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शिक्षा में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की आवश्यकता, शैक्षिक कार्य, उपयोगिता

शिक्षा में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की आवश्यकता
शिक्षा में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की आवश्यकता

शिक्षा में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की आवश्यकता (Need of Information and Communication Technology in Education)

शिक्षा में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का अभिप्राय एक ऐसे तन्त्र है जो सूचनाओं के सूचनाओं तक पहुँचने, सूचना प्राप्त करने तथा उनकी आवश्यकतानुसार प्रक्रमण करने, सूचनाओं को प्राप्त करने एवं सूचनाओं के विस्तार व प्रसार करने के साधन, माध्यम व उपकरण के संयुक्त अभियन्त्रण से है। इसके अन्तर्गत ‘हार्डवेयर’, ‘सॉफ्टवेयर’ एवं कन्कटिंग तीनों प्रकार की तकनीक सम्मिलित हैं। कम्प्यूटर बहुमाध्यम (Multimedia) इन्टरनेट, ब्रौडबैन्ड, मोबाइल व डिजिटल संचार प्रविधियों के बढ़ते अभिसार के फलस्वरूप सूचना व संचार प्रौद्योगिकी की शिक्षा के क्षेत्र में पैठ निरन्तर बढ़ती जा रही है। सूचना व संचार प्रौद्योगिकी को शिक्षा के शक्तिशाली, प्रभावी साधन के रूप में स्वीकार किया गया है।

शिक्षा के लिए छोड़ा गया उपग्रह ‘एडूसेट‘ EDUSET के आन्तरिक प्रक्षेपण वेब आधारित अनुदेशन, डिजिटल लाइब्रेरी एवं बहुमाध्यम अभिकरणों ने शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है। ऐसी प्रौद्योगिकी के ज्ञान, संचालन प्रयोग की अनभिज्ञता शिक्षक के अस्तित्व को खतरे में डाल सकती है। वर्तमान वैश्विक परिवेश में किसी भी अच्छे व अद्यतन शिक्षक व शिक्षार्थी के लिए सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के उपयोग में व्यावहारिक निपुणता अपरिहार्य बन गयी है।\विज्ञान तथा सम्बन्धित तकनीक तथा कुछ विषयों की सीमा तोड़कर सूचना व संचार प्रौद्योगिकी ने पाठ्यक्रम के प्रत्येक पक्ष पर अपना आधिपत्य जमा लिया है। इसके प्रयोग से शिक्षकों व विद्यार्थियों की ग्रहण क्षमता, प्रेषक क्षमता और योग्यताओं में सार्थक व रचनात्मक ढंग से सुधार आया है। शिक्षक तथा सूचनाओं के संयुक्त उपयोग (साझा उपयोग) करने व शैक्षिक सन्दर्भ में उसकी व्याख्या करने पर बल देने लगे हैं सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी ने पाठ्यवस्तु (क्या पढ़ना या सीखना है), शिक्षण विधियाँ (कैसे पढ़ाना है), कक्षागत परिस्थितियों एवं शिक्षा के राष्ट्रीय व सामाजिक सरोकार के परिप्रेक्ष्य में आकूल परिवर्तन ला दिया है सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी ने कक्षा में व कक्षा के बाहर शिक्षण, अनुदेश में प्रयुक्त होने वाले परम्परागत साधनों के अतिरिक्त आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग विस्तारित किया है जिससे शिक्षकों ने पाठ्य सामग्री, पाठ नियोजन, पाठ संकेत शिक्षण प्रविधियों, अनुदेशात्मक परिवेश, परीक्षा व अनुश्रवण विधियों में तकनीक को सम्मिलित कर लिया है।

सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के शैक्षिक कार्य

सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी ने बहुविधि उपयोग का लक्ष्य शिक्षा गुणवत्ता में सुधार लाना है। सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी ने कक्षागत व अन्य अनुदेशन परिस्थितियों में प्रयुक्त किये जाने वाले साधनों व उपकरणों को भी विस्तारित किया है। आधुनिक सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके शिक्षक बन्धु पाठ्य सामग्री, पाठ संकेत, शिक्षण तकनीक, अनुदेशात्मक परिवेश, आकलन विधियाँ व परीक्षा व्यवस्था जैसे पक्षों में सुधार ला रहे हैं।

