B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

सूचना से क्या तात्पर्य है? | ज्ञान व सूचना में अन्तर | Information in Hindi

सूचना से क्या तात्पर्य है
सूचना से क्या तात्पर्य है

सूचना से क्या तात्पर्य है? (What do you mean by information?)

सूचना एक प्रकार तथ्यपरक आँकड़ा या तथ्य हैं जो किसी भी माध्यम अर्थात् पुस्तक, समाचार-पत्र, किसी व्यक्ति द्वारा, प्रत्यक्ष बोध द्वारा, या मीडिया द्वारा भी प्राप्त होती है। इस प्रकार यह ज्ञान का प्राथमिक स्तर है तथा व्यक्ति के बोध व चिन्तन में सहायक है। सूचना का सम्बन्ध प्रायः स्मृति से जुड़ा होता है तथा यह ज्ञान के निर्माण के लिए आधार प्रदान करती है। अत: सूचना का सम्बन्ध प्रायः पूर्व ज्ञान से सम्बन्धित होता है और यह पूर्व ज्ञान प्रत्यक्ष ज्ञान का परिणाम होता है। उदाहरणार्थ; यदि कहा जाए कि किसी विद्यालय में 400 विद्यार्थी हैं तो यह ‘सूचना’ है, परन्तु इस सूचना को यदि ‘ज्ञान’ में परिणित करना है। तो इन सभी विद्यार्थियों के बारे में विस्तृत जानकारी अर्थात् उनकी आयु, परिवेश, आर्थिक स्थिति, शिक्षा, बुद्धि-लब्धि आदि सभी को जान लेने के बाद ही यह कहा जा सकता है कि इस विद्यालय के 400 विद्यार्थियों का हमें ज्ञान है अर्थात् ज्ञान हेतु सूचना ‘सेतु’ का कार्य करती । इसी प्रकार की पूर्व सूचनाएँ ज्ञान प्राप्ति में सहायक होती हैं।

सूचना मूर्त होती है तथा नवीन चिन्तन का आधार होती है क्योंकि नवीन ज्ञान, सिद्धान्तों व प्रत्ययों का निर्माण सूचना से ही प्रारम्भ व निर्धारित होता है। मान लीजिए यदि मानव शरीर की नश्वरता का ज्ञान / बोध प्राप्त करना है तो पहले यह सूचना कि ‘अमुक नये व्यक्ति की मृत्यु हो गई है’ आधार बनती है तत्पश्चात् इसके विश्लेषण से व इससे सम्बन्धित अन्य तथ्यों के विश्लेषण से यह स्पष्ट हो जाता है कि एक न एक दिन सबकी मृत्यु होती है अर्थात् मानव शरीर मरणशील है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि सूचना का सम्प्रत्यय, सम्प्रेषण, स्वरूप, शिक्षा, ज्ञान, अर्थ, समझ, प्रत्ययीकरण आदि सभी से जुड़ा हुआ है।

ज्ञान व सूचना में अन्तर (Distinctions between Knowledge and Information)

ज्ञान शब्द की कोई व्यापक परिभाषा देना कठिन है क्योंकि दर्शन की विभिन्न विचारधाराओं में ज्ञान की अपने-अपने ढंग में व्याख्या की गई है। प्रज्ञा, ज्ञाता और ज्ञेय के पारस्परिक सम्बन्ध को ज्ञान माना जाता है। इससे यह तो स्पष्ट है कि प्रत्येक ज्ञान के साथ एक ज्ञाता व एक ज्ञेय जुड़ा होता है और जब ज्ञाता का ज्ञेय के साथ इन्द्रियों के माध्यम से सम्पर्क होता है तो ज्ञेय को पदार्थ के सम्बन्ध में एक चेतना होती है जिसे ज्ञान की संज्ञा दी जा सकती है। इसी प्रकार ज्ञानेन्द्रियों से जो प्रत्यक्षीकरण तथा अनुभव होता है, उसे भी ज्ञान कहते हैं। ज्ञान इन्द्रियों तक ही सीमित नहीं होता अपितु इन्द्रियों से परे भी जो अनुभूतियाँ होती हैं उसे भी ज्ञान कहा जाता है।

