भारत सरकार अधिनियम 1919 (मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार)
सन् 1909 से 1919 के बीच का काल शासनिक एवं प्रशासनिक सुधार योजनाओं की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण रहा। इस काल न भारतीय संवैधानिक विकास की दिशा में उल्लेखनीय योगदान किया। इसमें ब्रिटिश सरकार ने विकेन्द्रीकरण की नीति में विश्वास व्यक्त किया तथा अप्रत्यक्षतः उत्तरदायी शसन की नींव डाली। भारत परिषद् अधिनियम, 1892 के 17 वर्ष बाद लार्ड कर्जन के शासनकाल में असन्तुष्ट भारतीय जनता को सन्तुष्ट करने के लिए सरकार ने मार्ले मिण्टों सुधार योजना के रूप में भारतीय परिषद् अधिनियम 1909 का निर्माण किया। तत्कालीन राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों की इसके निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। इसने केन्द्रीय और प्रान्तीय लेजिस्लेटिव कौंसिलों की सदस्य संख्या में वृद्धि कर उसमें भारतीयों को काफी स्थान दिया। इसने उनके (कौंसिलों) अधिकारों और कार्यों में वृद्धि की तथा भारत सचिव की परिषद् एवं वायसराय की कार्यकारिणी में भारतीयों के सम्मिलित करने का मार्ग प्रशस्त किया। इतना ही नहीं इसने अप्रत्यक्ष निर्वाचन में अप्रत्यक्ष उत्तरदायी शासन की नींव सुदृढ़ की। इसने भारतीयों के लिए राजनीतिक शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया परन्तु मुसलमानों के लिए पृथक् निर्वाचन की व्यवस्था कर उसने देश विभाजन का दरवाजा खोला।
विवेचना से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि प्रतिनिधि शासन की दृष्टि से यह अर्थशून्य और अधूरे भवन के समान था क्योंकि इसने जन प्रतिनिधियों नहीं अपितु वर्ग एवं हित विशेष के प्रतिनिधियों के कौंसिल प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया। यह ब्रिटिश सरकार की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति पर आधारित था। यह भारतीयों की आकांक्षाओं की पूर्ति तथा उन्हें सन्तुष्ट करने में विफल रहा। यहाँ तक कि कांग्रेस के उत्तरायी नेता भी इससे असन्तुष्ट थे। उग्रवादियों ने तो इसका जमकर विरोध किया। भारतीयों के असन्तोष के दमन और साथ ही साथ उन्हें सन्तुष्ट करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने ‘दमन और सुधार की अपनी पूर्व नीति के आधार पर 1919 में एक-दूसरे सुधार अधिनियम का निर्माण किया जिसे भारत सरकार अधिनियम 1919 अथवा मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड योजना की संज्ञा दी गयी। केन्द्रीय और प्रान्तीय शासन में अनेक सुधारों के बावजूद वह अधिनियम भी भारतीय जनता को सन्तुष्ट करने में सफल नहीं रहा।
भारत सरकार अधिनियम 1919 के निर्माण के कारण अथवा परिस्थितियाँ
भारतीय जनता के क्षोभ एवं असन्तोष, ब्रिटिश सरकार की दमन एवं सुधार और विकेन्द्रीकरण की नीति तथा विभिन्न गैर सरकारी सुधार योजनाओं के प्रभाव की परिस्थितियों में भारत सरकार अधिनियम, 1919 का निर्माण हुआ। सामान्यतः इन परिस्थितियों को ही इसके निर्माण का कारण माना जाता है।
1. क्षोभ और असन्तोष- 1857 के प्रथम स्वातन्त्र्य आन्दोलन की विफलता तथा भारत का शासन ब्रिटेन की सरकार के हाथ में जाने के बाद से ही ब्रिटिश सरकार ने दमन के साथ-साथ सहयोग और और सुधार की नीति का अवलम्बन कर सहयोग एवं सुधार की विभिन्न योजनाओं द्वारा भारतीयों को सन्तुष्ट करने का हर सम्भव प्रयास किया परन्तु वह इसमें विफल रही तथा उसकी दमनकारी एवं असन्तोष की भावना तीव्र से तीव्रतर ही होती गयी। अनेक सुधार व्यवस्थाओं के बावजूद, 1909 का भारत परिषद् अधिनियम भी भारतीयों को सन्तुष्ट करने में विफल रहा।
