अधिगम के आयाम क्या है? (What are the dimension of learning?)
अधिगम का उद्देश्य अधिगमकर्ता के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाना होता है। व्यवहार में यह परिवर्तन व्यक्तित्व के सभी पक्षों तथा आयामों में लाये जाते हैं। वास्तव में यदि देखा जाये तो व्यवहार पद काफी बड़ा है।
वुडवर्थ (Woodworth, 1948) ने लिखा है, “जीवन की किसी भी, अभिव्यक्ति को क्रिया कहा जा सकता है और व्यवहार ऐसी सभी क्रियाओं का ही एक संयुक्त नाम है।” व्यवहार शब्द का प्रयोग हमारी उन सभी क्रियाओं और गतिविधियों के लिए किया जाता है। जिन्हें हमारे द्वारा हमारी जिन्दगी की विविध परिस्थितियों में किसी-न-किसी रूप में सम्पन्न किया जाता है जब से हमारे जीवन की यात्रा शुरू होती है तब से अन्तिम साँस तक हमारी जिन्दगी का कोई भी पल ऐसा नहीं होता है जब हम किसी-न-किसी प्रकार की क्रिया में रत नहीं रहते इस दृष्टि से जब हम चुपचाप शान्त बैठे रहते हैं, तब भी हम कुछ-न-कुछ कर रहे होते हैं या सोच रहे होते हैं । कर्मेन्द्रियों के निष्क्रिय रहने पर हमारा दिल और दिमाग कुछ-न-कुछ कर रहा होता है। इस तरह जीवन का कोई भी पल ऐसा नहीं होता है, जब हम किसी क्रिया को संपन्न करने में लगे नहीं रहते हैं।
हमारे व्यवहार सम्बन्धी क्रियाओं का दायरा केवल कर्मेन्द्रियों द्वारा सम्पादित विभिन्न क्रियाकलापों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें मस्तिष्क से सोचने, समझने और अन्य बौद्धिक क्रियाओं को सम्पन्न करने तथा हृदय के माध्यम से भावों की अनुभूति करने से सम्बन्धित क्रियाओं का भी समावेश होता है। करने, सोचने तथा अनुभूति सम्बन्धी हमारे व्यवहार के प्रमुख आयाम होते हैं। अधिगम को हमारे व्यवहार में परिवर्तन लाने की प्रक्रिया को साधन के रूप में समझा जाता है तो इसका अर्थ यही लगाया जाना चाहिए कि जब भी कोई छात्र अधिगम में संलग्न रहता है तो अधिगम के द्वारा अवश्य ही उसके व्यवहार के तीनों पक्षों में से किसी-न-किसी पक्ष में अवश्य ही आवश्यक परिवर्तन लाने की भूमिका अवश्य ही निभाई जाती रहती है। यहाँ जो कुछ भी कहा गया है उसके आधार पर यह समझने में कठिनाई नहीं होनी चाहिए कि अधिगम के आयामों से तात्पर्य अधिगमकर्ता के सम्पूर्ण व्यवहार से सम्बन्धित उन तीनों पक्षों से ही होता है, जिनमें अपेक्षित परिवर्तन लाने की प्रक्रिया किसी-न-किसी रूप में सभी प्रकार की अधिगम परिस्थितियों में चल रही होती है। इस दृष्टि से अधिगम के आयामों को प्रमुख रूप से तीन श्रेणियों में बाँटा गया है-
- संज्ञानात्मक (Cognitive)
- भावात्मक (Affective)
- निष्पादन (Performance)|
अधिगम के आयाम (Dimensions of Learning)
1. संज्ञानात्मक (Cognitive)
