हाशियाकरण का अर्थ | Meaning of Marginalization in Hindi | शिक्षा में हाशियाकरण | Marginalisaton in Education in Hindi,
हाशियाकरण का अर्थ (Meaning of Marginalization)
हाशियाकरण का अर्थ है किसी को हाशिये या किनारे पर ढकेलना। ऐसे में वह व्यक्ति समाज के केन्द्र व मुख्य धारा में नहीं रहता है। हमारे समाज में दलित लोग इसके अन्तर्गत आते हैं। समाज के उच्च व धनी वर्ग दलित वर्ग के साथ अस्पृश्यता की भावना रखते हैं। सर्वप्रथम हमें यह जानना जरूरी है कि अस्पृश्यता क्या होती है। अस्पृश्यता एक सामाजिक कुरीति है, जिसमें समाज के कुछ वर्गों को अस्पृश्य माना जाता है। अस्पृश्य लोगों के साथ पढ़ना, मंदिरों में जाना, सामाजिक सुविधाओं का उपयोग करने आदि पर रोक लगाई जाती है। संविधान के अनुच्छेद 17 और अनुच्छेद 15 में अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिये वर्णन किया गया है।
शिक्षा में हाशियाकरण (Marginalizaton in Education)-
शिक्षा में हाशियाकरण से तात्पर्य समाज के उन वंचित वर्गों को शिक्षा की मुख्य धारा में लाना है जिन्हें शिक्षा के समान अवसर प्राप्त नहीं हो रहे हैं। हमारे समाज में दलित उपेक्षित हैं अर्थात् अनुसूचित जाति व जनजाति के वर्ग हाशिये पर खड़े हैं क्योंकि उन्हें समाज के उच्च व धनी वर्गों के समान शिक्षा के अवसर प्राप्त नहीं हो पा रहे हैं। इन लोगों के साथ सदियों से भेदभाव पूर्ण व्यवहार किया जा रहा है। ये लोग हिन्दू समाज से सम्बन्धित होने के बावजूद भी, उच्च व धनी वर्ग द्वारा दिया गया यह दंश झेल रहे हैं। ये लोग भेदभावपूर्ण व्यवहार के कारण समाज की मुख्य धारा से अलग-थलग रह रहे हैं। समाज में इन्हें आगे लाने के लिए, राज्य द्वारा उचित स्थान दिलाने हेतु विशेष प्रावधान व सहायता की जरूरत पड़ती है। अनुसूचित जाति को दलित या निम्न जाति के रूप में एवं कहीं-कहीं आदिवासी के रूप में भी जाना जाता है। संविधान के अनुच्छेद 338 तथा 338 (ए) के अन्तर्गत दो वैधानिक निकाय अनुसूचित जाति के लिये राष्ट्रीय आयोग तथा अनुसूचित जनजाति के लिये भी राष्ट्रीय आयोग के गठन का प्रावधान है। उल्लेखनीय है कि शोषण, अन्याय आदि के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने तथा सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक हितों से सम्बद्ध क्षेत्रों में इसे समुदाय के लोगों को प्रोत्साहन देने के लिये संविधान में कुछ विशेष प्रावधान हैं।
मानवाधिकार आयोग की एक शाखा ने एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत के स्कूलों के प्राधिकारी हासिया में रह रहे समाज के बच्चों से भेदभाव करते हैं तथा हाशिये पर रह रहे समुदाय के बच्चों को उनकी शिक्षा के अधिकार से वंचित करते हैं। भारत में शिक्षा कानून के लागू होने के पाँच वर्ष बाद, 6 से 14 . वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चे के लिये मुफ्त स्कूली शिक्षा की गारण्टी दी गयी है। इसमें आँकड़ों के अनुसार लगभग हर बच्चे के स्कूल में प्रवेश लेने के बाद भी लगभग आधे बच्चे अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी किये बगैर स्कूल छोड़ देने की संभावना बनी रहती है। इसका मुख्य कारण स्कूल प्राधिकारियों द्वारा दलित, आदिवासी तथा मुस्लिम बच्चों के विरुद्ध किया जा रहा भेदभाव है । इससे शिक्षा के सार्वभौमीकरण का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता है। मानवाधिकार की इस रिपोर्ट की लेखिका जयश्री बजेरिया का कहना है कि हाशिये पर खड़े इन बच्चों को प्रोत्साहित करने की बजाय अध्यापक उनकी उपेक्षा करते हैं और उनसे दुर्व्यवहार करते हैं।
भारत में अस्पृश्यता के विरुद्ध कानून होने के बावजूद भी हाशिये पर रह रहें सदस्य भेदभाव का शिकार होकर उपयुक्त शिक्षा प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। स्कूल के प्राधिकारी धर्म, जाति, नस्ल तथा लिंग के आधार पर प्राचीन समय से चले आ रहे भेदभावपूर्ण व्यवहार का समर्थन कर दलित, आदिवासी तथा मुस्लिम समुदाय के बच्चों को प्रायः कक्षा में सबसे पीछे या फिर अलग कमरे में बैठने को कह देते हैं। उन्हें अपमानजनक नामों का प्रयोग करके बेइज्जत किया जाता है, भोजन भी अन्त में परोसा जाता है, जबकि पारम्परिक रूप से विशेषाधिकार प्राप्त समूहों के बच्चों से ऐसा व्यवहार नहीं किया जाता है।
