संवैधानिक विधि/constitutional law

साइबर अश्लीलता क्या है | साइबर अश्लीलता पर वाद विधि | Cyber Pornography

साइबर अश्लीलता क्या है
साइबर अश्लीलता क्या है

साइबर अश्लीलता क्या है- भारतीय समाज मुख्यतः मूल्यों पर आधारित है और नैतिकता इसके शीर्ष पर स्थित है। इस प्रकार जो कुछ भी सही और गलत के बारे में लोगों की भावनाओं के विरुद्ध कारित होता है, उसे नैतिकता की धारणाओं के मद्दे नजर, समाज पर पड़ने वाले इसके सम्भव प्रभाव के पदो में देखा जाता है।

वैसे तो विधि एवं नैतिकता में किसे वरिष्ठ माना जाय, इस पर सदैव विमर्श होता रहा है और शायद आगे भी होता रहेगा, लेकिन यह बात अपनी जगह पर कायम है कि समाज ऐसे अनेक कृत्यों को अनैतिक ठहराता है जिन्हें यह इसलिए पसन्द नहीं करता क्योंकि समाज के लोकप्रिय बोध के अनुसार ऐसे कृत्य समाज का कोई भला करते हुए नहीं प्रतीत होते. भले ही ये कुछ लोगों को बुरे न लगते हों। वे कुछ लो जो ऐसे अनैतिक कृत्यों को अच्छा एवं सुहावना मानते हैं, उन्हें समाज में अच्छे चिन्तन वाले व्यक्ति के रूप में नहीं देखा जाता।

अश्लीलता की धारणा भी इसी प्रकार से लोगों की नैतिकता की धारणा, अर्थात् लोक नैतिकता से सीधी जुड़ी हुई है। अपिच, इसमें लोक व्यवस्था को भंग करने और समाज की शान्ति एवं प्रशान्ति को नुकसान पहुँचाने की क्षमता रहती है। जो कृत्य अश्लील हैं वे नैतिकता, सार्वजनिक व्यवस्था और समाज की शान्ति एवं प्रशान्ति के विरुद्ध प्रतीत होते है, और इसलिए इनमें सामाजिक ताने बाने की जड़ों अर्थात् सामाजिक मूल्यों को नष्ट करने की प्रवृत्ति है।

भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत अभ्रद्रता का वर्णन अनुभागों 292-94 में मिलता है जहाँ, अन्य बातों के अलाव अभद्र कृत्यों, अभद्र साहित्य का प्रकाशन एवं विक्रय; या सार्वजनिक स्थलों पर अभद्र कृत्यों के करने को दण्डनीय बनाया गया है। प्रायः एक स्थिर रूप में अभिव्यक्त अभद्रता को अश्लीलता का नाम दिया जाता है।

तदनुसार, जब अंकीय या इलेक्ट्रानित उपकरणों के इस्तेमाल से साइवर व्योम (Cyber space) में अश्लील हरकतें की जाती हैं, तो ऐसी हरकते साइवर अश्लीलता की विषय वस्तु का निर्माण करती हैं। इस तरह बाल अश्लीलता भी साइबर अश्लीलता ही है, जिसमें खास तौर से बच्चों को निशाना बनाया जाता है।

आगे बढ़ने से पहले यह कहना प्रसंगेत्तर नहीं होगा कि अभद्रता के बारे में आर बनाम हिकलिन के बाद में दिया गया प्रेक्षण कालान्तर में मन्त्रवत दुहराया जाने लगा, अर्थात् यह कि कोई कृत्य अभद्र होगा यदि इसमें उन्हें भ्रष्ट एवं पतित करने की प्रवृत्ति है जिनके दिमाग ऐसे प्रभावों के प्रति संवेदनशील हैं।

भारत में रंजीत डी० उधेशी बनाम महाराष्ट्र राज्य के ऐतिहासिक बाद एवं अन्य कई मुकद्दमों में उच्चतम न्यायालय ने उक्त मंत्र का प्रयोग किया है। सन 2008 में किये गये संशोधनों के पश्चात् सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 ने उन पर नकेल कसना शुरू कर दिया है जो साइबर लोक में अश्लील कृतियों एवं कृत्यों के साथ संलिप्तता रखते हैं।

इस प्रकार अब अधिनियम में पहचान की चोरी (अनुभाग 66स) निजता का उल्लंघन (अनुभाग 66 या); इलेक्ट्रानित रूप में अभद्र सामग्री का प्रकाशन या पारेषण (अनुभाग 67) यौनिक रूप से स्पष्ट कृत्यों, आदि को अन्तर्विष्ट करने वाली सामग्री का इलेक्ट्रानित रूप में प्रकाशन या पारेषण (अनुभाग 67व), और बच्चों को यौनिक रूप से स्पष्ट कृत्यों, आदि में दिखाने वाली सामग्री का इलेक्ट्रानित रूप में प्रकाशन या पारेषण (अनुभाग 67 ख) हेतु दण्ड का विधान किया गया है।