संज्ञानात्मक अधिगम को ज्ञानात्मक अधिगम भी कहा जाता है। ज्ञानात्मक अधिगम का सम्बन्ध ज्ञान, सम्प्रत्ययों तथा उनके आपसी सम्बन्धों से होता है। इस प्रकार के अधिगम का विकास स्कूल में पढ़ाए जाने वाले सभी विषय करते हैं। यह एक मस्तिष्कीय प्रक्रिया होती है, जो सम्प्रत्ययों के बोध से सम्बन्धित होती है। इसका समझ एवं बुद्धि से अधिक सम्बन्ध होता है। उदाहरणार्थ-शिक्षकों द्वारा स्कूल के विभिन्न विषयों को पढ़ाते समय विषय के विभिन्न तथ्यों का ज्ञान प्रदान किया जाता है। विभिन्न प्रकार के विषय में निहित प्रत्ययों के सम्बन्धों को भी विभिन्न उदाहरणों की सहायता से समझाया जाता है। प्रत्यय को भूत, वर्तमान के सन्दर्भ में स्पष्ट किया जाता है तथा शिक्षक अपने अनुभव के आधार पर छात्रों को ज्ञान प्रदान करता है और छात्रों की अपने अनुभव के आधार पर सामान्यीकरण पर पहुँचने में सहायता की जाती है। सभी विषयों के तथ्य तथा आँकड़े भिन्न होते हैं और उन विषयों की समझ, आँकड़े आदि दूसरे विषयों से भिन्न होते हैं, परन्तु अनुशासनिक वर्ग के आधार पर उनमें समानता भी पायी जाती है। यह बोध उन विषयों तथा उनमें अन्तर संज्ञानात्मक अधिगम होते हैं। संज्ञानात्मक आयाम से सम्बन्धित अधिगम का उद्देश्य अधिगमकर्ता के संज्ञानात्मक (Cognitive) व्यवहार में परिवर्तन लाना होता है। इस व्यवहार के संपादन में ज्ञानेन्द्रियों तथा मस्तिष्क की प्रमुख भूमिका रहती है। संज्ञानात्मक व्यवहार परितर्वन बालक के मानसिक एवं बौद्धिक विकास के लिए आवश्यक माने जाते हैं । इनसे बालक के शैक्षणिक विकास में भी भरपूर सहायता मिलती है तथा उसमें अपने आप से तथा अपने वातावरण से समयोजन करने के लिए पर्याप्त क्षमता एवं कुशलता विकसित होती है। विभिन्न प्रकार की मानसिक एवं बौद्धिक व्यवहार क्रियाओं; जैसे— सोचना, विचारना, कल्पना करना, तर्क करना, अनुमान लगाना, विश्लेषण एवं संश्लेषण करना, वर्णन और व्याख्या करना, स्मरण करना, सामान्यीकरण करना, संक्षिप्तीकरण एवं सरलीकरण करना, नियमीकरण करना, दृष्टान्त देना, विस्तारीकरण करना, अर्थापन करना तथा निष्कर्ष निकालना, आलोचना एवं समालोचना करना आदि का संपादन और उन्हें अपेक्षित परिवर्तन लाने का कार्य अधिगम के इसी संज्ञानात्मक आयाम में आता है। संज्ञानात्मक आयाम में अधिकतर बौद्धिक तथा मानसिक परिवर्तन आते हैं जो छात्रों में संज्ञान सम्बन्धी परिवर्तन लाते हैं। संज्ञान से ही समायोजन सम्बन्धी कुशलता विकसित होती है।
2. भावात्मक (Affective)
भावात्मक अधिगम के अन्तर्गत भाव, दृष्टिकोण मूल्य आदि आ जाते हैं। इसका सम्बन्ध संवेगों से अधिक होता है। भावात्मक व्यवहारों द्वारा सीखी जाती है। इसका विकास सहयोग, सहभागिता तथा समूह के साथ सम्बन्धों के विकास के दौरान होता है। भावात्मक अधिगम के अन्तर्गत संवेग (Emotions), स्थायी भाव (Sentiments) तथा अभिवृत्ति (Attitude), रुचि (Interest), अभिरुचि (Aptitude) एवं मूल्य (Value) आदि होते हैं। जन्म के समय बालक आपे संवेगों तथा भावों का प्रदर्शन स्पष्ट रूप से नहीं कर पाते हैं लेकिन भावात्मकता के विकास के साथ-साथ उनमें संवेगात्मक अधिगम की क्षमता भी बढ़ती जाती है और वे अपनी संवेगात्मक अभिव्यक्ति स्पष्ट रूप से करने लगते हैं। संवेग सर्वव्यापक होते हैं जो प्रत्येक प्राणी में पाए जाते हैं। यह ऐसी मिली-जुली अनुभूति है जो बहुत-सी परिस्थितियों में उत्पन्न होती है। अशिक्षित व्यक्तियों की अपेक्षा शिक्षित व्यक्तियों में संवेग प्रदर्शन की क्षमता बेहतर होती है। स्त्रियों में पुरुषों की अपेक्षा संवेगों का