शिक्षा के अधिकार कानून में कहा गया है कि जो बच्चे स्कूल छोड़ चुके हैं या अधिक आयु के बच्चे जो कभी स्कूल ही नहीं गये हैं, उन्हें उनकी आयु के अनुसार पारंगत करने और मुख्य धारा के स्कूलों की कक्षाओं में लाने के लिये ‘सेतु पाठ्यक्रम’ शुरू करने चाहिए। किन्तु राज्य सरकारों द्वारा इसके लिये प्रयास नहीं किया जा रहा है। इसी प्रकार शिक्षा में हाशियाकरण का उदाहरण उन अप्रवासी कामगारों के बच्चों में देखने को मिलता है, जिनमें से अधिकांश दलित या आदिवासी समुदायों के होते हैं तथा अपने माता-पिता के साथ काम की तलाश में इधर-उधर घूमने के कारण उन्हें स्कूल से लम्बे समय तक अनुपस्थित रहने के कारण उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ता है। प्रत्येक राज्य के शिक्षा विभाग का कर्तव्य है कि वह ऐसे बच्चों पर दृष्टि रखे व उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिये उनका स्कूल में प्रवेश कराये।
अत: हाशियाकरण का ऐतिहासिक प्रारूप अनुभव करने के बाद कहा जा सकता है कि हाशियाकरण का संबन्ध अभाव, पूर्वाग्रह और शक्तिहीनता के अहसास से जुड़ा है। आज भी शिक्षा का स्वरूप जातिगत भेदभावों तथा विषमताओं को दूर करने के बजाय विषमतायें फैला रहा है।
हाशियाकरण के शिकार समूहों हेतु सरकार द्वारा संचालित शिक्षा योजना
हाशिये पर खड़े अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों की शिक्षा के लिये सरकार द्वारा निम्न
योजनायें की गयी हैं –
1. महिला समाख्या योजना – सरकार द्वारा चलायी गयी ‘महिला समाख्या योजना’ शैक्षिक उपलब्धि के क्षेत्र में लैंगिक अन्तर का निराकरण करती है। इसमें मुख्यतः ऐसी महिलायें जो हाशिये पर खड़ी, सामाजिक रूप से पिछड़ी व वंचित हों को सशक्त व योग्य बनाती हैं। जिसमें महिलायें अलग-थलग पढने और आत्मविश्वास की कमी जैसी समस्याओं से जूझ सकें व दमनकारी सामाजिक रीति-रिवाजों के विरुद्ध खड़े होकर अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये संघर्ष कर सकें।
2. प्राथमिक स्तर पर बालिका शिक्षा हेतु राष्ट्रीय कार्यक्रम – भारत सरकार प्राथमिक स्तर पर बालिका शिक्षा हेतु राष्ट्रीय कार्यक्रम को चलाया गया है।
3. सर्व शिक्षा अभियान- इस योजना, के अधीन NPEGEL प्राथमिक स्तर पर सहायता प्राप्ति से वंचित पिछड़ी बालिकाओं के लिये अलग से संसाधन उपलब्ध कराता है। यह कार्यक्रम शिक्षा की दृष्टि से पिछड़े उन विकास खण्डों में चलाया जाता है, जहाँ ग्रामीण महिला साक्षरता की दर राष्ट्रीय औसत से कम है और लैंगिक भेदभाव राष्ट्रीय औसत से अधिक है, साथ ही यह कार्यक्रम ऐसे जिलों के विकास खण्डों में चलाया जा रहा है जहाँ अनुसूचित जाति / जनजाति महिला साक्षरता की दर 1991 के आधार पर राष्ट्रीय औसत से 10% कम है।
4. शिक्षाकर्मी योजना (SRP) – इस योजना का लक्ष्य मुख्य रूप से बालिका शिक्षा पर ध्यान देना है। इसके साथ ही राजस्थान के दूरदराज के अर्धशुष्क एवं सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण एवं गुणवत्ता में सुधार लाना है। उल्लेखनीय है कि शिक्षाकर्मी स्कूलों में अधिकतम बच्चे अनुसूचित जाति एवं अन्य पिछड़े वर्गो के हैं।
5. अन्य योजनाएँ – सरकार द्वारा अग्राकित प्रयास भी किए गये है-
(i) कस्तुरबा गाँधी बालिका विद्यालय ।
(ii) जनशिक्षण संस्थान।
(iii) मध्याह्न भोजन योजना।
(iv) केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान।
(v) केन्द्रीय विद्यालय।
इन सभी प्रयासों द्वारा हाशिये पर खड़े लोगों तक शिक्षा पहुँचायी जा रही है तथा शिक्षा के सार्वभौमीकरण के लक्ष्य को पूरा किया जा रहा है।
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