कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर पर निबन्ध – Rabindranath Tagore ki Jivani
प्रस्तावना
कवीन्द्र रवीन्द्रनाथ टैगोर भारत माता की गोद में जन्म लेने वाले उन महान व्यक्तियों में गिने जाते हैं, जिन्हें अपनी साहित्यिक सेवाओं के लिए विश्व का सर्वाधिक चर्चित ‘नोबेल पुरस्कार’ प्राप्त हुआ था। रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म भारत में अवश्य हुआ था, परन्तु उन्होंने स्वयं को किसी एक देश की सीमा में नहीं बँधने दिया। वे तो ‘विश्वैव कुटुम्बकम्’ के सिद्धान्त के अनुयायी थे। वे प्रत्येक जीव में उसी परमात्मा के अंश को विद्यमान देखते थे, जो उनमें है। उनके लिए न कोई मित्र था, न शत्रु, न कोई अपना था, न पराया। वे तो अच्छाई से प्यार करते थे और सभी को समान दृष्टि से देखते थे। तभी तो लोग उन्हें श्रद्धावश ‘गुरुदेव’ कहकर पुकारते थे।
जन्म-परिचय एवं शिक्षा
इस महान आत्मा का प्रादुर्भाव 7 मई, 1861 को कलकत्ता में देवेन्द्रनाथ ठाकुर के यहाँ हुआ था। इनके पिताश्री बेहद धार्मिक एवं समाजसेवी प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। इनके दादा जी द्वारिकानाथ राजा के उपाधिकारी थे। जब आप मात्र 14 वर्ष के थे, तभी आपकी माता जी का निधन हो गया था। रवीन्द्रनाथ बँधी-बँधाई शिक्षा पद्धति के विरुद्ध थे। यही कारण था कि जब बाल्यावस्था में उन्हें स्कूल भेजा गया तो हर बार स्कूल में मन न लगने के कारण स्कूल छोड़कर आ गए। घरवाले यह सोचकर निराश रहने लगे कि शायद यह बालक अनपढ़ ही रह जाएगा। परन्तु नियति को शायद कुछ और ही मंजूर था कि जो बालक स्कूली शिक्षा में मन न लगा सका, वह उच्चकोटि का अध्ययनशील हो। वे ज्ञानप्राप्ति के लिए खूब स्वाध्याय करते थे। उन्हें अखाड़े में पहलवानी करना तथा बंग्ला, संस्कृत, इतिहास, भूगोल, विज्ञान की पुस्तकों का स्वयं अध्ययन करना तथा संगीत एवं चित्रकला में विशेष रुचि थी। उन्होंने अंग्रेजी का विशेष अध्ययन किया। स्वाध्याय के लिए वे 11 बार विदेश गए। पहली बार 17 वर्ष की आयु में इंग्लैण्ड गए तथा वहाँ रहकर उन्होंने कुछ समय तक यूनीवर्सिटी कॉलेज लन्दन में ‘हेनरी मार्ले’ से अंग्रेजी साहित्य का ज्ञान अर्जित किया। उन्होंने अपने अनुभव के सम्बन्ध में जो पत्र लिखे, उन्हें उन्होंने ‘यूरोप प्रवासेर पत्र’ के नाम से प्रकाशित किया। एक बार वे अपने पिता के साथ हिमालय की यात्रा पर भी गए जहाँ उन्होंने अपने पिता जी से संस्कृत, ज्योतिष, अंग्रेजी तथा गणित का ज्ञान प्राप्त किया। संगीत की शिक्षा उन्होंने अपने भाई ‘ज्योतिन्द्रनाथ’ से प्राप्त की थी।
वैवाहिक जीवन
सन् 1883 ई. में जब रवीन्द्रनाथ जी 22 वर्ष के थे, तो उनका विवाह एक शिक्षित महिला मृणालिनी के साथ हुआ। मृणालिनी सदैव उनके कार्यों में सहयोग देती थी। उनके पाँच बच्चे हुए, परन्तु दुर्भाग्यवश 1902 में उनकी पत्नी का देहान्त हो गया। 1903 और 1907 के मध्य उनकी बेटी शम्मी तथा पिता भी उन्हें छोड़कर चल बसे। इस दुख ने रवीन्द्रनाथ ठाकुर को अन्दर तक झकझोर दिया। उनका सबसे छोटा पुत्र समीन्द्रनाथ की भी अल्पायु में मृत्यु हो गई थी। सन् 1910 में अमेरिका से लौटने पर वे स्वयं को एकदम अकेला महसूस कर रहे थे, तभी उन्होंने प्रतिमा देवी नामक एक प्रौढ़ महिला से विवाह कर लिया। पूरे परिवार में पहली बार किसी ने सामाजिक परम्पराओंको तोड़कर एक विधवा नारी से विवाह करने का साहस किया था। तभी से रवीन्द्रनाथ सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के कार्यों में जुट गए।