2. राष्ट्रीय चेतना में वृद्धि- सरकारी दमन, शासन में सामान्यजन की भागीदारी की अपेक्षा, पृथक्करण एवं फूट डालो की सरकारी नीति तथा उदारवादियों के प्रभाव में ह्रास और उग्रवादियों के बढ़ते प्रभाव के कारण भारतीय राष्ट्रीय चेतना में तेजी से वृद्धि हो रही थी। 1907 सूरत अधिवेशन में कांग्रेस उदारवादियों और उग्रवादियों के बाच विभक्त हो गयी तथा भारतीय राजनीति पर उग्रवादियों का प्रभाव स्थापित हो गया। जनता उदारवादियों की ‘गिड़गिड़ाने’ की नीति से क्षुब्ध एवं असन्तुष्ट थी। तिलक जी का ‘स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है’ का नारा भारतीय जनमानस को आन्दोलित कर चुका था। उग्रवाद और उसके साथ-ही-साथ क्रान्तिकारी आन्दोलन का प्रभाव तेजी से बढ़ता जा रहा था। सरकार ने उनके दमन का हर सम्भव प्रयास किया परंतु वह राष्ट्रीय चेतना में तेजी से हो रही वृद्धि को रोकने में विफल रही। उग्रवाद के बढ़ते प्रभाव के कारण अन्ततः उदारवादियों को झुकना पड़ा तथा श्रीमती एनी बेसेण्ट के प्रयास से 1916 में कांग्रेस विभाजन का अन्त हुआ । एकीकृत कांग्रेस पर उग्रवाद का वर्चस्व रहा। वह हर कीमत पर स्वराज्य प्राप्ति का पक्षधर था। इसी बीच 1914 में प्रथम महायुद्ध शुरू हुआ, जो 11 नवम्बर, 1918 तक चलता रहा । उग्रवादी इस परिस्थिति का लाभ उठाकर स्वराज्य प्राप्त करने के पक्षधर थे बजकि उदारवादी इस पक्ष के थे कि संकट की इस घड़ी में अंग्रेजों की हर तरफ से सहायता की जानी चाहिए। मतभेद की इस स्थिति में भारत की राजनीति पर गांधीजी का प्रभाव स्थापित होता जा रहा था तथा उनके नेतृत्व में भारतीयों ने युद्ध के दौरान अंग्रेजों की हर प्रकार से सहायता की। भारतीय सैनिकों की वीरता तथा भारतीयों के त्याग से ब्रिटिश सरकार बहुत प्रभावित हुई और उसकी मनोदशा में परिवर्तन हुआ।
3. सरकार की मनोदशा में परिवर्तन- यों तो ब्रिटिश सरकार ने दमन तथा ‘फूट डालो और शासन करो’ की अपनी मौलिक नीति में कोई परिवर्तन नहीं किया परन्तु भारतीयों के प्रति उसका दृष्टिकोण धीरे-धीरे उदार होने लगा था। सन् 1916 में ‘मेसोपोटामिया रिपोर्ट’ प्रकाशित हुई। जिसमें कहा गया कि महायुद्ध में भारतीय सैनिकों के प्रति सरकार का रुख बहुत ही असहानुभूतिपूर्ण है। इससे भारतीयों के मन में क्षोभ एवं असन्तोष की लहर और तेज हुई। इस स्थिति का अध्ययन करने के लिए एक आयोग का गठन हुआ जिसके मि. मांटेग्यू भी सदस्य थे। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा कि यदि ब्रिटिश सरकार भारतीयों की राजभक्ति का लाभ उठाना चाहती है तो उसे उन्हें अवश्य ही शासन का अधिकार देना चाहिए। यदि प्रचलित पद्धति में सुधार नहीं हुआ तो शासन व्यवस्था में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। ब्रिटिश सरकार पर इस रिपोर्ट का बहुत ही प्रभाव पड़ा तथा तत्कालीन भारत सचिव आस्टेन चेम्बरलेन के स्थान पर मि. एडविन मांटेग्यू भारत सचिव नियुक्त हुए। वह उदारवादी विचारधारा के व्यक्ति थे तथा सी.वाई. चिन्तामणि के अनुसार उन्हें भारतीयों से बड़ा स्नेह और प्रेम था। उनकी नियुक्ति भारतीयों के प्रति सरकार की परिवर्तित उदारवादी नीति का द्योतक थी। जुलाई, 1917 में अपनी नियुक्ति के पश्चात् उन्होंने अगस्त, 1917 में एक महत्त्वपूर्ण घोषणा की जिसमें भारत को धीरे-धीरे स्वतन्त्रता देने का आश्वासन दिया गया था। उसमें सरकार की जिम्मेदारी का उल्लेख करते हुए कहा गया कि वह भारतीयों की उन्नति की इच्छा रखती हैं। इसी के साथ यह भी कहा गया है कि वह भारतीयों को कुछ उत्तरदायित्व सौंपना चाहती है और यदि उन्होंने उन्हें अच्छी तरह वहन किया तो उन्हें और अधिक उत्तरदायित्व दिये जायेंगें। इसके लिए ब्रिटिश पार्लियामेण्ट में विधेयक प्रस्तुत किया जायेगा जिस पर जनता को विचार का पर्याप्त अवसर दिया जायेगा। इसमें भारत में स्वशासन प्रणाली के विकास की सरकार की इच्छा व्यक्त की गयी थी। मांटे यू घोषणा ने स्पष्ट कर दिया कि भारतीयों के प्रति सरकार के दृष्टिकोण में उदारवादी परिवर्तन हो रहा है। इसका स्वागत करते हुए कांग्रेस ने सन् 1917 में अपने अधिवेशन में प्रस्ताव स्वीकृत कर इस पर सन्तोष व्यक्त किया। प्रो. कूपलैण्ड ने इसे क्रान्तिकारी कदम की संज्ञा दी। एक अन्य विद्वान् के अनुसार यह भारत के संवैधानिक इतिहास में एक नये युग की शुरुआत थी।