उपरोक्त दृष्टिकोण से शिक्षा के क्षेत्र में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के निम्नलिखित कार्य हैं-

1. कक्षा शिक्षण के लिए रेडियो, दूरदर्शन प्रसारण, सी. डी. कैसेट, डी. वी. डी. कम्प्यूटर आदि उपकरणों के व्यापाक प्रयोग के रूप में।

2. सीखने के क्रियाकलापों के पर्यवेक्षण व प्रतिपुष्टि हेतु छात्रों का मूल्यांकन करने हेतु प्रयुक्त उपकरण के रूप में।

3. छात्र विचार-विमर्श सामूहिक अधिगम वैयक्तिक अधिगम तथा अनुसन्धान हेतु नवीन शिक्षण विधियों के उपकरण के रूप में।

4. छात्रों को अधिमत कराने, विचारों को उद्वेलित करने का अभिप्रेरण प्रदान करने के साधन के रूप में।

5. शिक्षण-अधिगम सामग्री के स्थानापन्न के रूप में।

6. चाक-बोर्ड के विकल्प के रूप में।

शिक्षा संस्थाओं के कक्षा-कक्षाओं, कार्यालय पुस्तकालय, प्रयोगशालाओं खेल के मैदान में तीव्रता से प्रवेश किया है, जिनके कारण सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का अपरिहार्य अंग बन गया है। छात्र के अधिगम स्तर के अनुरूप अनुदेशन प्रदान करने की सामर्थ्य के कारण सूचना व संचार प्रौद्योगिकी ने महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन किया है।

आज शिक्षा के क्षेत्र में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के भौतिक संसाधनों का बहुतायत प्रयोग किया जा रहा है। कुछ निम्नलिखित हैं-

(i) कैलकुलेटर (संगणक), (ii) डिजिटल पुस्तकालय, (iii) मल्टीमिडिया, (iv) इन्टरनेट, (v) ब्रोडबैण्ड, (vi) वर्ल्ड वाइड वेब, (vii) ऑडियो और वीडियो (श्रव्य दृश्य), (viii) हाइपर टैक्स्ट, (ix) सर्चइंजन (गूगल), (x) टैक्स्ट एवं ग्राफिक्स, (xi) ऑन लाइन आवेदन करना, परीक्षा, साक्षात्कार, प्रोफाइल करना, (xii) वीडियो कान्फ्रेंसिंग, (xiii) डाउन लोडिंग।

उपरोक्त सभी संसाधनों (उपागमों) के प्रयोग, अनुप्रयोग व अनुश्रवण हेतु शिक्षा विभाग द्वारा अनेक प्रकार के शिक्षण-प्रशिक्षण कार्यक्रम उपाधियों कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है। भारत के सभी विश्वविद्यालय उपागमों के संचालन तथा प्रयोग अनुश्रवण के शैक्षिक पाठ्यक्रम (Course) चलाकर उपाधियाँ/पत्रोपाधियाँ प्रदान करते हैं इस क्षेत्र में तमाम अन्य संस्थायें व स्वैच्छिक संस्थायें, एजेन्सीज लगी हैं।

शिक्षा में सूचना एवं प्रौद्योगिकी की उपयोगिता

शैक्षिक परिस्थितियों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की उपयोगिता व विकास की वास्तविक स्थिति का आकलन करके देखा जाय तो शिक्षा संस्थाएँ, अध्यापक समुदाय, छात्र समुदाय किस सीमा तक सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हैं। सभी क्षेत्र में सभी स्तर पर व्यापक रूप से सूचना संचार प्रौद्योगिकी का पर्याप्त परिणाम में प्रयोग करना अभी सम्भव नहीं हो पा रहा है, इसमें आर्थिक, तकनीकी व शिक्षा प्रबन्धों के चिन्तन व प्रबन्धन नियोजन क्रियाएँ आड़े आ जाती हैं। फिर भी प्रौद्योगिकी की उपयोगिता हेतु निम्नलिखित चरण तय किये जा सकते हैं

सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के प्रति जागरूकता

निपुणता (ज्ञान, प्रशिक्षण)

अनुप्रयोग

प्रतिपुष्टि

शिक्षा में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की उपयोगिता निम्नलिखित क्षेत्र में चिह्नित की गयी है- 1. शैक्षिक नीति निर्धारण, 2. पाठ्यक्रम निर्माण, 3. शैक्षिक प्रशासन, 4. सूचना संवाहन, 5. कक्षा शिक्षण, 6. परीक्षा-मूल्यांकन, 7. अभेलखीकरण, 8. दूरस्थल शिक्षा प्रणाली।

उपयोगिता के सुनिश्चितीकरण हेतु शिक्षा विभाग में शैक्षिक सूचना प्रबन्धन प्रणाली (Educational Information Management System) (ई. आई. एम. एस.) तथा जिला शैक्षिक सूचना प्रणाली (District Educational Information System DEIS) (डायस) की स्थापना की गई है।

1. शैक्षिक नीति निर्धारण- शिक्षा नीति का निर्धारण वर्तमान की आधारशिला पर भविष्य के लिए किया जाता है, जिसमें भूतकाल से ऊर्जा प्राप्त की जाती है। भविष्य में संचार प्रौद्योगिकी की क्या उपयोगिता होगी, शिक्षा के उपागमों को कहाँ तक प्रभावित करने, इसका ध्यान में रखकर शिक्षा की नीतियों का सृजन किया जाता है ताकि बढ़ते तथा विकासवान संचार से देश पिछड़ न जाय। आज पूरा संसार एक गाँव की तरह सभी के पहुँच में है-इस अवधारणा के विकास हेतु शैक्षिक नीतियाँ बनाने में उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग किया जाता है। इसमें सूचनाओं का प्रक्रमण संचार साधनों से किया जाता है।

2. पाठ्यक्रम निर्माण – शिक्षा के पाठ्यक्रम निर्माण में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की उपयोगिता विज्ञान के बढ़ते प्रभाव के कारण अपरिहार्य सी हो गई है। पाठ्यक्रम यथार्थ प्रौद्योगिकी के तमाम उपागम को पाठ्यक्रम में सम्मिलित कर लिया गया है-जैसे सूचना एवं संचार के साधनों की जानकारी, उपयोग आदि। प्रत्येक कक्षा के पाठ्यक्रम में सूचना प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित उपागमों का समावेश किया गया है यदि ऐसा न किया जाता तो हमारे शिक्षार्थी, दुनिया की दौड़ में पिछड़ सकते हैं।

3. शैक्षिक प्रशासन- आज शैक्षिक प्रशासन में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का इतना उपयोग किया जा रहा है, कि समस्त सूचनाओं, आँकड़ा का निर्माण, प्रेषण कम्प्यूटर से ही किया जा रहा है विडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से राजधानी या जिला मुख्यालय पर बैठे शिक्षा प्रशासक नियन्त्रण कर रहे हैं। इसके लिए शिक्षा विभाग ने शैक्षिक सूचना प्रबन्धन प्रणाली (Educational Information Management System (EISM) तथा जिला स्तर पर जिला शैक्षिक सूचना प्रणाली (District Educational Information System (DEIS) जैसे सॉफ्टवेयर का निर्माण कर रखा है, जो शिक्षा के प्रशासन में सम्यक् नियन्त्रण रखता है तथा एन. आई. सी. सहयोग करता है।

4. सूचना संवाहन- सूचनाओं का महत्त्व तभी है जब वह उचित समय पर, उचित स्वरूप में, उचित व्यक्ति के पास पहुँच जाय, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी ने इस कार्य को अपने सूचना संवाहन तंत्र माध्यम से सुलभ करा दिया है। सूचनाओं के संगह हेतु वेबसाइट, ई-मेल, फैक्स, फोन सेवा उपलब्ध कराकर सूचना संवाहन को सरल व सुलभ बना दिया है। सूचना संवाहन, में राष्ट्रीय सूचना केन्द्र (National Information Centre (N.C.I.) महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन कर रहा है।

