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सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 86 के अनुसार विदेशी राज्यों, राजदूतों और दूतों के विरुद्ध वाद

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 86
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 86

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 86 के अनुसार विदेशी राज्यों, राजदूतों और दूतों के विरुद्ध वाद | The Suit against Foreign States, Ambassadors and Messengers)

विदेशी राज्यों के विरुद्ध वाद – (1) विदेशी राज्य पर कोई भी वाद किसी भी न्यायालय में, जो अन्यथा ऐसे वाद का विचारण करने के लिये सक्षम है, केन्द्रीय सरकार की ऐसी सहमति के बिना नहीं लाया जा सकेगा जो उस सरकार के किसी सचिव द्वारा लिखित रूप में प्रमाणित की गयी हो|
परन्तु वह व्यक्ति, जो स्थावर सम्पत्ति के अधिकारी के तौर पर ऐसे विदेशी राज्य पर, जिससे वह सम्पत्ति को धारण करता है या धारण करने का दावा करता है, यथापूर्वोक्त सहमति के बिना वाद ला सकेगा।
(2) ऐसी सहमति विनिर्दिष्ट वाद या अनेक विनिर्दिष्ट वादों या किसी या किन्हीं विनिर्दिष्ट वर्ग के वर्गों के समस्त वादों के बारे में दी जा सकेगी और वह किसी वाद या वादों के वर्ग की दशा में उस न्यायालय को भी विनिर्दिष्ट कर सकेगी, जिसमें उस विदेशी राज्य के विरुद्ध वाद लाया जा सकेगा, किन्तु वह तब तक नहीं दी जायेगी जब तक केन्द्रीय सरकार को वह प्रतीत नहीं होता कि वह विदेशी राज्य;
(क) उस व्यक्ति के विरुद्ध जो उस पर वाद लाने की वांछा करता है, उस न्यायालय में वाद संस्थित कर चुका है, अथवा लागू होंगे।
(ख) स्वयं या किसी अन्य व्यति द्वारा उस न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर व्यापार करता है, अथवा
(ग) उन सीमाओं के भीतर स्थित स्थावर सम्पत्ति पर कब्जा रखता है और उसके विरुद्ध ऐसी सम्पत्ति के बारे में या उस धन के बारे में जिसका भार उस सम्पत्ति पर है, वाद लाया जाना है, अथवा

(घ) इस धारा द्वारा उसे दिये गये विशेषाधिकार का अधित्यजन अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से कर चुका है।

(3) केन्द्रीय सरकार के सचिव द्वारा लिखित रूप में प्रमाणिता कोई डिक्री विदेशी राज्य की सम्पत्ति के विरुद्ध केन्द्रीय सरकार की सहमति से ही निष्पादित की जायेगी, अन्यथा नहीं।

(4) इस धारा के पूर्ववर्ती उपबन्ध निम्नलिखित के सम्बन्ध में वैसे ही वे विदेशी राज्य के सम्बन्ध में लागू होते हैं।

(क) विदेशी राज्य का कोई शासक, विदेशी राज्य का कोई भी राजदूत या दूत;

(ख) कामनवेल्थ देश का कोई भी उच्चायुक्त, तथा

(ग) विदेशी राज्य के कर्मचारीवृन्द का या विदेशी राज्य के राजदूत या दूत के या कामनवेल्थ देश के उच्चायुक्त के कर्मचारीछन्द या अनुचर वर्ग का कोई भी ऐसा सदस्य जिसे केन्द्रीय सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे।

(5) इस संहिता के अधीन निम्नलिखित व्यक्ति गिरफ्तार नहीं किये जायेंगे, अर्थात्

(क) विदेशी राज्य का कोई शासक,

(ख) विदेशी राज्य का कोई भी राजदूत या दूत;

(ग) कामनवेल्थ देश का कोई भी उच्चायुक्त तथा

(घ) विदेशी राज्य के कर्मचारीवृन्द का या विदेशी राज्य के राजदूत या दूत के य कामनवेल्थ देश के उच्चायुक्त के कर्मचारीवृन्द या अनुचर वर्ग का कोई भी ऐसा सदस्य जिसे केन्द्रीय सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे।

राजदूत या वाणिज्य दूत को अपनी सरकार की तरफ से प्रतिनिधित्व करने का अधिकार है। उसका यह कथन है कि कोई विशेष उपक्रम (particular undertaking) सरकारी उपक्रम है, निश्चयात्मक है। जहाँ एक वाद विदेशी वाणिज्य दूत के विरुद्ध लाया गया है, और केन्द्रीय सरकार की अनुमति चाहिये, केन्द्रीय सरकार ने राजनैतिक कारणों से अनुमति अस्वीकार कर दिया आदेश में यह नहीं दर्शाया गया कि वे कौन से राजनैतिक कारण हैं जिसके नाते अनुमति अस्वीकार कर दी गयी, वहाँ उच्चतम न्यायालय ने शान्ति प्रसाद अग्रवाल बनाम यूनियन आफ इण्डिया में यह अभिनिर्धारित किया कि केन्द्रीय सरकार का अस्वीकृत का आदेश निरस्त करने योग्य है।

जहाँ एक वाद विदेशी कम्पनी के विरुद्ध संस्थित किया गया है, वहाँ उच्चतम न्यायालय ने बी० डी० एस० (डी० एस० पी० लाइन्स) डिपार्टमेण्ट ऑफ जी० डी० आर० बनाम एन० सी० जूट मिल्स क० लि० नामक वाद में यह अभिनिर्धारित किया कि ऐसी विदेशी कम्पनी धारा 86 के अर्थों में विदेशी राज्य है और उसके विरुद्ध संस्थित वाद (केन्द्रीय सरकार की पूर्व अनुमति के बिना) पोषणीय नहीं है।

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 86 के प्रावधान उन कार्यवाहियों में जो उपभोक्ता फोरम के समक्ष हैं उन पर नहीं लागू होगी क्योंकि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम एक विशेष अधिनियम है, जो धारा 86 की प्रयोज्यता को वर्जित करता है। इथोपियन एयरलाइन्स के विरुद्ध एक शिकायत की गयी थी कि उसने एक भेजे हुये माल (consignment) को गन्तव्य स्थान पर विलम्ब से परिदान किया।

उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में अभिनिर्धारित किया कि इथोपियन एयरलाइन्स सम्प्रभु को मिलने वाली छूट का हकदार नहीं है।

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