स्मृति का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Memory)
स्मृति एक मानसिक प्रक्रिया है जब व्यक्ति किसी वस्तु, पदार्थ अथवा स्थान को देखता है तो इनसे सम्बन्धित चिन्ह अथवा प्रतिमाएँ उसके मस्तिष्क में बन जाते हैं। इन्हीं संक्षिप्त चिन्हों या पूर्व में सीखी गई बातों को याद रखना ही स्मृति है। “पूर्वानुभवों का समय पर स्मरण करना ही स्मृति है ।” कुछ समय के बाद यह अनुभव ‘चेतन मन’ से ‘अचेतन मन’ में प्रवेश कर जाते हैं। अचेतन मन इस प्रकार के अनुभवों का भण्डार गृह कहलाता है। आवश्यकता के अनुसार अचेतन मन में पहुँचे अनुभवों को चेतन मन पर लाने की प्रक्रिया ही स्मृति कहलाती है। स्मृति को विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने निम्न रूपों में परिभाषित किया है-
स्टाउट के अनुसार, “स्मृति एक आदर्श पुनरावृत्ति है जिसमें अतीतकाल के अनुभव उसी क्रम तथा ढंग से जागृत होते हैं जैसे वे पहले हुए थे।”
According to Stout, “Memory is the ideal revival in which the objects of past experience reinstate as far as possible in the order and manner of the original occurance.”
वुडवर्थ के अनुसार, “पहले सीखी हुई बातों को याद रखना ही स्मृति है।”
According to Woodworth, “Memory consists in remembering what has previously learned.”
मैकडूगल के अनुसार, “स्मृति से तात्पर्य अतीत की घटनाओं की कल्पना करना और इस तथ्य को पहचान लेना कि ये अतीत के अनुभव हैं।”
According to MacDougall, “Memory implies imaging of events as experienced in the past and recognising them as belonging to one’s own past experience.”
डम्बिल के अनुसार, “स्मृति वह शक्ति है जिससे गत अनुभव के कुछ भाग विचार और प्रतिमा के रूप में आते हैं।
According to Dumbil, “Memory is the power by which some thoughts of previous experiences come across in the form of ideas and images.”
वास्तव में स्मृति सीखना (learning), धारण (retention), प्रत्यास्मरण (recall) व पहचान (Recognition) चार तत्वों का मिश्रित रूप है। इस स्तर के शिक्षण में शिक्षक का स्थान प्रमुख होता है। स्मृति स्तर का शिक्षण विचारहीन होता है। इस स्तर के शिक्षण में केवल तथ्यों, सिद्धान्तों, नियमों तथा सूचनाओं के प्रस्तुतीकरण व रटने पर बल दिया जाता है। अर्थात् इस शिक्षण का उद्देश्य शिक्षण क्रियाओं द्वारा पाठ्यवस्तु को रटना है।
“Memory level learning is that kind of learning which supposedly embraces committing factual material of memory and nothing else.”
स्मृति स्तर हेतु शिक्षण (Teaching for Memory Level)
इस स्तर पर विचारहीनता की प्रधानता रहती है। इस स्तर के शिक्षण में शिक्षण का उद्देश्य छात्रों की स्मरण शक्ति अथवा स्मृति का विकास करना है। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु शिक्षक सूचनाओं तथा तथ्यों को व्यवस्थित रूप से छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत करता है। स्मृति की प्रक्रिया में निम्नलिखित आवश्यक तत्व होते हैं-
(1) अधिगम (Learning)
(2) धारणा (Retention)
(3) पुनर्स्करण (Recall)
(4) पुनर्पहचान (Recognition) एवं
(5) पुनर्उत्पादन (Reproduction).
