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लेखन कौशल के विकास | लेखन कौशल के उद्देश्य | लिखने की योग्यताएँ

लेखन कौशल के विकास
लेखन कौशल के विकास

लेखन कौशल के विकास पर प्रकाश डालें। (Throw light on the developing wrighting skill.)

भाषा के दो रूप हैं-मौखिक और लिखित। मौखिक रूप के अन्तर्गत भाषा का ध्वन्यात्मक रूप तथा भावों की मौखिक अभिव्यक्ति आती है। जब हम उन ध्वनियों को प्रतीकों के रूप में व्यक्त करते हैं और इन्हें लिपिबद्ध करके भाषा को स्थायित्व प्रदान करते हैं, तो भाषा का यह रूप लिखित कहलाता है। भाषा के इस लिखित रूप की शिक्षा, प्रतीकों को पहचान कर उन्हें बनाने की क्रिया या ध्वनि को लिपिबद्ध कर लिखना क्रिया के अन्तर्गत सुडौल एवं अच्छे वर्णों में लिखना सम्मिलित है ।

लिखित कार्य की उपयोगिता-कक्षा में जो विषय-वस्तु पढ़ाई जाती है, उसका अधिगम पूर्णरूपेण विद्यार्थियों को हो गया है अथवा नहीं, इसकी जाँच कैसे हो? कक्षा में जितना कार्य किया जाता है, यह प्रायः मौखिक ही होता है। यदि यह मान लिया जाए कि हम अपने विचारों का प्रकाशन मौखिक ढंग से अधिक करते हैं. लिखित ढंग से कम करते हैं तब भी कई अवसर ऐसे आते हैं जब लिखित रूप में हमें भाव प्रकाशन करना पड़ता है। मौखिक भाव- प्रकाशन लेखन शैली हेतु आवश्यक है। इसलिए कक्षा-कक्ष में उस पर अधिक जोर दिया जाता है और यह उपकल्पना कर ली जाती है कि यदि छात्र अपने भावों, उद्गारों और इच्छाओं को सरलता, शुद्धता और स्पष्टता से कहकर दूसरों पर व्यक्त कर सकता है, तो वैसा ही शुद्ध और स्पष्ट वह बाद में लिख भी सकता है। इस परिकल्पना में सत्य का अंश आवश्यक है किन्तु पूर्ण सत्य जिस समय छात्र लिखने बैठता है, उस समय उसे शब्द ढूँढ़ने पड़ते हैं।

छात्र को अपने भावों को संयत भाषा में व्यक्त करना पड़ता है तथा शुद्ध वर्तनी का ध्यान रखना पड़ता है । ये लिखित कार्य करते समय छात्र के समक्ष अड़चनें आती हैं फिर विषय-वस्तु यदि ठीक ढंग से समझ में आ गयी है तो विचार उत्पन्न होते हैं जब तक लिखित कार्य का अभ्यास नहीं दिया जाता है, तब तक छात्रों में लिखने की प्रवृत्ति पैदा नहीं होती।

लेखन कौशल के उद्देश्य

लेखन कौशल के प्रमुख के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(i) छात्रों को स्पष्ट, सुन्दर, सुडौल अक्षर लिखने, शुद्ध वर्तनी लिखने तथा व्याकरण सम्मत वाक्य रचना और विराम चिह्नों के सही प्रयोग में समर्थ बनाना।

(ii) छात्रों को मुहावरों, लोकोक्तियों, सूक्तियों तथा लिपि एवं शब्दों का ज्ञान कराके उनके प्रयोग की प्रवृत्ति विकसित करना।

(iii) बालकों को विषयानुकूल भाषा-शैली तथा तार्किक विचार-क्रम में अभिव्यक्ति का ज्ञान कराना।

(iv) स्वतः लेखन में छात्रों की रुचि उत्पन्न करना।

(v) प्रतिलेखन, अनुलेखन तथा श्रुतिलेख के अभ्यास द्वारा छात्रों में लिखने की गति का विकास करना।