ज्ञान को समझने हेतु ‘ज्ञान के स्वरूप’ पर प्रकाश डालना आवश्यक है। ज्ञान का स्वरूप किसी वस्तु के सम्बन्ध में जानकारी है जिसे सूचना भी कहा जा सकता है। जब हम किसी वस्तु के सम्बन्ध में यह कहते हैं कि हमें उसकी जानकारी है तो हम यह मानकर चलते हैं कि यह जानकारी सत्य हैं। अतएव ज्ञान की धारणा में पहले तो यह बात निहित है कि ज्ञान को अवश्य सत्य होना चाहिए। इसी प्रकार ज्ञान के अर्थ में तीन बातें आती हैं- सत्यता, सत्यता में विश्वास तथा सत्यता के लिये पर्याप्त प्रमाण आदि। प्रायः ज्ञान के स्वरूप को मानसिक तथा मनोवैज्ञानिक क्रिया, जैसे- जानना, करना और अनुभूति करना माना जाता है। यही तीन तत्व मनुष्य के व्यवहार में भी दृष्टिगत होते हैं तथा यह कहा जाता है कि अमुक व्यक्ति को इस कार्य का अच्छा ज्ञान है। इसी प्रकार ज्ञान का पक्ष वस्तु के गुणों में भी सम्बन्धित होता है जो इस बात का प्रतीक है कि जब व्यक्ति किसी वस्तु के गुणों को वास्तविक रूप से देख लें तभी उसे उस वस्तु का वास्तविक ज्ञान प्राप्त होता हैं।

प्रायः ‘ज्ञान’ जिसका अंग्रेजी रूपान्तर नॉलेज है को समानार्थी ही प्रयुक्त किया जाता है परन्तु पाश्चात्य मत में मिली ‘नॉलेज’ शब्द की विवेचना तथा ‘भारतीय मतानुसार’, ‘ज्ञान’ शब्द की दार्शनिक विवेचना में अन्तर है। ‘नॉलेज’ सिर्फ सत्य होता है जबकि ‘ज्ञान’ का सत्य व दोनों ही रूपों में पाया जाना नियत है। पाश्चात्य तर्कनिष्ठ अनुभववादी परम्परा में ‘असत्य ज्ञान’ एक स्वतोष्या घाती पद और ‘सत्य ज्ञान’ एक पुनरुक्ति है जबकि भारतीय परम्परा व पाश्चात्य ज्ञान मीमांसा में आधारभूत भेद है। अतः दोनों शब्दों का एक-दूसरे की भाषा में अनूदित या रूपान्तरित नहीं किया जा सकता।

भारतीय दर्शन के अनुसार ‘ज्ञान का अर्थ’ समझने से पूर्व सत्य की वस्तुनिष्ठता, ज्ञान की सार्थकता, ज्ञान की सत्यता तथा तार्किक प्रतिज्ञप्ति सत्यता पर विचार करना आवश्यक है। ज्ञान की अवधारणा के सन्दर्भ में एक तथ्य और है कि ज्ञान केवल अनुभूति मात्र नहीं है। अनुभूति मात्र बाह्य स्वरूप की होती है परन्तु जब वस्तु के बाह्य स्वरूप को देखने के बाद हम उसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं तो यह स्थिति संभवत: ज्ञान की कही जा सकती है। ऐसा ज्ञान प्राप्त होने की स्थिति को ही ज्ञान चक्षु का खुल जाना कहा जा सकता है। शिक्षा यदि हमारे ज्ञान चक्षु खोल दे तो वह ज्ञान इन्द्रियों के अनुभव तक ही सीमित नहीं रहता है, अपितु इन्द्रियों से प्राप्त अनुभूतियाँ भी ज्ञान की प्राप्ति होती हैं जिसके लिये कर्म, ज्ञान व भक्ति में समन्वय आवश्यक है।

इसे भी पढ़े…

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment