संवैधानिक विधि/constitutional law

संसद द्वारा राज्य सूची के विषय | State List Subjects by Parliament

संसद द्वारा राज्य सूची के विषय

संसद द्वारा राज्य सूची के विषय

भारतीय संविधान में उस बात का भी प्रावधान किया गया है कि कुछ विशेष परिस्थितियों में केन्द्र, राज्य सूची के विषय पर कानून बना सकता है। लेकिन संसद के द्वारा कुछ विशेष परिस्थितियों के अन्तर्गत राष्ट्रीय हित और राष्ट्रीय एकता हेतु राज्य सूची के विषयों पर भी कानूनों का निर्माण किया जा सकता है। संसद को इस प्रकार की शक्ति प्रदान करने वाले संविधान के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं-

(1) राज्य सूची का विषय राष्ट्रीय महत्व का होने पर-

संविधान के अनुच्छेद 249 के अनुसार यदि राज्यसभा अपने दो-तिहाई बहुमत से यह प्रस्ताव स्वीकार कर लेती है कि राज्य सूची में उल्लिखित कोई विषय राष्ट्रीय महत्व का हो गया है, तो संसद को उस विषय पर विधि निर्माण का अधिकार प्राप्त हो जाता है। इसकी मान्यता केवल एक वर्ष तक रहती है। राज्यसभा द्वारा प्रस्ताव पुनः स्वीकृत करने पर इसकी अवधि में एक वर्ष की वृद्धि और हो जाएगी। इसकी. अवधि समाप्त हो जाने के उपरान्त भी यह 6 माह तक प्रयोग में आ सकता है।

(2) संकटकालीन घोषणा होने पर (अनुच्छेद 250)-

संकटकालीन घोषणा की स्थिति में राज्य की समस्त विधायनी शक्ति पर भारतीय संसद का अधिकार हो जाता है। इस घोषणा की समाप्ति के 6 माह बाद तक संसद द्वारा निर्मित कानून पूर्ववत् चलते रहेंगे।

(3) राज्य के विधानमण्डलों द्वारा इच्छा प्रकट करने पर-

संविधान के अनुच्छेद 252 में यह प्रावधान किया गया है कि यदि दो या दो से अधिक राज्यों के विधानमण्डल यह प्रस्तावपारित कर देते है कि राज्य सूची के किस विषय पर संसद कानून बना सकती है, तो उन राज्यों के लिए उन विषयों पर अधिनियम बनाने का अधिकार संसद को प्राप्त हो जाता है। राज्यों के विधानमण्डल न तो इन्हें संशोधित कर सकते हैं और न ही इन्हें पूर्ण रूप से समाप्त कर सकते हैं।

(4) विदेशी राज्यों से हुई सन्धियों के पालन हेतु (अनुच्छेद 253)-

यदि संघ सरकार ने विदेशी राज्यों से किसी प्रकार की सन्धि की है अथवा उनके सहयोग के आधार पर किसी नवीन योजना का निर्माण किया है तो इस सन्धि के पालन संघ सरकार को सम्पूर्ण भारत की सीमा क्षेत्र के अन्तर्गत पूर्णतया हस्तक्षेप और व्यवस्था करने का अधिकार होगा। इस प्रकार इस स्थिति में भी संसद को राज्य सूची के विषय में कानून निर्माण का अधिकार प्राप्त हो जाता है।

(5) राज्य में संवैधानिक व्यवस्था भंग होने पर (अनुच्छेद 356)-

अनुच्छेद 356 में यह कहा गया है कि यदि राष्ट्रपति को राज्यपाल के प्रतिवेदन इस बात का समाधान हो जाता है कि राज्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिससे संविधान के उपबंधों के अनुसार शासन नहीं चलाया जा सकता है तो राष्ट्रपति राज्य विधानमण्डल के समस्त अधिकार भारतीय संसद को प्रदान करता है।

(6) कुछ विधेयकों को प्रस्तावित करने और कुछ की अन्तिम स्वीकृति के लिए केन्द्र का अनुमोदन आवश्यक-

अनुच्छेद 304 (ख) के अनुसार कुछ विधेयक ऐसे होते हैं, जिनके राज्य विधानमण्डल में प्रस्तावित किए जाने के पूर्व राष्ट्रपति की पूर्व-स्वीकृति की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, वे विधेयक, जिनके द्वारा सार्वजनिक हित की दृष्टि से उस राज्य के अन्दर या उसके बाहर व्यापार, वाणिज्य या मेलजोल पर कोई प्रतिबन्ध लगाए जाने हों।

