काठियावाड़ की कढ़ाई (Kathiawar Embroidery)
काठियावाड़ की कढ़ई (Kathiawar Embroidery) – काठियावाड़ की कढ़ाई में ‘काँच वर्क’ (Mirror work) काँच के नन्हें टुकड़ों की अधिकता रहती है। काँच के टुकड़ों को काज टाँके से लगाया जाता है। रात्रि में पार्टी के अवसर पर पहनने वाले परिधान को ‘मिरर वर्क’ से अलंकृत किया जाता है। रात्रि में पार्टी के अवसर पर पहनने वाले परिधान को ‘मिरर वर्क’ से अलंकृत किया जाता है। रोशनी में ये परिधान अत्यन्त सुन्दर लगते हैं और चाँद सितारे का सा प्रभाव उत्पन्न करते हैं। फलतः पहनने वाले के व्यक्तित्व एवं सुन्दरता में चार चाँद लग जाता है। यह कढ़ाई गुजराती परिधान चोली घाघरा पर की जाती है। कोमल, लाल, काला, हरा, इण्डिगो, आइवरी एवं पीले रंगके रेशमी ध्णागों से कढ़ाई की जाती है। नमूने में नयापन एवं अलौकिकता लाने के लिए चौकोर वर्ग के चार बराबर भागों में इस तरह से बाँटा जाता है कि वे त्रिकोण बने तथा प्रत्येक त्रिकोण आकार-प्रकार में एक समान रहे। त्रिकोण के बीच में काँच के नन्हें टुकड़ों को काज टाँके से सजाया जाता है। दोनों आमने-सामने के त्रिकोणों की टाँके से भराई की जाती है। परन्तु यह ध्यान रखना आवश्यक है कि कढ़ाई में धागे बिल्कुल सीधे एवं आड़े हों।
अवजा भारत एक प्रकार का ‘मिरर वर्क’ ही है। इसमें काँच के टुकड़ों के द्वारा वस्त्र को अत्यन्त सुन्दर एवं आकर्षक बनाया जाता है। यह काठियावाड़ का पारम्परिक कढ़ाई कला का एक अभिन्न अंग है परन्तु आजकल इसका प्रचार-प्रसार अत्यन्त व्यापक हो गया है। राजस्थानी कढ़ाई में भी अबला भारत का बाहुल्य रहता है। आजकल देश के अन्य भागों में भी शीशे के छोटे टुकड़ों से वस्त्र अलंकृत किये जाने लगे हैं। चटकीले रंग के रेशमी धागों से अबला भारत का काम किया जाता है। नमूने में फूल-पत्तियों, मोर, तोता, पशु, लतायें आदि के चित्र काढ़े जाते हैं।
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