स्मृति स्तर के शिक्षण के लिए शिक्षक इन्ही तत्वों के विकास के लिए विभिन्न प्रविधियों तथा रीतियों का प्रयोग करता है। शिक्षक का उद्देश्य छात्रों को पाठ्य सामग्री को याद कराना होता है। भले ही वह उसे समझकर याद करे या बिना समझे केवल रट ले। इसमें सार्थक एवं निरर्थक दोनों ही प्रकार की सामग्री का स्मरण कर लेना सरल होता है। पाठ्य सामग्री जितनी सार्थक एवं उपयोगी होगी, उसको धारण करना एवं स्मरण रखना उतना ही सरल एवं स्थायी होगा।
स्मृति स्तर के शिक्षण में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। छात्र की इस स्तर पर कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं होती है। शिक्षक ही पाठ्य सामग्री को व्यवस्थित, कमिक तथा सुसंगठित करता है अतः स्पष्ट है कि स्मृति स्तर के शिक्षण में छात्र से अधिक शिक्षक क्रियाशील रहता है शिक्षक इस स्तर के शिक्षण में पाठ्य-वस्तु का विश्लेषण, व्यवस्थित करना विभिन्न विधि- प्रविधियों का प्रयोग करना तथा प्रस्तुतीकरण से सम्बन्धित कार्य करता है। स्मृति स्तर रटने का स्तर है। इस स्तर के शिक्षण में विद्यार्थियों के मस्तिष्क में ज्ञानात्मक स्तर पर तथ्यों एवं सूचनाओं को बाहर से बलपूर्वक भरा जाता है। ऐसे धारण किए हुए ज्ञान को विद्यार्थी आवश्यकता पड़ने पर प्रत्यास्मरण तथा पहचान करते हैं।
स्मृति स्तर की विशेषताएँ (Characteristics of Memory Level)
स्मृति स्तर के शिक्षण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) स्मृति स्तर का शिक्षण विचारहीन होता है।
(2) छात्र बिना समझे व विचार किए तथ्यों, सूचनाओं व सिद्धान्तों को रटते हैं।
(3) शिक्षक का स्थान प्रमुख होता है तथा छात्र का स्थान गौण तथा शिक्षक एक तानाशाह की भाँति होता है। वह छात्र की रूचियों, क्षमताओं तथा योग्यताओं का ध्यान रखे बिना सूचनाओं को उसके मस्तिष्क में भरने का प्रयास करता है।
(4) शिक्षक व छात्र के बीच किसी प्रकार की अन्तः प्रक्रिया नहीं होती है।
(5) इस प्रकार का शिक्षण ज्ञानात्मक (cognitive) स्तर का होता है।
(6) छात्र को कार्य करने की स्वतन्त्रता नहीं होती है।
(7) कक्षा का वातावरण नीरस रहता है।
(8) स्मृति स्तर के शिक्षण में सूझबूझ का अभाव होता है।
(9) शिक्षण में व्याख्यान तथा पुस्तक-पाठन विधियों का प्रयोग किया जाता है।
(10) इस प्रकार के शिक्षण अधिगम से छात्र जीवन में असफलता ही प्राप्त करते हैं।
(11) छात्र कठोर अनुशासन में रहते हैं।
(12) छात्र निष्क्रिय श्रोता के रूप में रहते हैं।
हरबर्ट का स्मृति स्तर शिक्षण का प्रतिमान (Herbert’s Model for Memory Level Teaching)
जर्मनी के प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री व दार्शनिक जॉन फ्रेडरिक हरबर्ट को स्मृति स्तर के शिक्षण प्रतिमान का प्रवर्तक माना जाता है। स्मृति स्तर के शिक्षण प्रतिमान का वर्णन निम्न
सोपानों में किया गया है-
(1) उद्देश्य (Focus)
(2) संरचना (Syntax)
(3) सामाजिक प्रणाली (Social system)
(4) मूल्यांकन प्रणाली ( Support system or evaluation system)
हरबर्ट के अनुसार स्मृति स्तर के शिक्षण का उद्देश्य है-
(1) उद्देश्य (Focus) – छात्रों द्वारा तथ्यों के रटने पर बल देते हुए निम्न क्षमताओं को विकसित करना है-
(i) ज्ञानात्मक पक्ष को सबल बनाना।
(ii) मानसिक तथ्यों का प्रशिक्षण।
(iii) तथ्यों, सूचनाओं, तथा सिद्धान्तों को रटने पर बल देना।
(iv) सीखे हुए तथ्यों को याद रखना, उनका प्रत्यास्मरण एवं पुनः प्रस्तुत करना।
(2) संरचना (Syntax) – हरबर्ट ने स्मृति स्तर के शिक्षण की संरचना 5 प्रमुख पदों में की है जो “हरबर्ट पंचपद” प्रणाली के नाम से प्रसिद्ध है। ये 5 पद निम्न हैं-
(i) प्रस्तावना / तैयारी (Preparation) – इसमें पूर्व ज्ञान की जाँच के लिए प्रश्न पूछना तथा उद्देश्य कथन करना आता है।
(ii) प्रस्तुतीकरण (Presentation)- छात्र के सहयोग से पाठ का विकास, विभिन्न शिक्षण विधियों, प्रविधियों तथा सहायक सामग्री का प्रयोग।
(iii) स्पष्टीकरण तथा तुलना (Explanation and Comparison)- पाठ को क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत करना, तथ्यों, सिद्धान्तों, पदों का स्पष्टीकरण तथा उनकी व्याख्या व तुलना करना।