बाहुल्य होता है। भावों में अस्थिरता भी पायी जाती है, किन्तु कुछ समय पश्चात् व्यक्ति सामान्य हो जाता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का भावात्मक पक्ष उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। अतः संवेगों पर नियन्त्रण रखकर ही व्यक्ति के भावात्मक पक्ष को संतुलित बनाया जा सकता है। अधिगम के भावात्मक आयाम से सम्बन्धित अधिगम का उद्देश्य अधिगमकर्ता के भावात्मक (Affective ) व्यवहार में परिवर्तन लाना होता है। भावात्मक व्यवहार का सम्बन्ध हृदय में उठने वाले भावों एवं भावनाओं की अनुभूति से होता है और इसी प्रकार के व्यवहार का सही विकास एवं परिमार्जन ही बालक को मनुष्य की भाँति भावनात्मक अनुभूति करने के योग्य बनाता है। इसलिए किसी कवि ने ठीक ही कहा है कि “हृदय नहीं वह पत्थर है बहती जिसमें रसधार नहीं।” इस तरह भावों एवं रसों की अनुभूति से अभिप्रेरित तथा संचालित होने की शक्ति विकसित करना एवं अच्छे अधिगम का प्रमुख उद्देश्य माना जाता है | बाल-व्यवहार के भावात्मक अनुक्षेत्र में होने वाले परिवर्तन इसी उद्देश्य पूर्ति के सशक्त साधन माने जाते हैं। अधिगम के भावात्मक आयाम से सम्बन्धित व्यवहार क्रियाओं और चेष्टाओं के उदाहरणों के रूप में हम दुखी अथवा सूखी होना, क्रोधित या हर्षित होना, डरना, सहमना, ठंडा व्यवहार करना, उदासीन दृष्टिकोण प्रदर्शित करना, अपनी पसन्द तथा नापसंद बताना विभिन्न प्रकार की रुचियों, अरुचियों, दृष्टिकोण तथा मान्यताओं का प्रदर्शन करना, त्याग तथा बलिदान की भावनाएँ व्यक्त करना, प्रेम, घृणा, तिरस्कार, क्षोभ, ग्लानि आदि भावों की अनुभूति करना, अपने संवेगों को वांछित ढंग से व्यक्त करना आदि का नाम ले सकते हैं।
3. निष्पादन (Performance)
इस प्रकार के अधिगम में क्रियात्मकता तथा विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ सम्मिलित होती हैं। विद्यालय में कई प्रकार की गतिविधियों के द्वारा छात्र निष्पादन करते हैं। निष्पादन में कौशलों का विकास किया जाता है; जैसे- नाचना, गाना, अभिनय करना, संवाद बोलना आदि। इसमें विभिन्न प्रकार के उपकरणों और तकनीकियों का भी प्रयोग किया जाता है। निष्पादन के द्वारा भी कई कौशलों का विकास किया जाता है।
निष्पादन के लिए कई विधियों का प्रयोग किया जाता है; जैसे—प्रयोग विधि, प्रदर्शन विधि, प्रतिपुष्टि तथा अभ्यास विधि आदि। विद्यालयों में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम होते रहते हैं, जिसमें छात्रों को अपनी कला तथा हुनर को दिखाने का अवसर प्राप्त होता रहता है।
निष्पादन में गत्यात्मकता उपस्थित रहती है । समूह में निष्पादन करने से कौशलों का विकास शीघ्रता से होता है निष्पादन में अभ्यास का भी महत्त्व होता है। अभ्यास के द्वारा भी कौशलों का विकास होता है। नाटक, अभिनय में भी अभ्यास का विशेष महत्त्व होता है, इससे निष्पादन अधिक बेहतर होता है। नृत्यकला भी अभ्यास द्वारा अधिक बेहतर बनती है, गायन में भी अभ्यास का महत्त्व होता है। अतः निष्पादन में अभ्यास विधि का विशेष महत्त्व होता है।
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