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उदारीकरण क्या है? आवश्यकता एवं महत्व, सीमाएँ, उपसंहार

उदारीकरण क्या है
उदारीकरण क्या है

उदारीकरण क्या है? (What is liberalization in Hindi)

उदारीकरण की संकल्पना की शुरूआत तो 1980 के पास राजीव गाँधी के शासन काल में ही हो गयी थी। जब बहुत से उद्योग धन्धों तथा व्यापार पर प्रतिबन्ध समाप्त होने शुरू हो गये थे। मगर 1990 के दशक में उदारीकरण को नया नाम देकर इसकी शुरूआत की गई। वर्तमान समय में उदारीकरण शब्द ऐसा है जिससे प्रत्येक वर्ग भली-भाँति परिचित है। उदारीकरण का तात्पर्य ‘उदार दृष्टिकोण’ से होता है फिर यह उदार दृष्टिकोण चाहे राजनैतिक क्षेत्र से सम्बन्धित हो अथवा सामाजिक क्षेत्र से या फिर आर्थिक क्षेत्र से। यहाँ आर्थिक परिप्रेक्ष्य में उदारीकरण की नीति की चर्चा की जा रही है। इस नीति का तात्पर्य है “सरकारों द्वारा आर्थिक क्रियाओं में न्यूनतम हस्तक्षेप”।

आर्थिक विकास के लिए क्रमशतः आर्थिक नीतियाँ भी बनाई गई। वर्तमान समय आर्थिक कार्यक्रमों के सम्बन्ध में न केवल राजनेताओं बल्कि ‘जनसाधारण की भी रुचि हो गई है। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विविध पहलुओं के सम्बन्ध में 1991 में दिए गए अनेक सरकारी नीति वक्तव्यों ने नई आर्थिक नीति को स्पष्ट तथा ठोस रूप प्रदान किया है।

उदारीकरण की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Liberalisation)

यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उदारीकरण ने विकास को नई दिशा दी है और अर्थव्यवस्था में पंख सा लगा दिया है। आज भारत दुनिया की बारहवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (बाजार पूँजीकरण के अनुसार) है और भारतीय बाजार 8% से ज्यादा वृद्धि कर रहे हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में बदलाव का श्रेय उदारीकरण को ही जाता है जिसके फलस्वरूप भारतीय जी डी पी 6% से अधिक की रफ्तार से बढ़ रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था जिसमें विनिर्माण क्षेत्र जो 2005 में 8.98% से बढ़ रही थी अब वह 12% की दर से बढ़ रहा है।

उदारीकरण ने प्रत्येक सेक्टर में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है चाहे वह कृषि, उद्योग और सेवाएँ, बैंकिंग और दवा उद्योग या पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस उद्योग हो। इन सभी सेक्टरों में सुधार ने अधिकाधिक रोजगार के अवसर दिया है अगर 1991 के पहले और बाद की तुलना की जाए तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि उदारीकरण ने गरीबी में कमी की है। जहाँ 2005 में 41.6% जनसंख्या अन्तर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा (1.255) के नीचे जीवन यापन करती है वही 1988 में 59.8% थी।

भारत अपने अर्थव्यवस्था की डींग पूरी दुनिया के सामने हाँकता है लेकिन फिर भी यहाँ जनसंख्या का एक बड़ा भाग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है। भारत की पूरी जनसंख्या का 35% से 40% गरीब है जिनमें तीन चौथाई गरीब ग्रामीण क्षेत्रों में है, जिनमें से अधिकांश भूमिहीन लेबर दिहाड़ी पर काम करने वाले है। भारत में गरीबी के कुछ कारण भी है जैसे कि-

(1) असमान आय वितरण

(2) जनसंख्या उच्च वृद्धि दर

(3) अशिक्षा

(4) जाति प्रथा

वैसे तो गरीबी हटाने के लिए बहुत सी योजनाएं चलायी जा रही हैं जैसे “नेहरू रोजगार योजना”, “प्रधानमन्त्री रोजगार योजना” लेकिन फिर भी यह अपूर्ण है।

अतः यह कहा जा सकता है कि उदारीकरण ने गरीबों का भला किया है परन्तु जिस प्रकार तथा जिस तेजी से करना चाहिए वह शायद अब भी कम है। हो सकता है कि हम गरीबी हटाने के कदम में चूक कर रहें है या फिर यह कह सकते है कि हम प्रयासरत हैं और रहेंगे।

आर्थिक उदारीकरण की सीमाएँ (Limitations of Economic Liberalisation)

नई आर्थिक नीति की प्रमुख विशेषता ‘आर्थिक उदारीकरण है। आर्थिक प्रतिबन्धों की न्यूनता को उदारीकरण कहते हैं। वर्तमान समय में सरकार द्वारा उदारीकरण की नीति को प्रबल समर्थन मिल रहा है। जिसके फलस्वरूप अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भारत जैसे देशों पर हावी होना चाहती हैं। वास्तव में विगत वर्षों के सुधार कार्यक्रमों ने यह सबक दिया है कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ और विकसित देशों की नीतियाँ विकासशील देशों के संसाधनों पर एकाधिकार करना चाहती है।

आर्थिक मामले में कोई भी देश अन्तर्राष्ट्रीय प्रभावों की पूरी तरह अवहेलना नहीं कर सकता परन्तु जिस प्रकार बहुराष्ट्रीय कम्पनियों भारत के आर्थिक क्षेत्र में आने की खुली छूट दी गई है। उसने भारतीय अर्थव्यवस्था के सामाजिक एवं राजनैतिक क्षेत्र को प्रभावित किया है। उदारीकरण की नीति भारत के आर्थिक एवं विकासात्मक दोनों दृष्टियों से पूरी तरह उचित नहीं कही जा सकती।

उपसंहार (Conclusion)

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि आर्थिक उदारीकरण से भारतीय अर्थव्यवस्था गतिशील एवं प्रतिस्पर्द्धात्मक तो बनेगी किन्तु विदेशी पूँजी पर आश्रिता, विदेशी आर्थिक उपनिवेशवाद की स्थापना एवं वृहद औद्योगिक वर्गों का समाज में वर्चस्व बढ़ेगा, जिससे बेरोजगारी बढ़ेगी, मुद्रा स्फीति की स्थिति का सामना करना पड़ेगा।

पश्चिमीकरण से संस्कृति का हास होगा भारतीय लोकतन्त्र खतरे में पड़ जाएगा। राजनीति और अर्थनीति के बीच गहरा सम्बन्ध होता है। सम्भवतः इसीलिए तप की राजनीति पर आधारित विख्यात कृति का नाम ‘अर्थशास्त्र’ है।

रोटी कमाना और पेट भरना हर व्यक्ति की प्रथम आवश्यकता होती है। यह आवश्यकता पूरी हो जाती है, तब उसका मन और उसकी बुद्धि सृजनात्मक, कलात्मक कार्यों और चिन्तन की ओर प्रवृत्त होती है और सभ्यता और संस्कृति का विकास होता है।

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