5. कक्षा शिक्षण – सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी ने कक्षा शिक्षण में एक क्रांति-सी ला दी है तथा शिक्षकों को अपने शिक्षण में सहयोग व छात्रों तक पहुँचने में (अधिगम कराने) सजीवता प्रदान की है। कक्षा में स्लाइड, वीडियो, टेलीफिल्म, माइक्रोफोन ध्वनि-प्रकाश पद्धति (Sound Light System) (जिसमें फोकस व स्वर के माध्यम से शिक्षण होता है) टेपरिकार्डर का प्रयोग करके कक्षा शिक्षण किया जा रहा है। कक्षा शिक्षण में इन उपागमों की इतनी उपयोगिता हो गयी है कि कक्षा में जो नक्शा आदि के स्थानों का संकेत हेतु शिक्षक संकेतन (Pointer) (एक प्रकार की घड़ी, जिससे शिक्षक अपेक्षित बिन्दुओं को संकेत करता है) के स्थान पर टॉर्च द्वारा लाइट फेंककर करने लगा है तथा लम्बी कक्षाओं में अपनी आवाज पहुँचाने हेतु मोबाइल – माइक्रोफोन का प्रयोग कर रहा है। कक्षा शिक्षण में प्रयुक्त होने वाले शिक्षण अधिगम सामग्री (T.L.M.) में परम्परागत सामग्री के स्थान पर इलेक्ट्रॉनिक्स टी. एल. एम. का प्रयोग कर रहे हैं, जिससे छात्रों की अधिगम क्षमता में वृद्धि हुई है।

6. परीक्षा मूल्यांकन- कक्षा शिक्षण के उपरान्त छात्रों का परीक्षा एवं मूल्यांकन में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी ने व्यापक परिवर्तन कर दिया है। अब परीक्षा हेतु परम्परागत आवेदन पत्रों की जगह O. M. R. (Optical Mark Reader) का प्रयोग, परीक्षा के स्थान पर क्विज प्रतियोगिताओं, उत्तरपुस्तिकाओं की कम्प्यूटर से जाँच, वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं का प्रादुर्भाव, वस्तुनिष्ठ प्रश्नपत्रों का चलन, आनलाइलन इन्टरव्यू, काउन्सलिंग इन्टरनेट द्वारा परीक्षा परिणामों की घोषणा, अंकपत्र प्रमाणपत्र की प्राप्ति परीक्षा-मूल्यांकन में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का हस्तक्षेप है जो इसके महत्त्व को रेखांकित करती है।

7. अभिलेखीकरण- शिक्षा में अभिलेखों के निर्माण व अनुरक्षण में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी ने अपनी उपयोगिता प्रमाणित की है। प्रौद्योगिकी के तहत सूचनाओं का निर्माण अब कम्प्यूटर से किया जा रहा है। विद्यालय के अभिलेख कम्प्यूटर से बनाए जा रहे हैं। उनके अनुरक्षण हेतु कम्प्यूटर फ्लॉपी, सी. डी. तैयार की जा रही है। तमाम कार्यक्रमों का अभिलेखीकरण- फोटोग्राफी टाइपप्रिन्ट, कम्प्यूटर प्रिन्ट आदि करके किया जा रहा है।