साइबर अश्लीलता और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Cyber Pornography and Information Technology Act, 2000 )- सन् 2008 में किये गये संशोधनों के बाद अधिनियम ऐसे व्यक्तियों को कड़ा सन्देह देने में सक्षम हो गया है जो ऐसे कृत्यों में संलिप्त हैं या हो सकते हैं जिन्हें साइवर अश्लीलता नामक अपराध के तहत आच्छादित किया

गया है। सम्प्रति इस वर्ग के साइबर अपराधियों को भारतीय दण्ड संहिता और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम दोनों के तहत विचारित और दण्डित किया जा सकता है। अधिनियम के अन्तर्गत इस साइबर अपराध को विभिन्न कोणों से देखने का प्रयास किया गया है।

निजता के उल्लंघन हेतु दण्ड (Punishment for violation of privacy ) साइबर लोक में की जाने वाली अश्लील हरकतें अक्सर उस व्यक्तियों के उस समूह, जो इन गतिविधियों का शिकार बनता है, की निजता का उल्लंघन भी करती है। इस दृष्टि से यह देखना महत्वपूर्ण हो जाता है कि हमला करने वालों के विरुद्ध अधिनियम क्या करता है।

एतदर्थ, अधिनियम के प्रस्तुत अनुभाग में यह कहा गया है कि जो कोई व्यक्ति इरादतन या जानते हुए किसी व्यक्ति की सम्मत्ति के बिना, ऐसे व्यक्ति की निजता का उल्लंघन करने वाली परिस्थितियों के तहत, उसके निजी क्षेत्र की छवि उतारता है, प्रकाशित या पारेषित करता है, उसे अधिकतम 3 वर्षों के कारावास या अधिकतम 2 लाख रुपये के अर्थदण्ड, या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।

व्याख्या के तौर पर इसे कहा गया है कि उक्त उद्देश्य से, ‘पारेषित करने का अर्थ इस आशय के साथ किसी दृश्य छवि को इलेक्ट्रानिक रूप में प्रेषित करना है कि उसे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा देखा जाय; किसी छवि के सम्बन्ध में उतारने’ का अर्थ दृश्य टेप बनाना, फोटो उतारना, फिल्म बनाना या किसी अन्य माध्यम से अभिलेखित करना है, ‘निजी क्षेत्र’ से आशय नग्न या अन्तः वस्त्र धारित जननांगों, पशम क्षेत्र (Public area), नितम्बों या नारी स्तन से है: और ‘प्रकाशित करता है’ पद का अर्थ मुद्रित या इलेक्ट्रानिक रूप में पुनरुत्पादन और इसे लोगों को उपलब्ध कराने से है।

अन्ततः ‘निजता का उल्लंघन करने वाली परिस्थितियों के तहत’ जुमले का अर्थ उन परिस्थितियों से है जिनमें किसी व्यक्ति को युक्तियुक्त आशा हो कि

(i) वह निजता में निर्वस्त्र हो सकता है या हो सकती है, बिना इसकी चिन्ता किये कि उसके निजी क्षेत्र की तस्वीर उतारी जा रही है; या

(ii) उसके निजी क्षेत्र का कोई हिस्सा सार्वजनिक रूप से दिखायी नहीं देगा, इससे अप्रभावित रहते हुए कि वह व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर है या निजी स्थान पर है। अभद्र सामग्री को इलेक्ट्रानिक रूप में प्रकाशित या पारेषित करने हेतु दण्ड (Punishment for publishing or transmitting obscene material in electronic form) (अनुभाग 67 क) |

जो कोई व्यक्ति ऐसी सामग्री इलेक्ट्रानिक रूप में प्रकाशित करता है या पारेषित करता है या प्रकाशित करवाता है या पारेषित करवाता है जो कामुक है या लोगों की कामुक भावनाओं को उद्दीप्त करती है या जिसका प्रभाव ऐसे लोगों को पथ भ्रष्ट करना हो सकता है जो, सभी प्रासंगिक परिस्थितियों का ध्यान रखते हुए, इसमें अन्तर्विष्ट या रूपायित सामग्री को पढ़ देख या सुन सकते हैं, उसे प्रथम दोष सिद्धिं पर अधिकतम 3 वष के सामान्य या सक्षम कारावास और अर्थदण्ड, और अग्रिम या अनुवर्ती दोषसिद्धि की दशा में अधिकम 5 वर्ष के सश्रम या सामान्य कारावास और अधिकतम 10 लाख रुपये तक के अर्थदण्ड से दण्डित किया जायेगा।

इलेक्ट्रानिक रूप में यौगिक रूप से स्पष्ट कृत्य आदि को अन्तर्विष्ट करने वाली सामग्री के प्रकाशन या पारेषण हेतु दण्ड (Punishment for publishing or transmitting of material containing sexually explicit act, etc, In electronic form)

