वैयक्तिक विभिन्नता के प्रकार (Types of Individual Differences in Hindi)
वैयक्तिक भिन्नताओं के प्रकार (Types of Individual Differences)- 1. परस्पर वैयक्तिक भिन्नताएँ (Inter-Individual Differences) – किन्हीं दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मापन योग्य व्यक्तित्व के गुणों में पाये जाने वाले अंतरों को Inter-Individual Differences) कहते हैं। इसके अन्तर्गत उनकी शारीरिक विशेषताओं में अंतर, उनकी मानसिक विशेषताओं में अंतर, उनकी संवेगात्मक भावनाओं में अंतर, उनकी सामाजिक विशेषताओं में अंतर आदि आते हैं। उदाहरण के तौर पर, व्यक्तियों के भारों में अंतर, उनके सामाजिकता अंतर आदि इस वर्ग के अन्तर्गत सम्मिलित किये जाते हैं।
2. आन्तरिक वैयक्तिक भिन्नताएँ (Intra-Individual Differences)- एक ही व्यक्ति के व्यक्तित्व के मापन करने योग्य गुणों में पाये जाने वाले अंतर Intra- Individual Differences कहे जाते हैं। इसके अन्तर्गत एक ही व्यक्ति की विभिन्न विशेषताओं में अंतर पाया जाता है। उदाहरण के तौर पर, कुछ व्यक्ति शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ हो सकते हैं लेकिन मानसिक तौर पर बीमार हो सकते हैं। इसी प्रकार, कुछ व्यक्ति अधिक बुद्धिमान हो सकते हैं लेकिन शैक्षिक उपलब्धि की दृष्टि से पीछे रह सकते हैंअथवा व्यक्ति बुद्धिमान एवं क्रियात्मक होते हुए भी सामाजिकता की दृष्टि से अत्यन्त असफल सिद्ध होता हो।
व्यक्तिगत भेद का इतिहास बहुत पुराना है। प्राचीनकाल में साधारण और वीर पुरुषों में अंतर किया जाता था, किन्तु स्पष्ट रूप से व्यतिगत भेद के विचार हमारे समक्ष उस समय आए, जब नए प्रकार की परीक्षा का अन्वेषण हुआ। इनके द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में व्यक्तिगत भेद पर प्रकाश डाला गया। हम यहाँ पर उन मुख्य क्षेत्रों का, जिनमें व्यक्तिगत भेद पाए जाते हैं, का वर्णन करेंगे।
1. बुद्धि-स्तर पर आधारित विभिन्नता (Mental Differences)- व्यक्ति मानसिक दृष्टि से भी भिन्न होते हैं । कोई व्यक्ति प्रतिभाशाली, कोई अधिक बुद्धिमान, कोई कम बुद्धिमान और कोई मूर्ख होते हैं। मानसिक विभिन्नता का समझने के लिये बुद्धि परीक्षाओं की सहायता से बुद्धि लब्धि निकालते हैं। यह देखा गया है कि इसके अनुसार व्यक्ति मूढ़ से लेकर अत्यन्त प्रतिभाशाली तक होते हैं। वेन्टवर्थ (Wentworth) का विचार है कि पहली कक्षा के बालकों की ‘बुद्धि लब्धि’ 60 से 160 तक होती है।
एक अध्यापक को शिक्षा हर एक बालक की बौद्धिक योग्यतानुसार देनी चाहिए। बहुधा अध्यापक अपने शिक्षण को मध्य वर्ग के (बुद्धि-लब्धि के अनुसार) बालकों के अनुकूल बना लेते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि शेष बालकों की, जो उच्च या निम्न श्रेणी में आते हैं, उनकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। अतएव ऐसे बालक जो साधारण बालकों की श्रेणी में नहीं आते असफलता का अनुभव करने लगते हैं और भावना – ग्रन्थियों के शिकार बन जाते हैं।
यदि एक कक्षा की बुद्धि लब्धि की माप की जाय तो अधिकतर बालकों की बुद्धि-लब्धि लगभग 100 होगी, कुछ की 130 या अधिक हो सकती है, कुछ की 80 या उससे भी कम। टरमैन के अनुसार जो वक्ररेखा इस प्रकार के माप द्वारा बनेगी, वह घंटाकार की होगी।
2. शारीरिक विकास में विभिन्नता (Physical Differences) – शारीरिक दृष्टि से व्यक्तियों में अनेक प्रकार की विभिन्नताएँ देखने को मिलती हैं। यह भिन्नता रंग, रूप, भार, कद, शारीरिक गठन, यौन-भेद, शारीरिक परिपक्वता आदि के कारण होती है। कुछ व्यक्ति, काले गोरे, कुछ लम्बे, कुछ नाटे, कुछ मोटे, कुछ दुबले, कुछ सुन्दर और कुछ कुरूप होते हैं।
(इस प्रकार का वक्र बुद्धि-लब्धि के अनुसार बालकों के विभाजन के सम्बन्ध में आता है। इससे तात्पर्य यह है कि 68.26% बालक औसत के आसपास होंगे, 2.15% लगभग निम्न-बुद्धि के और 2.15% लगभग उच्च-बुद्धि के बालक किसी भी कक्षा में होंगे।)
अध्यापक का कर्त्तव्य है कि बालकों द्वारा कार्य सम्पादन कराने में उनके शारीरिक विकास को ध्यान में रखें। बालकों में यदि शारीरिक भिन्नता मध्यमान से बहुत अधिक हो तो ऐसे बालकों को उचित निर्देशन दें।
3. उपलब्धि में भिन्नता (Differences in Achievement) – उपलब्धि परीक्षाओं द्वारा यह पता चलता है कि बालकों की ज्ञानोपार्जन क्षमता में भी विभिन्नता पाई जाती है। यह विभिन्नता गणित तथा अंग्रेजी पढ़ने में बहुत अधिक होती है।
उपलब्धि में विभिन्नता उन बालकों में भी पाई जाती है, जिनकी बुद्धि का स्तर समान है। ऐसा बुद्धि के विभिन्न खण्डों की योग्यता में विभिन्नता तथा पूर्व अनुभव या निर्देशन या रुचि के कारण होता है।
उपलब्धि की क्षमता में विभिन्ता होने के कारण एक अध्यापक को चाहिए कि वह शिक्षा देने में व्यक्तिगत तथा कक्षा- शिक्षण विधियों के मिश्रण को अपनाए । विभिन्न बालकों को विभिन्न प्रकार के गृह-कार्य देने चाहिए और उन्हें विभिन्न क्रियाओं या कार्य-कलापों को करने को देना चाहिए। उपलब्धि यदि बौद्धिक योग्यतानुसार नहीं है तो शिक्षक को चाहिए कि बालक की कठिनाई को मालूम करे। बहुधा ऐसा रुचि की कमी के कारण या संवेगात्मक समस्याओं के कारण या अवसर न मिलने के कारण होता है।
कुछ ऐसे भी बालक होते हैं जो अपनी बुद्धि-योग्यता से भी अधिक ज्ञानोपार्जन करने में सफल होते हैं। ये बालक पढ़ने में बहुत समय या शक्ति लगाते हैं और अधिक ज्ञानोपार्जन करने में सफल होते हैं। उनको ऐसा करने की प्रेरणा बहुधा अपने माता-पिता से मिलती है। कभी-कभी ऐसे बालक अधिक मेहनत करते हैं क्योंकि वे किसी और दिशा में अपनी कमी की पूर्ति करना चाहते हैं। यहाँ पर आइजक न्यूटन का उदाहरण उल्लेखनीय है। न्यूटन महोदय ने उस कमी की पूर्ति करने के लिए जो उन्हें अपने एक सहयोगी को, जो उद्दण्ड था, पीटने में असफलता के कारण अनुभव हुई, गणित की ओर ध्यान लगाया । एक कुशल अध्यापक को चाहिए कि वह देखे कि किस प्रकार अधिक ज्ञानोपार्जन करने वाला बालक असन्तुष्टि की भावना से सदैव के लिए ओतप्रोत न हो जाये ।
4. अभिवृत्ति में विभिन्नता (Difference in Attitute) – अभिवृत्ति से तात्पर्यं है – एक सामान्य स्ववृत्ति जो एक समूह अथवा एक संस्था के प्रति होती है। (Attitude is generalized disposition towards a group of people or an institution.) व्यक्तियों के विभिन्न संस्था या समूह के सम्बन्ध में विभिन्न रुझान होते हैं। कुछ व्यक्ति शिक्षा या समाज के नियमों को अच्छा समझते हैं, कुछ बुरा।