8. दूरस्थ शिक्षा प्रणाली- सूचना तथा संचार प्रविधियों के फैलाव ने दूरस्थ शिक्षा प्रणाली को व्यापक रूप से प्रभावित किया है। सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के परस्पर एकीकरण व सामंजस्य से दूरस्थ शिक्षा की प्रविधियों शिक्षण, सामग्री प्रेषण, अन्तर्क्रियात्मक क्षमता में वृद्धि कार्यक्रम दूरभाष, कान्फ्रेंसिंग, दूरवर्ती कान्फ्रेंसिंग, कम्प्यूटर कान्फ्रेंसिंग, ई-मेल, रेडियो अन्तर्क्रियात्मक कार्यक्रम आदि के प्रयोग ने दूरस्थ शिक्षा को सहज रूप से ग्राह्य किया है ये साधन दूरस्थ शिक्षा के शिक्षार्थियों को अत्यन्त प्रभावी ढंग से द्विमार्गी अन्तर्क्रिया करने को विविधतापूर्ण अवसर उपलब्ध कराते हैं । दूरस्थ शिक्षा प्रणाली के परिप्रेक्ष्य में आधुनिक सूचना तथा संचार माध्यमों का सबसे महत्त्वपूर्ण व उत्साहजनक पक्ष इनकी लागत में पर्याप्त कमी आना है। इसलिए इसकी उपयोगिता और बढ़ गयी है।

सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र बहुमुखी अनुसन्धान तथा विकास के फलस्वरूप शिक्षार्थियों के लिए उपयोगिता बहुत बढ़ गयी है, जिसके विविध स्वरूप, उपयोगिता को इस प्रकार भी व्यक्त किया जा सकता है-

(i) प्रभावी वैयक्तिक अधिगम, (ii) अधिगम स्रोतों की अधिक विविधता, (iii) सार्वभौमिक पहुँच, (iv) अधिक लचीलापन, (v) कम लागत, (vi) अधिक अन्तर्क्रियात्मक, (vii) व्यापक प्रभावी संज्ञानात्मक उपकरण।

सूचना तथा संचार प्रौद्योगिकी के फैलाव से व्यक्तिगत रूप से जनसाधारण तक पहुँच बड़ी तीव्र गति से बढ़ रही है- फलस्वरूप दूरस्थ शिक्षा प्रणाली के अन्तर्गत व परम्परागत शिक्ष प्रणाली दोनों में व्यक्तिगत अधिगम के अवसर प्रौद्योगिकी ने उपलब्ध कराये हैं जिनका लाभ उठाकर तमाम लोग अपनी शैक्षिक आकांक्षा की पूर्ति कर रहे हैं। शिक्षार्थियों के व्यक्तिगत अधिगम में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की व्यापक उपयोगिता रेखांकित की गई है।

परम्परागत अधिगम स्रोतों से एक सीमित अवधारणा तक ही अधिगम सम्भव होता था लेकिन सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के विकास ने कक्षा शिक्षा में अधिगम के तमाम स्रोत खोल दिये है। जैसे दूरस्थ विद्यार्थियों के लिए रेडियो, दूरदर्शन, दूरभाष, टेपरिकार्डर, वीडियो रिकार्डर, वी. सी. डी. उपग्रह सम्प्रेषण जैसे विविधितापूर्ण अधिगम स्रोत अध्ययन अधिगम हेतु उपलब्ध हैं । इन संचार प्रौद्योगिकियों ने यथार्थ कक्षा कक्ष की सुविधा उपलब्ध कराकर शिक्षा को शिक्षार्थियों के द्वार तक पहुँचाया है।

सूचना एवं संचार प्रणाली ने छात्रों की ग्रहण क्षमता को सार्वभौमिक स्वरूप प्रदान किया है। कक्षा में पहुँच की क्षमता न रखने वाले छात्रों की भी पहुँच में शिक्षा हो गयी है घर बैठे दूर-दराज, यातायात रहित स्थलों पर भी रेडियो, दूरदर्शन के कार्यक्रम से पढ़ाई की जाती है। सभी तक शिक्षा पहुँचाने का व्यापक प्रबन्ध सूचना व संचार प्रौद्योगिकी ने कर दिया है।

शिक्षा अधिगम प्रक्रिया को अधिक प्रभावी होने के लिए यह आवश्यक है कि इसमें प्रयुक्त किये जा रहे संचार माध्यम अनुदेशक व विद्यार्थी की दृष्टि से अधिकाधिक अन्तर्क्रियात्मक तथा परिवर्तनशील (लचीला) हों ताकि विद्यार्थी अपनी सुविधानुसार विकल्पों का चयन कर सके। अनेक विकल्पों के होने से शिक्षार्थी अधिगम में सहजता अनुभव करता है।

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