गृहविज्ञान

तथ्य सामग्री के द्वितीयक या प्रलेखीय स्रोत की विशेषता

तथ्य सामग्री के द्वितीयक या प्रलेखीय स्रोत की विशेषता
तथ्य सामग्री के द्वितीयक या प्रलेखीय स्रोत की विशेषता

तथ्य सामग्री के द्वितीयक या प्रलेखीय स्रोत की विशेषता

द्वितीयक या प्रलेखीय स्रोत- तथ्य-सामग्री के द्वितीयक स्रोत आंकड़ों एवं सूचनाओं को प्राप्त करने के वे साधन हैं, जिन्हें वर्तमान शोध के पूर्व अन्य व्यक्तियों ने संभवतः भिन्न उद्देश्यों से तैयार किया था। सामाजिक शोध में द्वितीयक सामग्री का उपयोग अत्यंत ही महत्वपूर्ण है, कई बार शोधकर्ता के सामने ये आँकड़े तैयार माल की तरह उपलब्ध होते हैं और वैसी स्थिति में नए आँकड़े स्वयं संकलित करना न तो आवश्यक होता है और न ही उपयोगी। सामान्यतः ये द्वितीयक आंकड़े वर्तमान शोध के उद्देश्यों से भिन्न उद्देश्यों के लिए संकलित किए गए थे, किन्तु वर्तमान शोध के उद्देश्यों के अनुरूप ढालकर शोधकर्ता उनका उपयोग कर सकता है। ये स्रोत अधिकांशतः लिखित सामग्री के रूप में संकलित होते हैं, अतः उन्हें प्रलेखीय स्रोत (documentary sources) भी कहा जाता है। यह सामग्री प्रकाशित हो सकती है अथवा अप्रकाशित। ये सरकारी अथवा गैर-सरकारी दोनों प्रकार की एजेंसियों द्वारा प्रस्तुत की जा सकती हैं। द्वितीयक स्रोत के अंतर्गत हम अत्यंत वैयक्तिक चिट्ठियों, डायरियों और प्रकाशित सरकारी रिपोर्टों तक को सम्मिलित करते हैं। इतनी विविध सामग्री का स्रोत होते हुए भी द्वितीयक स्रोतों की कुछ सामान्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(i) यह उपलब्ध एवं तैयार (ready made) सामग्री है। इसको प्राप्त करने में शोधकर्ता के समय, धन एवं श्रम की काफी बचत होती है; क्योंकि उसे स्वयं इन्हें संकलित नहीं करना पड़ा है।

(ii) द्वितीयक स्रोत पर शोधकर्ता का अपना नियंत्रण नहीं के बराबर होता है। इस सामग्री का स्वरूप एवं अंतर्वस्तु दूसरों द्वारा निर्धारित किया गया होता है।

(iii) चूँकि द्वितीयक स्रोत दूसरे व्यक्ति द्वारा भिन्न उद्देश्य से संकलित तथ्य सामग्री है; इसलिए अपने उपयोग के लिए यह आवश्यक होता है कि शोधकर्ता उसे पुनः संरचित, संपादित एवं वर्गीकृत करे। तभी ये सूचनाएँ उसके शोध – उद्देश्यों की (थोड़ी मात्रा में ही सही) पूर्ति कर सकती है।

(iv) फेस्टिजर (Pestinger) कहता है कि तथ्यों के द्वितीयक स्रोत की एक विशेषता यह है कि वे समय एवं स्थान की सीमा से नहीं बँधे होते। इसका अर्थ यह है कि यह सामग्री एक बड़े पैमाने पर स्थान एवं समय के विस्तृत क्षेत्र में फैले होते हैं। शोधकर्ता के काल एवं स्थान से वे बँधे नहीं होते।

इन विशेषताओं के आधार पर वह कहा जा सकता है कि द्वितीयक स्रोत वे हैं, जिनका संकलन भिन्न समयों में, भिन्न उद्देश्यों से, भिन्न व्यक्तियों द्वारा किया गया है। शोधकर्ता उनका उपयोग अपने अध्ययन के लिए उन्हें पुनः संरचित एवं वर्गीकृत करता है।

द्वितीयक या प्रलेखीय स्रोत के प्रकार (Types)

द्वितीयक सामग्री के विभिन्न स्वरूप हो सकते हैं – प्रकाशित-अप्रकाशित, सरकारी-गैरसरकारी, व्यक्तिगत सार्वजनिक, सांख्यिकीय आँकड़े या गोपनीय व्यक्तिगत पत्र, समसामयिक या भूतकालीन लेख आदि । द्वितीयक स्रोत का एक प्रचलित वर्गीकरण उनको प्राप्त करने की सुविधा के आधार पर किया गया है। इस दृष्टि से तथ्यों के द्वितीयक या प्रलेखीय स्रोतों के दो प्रमुख प्रकार हैं। व्यक्तिगत प्रलेख एवं सार्वजनिक प्रलेख।

