जीवन में त्योहारों का महत्त्व (Importance of Festivals in Life)
प्रस्तावना- भारतवर्ष विभिन्नताओं का देश है जहाँ जाति, रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाजों, त्योहारों सभी में विभिन्नताएँ पायी जाती है। परन्त इस विभिन्नताओं में एकता ही भारत की पहचान है। भारतीय त्योहार ही सांस्कृतिक चेतना तथा मानव की उन्नत भावनाओं के प्रतीक है तथा जन-जीवन में जागृति के प्रेरणा-स्रोत हैं। त्योहार राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता के परिचायक है। त्योहारों ने ही भारतवर्ष की भूमि को देव-भूमि बना दिया है।
विभिन्न त्योहारों का आधार- हमारे देश में अनेक त्योहारों का आगमन होता रहता है। इनमें कुछ त्योहार ऋतु तथा मौसम के अनुसार मनाए जाते हैं, तो कुछ त्योहार सांस्कृतिक या किसी घटना विशेष से सम्बन्धित होकर सम्पन्न होते हैं। कुछ त्योहारों का आधार अतीत के उन महापुरुषों का जीवन है, जिनसे मानव जीवन का बहुत हित हुआ है या फिर जिन महापुरुषों ने संसार में जन्म लेकर अपने अद्भुत तथा विस्मयकारी कार्यों से पूरे विश्व को चमत्कृत कर दिया है। कुछ त्योहार ऐसे भी है, जिन्हें हम राजनैतिक त्योहारों की श्रेणी में रख सकते हैं।
भारतवर्ष के विविध त्योहार- भारतवर्ष में मुख्यतयः त्योहारों के दो प्रमुख वर्ग हैं- धार्मिक तथा राष्ट्रीय। धार्मिक त्योहार हमारी संस्कृति व सभ्यता को उजागर कर पौराणिक संस्कृति के परिवेश में हमें आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। नागंपचमी, रक्षाबन्धन, जन्माष्टमी, दीपावली, होली, क्रिसमस, बकरीद, ओणम, मुहर्रम, रामनवमी, महावीर जयन्ती आदि धार्मिक त्योहार हैं। 15 अगस्त (स्वतन्त्रता दिवस), 26 जनवरी (गणतन्त्र दिवस), 14 नवम्बर (बाल दिवस), 25 सितम्बर (शिक्षक दिवस), 2 अक्टूबर (गाँधी जयन्ती) आदि राष्ट्रीय एवं राजनीतिक महत्त्व के त्योहार है। इनके अतिरिक्त बौद्ध समाज-बुद्ध जयन्ती, जैन समाज-महावीर जयन्ती, सिख समाज-गुरु नानक देव जयन्ती पर्व को विशेष उल्लास से मनाते हैं। कुछ त्योहार प्रान्तीय आधार पर भी मनाए जाते हैं जैसे, चैती, पंजाब की वैसाखी, तमिलनाडु का पोंगल, केरल का ओणम, नववर्ष के पर्व हैं। सावन मास की हरियाली तीज एवं गणगौर प्रसिद्ध प्रान्तीय पर्व हैं। उत्तर प्रदेश की मकर-संक्रान्ति, महाराष्ट्र की गणेश चतुर्थी, पंजाब की लोहड़ी एवं बंगाल की दुर्गापूजा भी प्रान्तीय त्योहार है।
भारत-त्योहारों का देश- प्रत्येक राष्ट्र के निवासी अपने राष्ट्र के त्योहारों को धूमधाम से मनाते हैं। लेकिन जितने त्योहार हमारे देश में मनाए जाते हैं किसी और देश में तो उससे आधे त्योहारों की भी कल्पना नहीं की जा सकती। यहाँ विभिन्न जातियों व धर्मों के लोग अपने विशेष त्योहारों को पूरी श्रद्धा, लगन, निष्ठा तथा खुशी से मनाते हैं। वास्तव में भारतीय संस्कृति के आदर्शों की झलक इन्ही त्योहारों में देखी जा सकती है। प्रत्येक जाति एवं राष्ट्र अपने सांस्कृतिक गौरव एवं पारम्परिक महत्त्व को जीवित रखने के लिए ये त्योहार मनाते हैं। जो राष्ट्र, जाति या व्यक्ति विशेष इन त्योहारों को रुचिपूर्वक नहीं मनाता वह जीवित होते हुए भी मृतप्रायः है। ऐसे व्यक्ति या जाति का न कोई परिचय होता है और न ही कोई इतिहास। किसी कवि ने सत्य ही कहा है-
