तथ्य संकलन के प्राथमिक (क्षेत्रीय) स्रोत
प्राथमिक या क्षेत्रीय स्रोत- तथ्यों के प्राथमिक स्रोत वे हैं, जिन्हें शोधकर्ता अपने प्रयत्नों से संबद्ध समस्या के हल के लिए स्वयं प्रथम बार संकलित करता है। इसके लिए वह संबद्ध व्यक्ति से संपर्क करता है अथवा स्वयं प्रत्यक्ष निरीक्षण द्वारा तथ्यों का संकलन करता है। मान (P.H. Mann) ने कहा है- ‘प्राथमिक स्रोत वे जो प्रथम बार तथ्यों को उपलब्ध कराते हैं। इसका अर्थ यह है कि यह तथ्य सामग्री संकलनकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत मौलिक आँकड़े हैं।” इस तरह जिन स्त्रोतों से शोधकर्ता अपनी शोध समस्या के समाधान के लिए प्रथम बार स्वयं तथ्यों का संकलन करता है, उन्हें प्राथमिक स्रोत कहते हैं। इन्हें क्षेत्रीय स्रोत भी कहते हैं; क्योंकि शोधकर्ता इनके संकलन के लिए अपने अध्ययन-क्षेत्र में सम्मिलित व्यक्तियों से संपर्क करता है। यंग, लुंडबर्ग आदि ने तथ्यों के प्राथमिक या क्षेत्रीय स्रोत को दो प्रमुख वर्गों में विभक्त किया है-
(क) प्रत्यक्ष अवलोकन (Direct observation)।
(ख) जीवित व्यक्तियों से प्राप्त प्रत्युत्तर (Responses from living persons), जैसे प्रश्नावली, साक्षात्कार, अनुसूची आदि।
प्रत्यक्ष अवलोकन (Direct observation)
इस विधि के अंतर्गत शोधकर्ता स्वयं क्षेत्र में जाकर अपने विषय का अवलोकन करता है। सामान्यतया अवलोकन के क्षेत्र व्यवहार, घटनाएँ या इंद्रियों द्वारा देखी-समझी जानेवाली विषयवस्तुएं हैं। दूसरे शब्दों में, हम गैर- शाब्दिक (non-verbal) व्यवहारों एवं प्रत्युत्तरों का अवलोकन करते हैं। जब संपूर्ण समुदाय का जीवन, रहन-सहन, रीति-रिवाज आदि की सूचनाएँ संकलित करनी होती हैं, तब प्रत्यक्ष अवलोकन एक उपयोगी विधि है। चूँकि शोधकर्ता स्वयं अपनी आँखों से घटनाओं का निरीक्षण एवं तथ्यों का संकलन करता है, इसलिए संकलित सामग्री की विश्वसनीयता अधिक होती हैं। अवलोकन नियंत्रित स्थिति में भी किए जा सकते हैं तथा अनियंत्रित स्थिति में भी। शोधकर्ता की सहभागिता के आधार पर अवलोकन के दो प्रमुख प्रकार होते हैं-
(i) सहभागी अवलोकन (Participant observation)– इसमें अवलोकन- कर्ता अपने को समूह के सदस्य के रूप में सम्मिलित कर अवलोकन करता है। चूँकि वह थोड़े समय के लिए ही समूह का सदस्य बन जाता है, इसलिए वह घटनाओं को अधिक निकटता से समझ सकता है।
(ii) असहभागी अवलोकन (Non-participant obsevation)– इसमें अवलोकनकर्ता समूह में स्वयं सक्रिय भाग न लेकर तटस्थ रूप में एक शोधकर्ता की भूमिका में अवलोकन करता है।
जीवित व्यक्तियों से प्राप्त प्रत्युत्तर (Responses from living persons)
इसके अंतर्गत वे विधियाँ आती हैं, जिनमें शोधकर्ता उत्तरदाताओं के प्रत्युत्तर के रूप में तथ्य- सामग्री प्राप्त करता है। इसके लिए शोधकर्ता उत्तरदाताओं से कुछ प्रश्न करता है, जिसके उत्तर के रूप में सूचनाएँ मिलती हैं। इस तथ्य -संकलन की विधि के दो स्वरूप हैं।