4. गैर सरकारी संस्थाएँ- गोखले योजना, राउण्ड टेबुल ग्रुप योजना, विधान सभाई सदस्यों की योजना, कांग्रेस-लीग योजना तथा ज्वायण्ट एड्रेस योजना सदृश गैर सरकारी योजनाओं ने भी भारत सरकार अधिनियम, 1919 के निर्माण की भूमिका तैयार की गोखलेजी ने बम्बई के गवर्नर की अपील पर अपनी मृत्यु से दो दिन पूर्व भारत की भावी राजनीति के संबंध में जो योजना प्रस्तुत की उसमें मूलतः प्रान्तीय स्वशासन के विस्तार पर बल दिया गया था। भारत की राजनीतिक स्थिति पर विचार-विमर्श के लिए गठित हाउण्ड टेबुल ग्रुप नामक गैर सरकारी संस्था ने मार्च, 1916 में भारत सचिव के समक्ष एक योजना प्रस्तुत की जिसमें प्रान्तों में द्वैध शासन अपनाने का सुझाव दिया। गया।
इसमें प्रान्तीय शासन को संरक्षित एवं हस्तान्तरित हो विभक्त करने की बात कही गयी थी। विधान सभाई 19 सदस्यों की योजना में भारतीयों को शासन की वास्तविक एवं प्रभावशाली अधिकार देने पर बल दिया गया था। कांग्रेस-लीग योजना में प्रान्तीय लेजिस्लेटिव कौंसिल के आकार एवं अधिकार में वृद्धि पर बल दिया गया। अन्य बातों के अलावा प्रान्तों में गैर सरकारी गवर्नरों की नियुक्ति और गैर सरकारी कार्यपालिका परिषदों के गठन का सुझाव दिया था। केन्द्रीय लेजिस्लेटिव कौंसिल के आकार एव अधिकार में वृद्धि तथा उसके 80 प्रतिशत सदस्यों के 5 वर्ष के लिए निर्वाचन का भी उसमें सुझाव दिया गया। इनके अतिरिक्त इसमें अन्य संवैधानिक सुधारों के बारे में भी सुझाव दिये गये। ज्वायण्ट एड्रेस योजना ने भी राउण्ड टेबुल ग्रुप योजना की तरह की प्रान्त में द्वैध शासन प्रणाली अपनाने पर बल दिया। इन योजनाओं की विवेचना से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि इन्होंने भी भारत सरकार अधिनियम, 1919 के निर्माण की पृष्ठभूमि तैयार की।
अधिनियम का निर्माण
भारत सचिव मांटेग्यू तथा वायसराय चेम्सफोर्ड की सन् 1918 में प्रकाशित एक संयुक्त रिपोर्ट के आधार पर 1919 में इस अधिनियम का निर्माण हुआ। इस रिपोर्ट को तैयार करने से पूर्व भारत सत्त्वि मांटेग्यू तत्कालीन वायसराय चेम्सफोर्ड के निमन्त्रण पर भारत की स्थिति का अध्ययन करने के लिए यहाँ आये। यहाँ आने पर उन्होंने घोषणा की कि भारत की विषम स्थिति ठीक करने के लिए मैं यहाँ आया हूँ परन्तु उन्होंने चेम्सफोर्ड और नौकरशाही की अड़ेंगेबाजी की निति से क्षुब्ध होकर कहा कि मैं राक्षसी नौकरशाही को बताना चाहता हूँ कि हम लोग भारत में ज्वालामुखी पर बैठे हैं।
इस स्थिति में उनके धैर्य और प्रयास के कारण उनके तथा वायसराय चेम्सफोर्ड के संयुक्त हस्ताक्षर से रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमें चार बातें कही गयीं–
1. स्थानीय स्वशासन पर यथासम्भव जनता का नियन्त्रण हो।
2. प्रथमतः प्रान्तों में उत्तरदायी शासन की दिशा में कदम उठाया जाना चाहिए।
3. केन्द्रीय सरकार ब्रिटेन की सरकार के प्रति उत्तरदायी हो।
4. उत्तरदायी शासन की दिशा में परिवर्तन के साथ ही साथ ब्रिटेन की सरकार और भारत सचिव के नियन्त्रण में कमी होती जानी चाहिए। इस रिपोर्ट के आधार पर जून, 1919 ‘ब्रिटिश हाउस आव कामन्स’ में एक विधेयक प्रस्तुत किया गया। ब्रिटिश पार्लियामेण्ट के दोनों सदनों में पारित होने के बाद दिसम्बर, 1919 ‘ब्रिटिश सम्राट ने उस पर हस्ताक्षर किया और इस प्रकार ‘भारत सरकार अधिनियम, 1919 अस्तित्व में आया।
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