महत्त्वपूर्ण रचनाएँ
ठाकुर साहब का साहित्य सृजन तो बाल्यकाल से ही आरम्भ हो गया था। उनकी सर्वप्रथम कविता सन् 1874 में ‘तत्त्वभूमि’ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। वे नाटकों में अभिनय भी किया करते थे। उनकी प्रमुख रचनाएँ ये हैं-
कहानी संग्रह-‘गल्प समूह’ (सात भागों में), ‘गल्प गुच्छ’ (तीन भागों में)। इसके अतिरिक्त छात्र की परीक्षा, अनोखी चाह, डाक्टरी, पत्नी का पत्र आदि भी कुछ काबुलीवाला, दृष्टिदान, पोस्ट मास्टर, अन्धेरी कहाँ, प्रसिद्ध कहानियाँ हैं।
नाटक साहित्य-‘चित्रांगदा, वाल्मीकि प्रतिभा, विसर्जन मायेरखेला, श्यामा, का पूजा, रक्तखी, अचलायतन, फाल्गुनी, राजाओं रानी, शारदोत्सव, राजा आदि कुछ प्रसिद्ध नाटक हैं। हाल
काव्य संग्रह-कड़िओ कोमल प्रभात संगीत, संध्या संगीत, मानसी, चित्रा कह नैवेद्य, वनफूल कविकाहिनी, छवि ओगान, गीतांजलि इत्यादि।
उपन्यास साहित्य-नौका डूबी, करुणा (चार अध्याय), गोरा, चोखेर वाली (आँख की किरकिरी)।
‘सर’ की उपाधि से अलंकृत-
रवीन्द्रनाथ टैगोर की साहित्यिक प्रतिभा से कोई भी अनजान नहीं है। उनकी इसी प्रतिभा को ध्यान में रखकर ‘बंगीय साहित्य परिषद’ ने उनका अभिनन्दन किया था। इसी बीच टैगोर ने अपनी प्रमुख कृति ‘गीतांजलि’ का भी अंग्रेजी में अनुवाद कर दिया ताकि यह महान रचना अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान पा सके। ‘गीतांजलि’ के अंग्रेजी में अनुवाद होने पर अंग्रेजी साहित्य मण्डल में एक सनसनी फैल गई। स्वीडिश अकादमी ने सन् 1913 में ‘गीतांजलि’ को ‘नोबल पुरस्कार’ के लिए चयनित किया। रवीन्द्रनाथ टैगोर की ख्याति ब्रिटिश सम्राट पंचम जार्ज तक पहुँच चुकी थी इसीलिए सम्राट ने टैगोर साहब को ‘सर’ की उपाधि से सम्मानित किया। इसके कुछ समय पश्चात् अंग्रेजों की क्रूरता का प्रमाण ‘जलियावाला बाग हत्याकांड’ के रूप में सामने आया। रवीन्द्रनाथ जैसा संवेदनशील तथा साहित्यिक व्यक्तित्व वाला व्यक्ति भला इस दुखद घटना से अछूता कैसे रह पाता इसलिए बहुत दुखी मन से रवीन्द्रनाथ ने अंग्रेजों की दी हुई ‘सर’ की उपाधि उन्हें वापिस कर दी।
उपसंहार
दुर्भाग्यवश 7 अगस्त 1941 को यह साहित्यिक आत्मा हमें सदा के लिए छोड़कर चली गई। हर भारतीय को बहुत क्षति हुई। निःसन्देह रवीन्द्रनाथ टैगोर अपने समय के साहित्य के जनक थे। वे सदैव भारतवासियों को अपनी उच्चकोटि की रचनाओं द्वारा प्रेरित करते रहेंगे।
Important Links
- कल्पना चावला पर निबंध | Essay on Kalpana Chawla in Hindi
- Essay on Internet in Hindi- इंटरनेट पर निबंध : एक प्रभावशाली सूचना माध्यम
- Essay on CNG सी.एन.जी. के फायदे और नुकसान
- डॉ. मनमोहन सिंह पर निबन्ध | Essay on Dr. Manmohan Singh in Hindi
- कंप्यूटर पर निबंध हिंदी में – Essay On Computer In Hindi