(क) प्रत्यक्ष विधि (Diect method)– इसमें उत्तरदाता से प्रत्यक्ष रूप से प्रश्न किए जाते हैं, जैसे- साक्षात्कार, अनुसूची, प्रश्नावली आदि।
(ख) अप्रत्यक्ष विधि (Indirect method)– इसमें उत्तरदाताओं से अप्रत्यक्ष तरीकों से प्रत्युत्तर प्राप्त किए जाते हैं; जैसे—प्रक्षेपण-परीक्षण (Projective tests) आदि।
साक्षात्कार (Interview)
इस विधि में अनुसंधानकर्ता आमने-सामने की स्थिति में संबद्ध व्यक्तियों से प्रश्न कर उनका उत्तर प्राप्त करता है। कभी-कभी साक्षात्कार टेलीफोन पर भी किए जा सकते हैं। प्रत्येक स्थिति में, साक्षात्कार का उद्देश्य वार्तालाप द्वारा संबद्ध विषय के बारे में सूचना संग्रह करना है। साक्षात्कार संरचित एवं निर्देशित (structured and directed) भी हो सकता है तथा असंरचित एवं अनिर्देशित (unstrucured and non-directed) भी। साक्षात्कार एक व्यक्ति का भी हो सकता है अथवा एक से अधिक व्यक्तियों के समूह का।
अनुसूची (Schedule)
अनुसूची में प्रश्न अंकित होते हैं, जिन्हें शोधकर्ता उत्तरदाता से पूछकर आमने-सामने की स्थिति में स्वयं भरता है। इस दृष्टि से यह अत्यधिक संरचित साक्षात्कार हो जाता है। अतः एक ओर यह साक्षात्कार कर्ता से उत्पन्न त्रुटियों को कम करता है, तो दूसरी और उत्तरदाताओं से अधिक विश्वसनीय सूचनाएँ प्राप्त करता है। यह विधि तभी उपयोगी है, जब अध्ययन-क्षेत्र अधिक विस्तृत न हो। इस विधि से अशिक्षित उत्तरदाताओं से भी सूचनाएँ संकलित की जा सकती है।
प्रश्नावली (Questionnaire)
इसे अवैयक्तिक एवं अप्रत्यक्ष स्रोत भी कहा जाता है; क्योंकि इसमें साक्षात्कार या अनुसूची की तरह उत्तरदाताओं से व्यक्तिगत संपर्क की आवश्यकता नहीं पड़ती। प्रश्नावली प्रश्नों का समूह है, जिसे उत्तर-दाताओं को दे दिया जाता है, जिसे वह भरकर लौटा देता है। प्रश्नावली डाक से भी प्रेषित की जा सकती है, तब इसे ‘डाक-प्रेषित प्रश्नावली’ (mailed questionaire) कहते हैं। डाक-प्रेषित प्रश्नावली विस्तृत एवं व्यापक समग्र के लिए अत्यंत उपयोगी विधि है, किंतु इस विधि में उत्तरदाताओं का शिक्षित एवं जागरूक होना आवश्यक है।
प्रक्षेपण-परीक्षण (Projective tests)
साक्षात्कार, अनुसूची आदि तथ्य-संकलन के प्रत्यक्ष स्रोत है। किंतु कुछ विधियों में उत्तरदाता को स्पष्टतः ज्ञात नहीं होता कि उसे किस विषय में प्रत्युत्तर देना है। ऐसी अप्रत्यक्ष विधियों में प्रक्षेपण-परीक्षण महत्वपूर्ण सूचना के स्रोत हैं। इन विधियों में उत्तरदाताओं के सामने कुछ अस्पष्ट उत्तेजक ( stimulus ) रखे जाते हैं, जिनके प्रति वह अपना प्रत्युत्तर देता है, जिसका विश्लेषण कर शोधकर्ता महत्वपूर्ण तथ्य एवं निष्कर्ष प्राप्त करता है। ऐसी विधियों में रोर्शा (Rorschach) परीक्षण, टी०ए० टी० (T.A.T.) वाक्य निर्माण (Sentence completion) परीक्षण आदि प्रमुख है।