(vi) छात्रों में सृजनात्मक, क्रियाशीलता, बोधगम्यता तथा तार्किक शक्ति का विकास करना ।

(vii) छात्रों के मस्तिष्क, हृदय तथा नेत्रों में समन्वय उत्पन्न करके उनकी इन्द्रियों को प्रशिक्षित करना।

लिखने की योग्यताएँ (Abilities of Writing)

1. लिखावट और उसकी आयोजन – (i) तीव्र गति से सुपाठ्य लिखावट का अभ्यास करना । (ii) बिना लाइन वाले कागज पर सीधी रेखा में लिखने की योग्यता प्राप्त करना । (iii) श्यापट्ट पर सुपाठ्य लेखन का अभ्यास होना ।

2. वर्तनी – सभी शब्दों की शुद्ध वर्तनी का प्रयोग करना – विशेषतः ‘र’ के विभिन्न रूपों, अनुनासिकों, अनुस्वार एवं एकायिक वर्तनी वाले शब्दों के प्रयोग की जानकारी होना ।

3. विराम चिह्न – सभी प्रकार के विराम चिह्नों का उचित प्रयोग ।

4. अनुच्छेद लेखन की योग्यता – (i) विषय-वस्तु को विचार बिन्दुओं के अनुसार अनुच्छेदों में विभाजित करके इस प्रकार लेखबद्ध करना कि प्रत्येक नया विचार-बिन्दु नये अनुच्छेद से ही प्रारम्भ हो (ii) विभिन्न अनुच्छेदों एवं अनुच्छेद के अन्तर्गत वाक्यों में पूर्वापर सम्बन्ध एवं स्वाभाविक क्रमबद्ध लाने की क्षमता प्राप्त करना ।

5. भाषा- (i) व्याकरण-सम्मत शुद्ध लिख सकना । (ii) सन्दर्भ के अनुकूल प्रभावपूर्ण भावाभिव्यक्ति के लिए उपयुक्त शब्दों, कहावतों, मुहावरों एवं लोकोक्तियों से मुक्त भाषा लिख सकना यथावश्यक शब्द-चित्रों, दृष्टान्तों और उद्धरणों के द्वारा सशक्त एवं प्रभावपूर्ण भाषा लिखने की क्षमता प्राप्त करना ।

6. लेखन कार्य के प्रकार- (अ) पाठ्य-विषय पर आधारित लेखन-कार्य-

(1) पत्र-लेखन-सभी प्रकार के पत्र लिख सकना, उदाहरणार्थ- व्यक्तिगत-पत्र, आवेदन-पत्र, अभिनन्दन-पत्र, निमन्त्रण-पत्र, बधाई – पत्र, विदाई-पत्र, विरोध पत्र, व्यावसायिक पत्र एवं सम्पादक के नाम पत्र आदि ।

(2) सारांश लेखन- (i) पठित कहानी, नाटक, लघु उपन्यास, निबन्ध, जीवन-चरित्र आदि के सारांश लिख सकना । (ii) अपठित गद्यांश और पद्यांश का सारांश लिखना । (iii) किसी व्यक्ति के भाषण का सारांश लिखना । (iv) किसी व्यक्ति के भाषण के नोट्स लिख सकना । (v) भाव-संक्षेपण अथवा भाव-पल्लवन कर सकना । (vi) समाचार-पत्रों से समाचारों की संक्षिप्त रूपरेखा तैयार कर सकना । (vii) सभा के लिए सूचनाएँ, घोषणाएँ लिखना तथा सभा की रिपोर्ट लिख सकना ।

(3) व्याख्या- (i) प्रसंग और सन्दर्भ बताते हुए पठित गद्यांश तथा पद्यांश की व्याख्या कर सकना (ii) अपठित गद्यांश तथा पद्यांश की व्याख्या कर सकना ।

