भाषा से क्या तात्पर्य है?
वेद में भाषा के अनेक नाम हैं, यथा-वागू, वाच्, गिर् आदि। ब्राह्मण ग्रंथों में कहा गया है-
“लोक व्यवहारे प्रचलित वागेव भाषा शब्देन व्यवहता”
अर्थात् लोक व्यवहार में प्रचलित ‘प्राग्’ शब्द ही ‘भाषा’ शब्द के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।
ऑगिरस का मत है कि निर्दोष वाग् (भाषा) से कल्याण होता है। शशिकर्ण काण्व का कथन है कि वाच् (भाषा) से दिव्यता, सुमति और श्रेय की प्राप्ति होती है। वामदेव गौतम ने कहा है कि भाषा की विभिन्न शैलियाँ बहुविध अर्थ को प्रकट करती हैं।
अथर्ववेद में भी कहा गया है कि देवों ने पशुओं, पक्षियों और मनुष्यों को भाषा प्रदान की-
“देवाः पशु पक्षि मनुष्येभ्यो वाचं ददुः” (अ.11/2/24)
ऋग्वेद में कुत्स ने कहा है- (ऋ. 1/101/5)
“सर्वप्रथमं मानवाय स्तुत्यर्थं वाचमिन्द्रः प्रदान्”
अर्थात् सर्वप्रथम इन्द्र ने मनुष्य को ईश्वर स्तुति के लिए भाषा प्रदान की। यहाँ पर भाषा के आध्यात्मिक भाव को प्रदर्शित किया गया है।
भाषा के माध्यम से ही हृदय की वेदना साकार रूप में प्रकट हो उठती है जैसे भाषा के माध्यम से वाल्मीकि की करुण गाथा हमारी करुणा बन जाती है और हमारे हृदय को स्पर्श कर उठती है। वाल्मीकि ऋषि अपने अंतर के उद्वेलन को प्रकट करना चाहते हुए भी नहीं कर पा रहे थे परंतु कौञ्ची के करुण क्रंदन ने उनके अन्तस्थल के अवरुद्ध कपाट खोल दिए। उनकी यह वेदना भाषा के माध्यम से, वाणी के माध्यम से तथा छन्द के माध्यम से व्यक्त हुई। इसी छंद में उन्होंने संपूर्ण रामायण लिखी ।
कक्षा-कक्ष अन्तःक्रिया में छात्रों की पृष्ठभूमि का प्रभाव (Background of Students; Influence Class-Room Interaction)
कक्षा-कक्ष वह स्थल है जहाँ छात्र एवं शिक्षकों के मध्य अन्तःक्रिया होती है। यह कार्य भाषा के माध्यम से ही होता है। कक्षा-कक्ष अन्तःक्रिया में छात्रों की पृष्ठभूमि का प्रभाव इस प्रकार पड़ता है-
1. छात्रों के भौगोलिक क्षेत्र का प्रभाव- कक्षा-कक्ष में विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के छात्र होते हैं। कुछ छात्र शीतोष्ण प्रदेशों से आये होते हैं और कुछ छात्र ग्रीष्म प्रदेशों से आये होते हैं। उच्च कक्षाओं में तो अधिकांश छात्र भिन्न-भिन्न भौगोलिक क्षेत्र से आकर अच्छे विद्यालयों में प्रवेश लेते हैं तथा छात्रावास में निवास करते हैं। इन सभी छात्रों के रीति-रिवाज, भाषा, राज्य तथा लहजा, उच्चारण आदि एक-दूसरे से भिन्न होता है। इस आधार पर उनमें व्यक्तिगत भिन्नता भी दृष्टिगोचर होती है। इन सभी को एक ही कक्षा में अपने सहकर्मियों तथा शिक्षकों से अंतःक्रिया करनी पड़ती है।
2. सामाजिक क्षेत्र का प्रभाव एक ही कक्षा- कक्ष में विभिन्न सामाजिक क्षेत्रों के छात्र होते हैं। कुछ छात्र ग्रामीण क्षेत्रों के होते हैं तथा कुछ छात्र शहरी क्षेत्रों के होते हैं। इन दोनों ही प्रकार के छात्रों की भाषा में भिन्नता पायी जाती है। इनके बोलने के लहजे, उच्चारण, वाक्यों में व्याकरण की शुद्धता आदि में भी भिन्नता स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। ग्रामीण बालकों की भाषा में शिष्टता तथा शालीनता कम होती है, उनकी बोली उनके क्षेत्र की बोली होती है, शहरी बालकों के उच्चारण से उनका उच्चारण भिन्न होता है। उनकी भाषा में उनके सामाजिक परिवेश की छाप होती है। यद्यपि कक्षा-कक्ष के सभी छात्र भाषा के माध्यम से ही अन्तःक्रिया करते हैं, क्योंकि भाषा ही सामाजिक आदान-प्रदान की वस्तु होती है। यद्यपि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह मिलकर रहना चाहता है तथा एक-दूसरे के साथ अन्तःक्रिया करके संबंधों में बँधे रहना चाहता है परंतु सामाजिक क्षेत्र का उसकी भाषा पर प्रभाव पड़ता है। उसके बोलने का ढंग उसके सामाजिक क्षेत्र के अनुरूप होता है। क्षेत्र के आधार पर उसके बोलने की भाषा में तथा लहजे में कुछ-न-कुछ अंतर अवश्य पाया जाता है जो उसके सामाजिक क्षेत्र का प्रभाव माना जाता है।
