जल प्रदूषण का अर्थ एवं परिभाषा देते हुए इसके स्रोत एवं प्रभाव का भी मूल्यांकन कीजिए। Give the meaning and definition of Water pollution also examine its source and effect.
जल प्रदूषण का अर्थ एवं परिभाषा-
जल में जब विभिन्न प्रकार के प्रदूषक तत्व घुल जाते हैं तो उसे जल प्रदूषण कहते हैं।
सी0एस0 साउथविक् के अनुसार, “जब प्राकृतिक जल के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में मानव एवं प्राकृतिक क्रियाओं द्वारा परिवर्तन होता है तो उसे जल प्रदूषण कहते
प्रो० गिलपिन के अनुसार, “मानवीय क्रियाओं से जब जल की भौतिक, जैविक एवं रासायनिक विशिष्टताओं में ह्रास हो रहा हो तो उसे जल प्रदूषण कहते हैं।”
जल प्रदूषण के स्रोत-
जल प्रदूषण की भाँति जल प्रदूषण उत्पन्न करने वले मुख्यतः दो स्रोत होते हैं।
प्राकृतिक स्रोत-
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जल को प्रदूषित करने में प्राकृतिक पदार्थो का भी महत्वपूर्ण योगदान है, क्योंकि पृथ्वी से निकली गैसें, मिट्टी, खनिज पदार्थ एवं उसके कण, सड़ी-गली वनस्पतियाँ, मृत जीव जन्तुओं के शव, मल मूत्र एवं धूल आदि ऐसे प्राकृतिक स्रोत हैं जो जल में मिलकर उसे प्रदूषित कर देते हैं, इसलिए प्रदूषित जल का मुख्य कारण सूक्ष्म कण एवं ज्वालामुखी से निकला लावा आदि अत्यन्त हानिकारक होता है। इतना ही नहीं ऐसा विषाक्त जल वनस्पतियों एवं जीवों के लिए भी हानिकारक होता है। मिट्टी का क्षरण भी जल को प्रदूषित करता है, क्योंकि मिट्टी के जल में मिल जाने से उसका रंग स्वाद आदि में भी परिवर्तन आ जाता है। इसी प्रकार नदियों का प्रवाहित जल भी चट्टानों को तोड़ना है एवं उसके घुलनशील पदार्थ जल में मिलकर हानिकारक हो जाते हैं। चूँकि जल में शुद्ध होने की क्षमता भी होती है इसलिए प्राकृतिक स्रोतों के पदार्थों की मात्रा को धीरे-धीरे जल स्वतः स्वच्छ कर लेता है।
मानवीय स्रोत-
मानव के क्रिया कलापों से उत्पन्न जल प्रदूषण के प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं-
1. उद्योगों द्वारा जल प्रदूषण-
वर्तमान समय औद्योगिक युग के रूप में विख्यात है, जिसके कारण कल-कारखानों से निकल रहा लाखों टन अपशिष्ट पदार्थ नाले के द्वारा नदियों में पहुँच रहा है, जिससे जल प्रदूषण की गम्भीर समस्या उत्पन्न हो चुकी है। भारत में औद्योगिक नगरों के निकट यह गम्भीर समस्या है।
2. मानव मल-मूत्र-
वर्तमान समय में भारत में प्रतिदिन एक व्यक्ति द्वारा 50 लीटर से 350 लीटर तक जल का प्रयोग नगरों में किया जाता है। इतना ही नहीं नगरों में रहने वाले लाखों पशुओं के मल-मूत्र से भी जल प्रदूषण और बढ़ा है।
3. कृषि से जल प्रदूषण-
वर्तमान युग अति उत्पादन का युग है। इसलिए उत्पादन की कलाओं में निरन्तर सुधार हो रहा है। जिसे हम सुधार कहते हैं, वह पर्यावरण को कितना प्रदूषित कर रहा है इसके बारे में मानव ने सोचा तक नहीं है क्योंकि कृषि उत्पादन में तीव्र वृद्धि के लिए जिन रसायन उर्वरक एवं कीटनाशकों का प्रयोग खुलकर किया जा रहा है उससे जल प्रदूषण में कई गुना वृद्धि हुई है।
4. परिवहन से जल प्रदूषण-
क्या आपको आश्चर्य नहीं होगा कि विश्व के परिवहन के साधन भी जल प्रदूषण करते हैं। प्राचीन काल में परिवहन के साधन सीमित थे, लेकिन आधुनिक युग में थल, जल, वायु परिवहन के साधनों में जिस मात्रा में कोयला एवं खनिज तेल का ईंधन के रूप में प्रयोग हो रहा है उससे जल प्रदूषण की समस्या भी उत्पन्न हुई है।
5. खनिज पदार्थों से जल प्रदूषण-
पृथ्वी के भूगर्भ में सैकड़ों प्रकार के खनिज पदार्थ छिपे हुए हैं जो मानव को निःशुल्क उपहार के रूप में प्राप्त हैं, लेकिन ऐसे खनिजों का उत्खनन करने पर यह ज्ञात होता है कि सभी खनिज पदार्थ जल स्रोतों से मिलकर निर्मित हुए हैं, लेकिन जब उनका उत्खनन किया जाता है तो वही खनिज पदार्थ प्रदूषण का कारण बन जाते हैं।
