सतत् और व्यापक मूल्यांकन में अध्यापक की भूमिका (Role of Teachers in Continuous and Comprehensive Evaluation)
सतत् और व्यापक मूल्यांकन में अध्यापक की भूमिका- विद्यार्थियों के अधिगम की अवधि में आंकलन की प्रक्रिया में अध्यापक की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यह आशा की जाती है और वांछित भी है कि अध्यापक आंकलन की विधियों और प्रक्रियाओं के सम्बन्ध में सर्वोत्तम समझ का प्रयोग करे। इस दृष्टिकोण से निम्नांकित जानने के आशा की जाती है-
1. आंकलन प्रक्रिया में (i) पूर्व ज्ञान, (ii) समझ का स्तर और (iii) अधिगम प्रक्रिया का शामिल होता है। यह आंकलन अध्यापन-अधिगम प्रक्रिया को सुधारने में सहायक होता है।
2. बार-बार परीक्षण और परीक्षाएँ लेना आवश्यक होता है।
3. प्रत्ययात्मक समझ के आंकलन के लिए विविध उपकरण और तकनीक का प्रयोग किया जा सकता है। बिना परम्परागत कागज पेन्सिल परीक्षण पर सदैव निर्भर रहने के। यह उपकरण (मौखिक, प्रोजेक्ट्स, समूह क्रियाएँ, प्रस्तुतीकरण, परिचर्या आदि) हर विद्यार्थी को अपनी समझ, विभिन्न योग्यताएँ, अधिगम शैली और कौशल या दक्षता दर्शाने का मौका प्रदान करते हैं।
4. कक्षा का मित्रवत् वातावरण आंकलन के भय को कम कर देता है। इसकी अपेक्षा अध्यापक को अपने हर छात्र को स्वयं का करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। समूह क्रियाएँ और साथी का आंकलन मैत्रीपूर्ण वातावरण उत्पन्न करता है।
5. विद्यार्थियों को प्रश्नों का उत्तर देने को वैकल्पिक अपरम्परागत विधियों को देने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
6. गलत उत्तरों का प्रयोग बच्चे की समझ के स्तर का विश्लेषण करने के लिए एक उपकरण के रूप में प्रयोग किया जा सकता है जो क्रमशः सही प्रत्यय के निर्माण में सहायक हो सकता है।
7. केवल अन्तिम परिणाम से बालक की क्षमता का निर्णय करना एक अच्छा विचार नहीं है वरन् निर्णय प्रक्रिया उन्मुख होना चाहिए।
8. आंकलन कसौटी का अधिगमकर्ता और अभिभावकों से साझा करना, उन्हें यह समझने में सहायक होता है कि उनसे क्या आशा की जाती है। इस प्रकार का उपागम विद्यार्थियों को अपने आवंटित कार्य पर सुधार को प्रतिबिम्बित करने का अवसर प्रदान करता है।
9. विद्यार्थियों और अभिभावकों को अभिप्रेरित करने और उनको उसमें अंतर्भावितता के लिए आंकलन परिणाम उपयुक्त विधि से बताया जाए।
10. विद्यार्थियों को परम्परागत दिए जाने वाले नाम जैसे ‘Slow Learner’, ‘Poor performer’ या ‘Intelligent child’ की उपेक्षा की जानी चाहिए और लिंग, जाति, धर्म तथा आयु सम्बन्धी अभिनति नहीं होनी चाहिए। इसके बजाय सकारात्मक और सुझावात्मक टिप्पणी जो सरल भाषा में की गई हो वह विद्यार्थियों के निष्पादन में सहायक हो सकती है।
11. ऐसे कार्यों का निर्माण करना जो बजाए गणनात्मक निपुणता या गणितीय तथ्य का आंकलन करने की अपेक्षा प्रत्ययों के निर्माण को सुविधा प्रदान करे।
12. एक विशेष कक्षा के अध्यापन में सभी अध्यापकों के मध्य समन्वय उनमें निरन्तर मीटिंग से उत्तम हो सकता है, क्योंकि इसके द्वारा विभिन्न प्रोजेक्ट्स गृह कार्य जो विद्यार्थियों को दिए जाते हैं ताकि वे अति भार न हो जाएँ।
अतः मस्तिष्क में अधिगम के उद्देश्य को रखते हुए अध्यापक आंकलन को सतत्, अन्तःक्रियात्मक, बच्चे के मित्रवत् और अधिगम की प्रक्रिया का भाग बना सकते हैं।
इसे भी पढ़े…
- पाठ्यचर्या विकास की प्रक्रिया
- पाठ्यचर्या निर्माण के लिए शिक्षा के उद्देश्य
- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त
- पाठ्यक्रम निर्माण के सामाजिक सिद्धान्त
- पाठ्यक्रम के प्रमुख निर्धारक
- पाठ्यक्रम विकास के मुख्य प्रसंग
- मानसिक मंदता से सम्बद्ध समस्याएँ
- विकलांगजन अधिनियम 1995
- सक्षम निःशक्तजनों का राष्ट्रीय संगठन
- मानसिक मंदित बालकों की पहचान
- शिक्षण अधिगम असमर्थता एवं शैक्षिक प्रावधान
- श्रवण अक्षमता क्या है? इसकी व्यापकता
- श्रवण अक्षमता के कारण