बाल्यावस्था के सैद्धान्तिक परिपेक्ष्य (Theoretical Perspectives of childhood stages)
बाल्यावस्था के सैद्धान्तिक परिपेक्ष्य- यह अवधि दो से बारहवें वर्ष तक होती है। इसे प्रारम्भिक बाल्यावस्था और उत्तर बाल्यावस्था में विभक्त कर सकते हैं। इनका प्रसार क्रमशः 2 से 6 वर्ष एवं 6 से 12 वर्ष तक माना जाता है। प्रारम्भिक बाल्यावस्था के अन्त तक बच्चों की ऊँचाई 46.6 इंच और वजन लगभग 22 किग्रा हो जाता है। प्रथम अवधि के समापन तक वह घर से बाहर निकलकर व्यापक सामाजिक परिवेश में प्रवेश करता है। वह एक छात्र बन चुका होता है। उसका सामाजिक दायरा बढ़ जाता है तथा उसके समक्ष समायोजन की समस्या नये रूपों में खड़ी होती है। इसे समस्या की आयु एवं खिलौनों की उम्र भी कहा जाता है। वैसे इस अवधि में शारीरिक वृद्धि मंद होती है। इसके अतिरिक्त बच्चों में अन्वेषण, जिज्ञासा एवं अनुकरण की प्रवृत्ति भी पायी जाती है।
इस अवस्था की मुख्य विशेषताएँ निम्नांकित हैं-
(i) बच्चों की यह अवस्था माता-पिता के लिए समस्यात्मक आयु होती है।
(ii) इसमें नकारात्मक व्यवहार बढ़ता है।
(iii) खिलौनों में बच्चों की रुचि बढ़ती है।
(iv) इसे ‘पूर्व विद्यालयी आयु’ भी कहते हैं।
(v) बच्चों में जिज्ञासा तथा अन्वेषण की प्रवृत्ति बढ़ जाती है।
(vi) बच्चों में प्रश्न करने की आदत बढ़ जाती है।
(vii) इसे पूर्व टोली (Pregang) की आयु भी कहते हैं।
(viii) इसमें अनुकरण तथा सृजनशीलता भी प्रदर्शित होती है।
प्रारम्भिक बाल्यावस्था के विकासात्मक संकृत्य (developmental tasks of early childhood)
इस अवधि में किये जाने प्रमुख संकृत्य इस प्रकार हैं। ये काफी महत्त्वपूर्ण होते हैं-
(i) बातचीत करना सीखना।
(ii) शारीरिक गन्दगियों (Wastes) को नियंत्रित करना सीखना।
(iii) यौन भिन्नता तथा लैंगिक मर्यादा सीखना।
(iv) दैहिक स्थायित्व का अधिगम।
(v) सामाजिक एवं भौतिक वास्तविकताओं के बारे में सामान्य अवधारणा सीखना।
(vi) अभिभावकों, मित्रों तथा अन्य लोगों के साथ भावनात्मक लगाव सीखना।
(vii) गलत तथा सही का अंतर सीखना एवं अन्तःकरण विकसित करना।
उत्तर बाल्यावस्था (Late Childhood)
यह अवधि 6 से 12 वर्ष (लैंगिक परिपक्वता) तक मानी गयी है। उत्तर बाल्यावस्था की समाप्ति के बारे में लोगों में मतभेद हैं। आमतौर पर बालकों के लिए 6 से 12 वर्ष एवं बालिकाओं के लिए 6 से 13 वर्ष मानी गयी है। इस अवस्था में शारीरिक परिवर्तन की गति तीव्र होती है और सामाजिक विस्तार भी काफी बढ़ जाता है (चर्च एवं स्टोन, 1960) । इस अवधि में शारीरिक विकास गति धीमी होती है। ऊँचाई में 2-3″ तथा वजन में 12 किग्रा तक वार्षिक वृद्धि होती है। दाँत भी निकल आते हैं तथा बालक एवं बालिकाओं में यौन भिन्नताएँ स्पष्ट होने लगती हैं । कौशल अर्जन, भाषा, ज्ञान, सांवेगिक स्थिरता तथा सुखद व्यवहार प्रवृत्ति इस अवधि की प्रमुख विशेषताएँ हैं।
संक्षेप में, उत्तर बाल्यावस्था की विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं-