“जो त्योहार अपने मनाते नहीं हैं।
कभी सर बुलन्दी वो पाते नहीं हैं।”
भारतवासी तो जन्म से लेकर मृत्यु-पर्यन्त किसी-न-किसी त्योहार से जुड़े होते हैं। इन त्योहारों से उनकी भावनाएँ भी संलग्न होती हैं। इसका कारण है हमारा देश का विशाल क्षेत्रफल, देश की आध्यात्मिकता, यहाँ की ऋतु परम्परा, यहाँ की गौरवपूर्ण दीर्घ परम्परा वाली संस्कृति, यहाँ के महापुरुष एवं आदर्श नायक-नायिकाएँ एवं राष्ट्र की स्वतन्त्रता के लिए किया गया लम्बा संघर्ष तथा विभिन्न जातियों एवं सम्प्रदायों का विशाल जन समूह । इन सभी कारणों से भारत में हर दिन एक नया त्योहार लेकर आता है।
त्योहारों की उपयोगिता- किसी भी देश के तीज-त्योहार उसके वासियों 5 सितम्बर (शिक्षक दिवस), 2 अक्टूबर (गाँधी जयन्ती) आदि राष्ट्रीय एव राजनीतिक महत्त्व के त्योहार है। इनके अतिरिक्त बौद्ध समाज-बुद्ध जयन्ती, जैन समाज-महावीर जयन्ती, सिख समाज-गुरु नानक देव जयन्ती पर्व को विशेष उल्लास से मनाते हैं। कुछ त्योहार प्रान्तीय आधार पर भी मनाए जाते हैं जैसे, चैती, पंजाब की वैसाखी, तमिलनाडु का पोंगल, केरल का ओणम, नववर्ष के पर्व हैं। सावन मास की हरियाली तीज एवं गणगौर प्रसिद्ध प्रान्तीय पर्व हैं। उत्तर प्रदेश की मकर-संक्रान्ति, महाराष्ट्र की गणेश चतुर्थी, पंजाब की लोहड़ी एवं बंगाल की दुर्गापूजा भी प्रान्तीय त्योहार है।
भारत-त्योहारों का देश- प्रत्येक राष्ट्र के निवासी अपने राष्ट्र के त्योहारों को धूमधाम से मनाते हैं। लेकिन जितने त्योहार हमारे देश में मनाए जाते हैं किसी और देश में तो उससे आधे त्योहारों की भी कल्पना नहीं की जा सकती। यहाँ विभिन्न जातियों व धर्मों के लोग अपने विशेष त्योहारों को पूरी श्रद्धा, लगन, निष्ठा तथा खुशी से मनाते हैं। वास्तव में भारतीय संस्कृति के आदर्शों की झलक इन्ही त्योहारों में देखी जा सकती है। प्रत्येक जाति एवं राष्ट्र अपने सांस्कृतिक गौरव एवं पारम्परिक महत्त्व को जीवित रखने के लिए ये त्योहार मनाते हैं। जो राष्ट्र, जाति या व्यक्ति विशेष इन त्योहारों को रुचिपूर्वक नहीं मनाता वह जीवित होते हुए भी मृतप्रायः है। ऐसे व्यक्ति या जाति का न कोई परिचय होता है और न ही कोई इतिहास। किसी कवि ने सत्य ही कहा है-
“जो त्योहार अपने मनाते नहीं हैं।
कभी सर बुलन्दी वो पाते नहीं हैं।”
