम का विवाह –
रहीम की शिक्षा समाप्त होने के पश्चात सम्राट अकबर ने अपने पिता हुमायूँ की परंपरा का निर्वाह करते हुए, रहीम का विवाह बैरमखाँ के विरोधी मिर्जा अजीज कोका की बहन माहबानों से करवा दिया। इस विवाह में भी अकबर ने वहीं किया, जो पहले करता आ रहा था कि विवाह के संबंधों के बदौलत आपसी तनाव व पुरानी से पुरानी कटुता को समाप्त कर दिया करता था। रहीम के विवाह से बैरम खाँ और मिर्जा के बीच चली आ रही पुरानी रंजिश खत्म हो गई। रहीम का विवाह लगभग सोलह साल की उम्र में कर दिया गया था।
मीर अर्ज का पद –
अकबर के दरबार के प्रमुख पदों में से एक मीर अर्ज का पद था। यह पद पाकर कोई भी व्यक्ति रातोरात अमीर हो जाता था, क्योंकि यह पद ऐसा था, जिससे पहुँचकर ही जनता की फरियाद सम्राट तक पहुँचती थी और सम्राट के द्वारा लिए गए फैसले भी इसी पद के जरिए जनता तक पहुँचाए जाते थे। इस पद पर हर दो-तीन दिनों में नए लोगों को नियुक्त किया जाता था। सम्राट अकबर ने इस पद का काम-काज सुचारु रूप से चलाने के लिए अपने सच्चे व विश्वासपात्र अमीर रहीम को मुस्तकिल मीर अर्ज नियुक्त किया। यह निर्णय सुनकर सारा दरबार सन्न रह गया था। इस पद पर आसीन होने का मतलब था कि वह व्यक्ति जनता एवं सम्राट दोनों में सामान्य रूप से विश्वसनीय है।
रहीम दानशील व उदार हृदय के साथ-साथ मृदु स्वभाव के भी थे। अकबर के दरबारी कवि गंग के एक छंद से प्रसन्न होकर इन्होंने उसे 36 लाख रुपये पुरस्कार में दिए। अकबर ने इन्हें ‘खानखाना’ की उपाधि से विभूषित किया। रहीम का अंतिम जीवन कष्टमय रहा। सन् 1627 ई. में रहीम इस संसार से सदा के लिए विदा हो गए।
रचनाएँ-
रहीम की रचनाओं में भक्तिकाल की रचनाओं के समान ही ईश्वर में सहज विश्वास, उसकी दीन-वत्सलता, नाम स्मरण की महत्ता, जप, कीर्तन, भजन का अवलंबन, गुरु की महत्ता, अहंकार का त्याग, जाति-पाँति का विरोध, लोक-मंगल की भावना, संत जीवन का आदर्श- सरलता, निस्पृहता, परोपकार तथा प्रेम-महिमा आदि प्रवृत्तियाँ पाई जाती हैं।
( अ ) बरवै नायिका- भेद वर्णन – यह नायक-नायिका भेद पर लिखित हिंदी का पहला काव्य-ग्रंथ माना जाता है। यह शृंगार प्रधान है। इसकी रचना बरवै छंद में की गई है। इसमें 115 छंद हैं।
(ब) श्रृंगार -सोरठा – यह काव्य-रचना भी शृंगार प्रधान है। अभी तक इसके केवल छ; छंद ही प्राप्त हैं। जो सोरठा छंद में रचित हैं।
(स) मदनाष्टक – यह रहीम की सर्वश्रेष्ठ काव्य-रचना मानी जाती है। यह ब्रजभाषा में रचित है। किंतु इसमें संस्कृत शब्दों के प्रयोग भी हुए हैं। इसमें श्रीकृष्ण और गोपियों की प्रेम संबंधी लीलाओं का सरस चित्रण है।
(द) रहीम-सतसई – इसमें नीति परक और उपदेशात्मक दोहों का संग्रह हुआ है। ये दोहे जनसाधारण में आज भी लोकप्रिय हैं। इनमें से अभी तक 300 दोहे प्राप्त हुए हैं।
(य) रास पंचाध्यायी – यह ‘श्रीमद्भागवतपुराण’ के आधार पर लिखा ग्रंथ है, जो अप्राप्य है।
(र) नगर शोभा – इसमें नगरों में रहने वाली विभिन्न जातियों एवं व्यवसायों की स्त्रियों का वर्णन है।
भाषा-शैली-
रहीम ने अवधी और ब्रजभाषा दोनों में ही कविता की है जो सरल, स्वाभाविक और प्रवाहपूर्ण है। उनके काव्य में शृंगार, शांत तथा हास्य रस मिलते हैं तथा दोहा, सोरठा, बरवै, कवित्त और सवैया उनके प्रिय छंद हैं। रहीम जनसाधारण में अपने दोहों के लिए प्रसिद्ध हैं। हिंदी काव्य में इन्हें बरवै छंद का जनक माना जाता है। प्रायः सभी प्रमुख रसों एवं अलंकारों का प्रयोग इनकी रचनाओं में मिलता है। रहीम ने मुक्तक शैली में ही अपने काव्य का सृजन किया। इनकी यह शैली अत्यंत सरल, सरस और बोधगम्य है।
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