जो कोई व्यक्ति यौनिक रूप से स्पष्ट कृत्य या आचरण को अन्तर्विष्ट करने वाली किसी सामग्री को इलेक्ट्रानिक रूप में प्रकाशित करता है या पारेषित करता है या प्रकाशित करवाता है या पारेषित करवाता है, उसे प्रथम दोषसिद्धि पर सामान्य या सश्रम कारावास जिसकी अवधि अधिकतम 5 वर्षों की हो सकती है, और अधिकतम 10 लाख रुपये के अर्थदण्ड से दण्डित किया जायेगा; और द्वितीय या अनुवर्ती दोषसिद्धि की दशा में अधिकतम 7 वर्षों के सामान्य सा सश्रम कारावास और अधिकतम 10 लाख रुपये अर्थदण्ड से दण्डित किया जा सकता है।

साइबर अश्लीलता पर वाद विधि ( Law on Cyber Pornography)

साइवर अश्लीलता पर वाद विधि ( Case Law on Cyber Pornography- साइबर अश्लीलता नामक अपराध अपने को अनेक रूपों में प्रस्तुत करता है और विधि प न्यायालयों दोनों के लिए नई चुनौतियाँ पेश करता है। इसलिए अदालतों के कुछ निर्णयों पर विचार करना लाभदायक होगा जिससे साइबर अश्लीलता की घटनाओं के प्रति विधि काम काज को समझा जा सके।

अभद्र चित्रों को सजीव रूप में प्रकाशित करना ( Publishing obscene material online) आर बनाम ग्राहम वैडन, साउथ वार्क के बाद में प्रतिवादी ने ऐसी छवियों सृजित की थी जो युनाइटेड किंगडग की विधि के अन्तर्गत गैर कानूनी थीं, और उन्हें ग्राहकों को संजाल स्थानों (website) की एक श्रृंखला पर उपलब्ध कराया था, जो संयुक्त राज्य अमेरिका में आधारित (स्थित) थे और वही स्थित एक अन्तरजाल सेवा प्रदाता (Internet service porvider) द्वारा आतिथ्य प्राप्त थे।

जब उस पर यूनाइटेड किंगडम के अभद्र प्रकाशन अधिनियम, 1959 के अनुभाग 2 ( 1 ) के विपरीत अभद्र लेखों के प्रकाशन का आरोप लगा तो, प्रतिवादी ने यह दावा किया कि चूँकि उसने वक्त अश्लील साहित्य को विदेश में प्रकाशित किया है, इसलिए उसके कृत्य पर यूनाइटेड किंगडम की विधि लागू नहीं होगी और इस सन्दर्भ में यूनाइटेड किंगडम की किसी अदालत का कोई क्षेत्राधिकार नहीं है।

परन्तु न्यायालय ने प्रतिवादी की किसी दलील को स्वीकार नहीं किया। न्यायालय प्रेक्षण दिया कि अभद्र प्रकाशन अधिनियम, 1959 के अनुभाग 1 (3) के तहत प्रकाशन में इलेक्ट्रानीय रूप से संचयित या पारेषित आकड़े भी शामिल हैं। चूँकि पारेषित करने का अर्थ एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रेषित करना है, इसलिए प्रस्तुत वाद में पारेषण का कृत्य तभी सम्पन्न हो गया जब प्रतिवादी ने आँकड़े सेवा प्रदाता को प्रेषित किये, या पारेषण तब भी सम्पन्न हुआ|

जब आँकड़ों को प्राप्त किया या यूनाइटेड किंगडम के दर्शकों के लिए प्रेषण एवं प्राप्ति दोनों यूनाइटेड किंगडम में ही सम्पन्न हुए अर्थात् न्यायालय के क्षेत्राधिकार के भीतर सम्पन्न हुए, और यह अप्रासंगिक है कि ‘प्रेषण एवं प्राप्ति के मध्य (कुछ समय के लिए) पारेषण ने क्षेत्राधिकार का त्याग किया होगा।’ ऐसा तर्क देते हुए न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि उसके पास आरोपी का विचारण करने हेतु क्षेत्राधिकार है।

वाद के तथ्यों के अनुसार, प्रतिवादी ने अश्लील छवियाँ सृजित की थीं जो यूनाइटेड किंगडम के अभट्ट प्रकाशन अधिनियम के तहत गैर कानूनी थीं। वह संयुक्त राज्य अमेरिका में – स्थित संजाल स्थानों की एक श्रृंखरा चलाता था और कहीं स्थित एक अन्तरजाल सेवा प्रदाता के ऊपर उन्हें आतिथ्य प्रदान करता था|

दुनिया में कहीं भी स्थित कोई व्यक्ति अपने साखपत्र (क्रेडिट कार्ड) का विवरण देकर ग्राहक बन सकता था और अन्तरजाल के माध्यम से उन छवियो तक सुगम्यता प्राप्त कर सकता था ऐसी सुगम्यता प्राप्त करने की फीस यूनाइडेट किंगडम के ग्राहकों से 25 पाउण्ड प्रतिमाह की दर से ली जाती थी। ग्राहक को एक प्रवेश शब्द (password) दिया जाता था जिसकी मदद से वह उक्त छवियों को प्राप्त करने हेतु विभिन्न संजालों पर सम्पर्क (login) कर सकता था।

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