राजनीति विज्ञान / Political Science

उदारवाद का अर्थ एवं परिभाषा | उदारवाद की विशेषताएँ

उदारवाद का अर्थ एवं परिभाषा
उदारवाद का अर्थ एवं परिभाषा

उदारवाद का अर्थ एवं परिभाषा

उदारवाद का इतिहास आधुनिक पश्चिमी दर्शन का इतिहास बन गया है। यह उदारवाद ने बहुत से राजनैतिक तथा सामाजिक आंदोलनों को प्रेरणा दी, बहुत से राजनैतिक आर्थिक आंदोलनों का विरोध किया तथा मानव इतिहास को प्रभावित किया। यह एक अत्यंत लचीली तथा गतिशील विचारधारा रही है तथा संकटों तथा चुनौतियों के बावजूद आज तक प्रभावशाली है।

उदारवाद की परिभाषा की कठिनाई के बारे में हैकर लिखते हैं, “उदारवाद राजनीति की शब्दावली में इतना सामान्य धारणा बन गई है कि वह व्यक्ति जो इसकी एक निश्चित परिभाषा देगा वह बहुत बहादुर होगा। यह व्यक्ति, राज्य तथा इन दोनों के सम्बन्धों का एक विचार है।”

लास्की लिखते हैं, “उदारवाद की व्याख्या करना या परिभाषा दे देना कोई सरल काम नहीं है। क्योंकि यह कुछ सिद्धान्तों का समूह मात्र ही नहीं है, बल्कि दिमाग में रहने वाली आदत भी है।”

सारटोरी लिखते हैं, “यह धारणा इतनी बेड़ौल तथा परिवर्तनशील है कि इसे मनमानी व्याख्याओं की दया पर छोड़ दिया जाना चाहिए।”

विभिन्न देशों में इसके विकास के संदर्भ में उदारवाद के नाम देशीय आधार पर दिये जाते हैं, जैसे अंग्रेजी उदारवाद, अमरीकी उदारवाद, फ्रेंच उदारवाद आदि। इसकी बदलती हुई।

प्रावृत्तियों के आधार पर इसे नकारात्मक तथा सकारात्मक उदारवाद के नाम दिए गए हैं। कभी इसे व्यक्तिवाद से जोड़ा जाता है तो कभी प्रजातंत्र से। अतः इसमें निरंतर परिवर्तन होने के कारण इसकी परिभाषा नहीं दी जा सकती।

चार शताब्दी प्राचीन होते हुए भी ‘उदारवाद’ शब्द की उत्पत्ति केवल उन्नीसवीं शताब्दी में ही हुई। वह Los Liberales शब्द से निकला है, जो 1812 में स्पेनी संविधान समर्थकों ने अपने लिए रखा था। सारटोरी ने इसकी परिभाषा इस प्रकार दी है “अतिसाधारण तौर पर उदारवाद व्यक्तिगत स्वतंत्रता, न्यायिक सुरक्षा तथा संवैधानिक राज्य का सिद्धांत तथा व्यवहार है।” उदारवाद की यह परिभाषा अपने आप में न तो स्पष्ट है तथा न ही पर्याप्त। यह एक राजनैतिक धारणा ही नहीं है, बल्कि नैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा बौद्धिक धारणा भी है। उदारवाद का संबंध स्वतंत्रतता की धारणा से रहा है तथा इसमें परिवर्तन के साथ ही उदारवाद का अर्थ भी बदल गया। आज उदारवाद व्यक्तिवाद, प्रजातंत्र तथा समाजवाद के मिश्रण के रूप में विकसित एक पूंजीवादी वर्ग की विचारधारा कही जा सकती है।

उदारवाद के अर्थ तथा इसकी मूल विशेषताएं देखने के लिए हमें इसके विकास का इतिहास देखना होगा।

उदारवाद की विशेषताएँ

उदारवाद की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. मानव की स्वतंत्रता, उसके अधिकार और स्वतन्त्र तथा खुले समाज को यह बहुत महत्त्वपूर्ण मानता है।

2. स्वतंत्रतता सकारात्मक है तथा राज्य के माध्यम से स्वतंत्रता की आवश्यक परिस्थितियां स्थापित की जानी चाहिए और इसकी प्राप्ति में आने वाली बाधाओं को दूर किया जाना चाहिए। स्वतंत्रता राज्य के नियंत्रण से मुक्ति प्राप्त करने पर नहीं बल्कि राज्य के माध्यम से प्राप्त होती है।

3. प्रजातांत्रिक राज्य में स्वतंत्रता तथा राज्य परस्पर विरोधी नहीं है।

4. राज्य समाज सुधारक तथा कल्याणकारी कार्यों द्वारा स्वतंत्रता तथा व्यक्तित्व के विकास का सहायक बन सकता है। समाज के हर क्षेत्र में राज्य के कार्यों का समर्थन किया जाता है।

5. राज्य के कार्यों का उद्देश्य मानव का विकास, स्वतंत्रता, अधिकार तथा कल्याण है। राज्य इनका सेवक होने के नाते इनका हनन नहीं कर सकता। अतः राज्य निरंकुश नहीं है, यह साधनमात्र है साध्य नहीं।

6. अनियंत्रित स्वतंत्र अर्थव्यवस्था उचित नहीं है, राज्य द्वारा अर्थव्यवस्था का नियंत्रण तथा नियोजन किया जाना चाहिए।

7. पूंजीपतियों को राज्य नियंत्रित कर सकता है तथा उन पर टैक्स लगाकर समाज कल्याण के कार्यों के लिए धन एकत्रित किया जाना चाहिए।

8. प्रजातंत्र तथा स्वतन्त्रता के लिए समानता की आवश्यकता है। बिना समानता के प्रजातन्त्र नहीं हो सकता और बिना प्रजातंत्र के स्वतंत्रता नहीं मिल सकती। अतः स्वतन्त्रता और समानता एक दूसरे के विरोधी नहीं बल्कि पूरक हैं।

9. अधिकार का चरित्र सामाजिक है, समाज के कल्याण के विरोध में व्यक्ति को अधिकार नहीं दिए जा सकते तथा राज्य समाज के हित में अधिकारों को मर्यादित कर सकता है।

10. प्रजातंत्र एवं समाजवाद परस्पर संबद्ध है। समाजवाद के बिना प्रजातंत्र अल्पतंत्र है तथा प्रजातंत्र के बिना समाजवाद तानाशाही बन जाता है।

11. राज्य की शक्ति पर अंकुश रहना चाहिए तथा यह असीमित नहीं होनी चाहिए।

12. राज्य को समाज के विभिन्न समूहों, संस्थाओं, हितों तथा वर्गों में तालमेल और सामंजस्य स्थापित करना चाहिए और कल्याणकारी राज्य ही यह कर सकता है।

13. समाज व्यक्तियों द्वारा बना है, और व्यक्तियों की सेवा करने तथा उनके व्यक्तित्व के विकास का माध्यम है।

14. सामाजिक हित, सामान्य हित, सामान्य कल्याण, सामान्य इच्छा का व्यक्ति के हित से कोई विरोध नहीं है तथा दोनों को मिलाया जा सकता है।

15. व्यक्ति एक तर्कसंगत प्राणी है, वह अपने तथा समाज के उद्देश्य की पूर्ति स्वतन्त्रता अधिकार और समानता के रहते हुए ही कर सकता है।

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