अनुच्छेद 31 (ग) के अनुसार राज्य सूची के ही कुछ विषयों पर राज्यों, की व्यवस्थापिकाओं द्वारा पारित विधेयक उस दशा में अमान्य होंगे, यदि उन्हें राष्ट्रपति के विचारार्थ न रोके रखा हो और उन पर राष्ट्रपति की स्वीकृति न प्राप्त कर ली गयी हो। उदाहरण के लिए, किसी राज्य द्वारा सम्पत्ति के अधिग्रहण के लिए बनाए गए कानूनों या समवर्ती सूची के विषयों के बारे में ऐसे कानूनों, जो संसद के उससे पहले बनाए गए कानून के प्रतिकूल हों या उन पर जिनके द्वारा ऐसी वस्तुओं की खरीद और बिक्री पर लगाया जाने वाला हो, जिन्हें संसद ने समाज के जीवन के लिए आवश्यक घोषित कर दिया है, राष्ट्रपति की स्वीकृति आवश्यक है।

राज्य- सूची के विषयों पर केन्द्रीय हस्तक्षेप-

राज्यों द्वारा यह भी शिकायत की गयी है कि केन्द्र उद्योग, व्यापार एवं वाणिज्य जैसे विषयों पर कानून बनाने लग गया है, जबकि ये विषय राज्य-सूची में उल्लिखित हैं। सन् 1951 में संसद ने उद्योग विकास एवं नियन्त्रण अधिनियम पारित किया, जिसमें उन उद्योगों का उल्लेख किया गया, जिन पर जनहित में केन्द्र द्वारा नियन्त्रण करना आवश्यक था। धीरे-धीरे अनेक उद्योगों को इस अधिनियम के अन्तर्गत ले लिया गया। इस प्रकार राज्य सूची में वर्णित 24,26 तथा 27 क्रम वाले विषयों पर केन्द्र का अधिकार स्थापित हो गया। यही नहीं, रेजर, पत्ती, कागज, गोंद, जूते, माचिस, साबुन आदि से सम्बन्धित उद्योगों पर भी केन्द्रीय सरकार का नियन्त्रण स्थापित हो गया। राज्यों के नेताओं का कहना है कि इस प्रकार के अत्यधिक केन्द्रीकरण से राज्यों का आर्थिक विकास अवरुद्ध हो रहा है।

संसद द्वारा बताई गई विधियों की विषय वस्तु-

संसद को संघ सूची, जो कि संविधान के अनुसूची 7 की सूची । में उपबंधित है, पर विधि बनाने की आत्यांतिक शक्ति है। इस सूची में 99 प्रतिवष्टियाँ हैं। इन प्रविष्टियों में राष्ट्रीय महत्व के विषय सम्मिलित हैं जैसे भारत की रक्षा, संघ से सशक्त बल, विदेशी कार्य, युद्ध और शांति, रेल एवं वायु मार्ग, डाक और तार, 246(2) है। संविधान में कुछ अन्य उपबंध को है जो संसद को विधान बनाने की शक्ति प्राप्त करते भारतीय संविधान के अनुच्छेद 246(1) में प्राप्त करती है। समवर्ती सूची की दशा में स्रोत अनुच्छेद हैं जैसे- अनुच्छेद 2 और 3 (नए राज्यों की रचना), अनुच्छेद 11(नागरिकता) अनुच्छेद 247 (अतिरिक्त न्यायालयों की स्थापना) अनुच्छेद 262 (नदी जल विवाद) अनुच्छेद 243 (राजभाषा) अनुच्छेद.248 (उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों की भाषा।

जब संघ सूची और राज्य सूची के बीच अति व्यापित है तो संघ सूची को प्रधानता दी जायेगी। अनुच्छेद 246(1) एवं (3) इस मामले में बहुत स्पष्ट है और संदेह के लिए कोई स्थान नहीं है। दूसरे शब्दों में संघ सूची और राज्य सूची में स्पर्धा होने पर संघ सूची को अधिमान दिया जाएगा। संघ सूची और समवर्ती सूची में अतिव्याप्ति होने पर भी संघ सूची को वरीयता मिलेगी। जहाँ समवर्ती सूची और राज्य सूची में संघर्ष है वहां समवर्ती सूची को प्रधानता दी जायेगी।

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