व्यक्तिगत प्रलेख

जॉन मेज (Madge) के अनुसार, ‘व्यक्तिगत प्रलेख’ एक व्यक्ति द्वारा अपनी क्रियाओं, अनुभवों एवं विश्वासों का प्रथम पुरुष में स्वतः प्रस्तुत विवरण है। आलपोर्ट (Allport) ने भी कहाँ है कि ये व्यक्तिगत कागजात स्वयं को ही प्रकाशित करने वाली तहरीर हैं और जो जाने- जनजाने लिखनेवाले के मानसिक जीवन की बनावट, गतिशीलता और क्रियाशीलता के संबंध में सीधी सूचनाएँ प्रदान करते हैं। सेल्टिज, जहोदा आदि ने व्यक्तिगत प्रलेख के स्वरूप को स्पष्ट

करते हुए, इसे निम्नांकित रूप में स्पष्ट किया है-

(i) व्यक्तिगत प्रलेख लिखित रिकॉर्ड है।

(ii) ये लेखक की अपनी प्रेरणा या अपनी इच्छा से लिखे जाते हैं।

(iii) इनमें लेखक अपने अनुभवों या व्यक्तिगत विचारों को प्रकट करता है।

इस तरह, व्यक्तिगत प्रलेख यद्यपि विद्यमान शोध- उद्देश्य को ध्यान में रखकर नहीं लिखे जाते, तथापि इसीलिए वे मौलिक एवं स्वाभाविक होते हैं। 20वीं सदी के पूर्व व्यक्तिगत प्रलेखों का उपयोग समाजशास्त्र में नगण्य था, किंतु थॉमस एवं जनैनिकी (Thomas and Zaneicki) ने ‘पॉलिश पीजेंटस ऑफ यूरोप एंड अमरिका’ (Polish Peasants of Euroe and America) में व्यक्तिगत प्रलेखों के आधार पर महत्वपूर्ण समाजशास्त्रीय विवरण प्रस्तुत किया। इसके पश्चात समाजशास्त्र, मानवशास्त्र एवं इतिहास में व्यक्तिगत प्रलेखों को महत्वपूर्ण सूचना का स्रोत समझा जाने लगा।

व्यक्तिगत प्रलेखों के सिखने के कारण

आलपोर्ट (Allport) ने व्यक्तिगत प्रलेख लिखने के निम्नलिखित कारणों की चर्चा की है।

(i) कार्य का औचित्य सिद्ध करने के लिए,

(ii) स्वीकारोक्तियों के लिए,

(iii) किसी घटना को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करने की इच्छा से,

(iv) साहित्यिक आनंद के लिए,

(v) तनावों से मुक्ति के लिए, (vi) योग्यता -प्रदर्शन के लिए,

(vii) किसी सौंपे हुए कार्य की पूर्ति के लिए,

(viii) चिकित्सा एवं निदान के लिए,

(ix) अनुसंधान के लिए,

(x) वैज्ञानिक रुचि के लिए,

(xi) जनसेवा के लिए,

(xii) धन या सम्मान के लिए और

(xiii) अमरता के लिए।

व्यक्तिगत प्रलेखों के प्रकार

व्यक्तिगत प्रलेखों के प्रमुख स्वरूप अग्रलिखित हैं-

(a) जीवन-इतिहास (Life-History)

(b) डायरियां (Diaries)

(c) पत्र (Letters)

(d) संस्मरण (Memoirs)

सार्वजनिक प्रलेख (Public Documents)

सार्वजनिक प्रलेख के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की सामग्री सम्मिलित की जाती है। इनमें प्रकाशित-अप्रकाशित आँकड़ें, सरकारी एवं गैर- सरकारी स्रोतों द्वारा संकलित तथ्य, जनसंचार-साधनों के रेकॉर्ड सभी कुछ सम्मिलित हो सकते हैं। सेल्टिज, जहोदा आदि ने इन्हें सांख्यिकीय रेकॉर्ड (Statistical records) या आँकड़े कहा है। इस तरह, सार्वजनिक प्रलेख के अंतर्गत, उन सभी प्रकार की प्रकाशित-अप्रकाशित सामग्री को सम्मिलित कर सकते हैं, जिनका संकलन सरकारी अथवा गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा किया जाता है। दूसरे शब्दों में, सार्वजनिक प्रलेख प्रकाशित (Published ) एवं अप्रकाशित (Unpublished) सामग्री है और साथ ही वे सरकारी (offical) एवं गैर-सरकारी (Unofficial) प्रलेख भी है।

मुख्यतः सार्वजनिक प्रलेखों को दो भागों में बांटा जा सकता है— (i) प्रकाशित प्रलेख, एवं (ii) अप्रकाशित प्रलेख।

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