(iv) सामान्यीकरण (Generalisation) – पाठ्यवस्तु को समझाने के पश्चात् छात्रों को सोचने, समझने के अवसर तथा कुछ सामान्य नियम, सिद्धान्त व नियमों का प्रतिपादन करना।
(v) प्रयोग (Application)— ज्ञान को स्थायी बनाने के लिए उसका प्रयोग भी आवश्यक है। शिक्षक पुनरावृत्ति के प्रश्न पूछकर ज्ञान के प्रयोग अथवा उसका नवीन परिस्थितियों में प्रयोग का पता लगाता है।
(3) सामाजिक प्रणाली (Social System) – शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया होती है। इस ‘सामाजिक प्रक्रिया के वाहक हैं – शिक्षक एवं छात्र। इस स्तर पर शिक्षक अधिक क्रियाशील रहता है तथा छात्रों के व्यवहार को पूर्ण रूप से नियंत्रण में रखता है. जिसके फलस्वरूप छात्र निष्क्रिय श्रोता के रूप में कार्य करते है। शिक्षक का कार्य है – पाठ्यवस्तु को प्रस्तुत करना, छात्रों की क्रियाओं को नियन्त्रित करना तथा छात्रों को प्रेरणा प्रदान करना।
(4) मूल्यांकन प्रणाली (Evaluation System) – इस स्तर के शिक्षण में परीक्षा में भी रटने पर ही बल दिया जाता है। यह प्रणाली मुख्यतः निबन्धात्मक होती है। मौखिक रूप में परीक्षा भी ली जाती है। इसमें केवल ज्ञानात्मक पक्ष की ही जाँच होती है।
स्मृति स्तर शिक्षण के गुण (Merits of Memory Level Teaching)
स्मृति स्तर शिक्षण के गुण निम्नलिखित हैं-
(1) स्मृति स्तर के शिक्षण में अध्यापक को अपने लक्ष्यों की प्राप्ति करने में सहायता प्राप्त करता हैं। अतः वह प्रस्तुतीकरण, अयोजन एवं विषयवस्तु का चयन पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो कर करता है।
(2) स्मृति स्तर शिक्षण के अन्तर्गत कम समय में अधिक सुव्यवस्थित एवं क्रमबद्ध ज्ञान प्रदान किया जा सकता है।
(3) स्मृति स्तर के शिक्षण द्वारा तथ्यों, नियमों एवं सिद्धांतों के रूप में ज्ञान को स्मृति में समायोजित किया जा सकता हैं।
(4) स्मृति स्तर शिक्षण छोटे बच्चों तथा छोटी कक्षाओं में उपयुक्त सिद्ध होती हैं।
(5) विद्यालय पाठ्यक्रम में बहुत सारी विषयवस्तु ऐसी हो सकती हैं जिन्हें ग्रहण करने में स्मृति का शिक्षण विद्यार्थियों की काफी सहायता कर सकता है।
स्मृति स्तर शिक्षण के दोष (Demerits of Memory Level Teaching)
स्मृति स्तर शिक्षण के दोष निम्नलिखित हैं-
(1) स्मृति स्तर के शिक्षण में शिक्षण-प्रक्रिया के संगठन और संचालन का पूरा उत्तरदायित्व ही अध्यापक के कंधों पर आ पड़ता है।
(2) स्मृति स्तर के शिक्षण में अभिप्रेरणा का स्रोत बाह्य रूप में होता है। आंतरिक रूप से कोई भी स्रोत नहीं होता है।
(3) विद्यार्थी की मानसिक शक्तियों तथा बौद्धिक विचार प्रक्रिया को विकसित करने में सहायता नहीं कर सकता है।
स्मृति स्तर शिक्षण के लिए सुझाव (Suggestions for Memory Level Teaching)
स्मृति स्तर शिक्षण के लिए सुझाव निम्नलिखित हैं-
(1) पाठ्यवस्तु सार्थक होनी चाहिए।
(2) पाठ्यवस्तु क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करनी चाहिए।
(3) समग्र पद्धति (whole-method) का प्रयोग करना चाहिए।
(4) पुनरावृत्ति एक क्रम में करनी चाहिए।
(5) प्रत्यास्मरण तथा पुनः प्रस्तुतीकरण का अधिक अभ्यास कराना चाहिए।
(6) थकान के समय शिक्षण नहीं करना चाहिए।
(7) कक्षा में अभ्यास के द्वारा प्रत्यास्मरण में वृद्धि की जा सकती है।
(8) छात्रों को समुचित प्रेरणा प्रदान करनी चाहिए।
(9) शिक्षक को सिर्फ ज्ञानात्मक उद्देश्य को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए ।
(10) व्यक्तिगत भिन्नता को दृष्टिगत रखकर शिक्षण करना चाहिए।
- अधिगम अक्षमता का अर्थ | अधिगम अक्षमता के तत्व
- अधिगम अक्षमता वाले बच्चों की विशेषताएँ
- अधिगम अक्षमता के कारण | अधिगम अक्षम बच्चों की पहचान
Important Links
- लिंग की अवधारणा | लिंग असमानता | लिंग असमानता को दूर करने के उपाय
- बालिका विद्यालयीकरण से क्या तात्पर्य हैं? उद्देश्य, महत्त्व तथा आवश्यकता
- सामाजीकरण से क्या तात्पर्य है? सामाजीकरण की परिभाषा
- समाजीकरण की विशेषताएँ | समाजीकरण की प्रक्रिया
- किशोरों के विकास में अध्यापक की भूमिका
- एरिक्सन का सिद्धांत
- कोहलबर्ग की नैतिक विकास सिद्धान्त
- भाषा की उपयोगिता
- भाषा में सामाजिक सांस्कृतिक विविधता
- बालक के सामाजिक विकास में विद्यालय की भूमिका