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आदेशों की अपील पर टिप्पणी | Comment on The Appeal of The Orders

आदेशों की अपील पर टिप्पणी
आदेशों की अपील पर टिप्पणी

आदेशों की अपील पर टिप्पणी | Comment on The Appeal of The Orders

आदेशों की अपील पर टिप्पणी – सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 43 में आदेशों की अपील का वर्णन है जिसे निम्नतः स्पष्ट किया जा सकता है।

आदेश 43

1. आदेशों की अपीलें धारा 104 के उपबन्धों के अधीन निम्नलिखित आदेशों की अपील होगी, अर्थात्

(क) वादपत्र के उचित न्यायालय में उपस्थित किये जाने के लिये लौटाने का आदेश जो आदेश 7 के नियम 10 के अधीन दिया गया हो,

सिवाय उस दशा में जब आदेश 7 के नियम 10-क में विनिर्दिष्ट प्रक्रिया का अनुसरण किया गया हो।

(ग) बाद की खारिजी को अपास्त करने के आदेश के लिये (ऐसे मामले में जिस अपील होती है,) आवेदन को नामजूर करने का आदेश जो आदेश 9 के नियम 9 के अधीन दिया गया हो।

(घ) एकपक्षीय पारित डिक्री को अपास्त करने के आदेश के लिये (ऐसे मामले में जिसमें अपील होती है) आवेदन के नामजूर करने का आदेश 9 के नियम 13 के अधीन दिया गया हो।

(च) आदेश 11 के नियम 21 के अधीन आदेश।

(झ) दस्तावेज के पृष्ठाकन के प्रारूप पर किये गये आक्षेप पर आदेश जो के नियम 34 के अधीन दिया गया हो;

(अ) विक्रय को अपास्त करने या अपास्त करने से इन्कार करने का आदेश जो आदेश 21 के नियम 72 या नियम 92 के अधीन दिया गया हो;

(अक) आवेदन को नामजूर करने का आदेश जो आदेश 21 के नियम 106 के उपनियम (1) के अधीन किया गया हो परन्तु मूल आवेदन पर अर्थात् उस आदेश के नियम 105 के उपनियम (1) में निर्दिष्ट आवेदन पर आदेश अपीलीय है;

(ट) वाद के उपशमन या खारिजी को अपारत करने से इन्कार करने का आदेश जो आदेश 22 के नियम 9 के अधीन दिया गया हो;

(ठ) इजाजत देने का या इजाजत देने से इन्कार करने का आदेश जो आदेश 22 के नियम 10 के अधीन दिया गया हो;

(ढ) वाद की खारिजी को अपास्त करने के आदेश के लिये (ऐसे मामले में जिसमें अपील होती है) आवेदन को नामंजूर करने का आदेश जो आदेश 25 के नियम 2 के अधीन दिया गया हो;

(ढक) निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद लाने की अनुज्ञा के लिये आवेदन को नामंजूर करने का आदेश जो आदेश 33 के नियम 5 या नियम 7 के अधीन दिया गया हो;

(त) अन्तराभिवाची वादों में आदेश जो आदेश 35 के नियम 3, नियम 4 या नियम 6 के अधीन दिया गया हो;

(थ) आदेश 38 के नियम 2, नियम 3 या नियम 6 के अधीन आदेश;

(द) आदेश 39 के नियम 1 नियम 2 (नियम 2 क) नियम 4 या नियम 10 के अधीन आदेश,

(घ) आदेश 40 के नियम 1 या नियम 4 के अधीन आदेश;

(न) अपील को आदेश 41 के नियम 19 के अधीन पुनर्ग्रहण करने या आदेश 41 के नियम 21 के अधीन पुनः सुनने से इन्कार करने का आदेश,

(प) जहाँ अपील न्यायालय की डिक्री की अपील होती हो वहाँ मामले को प्रतिप्रेषित करने का आदेश जो आदेश 41 के नियम 23 या 23 क के अधीन दिया गया हो,

(ब) पुनर्विलोन के लिये आवेदन मंजूर करने का आदेश जो आदेश 47 के नियम 4 के अधीन दिया गया हो। अर्थात जहाँ एक अपील आदेश 43 नियम 1 के अधीन एक अन्तरिम व्यादेश (आदेश 39, निय 1) के विरुद्ध की गयी है, वहाँ इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राम सिंह बनाम स्पेशल जज (इ० सी० एक्ट) AIR 1993 नामक बाद में यह अभिनिर्धारित किया कि अपीलीय न्यायालय की शक्तियाँ उतनी ही विस्तृत है जितनी कि विचारण न्यायालय की।