6. प्राकृतिक आपदाओं से जल प्रदूषण-
यह सत्य है कि प्राकृतिक आपदाएँ भी जल प्रदूषण का एक कारण हैं, क्योंकि बाढ़े, जल कटाव में वनस्पतियाँ नष्ट होकर अपशिष्ट के रूप में जल में प्रवाहित होने से जल प्रदूषण उत्पन्न होता है। दुर्घटनायें भी जल प्रदूषण का एक बड़ा कारण हैं।
जल प्रदूषण का प्रभाव-
जल प्रदूषण कुप्रभाव का शिकार सम्पूर्ण प्राणिजगत एवं पौधे होते हैं। यदि जल प्रदूषण बड़ी मात्रा में फैल जाता है तो इसका कुप्रभाव विश्वव्यापी भी हो सकता है, क्योंकि दूषित जल का सेवन करने से मानव शरीर में जहाँ अनेक विकार उत्पन्न होते हैं, वहीं वन्य जीव जन्तु भी बीमारियों शिकार होने के साथ-साथ वनस्पतियों पर भी इसका प्रत्यक्ष दुष्प्रभाव दिखाई देता है।
1. मानव पर जल प्रदूषण का कुप्रभाव-
यह सर्वविदित है कि दूषित पेजल मानव के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव छोड़ता है। इसीलिए शुद्ध पेयजल मानव जगत की प्राथमिक आवश्यकता है क्योंकि जब जल में रासायनिक पदार्थ अथवा उद्योगों का अपशिष्ट मिलकर क्षार, शीरा, साइनाइट, फ्लोराइड आदि घुल जाते हैं तो मानव शरीर में इसके सेवन अनेक बीमारियां एवं विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं क्योंकि पारा एवं शीशा संचयी जहर हैं जो आँख की रोशनी, जीभ एवं पैरों को सुन्न करने के साथ-साथ शीश से पाचन क्रिया सम्बन्धी रोग उत्पन्न होते हैं। फ्लोराइड से जोड़ का दर्द, दाँतों में धब्बे आदि का कुप्रभाव पड़ता है। इतना ही नहीं कीटनाशक रसायन से दूषित जल का सेवन मानव के अंगों को क्षति एवं कैंसर जैसी बीमारियों उत्पन्न करता है। वर्तमान समय में प्रदूषित जल में स्नान एवं सेवन करने के कारण गम्भीर बीमारियां मानव जगत पर प्रतिकूल प्रभाव छोड़ रही हैं।
2. वनस्पतियों पर जल प्रदूषण का कुप्रभाव-
यद्यपि वृक्षों एवं पौधों में शुद्ध जल को ही ग्रहण करने की क्षमता होती है और व गन्दे जल को भी शुद्ध कर लेते हैं लेकिन जब पूर्ण प्रदूषित जल विभिन्न रसायन एवं उर्वरक, नाइट्रेट एवं फास्फेट जैसे तत्व जल में मिल जाते हैं तो इससे बड़े वृक्ष भी नष्ट होने लगते हैं। इसी प्रकार अम्ली वर्षा भी वन सम्पदा को नष्ट कर देती है।
(3) जीव जन्तुओं पर जल प्रदूषण का प्रभाव-
मानव की भॉति जीव-जन्तु, कीड़े-मकोड़े भी प्रदूषित जल के कुप्रभाव का शिकार होते हैं, क्योंकि समुद्र की सतह पर जब तेल फैल जाता है अथवा परमाणु परीक्षण किये जाते हैं तो अनेक प्रकार के जीव मृत देखे जा सकते हैं। इतना ही नहीं उद्योगों का अपशिष्ट रसायन से प्रदूषित जल मछली जगत को समाप्त कर देता है। इसके अलावा प्रदूषित जल जीव-जन्तुओं एवं कीड़ों जैसे खगोलीय तन्त्र पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
(4) कृषि पर जल प्रदूषण का कुप्रभाव-
जल प्रदूषण कृषि की उपजाऊ मिट्टी को भारी हानि पहुँचाता है जिसके कारण मिट्टी की उर्वरता शक्ति क्षीण हो जाती है क्योंकि उद्योगों का निकला रसायन जहाँ बंजर भूमि की मात्रा में वृद्धि करता है, वहीं रंगाई, छपाई उद्योगों का दूषित जल जब नालों द्वारा नदियों में पहुँचता है तो नदियों के किनारे की उपजाऊ भूमि खराब हो जाती है। इतना ही नहीं दूषित जल की सिंचाई से भी मिट्टी में सूक्ष्म जीव एवं बैक्टीरिया जो भूमि की उत्पादन क्षमता को बढ़ाते हैं उनकी मृत्यु हो जाती है, यदि जल प्रदूषण के अन्य कुप्रभावों पर ध्यान दें तो नदी, झीलों एवं तालाबों आदि की दूषित जल के कारण प्राकृतिक सुन्दरता नष्ट हो जाती है।
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