शिक्षा के प्रति अभिवृत्ति बुद्धि के स्तर पर निर्भर नहीं है। यह घर के वातावरण पर बहुत अधिक निर्भर रहती है। यदि माता-पिता के शिक्षा की ओर झुकाव अच्छे तथा उचित हैं तो बालकों के झुकाव भी उसी प्रकार विकसित होंगे। भारत में ग्राम निवासी शिक्षा की ओर से उदासीन रहते हैं और यह उनकी अशिक्षा का एक बहुत बड़ा कारण है।
बालकों की अधिकारियों के प्रति अभिवृत्ति विभिन्नताएँ लिए होती है। यह अभिवृत्ति बाल्यकाल में ही बालक सीख लेता है। अधिकारियों के प्रति अभिवृत्ति में अंतर घर के वातावरण के कारण भी हो सकता है। एक अच्छा शिक्षक उचित प्रकार से अभिवृत्ति को बालकों में विकसित कर सकता है।
5. व्यक्तित्व विभिन्नता (Personality Differences) – प्रत्येक व्यक्ति और बालक के व्यक्तित्व में कुछ न कुछ विभिन्नता अवश्य पायी जाती है। कुछ लोग अन्तुर्मख (Introvert) होते हैं और कुछ बहिर्मुखी (Extrovert )। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से मिलने पर उसकी योग्यता से प्रभावित हो या न हो परंतु उसके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता है। यह प्रभाव ऋणात्मक भी हो सकता है और धनात्मक भी हो सकता है। इस सम्बन्ध में टॉयलर (Tylor) ने लिखा है- ” सम्भवतः व्यक्ति, योग्यता की विभिन्नताओं के बजाय व्यक्तित्व की विभिन्नताओं से अधिक प्रभावित होता है। “
6. गत्यात्मक योग्यताओं में विभिन्नता (Differences in Dynamic Abilities)- कुछ व्यक्ति किसी कार्य को अधिक कुशलता के साथ और कुछ कम कुशलता के साथ करते हैं। इसका कारण उनमें गत्यात्मक योग्यताओं में विभिन्नता होती है। इस सम्बन्ध में क्रो व क्रो (Crow & Crow) ने लिखा है- ‘शारीरिक क्रियाओं में सफल होने की योग्यता में एक समूह के व्यक्तियों में भी बहुत अधिक विभिन्नता होती है।”
7. लिंग-विभिन्नता के कारण भेद (Sex Differences) – स्त्रियों और पुरुषों में भी व्यक्तिगत विभिन्नता देखने में आती हैं। स्त्रियाँ कोमलांगी होती हैं, परंतु सीखने के बहुत-से क्षेत्रों में बालकों और बालिकाओं की क्षमता में बहुत अंतर नहीं होता है। लिंग सम्बन्धी अंतर के संबंध में किए गए अन्वेषण अभी विश्वासी परिणाम नहीं देते हैं अतः इस सम्बन्ध में पूर्ण विश्वास के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता।
वर्तमान बुद्धि-परीक्षणों के आधार पर यह विश्वास किया जाता है कि दोनों लिंगों के औसत अंक लगभग समान ही होंगे, किन्तु यह भी देखा गया है कि विभिन्नताओं का फैलाव दोनों लिंगों में विभिन्न होता है। बुद्धि परीक्षाओं पर कुल अंकों में जो दोनों लिंग प्राप्त करते हैं, यद्यपि समानता होती है; किन्तु यह समानता परीक्षा के विभिन्न भागों पर हो, ऐसा नहीं हैं। स्मृति के परीक्षणों में लड़कियाँ अधिक प्राप्तांक प्राप्त करती हैं।
यह लगभग सामान्य रूप से देखा गया है कि भाषा भाग पर लड़कियों के प्राप्तांक लड़कों के प्राप्ताकों से अधिक होते हैं और लड़कों के प्राप्तांक गणित वाले भाग पर अधिक होते है।