(A) गुण (Advantages)- तथ्य-सामग्री के प्राथमिक स्रोत समाजशास्त्रीय अनुसंधान में अत्यंत महत्वपूर्ण है। शोध में उपयोगिता की दृष्टि से इसके निम्नलिखित लाभ है-
(i) स्वाभाविकता (Naturalness)- चूँकि प्राथमिक स्रोतों में शोधकर्ता उत्तरदाताओं से संपर्क स्थापित कर सूचनाओं का संग्रह करता है, इसलिए वे स्वाभाविक होती है, उनमें कृत्रिमता नहीं होती। उदाहरण के लिए, सहभागी अव-ओकन द्वारा प्राप्त सूचनाएँ अधिक स्वाभाविक होती है।
(ii) विश्वसनीयता (Reliablity)- प्राथमिक स्रोत की सूचनाएँ शोधकर्ता द्वारा स्वयं संकलित की जाती है, अतः उनकी यथार्थता एवं विश्वसनीयता के प्रति वह आश्वस्त होता है। दूसरे स्रोत द्वारा संकलित तथ्यों या प्रलेखों की तरह उनकी त्रुटियों से वह अनभिज्ञ नहीं रहता।
(iii) मितव्ययिता (Less expensive)– प्राथमिक स्रोत से तथ्यों का संकलन तुलनात्मक रूप से कम खर्चीला और सरल होता है। जैसे, प्रश्नावली द्वारा विस्तृत क्षेत्र में फैले उत्तरदाताओं से कम समय एवं कम खर्च में अधिक सूचनाएँ संकलित की जा सकती हैं।
(iv) अधिक प्रतिनिधि सूचनाएँ एवं प्रतिदर्श (More representative data)- जब हम स्वयं अपने शोध-उद्देश्यों को ध्यान में रखकर सूचनाओं का संकलन करते हैं, तब हम अधिक प्रतिनिधि सूचनाओं पर बल देते हैं। लेकिन, द्वितीयक स्रोत के आँकड़े विशेष व्यक्तियों द्वारा विशेष रूप से विशिष्ट विषय के बारे में होते हैं। वे प्रतिनिधि रचनाएँ नहीं होती।
(v) सूचना की व्यापकता (Greater range of information)- प्राथमिक स्रोतों द्वारा संकलित सूचना को क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत होता है।
(B) दोष ( Demerits)- प्राथमिक स्रोतों द्वारा संकलित तथ्यों के निम्नलिखित दोष है-
(i) प्राथमिक स्रोतों द्वारा प्राप्त सूचनाओं में शोधकर्ता (या संकलनकर्ता) के व्यक्तिगत पक्षपात एवं त्रुटि की संभावना होती है। जैसे- साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ता के कारण उत्पन्न त्रुटियाँ।
(ii) प्राथमिक स्रोतों से सूचना प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि सूचनादाता इस दिशा में सक्रिय सहयोग दे। कभी-कभी यह संभव नहीं होता है और सूचनाएँ अपूर्ण रह जाती हैं। प्रश्नावली के फॉर्म न लौटाने या साक्षात्कार में सहयोग व देने की समस्याएँ ऐसी ही कठिनाइयाँ उत्पन्न करती है।
(iii) प्राथमिक स्रोत से समकालीन सूचनाएँ प्राप्त होती है और विश्वसनीय भूतकालीन सूचनाओं के लिए द्वितीयक स्रोतों पर ही अधिक निर्भर रहना पड़ता है।
(iv) प्राथमिक स्रोतों से सूचना-संकलन के लिए विशेष कुशलता एवं प्रशिश्रण की आवश्यकता पड़ती है।
फिर भी, समकालीन सूचनाओं के लिए, जटिल घटनाओं एवं मन स्थिति को समझने के निर्मित सूचनाओं के प्राथमिक स्रोत एक विश्वसनीय एवं वस्तुपरक साधन है।
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