विबन्धन की परिभाषा (Define Estoppel in Hindi)
विबन्धन की परिभाषा (Estoppel) – विबन्ध अग्रेजी के ‘एस्टापल’ का हिन्दी रूपान्तरण है, एस्टापल फ्रेंच भाषा के ‘एस्टाप’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है रोकना। अतः विबन्ध पद का अर्थ किसी ऐसी चीज से है जो ‘व्यक्ति का मुँह बन्द कर देती है। विबन्ध का नियम साम्या, सद्विवेक और सद्विचार के सिद्धान्तों पर आधारित है। इसका उद्देश्य बेईमानी व छल और कपटपूर्ण कार्यों से वाद के पक्षकारों के हितों की सुरक्षा प्रदान करना है। विबन्ध पक्षकार तथा संसर्गियों दोनों पर आबद्ध कर है। इस साक्ष्य अधिनियम की धारा 115 में विबन्ध का सिद्धान्त सन्निविष्ट है। धारा 116 एवं धारा 117 में कुछ विशिष्ट प्रकार के विबन्ध हैं।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 115 में विबन्ध का उल्लेख किया गया है। अधिनियम की धारा 115 के अनुसार जबकि एक व्यक्ति ने अपनी घोषणा कार्य या लोप द्वारा अन्य व्यक्ति को साशय विश्वास कराया है, या कर लेने दिया है, कि कोई बात सत्य है और ऐसे विश्वास पर कार्य कराने या करने दिए हैं, तब न तो उसे और न उसके प्रतिनिधि को अपने और ऐसे व्यक्ति के या उसके प्रतिनिधि के बीच किसी वाद या कार्यवाही में उस बात की सत्यता का प्रत्याख्यान करने दिया जाएगा।
दृष्टान्त-क साक्ष्य और मिथ्या रूप से ख को यह विश्वास करने के लिए प्रेरित करता है कि अमुक भूमि क की है और एतद्वारा ख को उसे क्रय करने और उसका मूल्य चुकाने के लिए प्रेरित करता है। तत्पश्चात् भूमि क की सम्पत्ति हो जाती है और क इस आधार पर कि विक्रय के समय उसका उसमें हक नहीं था, विक्रय अपास्त करने की ईप्सा करता है, उसे अपना हक का अभाव साबित नहीं करने दिया जाएगा।
विबन्ध का उद्देश्य (Purpose of Estoppel)
विबन्ध का उद्देश्य पक्षकारों की कपट से रक्षा करना तथा उनके मध्य ईमानदारी एवं सद्भावना द्वारा न्याय करना है। विबन्ध पक्षकार और उनके संसर्गियों दोनों पर ही आबद्धकर है। यह सिर्फ दीवानी मामलों में लागू होता है।
विबन्ध के निम्नलिखित तत्व होते हैं –
1. किसी भी रूप में घोषणा, कार्य या लोप के द्वारा कोई व्यपदेशन होना चाहिए।
2. व्यपदेशन किसी तथ्य के अस्तित्व के बारे में होना चाहिए, न कि भविष्य में किए कि जाने वाले कार्य के बारे में वचन या आशय, जो संविदा में प्रवर्तनीय हो सकता है या नहीं।
3. व्यपदेशन ऐसी परिस्थितियों में किया गया होना चाहिए जो अन्य व्यक्ति को साशयनप
सा विश्वास करने या कर लेने की कोटि में आ सकता है।
4. इस प्रकार उत्प्रेरित किए गए विश्वास पर कार्य किया गया हो और फलस्वरूप उम्र अपनी पूर्ववर्ती स्थिति में अपने प्रतिफल परिवर्तन कर लिया हो ।
5. किसी विबन्ध का लाभ चाहने वाले व्यक्ति को यह दर्शित करना होगा कि उसे सही वस्तुस्थिति की जानकारी नहीं थी। यदि उसे वास्तविक स्थिति की जानकारी थी या वास्तविक स्थिति जानने के साधन थे, तो वहाँ विबन्ध का नियम लागू नहीं हो सकता।
6. जब किसी संव्यवहार के दोनों ही पक्षकार किसी विधि की भूल से कार्य कर रहे हों, तब विवन्ध का प्रश्न ही नहीं उठता। धारा 115 में दिया गया विबन्ध का नियम अंग्रेजी वाद पिकार्ड ब0. सियर्स पर आधारित है। इसमें यह कहा गया था कि जब कोई व्यक्ति अपने शब्दों या आचरण के द्वारा किसी अन्य को किसी वस्तुस्थिति के अस्तित्व पर विश्वास दिलाता है और उस विश्वास के आधार पर उसको अपनी पूर्वस्थिति को परिवर्तित करने के लिए उत्प्रेरित करता है तो उसे यह कहने से रोका जा सकता है कि उस समय वस्तुस्थिति का अस्तित्व कुछ अन्य प्रकार का था।
टेलर के अनुसार, विबन्ध का आधार कुछ तो सत्य बोलने और उसके अनुसार कार्य करने पर निर्भर है, जिससे प्रत्येक ईमानदार व्यक्ति बाध्य है और कुछ कानून की इस नीति पर निर्भर है जो इस तरह उन उत्पातों को रोकना चाहती है जो अनिश्चितता भ्रम एवं विश्वास की कमी के आवश्यक परिणाम होते हैं|