इसी प्रकार सामान्य ज्ञानोपार्जन में प्राथमिक स्तर पर अधिकतर यही पाया गया है कि बालिकाओं का स्तर बालकों से अधिक उच्च था । इस सम्बन्ध में फिफर (Fifer) का अध्ययन महत्त्वपूर्ण है । पॉली (Pauly) महोदय का तो यह कहना है कि बालकों की शिक्षा बालिकाओं की शिक्षा प्रारम्भ करने के 6 माह उपरांत प्रारम्भ करनी चाहिए। बालकों के निम्न स्तर का कारण उनमें हकलाना तथा अन्य दोषों का होना दिया जाता है।
बालिकाओं की श्रेष्ठता का कारण वास्तव में उनका भाषा पर अधिकार होता है। वह बालकों से भाषा में श्रेष्ठता बहुत कम आयु से प्रकट करने लगती हैं। वह उससे पहले बातें करने लगती है और स्पष्ट बोलती है। विद्यालय में आने पर बालकों का विज्ञान सम्बन्धी ज्ञान अधिक श्रेष्ठ दिखाई पड़ता है। शीघ्र ही वह गणित में भी श्रेष्ठता प्राप्त कर लेते हैं।
कार्टर (Carter) महोदय के अध्ययन बताते हैं कि बालिकाओं को अध्यापक अपने परीक्षणों में उन प्राप्तांकों से अधिक अंक प्रदान करते हैं जो एक प्रमापीकरण किए हुए ज्ञानोपार्जन परीक्षण पर प्राप्त करेंगे। बालकों को अध्यापक अपने परीक्षणों में तुलनात्मक कम अंक प्रदान करते हैं । सोबेल (Sobel) महोदय के अनुसार दोनों लिंगों के प्राथमिक स्तर पर अध्यापक बालिकाओं को ही अधिक अंक प्रदान करते हैं। माध्यमिक स्तर पर स्त्रियाँ तो सदैव बालिकाओं को ही अधिक अंक देती हैं, किन्तु पुरुषों के सम्बन्ध में प्रदत्त सामग्री इतनी निश्चित नहीं कि कुछ पूर्ण विश्वास के साथ कहा जा सके।
8. जाति या राष्ट्र सम्बन्धी विभिन्नता (Racial and National Differences)- जाति या राष्ट्र-सम्बन्धी विभिन्नता के सम्बन्ध के किए गए अन्वेषण भी अभी अपूर्ण हैं। इस कारण विश्वासी रूप से इस सम्बन्ध में कुछ नहीं कह सकते। परंतु फिर भी विभिन्न राष्ट्र के नागरिकों में विभिन्न प्रकार की योग्यताओं में विभिन्नता पाई जा सकती है।
9. सामाजिक विभिन्नता (Social Differences) – व्यक्तियों में स्पष्ट रूप से सामाजिक विकास में विभिन्नता पाई जाती है। यह विभिन्नता जब बालक एक ही वर्ष का होता है. तभी से दृष्टिगोचर होने लगती है। कुछ बालक इतने भीरु होते हैं कि जैसे ही किसी दूसरे परिवार का सदस्य आता है वे अपना मुँह छुपा लेते हैं परंतु दूसरे प्रकार के बालक उसकी ओर बिना झिझक के बढ़ जाते हैं।
व्यक्तिगत बालक में चेहरे के भाव को समझने की योग्यता होती है। बालक पढ़ने में भी विभिन्नता प्रकट करते हैं। उनकी लड़ाईयाँ मौखिक गाली-गलौज से लेकर मारपीट, नोंच-खसोट, काटना आदि तक होती हैं। बालकों में अपने मित्र बनाने के सम्बन्ध में भी विभिन्नता पाई जाती है।
मैरडिथ (Meredith) के अध्ययन के आधार पर केवल यही कहा जा सकता है कि सामान्य रूप से उन परिवारों के बालक अधिक स्वस्थ एवं विकसित होते हैं जो सामाजिक स्तर से ऊँचे होते हैं। बहुत-से शारीरिक दोष; जैसे- टेढ़े-मेढ़े दाँत, लंगड़ाना, क्षय रोग इत्यादि; निम्न आय वाले परिवारों के बालकों में अधिक पाये जाते हैं।
अच्छे परिवारों के बालक न केवल स्वास्थ्य में ही श्रेष्ठता लिए होते हैं वरन् बुद्धि एवं ज्ञानोपार्जन में भी उत्तम होते हैं। टरमैन एवं मैरिल (Terman and Merill) के अनुसार जो बालक उच्च व्यवसाय वाले माता-पिता की संतान होते हैं, उनकी बुद्धि-लब्धि 10 से 15 साल के बीच 118 होती है, जबकि क्लर्की पेशे वाले समूह के बालकों की बुद्धि-लब्धि 107 होती है और मजदूरों के बालकों की केवल 97.