1- क. डिक्रियों के विरुद्ध अपील में के ऐसे आदेशों पर आक्षेप करने का अधिकार जिनकी अपील नहीं की जा सकती-

(1) जहाँ यह संहिता के अधीन कोई आदेश किसी पक्षकार के विरुद्ध किया जाता है और तदुपरान्त निर्णय ऐसे पक्षकार के विरुद्ध सुनाया जाता है और डिक्री तैयार की जाती है वहाँ ऐसा पक्षकार डिक्री के विरुद्ध अपील में यह प्रतिवाद कर सकेगा कि ऐसा आदेश नहीं किया जाना चाहिये था और निर्णय नहीं सुनाया जाना चाहिये था।

(2) ऐसी डिक्री के विरुद्ध अपील में जो समझौता अभिलिखित करने के पश्चात् या समझौता अभिलिखित किया जाना नामंजूर करने के पश्चात् बाद में पारित की गयी है. अपीलार्थी को इस आधार पर डिक्री का प्रतिवाद करने की स्वतन्त्रता होगी कि समझौता अभिलिखित किया जाना चाहिये था या नहीं किया जाना चाहिये था। अर्थात्

एक पक्षकार जो समझौते को चुनौती देता है वह या तो आदेश 23, नियम 3 के परन्तुक के अन्तर्गत याचिका दाखिल कर सकता है या संहिता की धारा 96(1) के अन्तर्गत (आदेश 43. नियम 1 क को ध्यान में रखते अपील दाखिल कर सकता है और ऐसी अपील में ऐसे समझौते की विधिमान्यता के प्रश्न को उठा सकता है। ऐसा विधि का सिद्धान्त उच्चतम न्यायालय में बनवारी लाल बनाम चाँदो देवी नामक वाद में प्रतिपादित किया।

वे कौन से आदेश हैं, जिनकी अपील का प्रावधान है? What are those orders, there is provision for appeal

वे आदेश जिनकी अपील होगी (धारा 104) –

(1) निम्नलिखित आदेश की अपील होगी

खण्ड क से च तक निरस्त

(च) धारा 35 क के अधीन आदेश धारा 91 या धारा 92 के अधीन यथास्थिति धारा 91 या धारा 92 में निर्दिष्ट प्रकृति के बाद को संस्थित करने के लिए इजाजत देने से इन्कार करने वाला आदेश।

(छ) धारा 95 के अधीन आदेश।

(ज) इस संहिता के उपबन्धों में से किसी के भी अधीन ऐसा आदेश जो जुर्माना अधिरोपित करता है या किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी या सिविल कारागार में विरोध निर्दिष्ट करता है, वहाँ के सिवाय जहाँ कि ऐसी गिरफ्तारी या निरोध किसी डिक्री के निष्पादन में है।

(झ) नियमों के अधीन किया गया आदेश जिसकी अपील नियमों द्वारा अभिव्यक्त रूप से अनुज्ञात है। और इस संहिता के पाठ में या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा अभिव्यक्त रूप से अन्यथा उपबन्धित के सिवाय किसी भी अन्य आदेशों की अपील नहीं होगी परन्तु खण्ड (चच) में विनिर्दिष्ट किसी भी आदेश की कोई भी अपील केवल इस आधार पर भी होगी कि कोई आदेश किया नहीं जाना चाहिये था या आदेश कम रकम के संदाय के लिए किया जाना चाहिये था।

(2) इस धारा के अधीन अपील में पारित किसी भी आदेश की कोई अपील नहीं होगी। डिक्री और आदेश में एक अन्तर यह भी है जहाँ सभी डिक्री (अगर वह सहमति की डिक्री नहीं है) के विरुद्ध धारा 96 के अधीन पहली अपील की जा सकती है वहाँ सभी आदेश के विरुद्ध अपील नहीं की जा सकती। केवल उन्हीं आदेशों के विरुद्ध अपील की जा सकती है जो धारा 104 में और आदेश 43, नियम (1) में वर्णित है।

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