(i) इसे प्राथमिक विद्यालय की आयु का नाम दिया जाता है।
(ii) बच्चों को इस अवस्था में कुछ कौशलों का अर्जन करना पड़ता है।
(iii) इसे टोली की आयु (Gang age) कहा जाता है।
(iv) बच्चों में अपनी टोली या समूह के विचारों के प्रति आस्था बढ़ती है।
(v) इस अवधि में खेल की प्रवृत्ति बढ़ती है।
उत्तर बाल्यावस्था के विकासात्मक संकृत्य (Developmental Tasks of Late Childhood)
उत्तर बाल्यावस्था में सीखे जाने वाले प्रमुख संकृत्य (कार्य) निम्नलिखित हैं, ऐसे संकृत्य बालक की क्षमता बढ़ाते हैं-
(i) सामान्य खेलकूद हेतु आवश्यक शारीरिक कौशल सीखना।
(ii) भौतिक एवं सामाजिक वास्तविकताओं के अपने ज्ञान को संगठित करना।
(iii) मित्रों, साथियों के साथ ठीक से कार्य करना सीखना।
(iv) स्वतंत्र या आत्मनिर्भर (Independent) व्यक्ति बनना।
(v) स्वयं के प्रति बढ़ते हुए प्राणी के रूप में समग्र अभिवृत्ति निर्मित करना।
(vi) अपनी आयु के लोगों के साथ अपेक्षित रूप में रहना सीखना।
(vii) उचित यौन – भूमिका का अधिगम।
(viii) लिखने, पढ़ने एवं गुणा-भाग करने का कौशल विकसित करना।
(ix) दैनिक जीवन के लिए उपयोगी सम्प्रत्ययों को विकसित करना।
(x) अन्तःकरण, नैतिकता एवं मूल्यों को विकसित करना।
(xi) सामाजिक समूहों एवं संस्थाओं के प्रति मनोवृत्तियाँ विकसित करना।
यौवनारम्भ (Puberty)
इसे पूर्व-किशोरावस्था भी कहते हैं। इसका प्रसार 12 से 13-14 वर्ष तक माना जाता है। इस अवधि में बालक तथा बालिकाओं में लैंगिक लक्षण स्पष्ट हो जाते हैं। तथा परिवर्तन तीव्र गति से होता है। व्यक्ति के जीवन में चपलता, कौतूहल तथा अस्थिरता बढ़ जाती है। बच्चों में नकारात्मक प्रवृत्ति बढ़ जाती है तथा गौण लैंगिक लक्षण भी प्रदर्शित होने लगते हैं।
इस अवधि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित हैं-
(i) यह विशिष्ट परिवर्तनों की अवधि है।
(ii) यह आच्छादक (Overlapping) अवधि है, क्योंकि इसमें बाल्यावस्था के अन्त के कुछ वर्ष और किशोरावस्था के प्रारम्भ के कुछ वर्ष सम्मिलित हैं।
(iii) यह एक लघु अवधि है।
(iv) इसमें तीव्र गति से परिवर्तन होता है।
(v) इसमें नकारात्मक अभिवृत्तियों में वृद्धि होती है ।
(vi) यह अवस्था विचरणशील होती है। इसके लक्षण 3 वर्ष से 19 वर्ष के बीच किसी भी समय प्रदर्शित हो सकते हैं।
किशोरावस्था (Adolescence)
किशोरावस्था का आशय परिपक्वता की ओर अग्रसर होना है। इसका प्रसार 13-14 वर्ष से 18 वर्ष तक होता है। इसमें व्यक्ति सन्तानोत्पत्ति के योग्य हो जाता है। व्यक्ति मानसिक, सामाजिक, सांवेगिक एवं शारीरिक आदि विकासों के दृष्टिकोण से परिपक्व हो जाता है। व्यक्ति में लैंगिक भावनाओं का जागरण चरम सीमा पर होता है और विपरीत यौन के सदस्यों के प्रति आकर्षण बढ़ जाता है । व्यक्ति भावावेश में रहता है, स्वच्छन्दता बढ़ जाती है, आन्तरिक परिवर्तन बढ़ जाते हैं, स्वभाव अवास्तविक हो जाता है। यह प्रौढ़ावस्था की देहली (Threshold) है।
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