पर्यावरण विधि (Environmental Law)

प्रदूषण का अर्थ एवं परिभाषा उसके स्रोत एवं वर्गीकरण

प्रदूषण का अर्थ एवं परिभाषा उसके स्रोत एवं वर्गीकरण
प्रदूषण का अर्थ एवं परिभाषा उसके स्रोत एवं वर्गीकरण

प्रदूषण का अर्थ एवं परिभाषा उसके स्रोत एवं वर्गीकरण meaning and definition of pollution and also state its origin and classification.

प्रदूषण का अर्थ

जिस क्रिया से जल, वायु, मृदा एवं वहाँ के संसाधनों में किसी अवांछनीय परिवर्तन से जैव जगत एवं सम्पूर्ण परिवेश पर हानिकारक प्रभाव पहुँचे उसे प्रदूषण कहते हैं। वे सभी कारक, पदार्थ, कारण, तत्व अथवा यौगिक जिससे प्रदूषण उत्पन्न होता है उसे प्रदूषक (Pollutant) कहते हैं। 

प्रदूषण की परिभाषा

प्रदूषण के सम्बन्ध में दी गयी कुछ परिभाषायें निम्नलिखित हैं-

(1) एथम हैरी के अनुसार, “पर्यावरणीय प्रदूषण जो मानवीय समस्याओं को प्रगति के ताने-बाने तक पहुँचाता है, स्वयमेव सामान्य सामाजिक संकट का प्रमुख अंग है। यदि सभ्यता को लौटाकर बर्बर सभ्यता तक नहीं लाना है तो उस पर विजय प्राप्त करना आवश्यक है।”

(2) ओड़म के अनुसार, “वायु, जल एवं मिट्टी के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों के किसी ऐसे अवांछनीय परिवर्तन से जिससे मनुष्य स्वयं को सम्पूर्ण परिवेश के प्राकृतिक, जैविक एवं सांस्कृतिक तत्वों को हानि पहुँचाता है, प्रदूषण कहते हैं।”

(3) “सन्तुलित वातावरण में उसका प्रत्येक घटक एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात में उपस्थित रहता है परन्तु कभी-कभी एक अथवा अनेक घटकों की मात्रा या तो आवश्यकता से अधिक कम हो जाती है अथवा बढ़ जाती है जिसके कारण वातावरण असन्तुलित होकर मानव जीवन अथवा उसके आर्थिक महत्व की वस्तुओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इसी को प्रदूषण कहते हैं।”

(4) “वातावरण में हुआ अवांछित परिवर्तन, अंशत: परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से मानव द्वारा लिये गये ऊर्जा स्रोतों में तथा जीवाणुओं की संख्या में अभिवृद्धि के प्रयासों का परिणाम है।”

सभी जीवधारी अपनी वृद्धि, विकास सुव्यवस्थित रूप से अपना जीवन क्रम चलाने के लिए सन्तुलित वातावरण पर निर्भर करते हैं। सन्तुलित वातावरण में प्रत्येक घटक लगभग एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात में उपस्थित होता है, लेकिन कभी-कभी वातावरण में एक अथवा अनेक घटकों की मात्रा या तो आवश्यकता से अधिक बढ़ जाती है अथवा वातावरण में अन्य हानिकारक घटकों का प्रवेश हो जाता है, जिससे वातावरण दूषित हो जाता है तथा जीवधारियों के लिए किसी न किसी रूप में हानिकारक सिद्ध होता है, यह प्रदूषण कहलाता है।

पर्यावरण प्रदूषण के स्रोत (Sources of Environmental pollution)-

प्रदूषण के अनेक स्रोत हैं। इसे निम्नांकित प्रकार से विभाजित किया जा सकता है-

(1) प्राकृतिक स्रोत-

अपरदन, भूकम्प, बाढ़, सूखा, ऑधी, धूल, विषाणु, जीवाणु, कवक आदि प्राकृतिक स्रोत हैं।

(2) मानवीय स्रोत-

मानव द्वारा उत्पन्न अवांछनीय, ठोस, तरल व गैसीय इस श्रेणी में आते है।

(3) मानव एवं प्रकृति मिश्रित स्रोत-

जब प्राकृतिक प्रकोपों के साथ-साथ मानवीय कारण भी उसमें शामिल होते हैं तब वह मानव प्रकृति के मिश्रित स्रोत कहलाते हैं। उदाहरणार्थ मनुष्य अपनी लापरवाही व गलतियां से गन्दगी फैलाता है जिससे जीवाणु और विषाणुओं आदि को अनुकूल वातावरण मिलता है जिससे वे बीमारी फैलाते हैं। वन-विनाश, खनन आदि मानवी कृत्यों के फलस्वरूप बाढ़ मृदा अपरदन आदि प्राकृतिक प्रकोप होते हैं जो जीवों के प्राकृतिक विकास में बाधा डालते हैं जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

पर्यावरण प्रदूषकों का वर्गीकरण

प्रदूषकों के सामान्यतया दो वर्गों या भागों में विभाजित किया जाता है-

(1) विघटनीय पदार्थ-

जो पदार्थ प्राकृतिक क्रियाओं से विघटित होकर अपने अवयव स्रोतों में विलीन हो जाते हैं, वे विघटनीय पदार्थ कहलाते हैं। ऐसे विघटनीय पदार्थ प्रदूषक तभी बनते हैं, जब उनका परिणाम इतना अधिक हो जाता है कि विघटन उचित अवधि में सम्पन्न नहीं हो पाता। जैसे- मल-मूत्र तथा अन्य वर्ण्य पदार्थ और प्ररस, कार्बनिक यौगिक, खाद्य पदार्थ, साधारण कवकनाशी, कीटनाशी रसायन तथा प्रति जैविक पदार्थ आदि। इन पदार्थों का पारितान्त्रिक तन्त्र में एक सीमा से अधिक उपस्थित होना प्रदूषक का जलक होता है। इस सीमा से कम होने पर प्राकृतिक क्रियाओं से इनका विघटन स्वतः होता रहता है।

(2) अविघटनीय पदार्थ-

वे विषाक्त प्रदूषक तथा रसायन जिनका या तो विघटन होता ही नहीं अथवा बहुत ही कम और धीरे-धीरे विघटन होता है, अविघटिनीय पदार्थ कहलाते हैं। जैसे– डी0डी0टी0, बी०एच०सी०, पारा तथा आर्सेनिक के यौगिक, भारी धातुओं के यौगिक आदि। ऐसे पदार्थो का पर्यावरण में बहुत कम मात्रा में पाया जाना घातक हो सकता है, क्योंकि अत्यन्त कम विघटन के कारण ये धीरे-धीरे पर्यावरण में संचित होते रहते हैं तथा हमारी भोजन श्रृंखला में प्रविष्ट होकर भयानक बीमारियाँ फैलाते हैं तथा स्वास्थ पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।

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