भारतवासी तो जन्म से लेकर मृत्यु-पर्यन्त किसी-न-किसी त्योहार से जुड़े होते हैं। इन त्योहारों से उनकी भावनाएँ भी संलग्न होती हैं। इसका कारण है हमारा देश का विशाल क्षेत्रफल, देश की आध्यात्मिकता, यहाँ की ऋतु परम्परा, यहाँ की गौरवपूर्ण दीर्घ परम्परा वाली संस्कृति, यहाँ के महापुरुष एवं आदर्श नायक- नायिकाएँ एवं राष्ट्र की स्वतन्त्रता के लिए किया गया लम्बा संघर्ष तथा विभिन्न जातियों एवं सम्प्रदायों का विशाल जन समूह । इन सभी कारणों से भारत में हर दिन एक नया त्योहार लेकर आता है।
त्योहारों की उपयोगिता- किसी भी देश के तीज-त्योहार उसके वासियों के लिए प्रेरणा स्रोत होते हैं। ये लोहार अपने-अपने आदर्श लेकर आते हैं। यदि हिन्दू लोग दशहरा का त्योहार भगवान राम की विजय, उनकी सत्यता को प्रमाणित करने के लिए मनाते हैं तो दीपावली भगवान राम के अयोध्या लौटने की खुशी में मनाते हैं। प्रेम, त्याग, एकता, दान, दया तथा सेवा के आदर्श ही प्रत्येक त्योहार के प्राण होते हैं। इन आदर्शों से प्रेरणा पाकर ही समाज उन्नत, समृद्धिशाली तथा विकासशील बनता है। इन त्योहारों के बिना तो हमारा जीवन नीरस तथा सूना हो जाएगा। ये त्योहार हमारे जीवन में परिवर्तन लेकर आते हैं। इसके अतिरिक्त ये त्योहार व्यापार बढ़ाने में भी मददगार होते हैं। त्योहार के बहाने से की जाने वाली कपड़ों, खिलौनों, मिठाईयों, सजावटी सामानों आदि की खरीदारी व्यापार तथा लेन-देन को बढ़ावा देती है। जब हम अपने नीरस जीवन से ऊबने लगते हैं तो ये त्योहार हमारे लिए नवीन आशा लेकर आते हैं। इन्हीं त्योहारों के बहाने हम अपने सगे-सम्बन्धियों तथा मित्रों आदि से मिलजुल लेते हैं, उपहारों तथा मिठाईयों आदि का आदान-प्रदान कर लेते हैं साथ ही अपने परिवार के साथ कुछ समय बिता पाते हैं अन्यथा तो आज के आपाधापी वाले युग में किसी के पास समय ही नहीं है।
उपसंहार- मानवीय मूल्यों तथा मानवीय आदर्शों को स्थापित करने वाले हमारे देश के त्योहार तो शृंखलाबद्ध है। एक त्योहार समाप्त होता है, तो हम दूसरे त्योहार की आशा करने लगते हैं। ये त्योहार ही भारतीय जनजीवन में उमंग तथा उत्साह लेकर आते हैं तथा जीवन को सुखमय बनाते हैं। ये त्योहार हमें हमारी सांस्कृतिक एकता का पाठ पढ़ाते हैं। महापुरुषों से सम्बन्धित त्योहार हमें उन्हीं के आदर्शों पर चलने की प्रेरणा देते हैं, वही राष्ट्रीय त्योहार हमारी सोयी राष्ट्र भक्ति भावना को जागृत करते हैं। व्यस्तता के पश्चात् विश्रान्ति और स्थिरता के अनन्तर परिवर्तन जिन्दगी की अनिवार्य माँग है और ये त्योहार इसकी पूर्ति करते हैं। आज बहुत से स्वार्थी तथा धर्मांध व्यक्ति राष्ट्रीयता तथा प्रान्तीयता के नाम पर इन त्योहारों का स्वरूप बिगाड़ने में लगे हुए हैं किन्तु हम जागरुक भारतवासियों को इन झंझटों में न पड़कर प्रत्येक त्योहार को खुशी तथा उल्लासपूर्वक मनाना चाहिए क्योंकि विशुद्ध प्रेम, सद्भाव क्या सहानुभूति द्वारा मनाए जाने पर ही इन त्योहारों की सार्थकता प्रकट होती है।
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