(4) निबन्ध लेखन- (i) आँखों देखी घटना, स्थान, दृश्य एवं इमारत आदि के सजीव एवं संश्लिष्ट वर्णन की क्षमता का विकास होना एवं उनके विषय में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकना । (ii) घटना के कारणों पर प्रकाश डालना एवं निष्कर्ष निकालना।

(5) कहानी, एकांकी एवं जीवनी लेखन- (i) दिये हुए शीर्षक, दी हुई रूपरेखा पर आधारित कहानी एवं एकांकी की रचना कर सकना । (ii) कहानी को दृश्यों में विभाजित करके संवाद के रूप में प्रस्तुत कर सकना । (iii) नाटकों और संवादों को कहानी के वर्णनात्मक रूप में प्रस्तुत कर सकना। (iv) आत्म-कथा को जीवनी-लेखन एवं आत्मकथा की विधा में बदलना। जीवनी को

(आ) मौलिक लेखन- 1. सामयिक विषयों पर वर्णनात्मक निबन्धों के साथ-साथ विचारात्मक एवं भावनात्मक, निबन्ध लिख सकना ।

2. अपनी अनुभूतियों को साहित्य की विविध विधाओं; जैसे-कहानी, संस्मरण, डायरी, रेखाचित्र एवं कविता आदि में लिखने लगना ।

3. पत्रकारिता- (i) विद्यालय की पत्रिका के लिए लेख लिख सकना (ii) कक्षा की हस्तलिखत पत्रिका में कक्षा, विद्यालय एवं अपने परिवेश से सम्बन्धित समस्याओं पर सम्पादकीय लेख एवं टिप्पणी लिख सकना । (iii) पत्र-पत्रिकाओं के लिए (विशेष रूप से बालकों के लिए निकले वाली पत्रिकाओं के लिए), लेख, कहानियाँ, निबन्ध और कविताएँ लिख सकना । (iv) शाला की पत्र-पत्रिकाओं के लिए संवाददाता के रूप में निर्दिष्ट व्यक्तियों से साक्षात्कार करके उसका विवरण प्रस्तुत कर सकना-निर्दिष्ट स्थानों, घटना स्थलों पर जाकर वहाँ का आँखों देखा वर्णन पत्रिका के लिए लिख सकना ।

4. समीक्षा – (i) अपनी पाठ्य-पुस्तकों के निबन्ध लेखकों, कवियों और कहानीकारों का जीवन परिचय लिख सकना । (ii) कवियों और लेखकों की शैली का सामान्य परिचय लिख सकना । (क) काव्य शैली के विवेचन में कवि के विचार, उसकी रस- योजना, अलंकार-योजना, छन्द-योजना तथा भाषा एवं शैली पर साधारण समीक्षात्मक लेख लिख सकना। (ख) कहानी के मूल तत्वों को ध्यान में रखते हुए पठित कहानी की समीक्षा लिख सकना । (iii) पढ़ी हुई पुस्तकों की समीक्षा लिख सकना। (iv) पढ़ी हुई कहानियों और नाटकों में आये हुए पात्रों के चरित्र का विश्लेषण कर सकना।

लेखन कौशल विकसित करने में अनुभूत समस्याएँ 

छात्रों में लेखन कौशल विकसित करने में निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है-

(i) लिखते समय बैठने का सही ढंग क्या है? छात्र इसे नहीं जानते सामान्यतः छात्र गलत ढंग से बैठते हैं, इसका दुष्प्रभाव उनकी लेखनी पर पड़ता है इसके परिणामस्वरूप लेखनी आड़ी तिरछी एवं टेढ़ी हो जाती है।

(ii) असुन्दर लेखन का एक कारण अभ्यास का अभाव है। इसके लिए कदाचित् अध्यापक भी उत्तरदायी है।

(iii) प्रथमत: छात्रों को लिखते समय कलम कैसे पकड़ी जाए, यह भी नहीं आता।

उपर्युक्त के अतिरिक्त कुछ अन्य कारण भी हैं जो लेखन को प्रभावित करते हैं-

1. शब्दों के बीच स्थान का अभाव- शब्दों तथा वर्णों के बीच उचित दूरी छोड़नी चाहिए, लेकिन कुछ छात्र ऐसा नहीं करते हैं जिसके फलस्वरूप लेखन असुन्दर हो जाता है।

