विबन्ध और अधित्यजन में अंतर
अधित्यजन (Waiver)
किसी अधिकार के अस्तित्व के बारे में भी उसका छोड़ना अधित्यजन है या किसी व्यक्ति द्वारा ऐसा आचरण करना जिससे प्रकट होता है कि उसने अपने अधिकार के बारे में जानते हुए भी उसको छोड़ दिया है।
विबन्ध (Bond)
(1) विबन्ध साक्ष्य का एक नियम है और इसके आधार पर कोई वाद नहीं दायर किया जा सकता है अर्थात् विबंध वाद हेतुक नहीं होता।
(2) विबंध का दावा करने वाले व्यक्ति को सही वस्तुस्थिति की जानकारी आवश्यक नहीं है।
(3) कुछ परिस्थितियों में मौन रहना भी विबन्ध की कोटि में आता है।
(4) विबंध का प्रयोग बचाव के रूप में किया जाता है न कि वाद लाने के लिए वाद कारण के रूप में किया जाता है।
अधित्यजन (Waiver)
(1) अधित्यजन की उत्पत्ति संविदात्मक सम्बन्धों से होती है जो किसी वाद कारण को जन्म दे सकता है।
(2) अधित्यजन में दोनों पक्षकारों को सही तथ्यों की जानकारी होती है।
(3) अधित्यजन में मौन के साथ-साथ किसी स्पष्ट कार्य या आचरण का किया जाना है।
(4) अधित्यजन किसी अधिकार प्राप्ति का कारण हो सकता है।
सेंट एनेज स्कूल सोसाइटी बनाम अरबन इम्प्रूवमैन्ट ट्रस्ट, 2000 राजस्थान के बाद में पार्टी ने आधा प्लाट स्वीकार किया और उससे संतुष्ट था परन्तु लगभग एक वर्ष बाद शेष आधी भूमि का भी दावा किया जो आधी भूमि स्कूल को आवंटित कर दी गई थी जिसने उस पर कुछ निर्माण भी कर लिया था अभिनिर्धारित हुआ कि शेष आधे का दावा करने वाली पार्टी को माना जायेगा कि उसने अपने अधिकार का अधित्यजन कर दिया था।
विबन्धन एवं स्वीकृति में अन्तर (Difference Between Estoppel and Admission)
विबन्ध और स्वीकृति में निम्नलिखित भेद हैं –
(1) विबन्ध से दूसरे व्यक्ति की दशा में परिवर्तन हो जाता है किन्तु स्वीकृति में वैसा होना आवश्यक नहीं है।
(2) विबन्ध को उच्च श्रेणी का निचायक साक्ष्य माना गया है किन्तु स्वीकृति को साक्ष्य की दृष्टि से अपेक्षाकृत कुछ कम महत्व प्राप्त है। वह निश्चायक नहीं है। उसका खण्डन किया जा सकता है।
(3) विबन्ध में किसी व्यक्ति द्वारा स्वीकृति करने से यह निश्चायक साक्ष्य नहीं होता है, जब तक कि अन्य व्यक्ति ने उससे प्रेरित होकर और कोई कार्य करके अपनी अवस्था न बदल ली हो किन्तु स्वीकृति में मात्र स्वीकृति पर्याप्त है। स्वीकृति से उत्प्रेरित होकर कोई कार्य किया जाना आवश्यक नहीं है।
(4) स्वीकृति कभी-कभी अपरिचितों (strangers) को भी बाध्य (bind) करती है, किन्तु विबन्ध पक्षकारों तथा उनके उत्तराधिकारियों पर विबन्धकारी होता है।
(5) पक्षकार अपनी स्वीकृति से विबन्धित या निश्चित नहीं होता है जब तक कि अन्य व्यक्ति उस स्वीकृति से अपनी स्थिति को अपने अपायकर रूप में बदल ले। स्वीकृति के आधार पर दावा आघृत किया जा सकता है किन्तु चूँकि विबन्ध केवल साक्ष्य का नियम हैं इसलिए इसके = आधार पर कोई दावा आधारित नहीं किया जा सकता।
विवन्धन और उपधारणा में अन्तर (Differentiate between Estoppel and Presumption)
विवन्धन (Estoppel)
(1) विबन्धन सिर्फ दीवनी मामलों में लागू होता है।
(2) विबन्धन एक अयोग्यता है जिसके द्वारा किसी व्यक्ति को अपने पूर्व कथन के विपरीत कोई बात कहने से रोक दिया जाता है।
(3) विबन्धन सदैव अखण्डनीय होती है।
(4) विबन्धन पक्षकारों के मुँह को बन्द करती है।
उपधारणा (Presumption)
(1) उपधारणा दीवानी तथा आपराधिक दोनों मामलों में की जा सकती है।
(2) उपधारणा एक विधिक नियम है जिसके अनुसार किसी तथ्य के साबित अथवा स्वीकार हो जाने पर किसी दूसरे तथ्य के अस्तित्व की उपधारणा उस तथ्य को साबित करने वाले के पक्ष में कर ली जाती है।
(3) उपधारणा खण्डनीय तथा अखण्डनीय दोनों प्रकृति की होती है।
(4) उपधारणा कुछ तथ्य को साबित करने की आवश्यकता को समाप्त करती है।
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