दहेज मृत्यु की उपधारणा (The Presumption of Dowry Death in Hindi)
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113 ‘ख’ दहेज मृत्यु की उपधारणा के बारे में आवश्यक प्रावधान करती है। धारा-113 ‘ख’ के अनुसार, जब प्रश्न यह है कि किसी व्यक्ति ने किसी स्त्री की दहेज मृत्यु की है और यह दर्शित किया जाता है कि मृत्यु के कुछ पूर्व ऐसे व्यक्ति ने दहेज की किसी माँग के लिए, या उसके सम्बन्ध में उस स्त्री के साथ क्रूरता की थी या उसको तंग किया था तो न्यायालय यह उपधारणा करेगा कि ऐसे व्यक्ति ने दहेज मृत्यु कारित की थी।
स्पष्टीकरण- इस बारा के प्रयोजन के लिए ‘दहेजमृत्यु’ का वही अर्थ होगा जो भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304 ‘ख’ में उल्लिखित है। उपचारणा कब की जा सकेगी ?- धारा 113 ‘ख’ के अधीन उपधारणा निम्नलिखित आवश्यक बातों के सबूत पर ही की जायेगी
(1) न्यायालय के समक्ष प्रश्न अवश्य ही यह होना चाहिए कि क्या अभियुक्त ने किसी स्त्री की दहेज मृत्यु कारित की है, अर्थात् उपधारणा केवल तभी की जा सकती है, जब अभियुक्त का विचारण भारतीय दण्ड सहिता की धारा 304 ‘ख’ के अधीन हो रहा है।
(2) उस स्त्री को उसके पति या नातेदारों द्वारा क्रूरता या उत्पीड़न के अध्यधीन किया गया हो।
(3) ऐसी क्रूरता या उत्पीड़न दहेज के लिए दहेज की किसी माँग से सम्बन्धित हो।
(4) ऐसी क्रूरता या उत्पीड़न उसकी मृत्यु के ठीक पूर्व की गई हो।
स्टेट ऑफ पंजाब बनाम इकबाल सिंह, 1991 एस.सी. के बाद में जहाँ प्रश्न दहेज हत्या का है और यह सिद्ध हो जाये कि मृत्यु के ठीक पूर्व समय तक महिला के साथ क्रूरता का व्यवहार किया गया तो धारा 113 ‘ख’ उपबंधित करती है कि ऐसे व्यक्ति द्वारा मृत्युकारित किये जाने की उपधारणा कर ली जायेगी और यदि मृत्यु आशयपूर्ण थी तो धारा 302 लागू की जायेगी।
कृष्ण लाल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, 1994 के वाद में कहा गया कि धारा 113 ‘ख’ के उपबंध यद्यपि स्वरूप में आज्ञापक हैं, उसमें उल्लिखित परिस्थितियों के आधार पर दहेज मृत्यु की ऐसी उपधारणा करने का न्यायालय को व्यादेश मात्र देते हैं और वे सबूत के भार को अभियुक्त पर दर्शित करने के लिए स्थानान्तरित करने का अर्थ रखते हैं कि पत्नी की रू मृत्यु के कुछ पूर्व पति द्वारा उसके साथ क्रूरता का व्यवहार नहीं किया गया था।
“भूरा सिंह बनाम स्टेट ऑफ यू.पी., 1993 के वाद में कहा गया कि दहेज मृत्यु के किसी मामले में अभियुक्ता द्वारा इस अपराध के किये जाने की उपधारणा के लिए, पत्नी को व उसकी मृत्यु के कुछ पूर्व दहेज के लिए या दहेज की माँग के सम्बन्ध में क्रूरता या उत्पीड़न के अधीन किया जाना पूर्ववर्ती शर्तें है। शादी के सात वर्ष के भीतर मृत्यु होना न साबित करने पर यद्यपि धारा 113 “क’ के लागू नहीं होती है फिर भी धारायें 304 ‘ख’, 498 ‘क’, भा.द.सं. तथा 113 ‘क’ और 113 ‘ख’ विधायी के अनुसार दहेज मृत्यु को रोकने के लिए रखी गयी हैं और धारा 306 में दोषसिद्धि वितय करते समय व्यान में रखना जरूरी है। (स्टेट ऑफ पंजाब बनाम इकबाल सिंह)
गुरुवचन सिंह बनाम सतपाल सिंह, 1990 के वाद में उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति सत्यसाची मुकर्जी ने कहा कि इस धारा के उपबन्ध संशोधन से पूर्व मामलों पर भी लागू होते हैं। यह उपबन्ध कोई नया अपराध सृजित नहीं करता है और न ही कोई सारभूत अधिकार। यह केवल प्रक्रिया का विषय है और इसलिए भूतलक्षी है और प्रस्तुत मामले में लागू होता है।
शान्ति बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा, 1991 एस.सी. के वाद में कहा गया कि यहाँ अप्राकृतिक मृत्यु और जल्दबाजी में किया गया दाह संस्कार दहेज मृत्यु हत्या की गवाही देते हैं और हत्या तथा आत्महत्या में अन्तर असंगत है। यह उपधारणा एक ऐसे मामले में की गई और इस आधार पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304 ‘ख’ के अन्तर्गत दोषसिद्धि सही मानी गई जिसमें स्त्री को गला घोंट कर मारा गया था और यह साक्ष्य था कि दहेज की माँग को लेकर उस पर अत्याचार हो रहा था।
गुरुवचन सिंह बनाम सतपाल सिंह, 1990 के बाद में उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति सत्यसाची मुकर्जी ने कहा कि इस धारा के उपबन्ध संशोधन से पूर्व मामलों पर भी लागू क होते हैं। यह उपबन्ध कोई नया अपराध सृजित नहीं करता है और न ही कोई सारभूत अधिकार। यह केवल प्रक्रिया का विषय है और इसलिए भूतलक्षी है और प्रस्तुत मामले में लागू होता है। शान्ति बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा, 1991 एस.सी. के बाद में कहा गया कि
यहाँ अप्राकृतिक मृत्यु और जल्दबाजी में किया गया दाह-संस्कार दहेज मृत्यु हत्या की गवाही देने हैं और हत्या तथा आत्महत्या में अन्तर असंगत है। यह उपधारणा एक ऐसे मामले में की गई और इस आधार पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304 ‘ख’ के अन्तर्गत दोषसिद्धि सही मानी गई जिसमें स्त्री को गला घोंट कर मारा गया था और यह साक्ष्य था कि दहेज की माँग को लेकर उस पर अत्याचार हो रहा था।
सतवीर सिंह बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा, 2005 एस.सी. के वाद में अभिनिर्धारित किया कि उपधारणा उत्पन्न किये जाने के बाद सबूत का भार अभियुक्त पर आ जाता है।
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