2. शिरोरेखा की उपेक्षा- देवनागरी लिपि में समस्त वर्णों के ऊपर शिरोरेखा लगानी पड़ती है, किन्तु विद्यार्थी यदि शिरोरेखा विहीन वर्ण लिखने की आदत डाल लेते हैं, तो सुन्दर लेखन नहीं बन पाता है।

3. अक्षरों का विकृत आकार-कुछ छात्र अक्षरों को सन्तुलित रूप में नहीं लिखते हैं। ये अक्षर टेढ़े-मेढ़े बनाते हैं और सीधी पंक्ति में नहीं लिखते हैं ऐसे भी लेखन विकृत हो जाता है।

4. त्रुटियाँ – लेखन कौशल की एक महत्त्वपूर्ण समस्या त्रुटियाँ भी हैं। बालक कई क्षेत्रों में त्रुटियाँ करते हैं। इसका कारण यह है कि न उनको विराम चिह्नों का सही-सही ज्ञान होता है और न ही व्याकरण, वर्तनी आदि का उचित ज्ञान होता है ।

लेखन कौशल की समस्याओं का निराकरण

(i) लिखना एक कला है। अतः छात्रों को लिखने का उचित अभ्यास कराया जाए।

(ii) छात्रों को लिखते समय उचित प्रकार से कलम पकड़ने का सही ढंग सिखाया जाए और साथ ही उन्हें यह भी बताया जाए कि लिखते समय कागज से आँखों की दूरी कम से कम 12 इंच हो।

(iii) छात्रों कोपेन पकड़ना भी सिखाया जाए। पेन को निब से लगभग 1 इंच ऊपर से पकड़ा जाए।

(iv) लिखित अभिव्यक्ति की शिक्षा में चार बिन्दु महत्त्वपूर्ण होते हैं-विचारों में क्रमबद्धता, सुसम्बद्धता एवं स्पष्टता और लेखन में शुद्धता लेखन का कौशल विकसित करते समय छात्रों में उक्त गुणों का विकास करना चाहिए।

(V) छात्रों को व्याकरण का ज्ञान कराया जाए, इसके अभाव में लेखन शुद्ध नहीं हो सकता है । व्याकरण ज्ञान के लिए छात्रों को स्वर, लिपि, मात्रा, उच्चारण, शब्द-रचना, वाक्य-रचना तथा अनुच्छेद रचना आदि का उचित ज्ञान दिया जाए।

(vi) लिखित कौशल का विकास करने के लिए छात्रों को निम्नलिखित कार्ज कराए जा सकते हैं- (i) अनुच्छेद रचना कार्य, (ii) निबन्ध रचना कार्य, (iii) प्रश्नों के उत्तर लिखने का कार्य,

(vii) लेखकों तथा कवियों का जीवन-वृत्त लिखवाना आदि (vii) छात्रों को अक्षरों को सीधा लिखने का अभ्यास कराया जाए ।

(viii) छात्रों को हलन्त, अनुस्वार तथा मात्राओं के प्रयोग में असावधानी बरतने से लेख विकृत होने के बारे में सावधान किया जाए।

(ix) छात्रों को शिरोरेखा का महत्त्व बताया जाए। प्रत्येक अक्षर,. शब्द तथा वाक्यों पर शिरोरेखा का प्रयोग करना अवश्य सिखाया जाए। उन्हें यह भी बताया जाए कि इसके अभाव में कभी-कभी अर्थ का अनर्थ हो जाता है।

(x) छात्रों को भाषा में स्तरों का ज्ञान भी कराया जाए। प्राथमिक स्तर पर भाषा में सरलता का गुण कैसे धीरे-धीरे उच्च स्तर पर जटिलता का रूप ले लेता है।

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