लखनऊ की चिकनकारी कढ़ाई
लखनऊ की चिकनकारी कढ़ाई- उत्तर प्रदेश में “लखनऊ चिकनकारी कढ़ाई के लिए सदा से ही प्रसिद्ध रहा है। यहाँ के चिकनकारी वस्त्र विश्व भर में प्रसिद्ध हैं। चिकनकारी कढ़ाई में “शैडो काम” (Shadow work) किया जाता है।
चिकनकारी एक प्राचीन कढ़ाई कला है। चिकनकारी कढ़ाई कला रजा हर्ष के समय से ही चली आ रही है। उन्हें भी श्वेत मलमल के वस्त्र पर श्वेत रेशमी धागे से की गयी चिकनकारी के वस्त्र अत्यन्त प्रिय थे। मुगलकाल में जहाँगीर की पत्नी नूरजहाँ ने चिकनकारी कढ़ाई कला का काफी प्रचार-प्रसार किया। इस काल में इस कला का काफी विकास हुआ।
चिकनकारी कढ़ाई अत्यन्त सूक्ष्म, बारीक तथा कोमल होती हैं। पहले यह केवल श्वेत मलमल के वस्त्रों पर श्वेत रेशमी धागों से बनायी जाती थी परन्तु आजकल यह कढ़ाई अन्य वस्त्रों पर भी जैसे- 2 x 2 कैम्ब्रे, ओरगैन्डी सिफान, जौरजेट, नेट, वायल आदि पर भी बनायी जाती है। इसमें विभिन्न प्रकार के रंगों के सूती एवं रेशमी धागों का भी प्रयोग किया जाता है। चिकनकारी करने से पूर्व वस्त्र पर नमूने ट्रैस (छाप) कर लिये जाते हैं। नमूने प्राकृतिक स्रोत एवं घरेलू उपयोग की दैनिक वस्तुओं पर आधारित होते हैं। जैसे- चावल का दाना, गेहूँ की वाली, फूल-फल (आम), पशु-पक्षी (मोर-तोता) इत्यादि।
चिकनकारी में मुख्यतः साटिन (Satin), स्टेम (Sten), मूरी (Murri) तथा हेरिंग बोन टाँके का उपयोग किया जाता है। बखिया एवं विभिन्न टाँकों की मदद से नमूने के अलग-अलग भाग को दर्शाया जाता है। जाली टाँके से चिकनकारी का काम अधिकतर साड़ियों पर किया जाता है। इसके अतिरिक्त पुरुषों के कुर्तो, कफ, कॉलर, मेजपोश, दुपट्टे, रुमाल, सलवार, कुर्ता, ब्लाउज आदि भी काढ़े जाते हैं। चिकनकारी की माँग विदेशों में अधिक है।
Important Links
- शीशेदार फुलकारी | Glassy Phulkari in Hindi
- मणिपुरी की कढ़ाई | Manipuri embroidery in Hindi
- बंगाल की कांथा कढ़ाई | Kantha of Bengal in Hindi
- कश्मीर की कसीदा कढ़ाई | Kashida of Kashmir embroidery in Hindi
- चम्बे की रुमाल पंजाब की कढ़ाई | Chamba Rumals In Hindi
- कर्नाटक की कसूती | Kasuti of Karnataka in Hindi
- काठियावाड़ की कढ़ाई | Kathiawar Embroidery in Hindi
- कढ़ाई कला के विभिन्न चरण | Different Steps of Embroidery in Hindi