यहाँ यह कह देना भी आवश्यक प्रतीत होता है कि यद्यपि आर्थिक-सामाजिक स्तर तथा बुद्धि-लब्धि का सम्बन्ध तो है, किन्तु यह बहुत उच्च स्तर का नहीं है । सह-सम्बन्ध के आधार पर यह 3 या 4 ही पाया गया है। निम्न स्तर के आर्थिक एवं सामाजिक समूह अनेक उच्च बुद्धि-लब्धि के बालक पाये जाते हैं और उच्च स्तर के आर्थिक एवं सामाजिक समूह में निम्न बुद्धि-लब्धि वाले बालक पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, क्योंकि साधारण में आर्थिक, सामाजिक समूह में व्यक्तियों की संख्या अधिक होती है, इसलिए संख्या के आधार पर उच्च बुद्धि के बालकों की संख्या इस समूह में अधिक होगी।
एक और बात ध्यान देने की है कि उन परिवारों में जिनमें दो भाषाएँ बोली जाती हैं या जिनके घर में बोली जाने वाली भाषा समाज में बोली जाने वाली भाषा से भिन्न होती है, के बालकों के प्राप्तांक निम्न होते हैं। इस सम्बन्ध में डारसी (Darcy) के अध्ययन का वर्णन किया जा सकता है।
10. संवेगात्मक विभिन्नता (Emotional Differences) – संवेगात्मक विकास विभिन्न बालकों में विभिन्नता लिए हुए होता है जबकि यह भी सत्य है कि मोटे रूप से संवेगात्मक विशेषताएँ बालकों में समान रूप से पाई जाती हैं। हमारे कहने का तात्पर्य यह है कि क्रोध का संवेग प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा अनुभव होता है। इसी प्रकार कुछ व्यक्ति सरल और कुछ कठोर, कुछ दुःखी और कुछ प्रसन्नचित्त रहते है। संयोगात्मक भिन्नताओं को संवेगात्मक परीक्षणों द्वारा मापा जा सकता है।
11. विशिष्ट योग्यताओं में विभिन्नता (Difference in Specific Abilities) – विशिष्ट योग्यताओं की दृष्टि से भी व्यक्तियों में भिन्नता पायी जाती है। कुछ बालक कला में तो कुछ विज्ञान में, कुछ इतिहास में तो कुछ भूगोल में और कुछ गणित में अधिक योग्य होते हैं। यह उल्लेखनीय है कि सभी व्यक्तियों में विशिष्ट योग्यतायें नहीं होती हैं और जिनमें होती हैं उनमें मात्रा में अंतर अवश्य होता है। उदाहरणार्थ, सभी खिलाड़ी एक स्तर के नहीं होते हैं, इसी प्रकार न तो सभी डॉक्टर एक जैसे होते हैं और न सभी अभियंता ही एक स्तर के होते हैं । व्यक्ति की विशिष्ट योग्यताओं को जानने के लिए विशिष्ट परीक्षाओं (Speical Ability Tests) का प्रयोग करते हैं।
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