यदि लोगों को उस बात का प्रत्याख्यान करने के लिए अनुशा दे दी जाती है, जिन्हें उन्होंने जानबूझकर कहा है और सत्य माना है।
उदाहरण, एक पुत्र ने, जो अपनी माता की ओर से मुख्तार की हैसियत से कार्य कर रहा था, अपनी माता की ओर से और उसकी ओर से एक बन्धक निष्पादित किया और बन्धक वन को प्राप्त किया। यह निर्णीत किया गया कि वह उस बन्धक के प्रति अपनी माता के हक पर विवाद करने से विवन्धित कर दिया गया है चाहे उसे उसकी अमान्यता की जानकारी रही हो या गलती से उसे मान्य होने का विश्वास किया था।
विबन्ध के प्रकार (Types of Estoppel)
विबन्ध निम्नलिखित तीन प्रकार का होता है –
(1) अभिलेख के नियमों द्वारा विबन्ध (By matter of record)
किसी सक्षम न्यायालय द्वारा किसी विषय पर दिया गया निर्णय विबन्ध का करता है और जिस वाद में निर्णय दिया गया है उसके पक्षकार उसी विषय को दोबारा न्यायालय में ले जाने या विग्रस्त बनाने से रोक दिए जाते हैं ‘अभिलेख के विषयों द्वारा विबन्ध उन सभी विषयों पर लागू होता है जो निर्णय के समय अस्तित्व में थे तथा पक्षकारों द्वारा उन्हें न्यायालय के सामने लाने का अवसर था यदि कोई विषय वाद का है जिसे पक्षकार उस समय न्यायालय के समक्ष नहीं थे तो उस विषय को नये वाद का विषय बनाने से पक्षकार नहीं रोके जा सकते’ (हेल्सवरी)
(2) विलेख द्वारा विबन्ध (Estoppel by Deed)
यदि किसी विशेष तथ्य का स्पष्ट कथन किसी मुद्रांकित दस्तावेज के परिवर्तन में किया गया है और उस परिवर्तन के संदर्भ में कोई संविदा की जाती है तो यह निर्विवाद सत्य है कि उस दस्तावेज के पक्षकारों के बीच तथा उस पर आधारित किसी कार्यवाही में उसके पक्षकार उस परिवर्तन से इन्कार नहीं कर सकते।
भारत में विलेख द्वारा विबन्ध लागू नहीं होता है किसी विलेख या दस्तावेज में किया गया कथन विबन्ध तभी उत्पन्न कर सकता है जबकि स्थिति ऐसी हो कि उसे आचरण द्वारा विबन्ध के अन्तर्गत लाया जा सके। विलेख विबन्ध भारत में लागू नहीं है।
(3) आचरण द्वारा विबन्ध (Estoppel by conduct)
आचरण द्वारा विबन्ध या तो घोषणा द्वारा उत्पन्न हो सकता है या कार्य या लोप द्वारा धारा 115 भारतीय साक्ष्य अधिनियम का सम्बन्ध इसी प्रकार के विबन्ध से है। “यदि किसी व्यक्ति से अभिव्यक्ति रूप से या आचरण – द्वारा किसी वस्तुस्थिति के अस्तित्व पर किसी दूसरे व्यक्ति को इस आशय से विश्वास दिलाया कि वह उस पर कार्य करे और उसने उस वस्तुस्थिति पर विश्वास करके कार्य किया, तो व्यपदेशन करने वाले व्यक्ति को उस वस्तुस्थिति के अस्तित्व से इनकार नहीं करने दिया जाएगा।
” आचरण द्वारा विबन्ध घोषणा द्वारा व्यपदेशन करके हो सकता। जैसे- यदि कोई व्यक्ति साशय और गलत किसी भूमि को अपनी कहकर किसी अन्य को खरीदने के लिए प्रेरित करता है और दूसरा उस पर विश्वास करके खरीदने को तैयार हो जाता है तो वहाँ घोषणा द्वारा विबन्ध हुआ।
आचरण द्वारा विबन्ध के सम्बन्ध में उड़ीसा उच्च न्यायालय का एक वाद आशुतोष विश्वास बनाम स्टेट आफ उड़ीसा का है। एक प्रत्याशी मेडिकल कालेज में प्रवेश हेतु चुना गया। इस कारण उसने अपनी नौकरी छोड़ दी। बाद में उसका चुनाव इस आधार पर स्थगित करने का प्रयास किया गया कि वह अनुसूचित जाति का तो था परन्तु उड़ीसा का नहीं था जबकि परीक्षा में उड़ीसा का निवासी होना शर्त विहित नहीं थी। अतः संस्था को ऐसा करने के विबन्ध के आधार पर रोक दिया गया।
विबन्ध के नियम के अपवाद
निम्न तीन अपवादित मामलों में विबन्ध का नियम लागू नहीं होता है।
(1) यदि दोनों पक्षकारों को असली तथ्य ज्ञात हो,
(2) विधि के प्रश्न पर विबन्ध व्युत्पन्न नहीं हो सकता।
(3) कानून के विरुद्ध विवन्ध नहीं हो सकता।
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