3. आर्थिक क्षेत्र का प्रभाव- किसी कक्षा-कक्ष में विभिन्न आर्थिक स्तर के छात्र होते हैं। कुछ छात्र उच्च आर्थिक स्तर के होते हैं जिनसे सभी शिक्षक तथा छात्र प्रभावित रहते हैं, ऐसे छात्र सभी पर अपने धन का प्रभाव डालने का प्रयास करते हैं, इसके विपरीत कुछ छात्र निम्न आर्थिक क्षेत्र के भी होते हैं जिनके पास धनाभाव होता है। ऐसे छात्रों को उच्च आर्थिक स्तर वाले छात्र सदैव प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। धनी छात्र कक्षा में निर्धन छात्रों पर अपने धन का रौब जताते हैं वहीं निर्धन छात्र विभिन्न कारणों से धनी छात्रों के दबाव में आ जाते हैं। धनी छात्र शिक्षकों को भी प्रभावित करने का प्रयास करते हैं जिसमें कुछ शिक्षक भी उनसे प्रभावित हो जाते हैं और उन्हें अतिरिक्त सुविधाएँ प्रदान कर देते हैं। कक्षा-कक्ष में इस प्रकार का भेदभाव उचित नहीं है परंतु छात्रों की आर्थिक पृष्ठभूमि कक्षा-कक्ष को प्रभावित करती रही है। समाज में उच्च, मध्यम तथा निम्न तीन आर्थिक स्तर पाये जाते हैं। अधिकांशतः उच्च आर्थिक स्तर के छात्र अन्य स्तर के छात्रों से स्वयं को अधिक श्रेष्ठ मानते हैं। वे कक्षा-कक्ष की गतिविधियों को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। शिक्षकों पर भी प्रभाव डालने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार आर्थिक क्षेत्र का प्रभाव भी कक्षा-कक्ष की गतिविधियों पर पड़ता है।
4. राजनैतिक क्षेत्र का प्रभाव- कक्षा-कक्ष की अंतःक्रिया पर राजनैतिक क्षेत्र का भी प्रभाव पड़ता है। समाज में राजनीतिक पहुँच वाले बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो उच्च वर्ग से संबंध रखते हैं, ऐसे लोगों के बच्चे कक्षा-कक्ष को ही राजनीति का अखाड़ा बना देते हैं, वे शिक्षण के वातावरण को प्रभावित करते हैं तथा उसमें राजनीति के बीज बो देते हैं। राजनैतिक पहुँच वाले लोगों के बच्चे कक्षा-कक्ष में सामान्य छात्रों की भाँति शिक्षण ग्रहण नहीं करते हैं वे सदैव अपनी राजनीतिक पहुँच से अन्य छात्रों तथा शिक्षकों को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। वे किसी-न-किसी राजनैतिक दल से जुड़े होते हैं जिसके कारण कक्षा-कक्ष में राजनीति के चर्चे करते हैं तथा विद्यालय को राजनीति का अखाड़ा बना देते हैं। विद्यालयों में छात्र संघों के चुनाव होते हैं उनमें भी ऐसे राजनीतिक लोगों के बच्चे ही अधिकतर भाग लेते हैं जिनके पर्यावरण में राजनीति होती है। राजनैतिक पृष्ठभूमि वाले बच्चे सदैव उच्चता के भाव से प्रेरित रहते हैं, वे सामान्य बच्चों की भाँति कक्षा-कक्ष में शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं। वे कक्षा-कक्ष का वातावरण राजनीति से प्रेरित बना देते हैं। अतः राजनैतिक क्षेत्र का भी कक्षा-कक्ष की गतिविधियों पर प्रभाव पड़ता है।
5. सांस्कृतिक क्षेत्र का प्रभाव- कक्षा-कक्ष की अन्तःक्रिया पर सांस्कृतिक क्षेत्र का भी प्रभाव पड़ता है। मानव विज्ञानवादियों के अनुसार भाषा एक सांस्कृतिक वस्तु है जिसे हम परम्परा से प्राप्त करते हैं। किसी भी सांस्कृतिक उपलब्धि के समान परंपरा से प्राप्त मातृभाषा अथवा जातीय भाषा का संरक्षण करना, हम सबका कर्तव्य है। परंतु अन्य सांस्कृतिक उपलब्धियों के समान जैसे-जैसे संस्कृतियों में कुछ हेर-फेर होता रहता है उससे भाषा भी प्रभावित होती है। कक्षा-कक्ष में भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के छात्र आते हैं उनकी भाषा, उच्चारण, शब्दों की रचना, शब्द भण्डार आदि में भी अंतर आ जाता है। भिन्न सांस्कृतिक परिवेश के लोगों के लहजे में भी भिन्नता पायी जाती है। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश के निवासियों हिन्दी उच्चारण एवं बिहार के लोगों के हिन्दी उच्चारण तथा लहजे में पर्याप्त भिन्नता पायी जाती है। इसी प्रकार हरियाणवी हिन्दी उत्तर प्रदेश की हिन्दी से भिन्न लहजा लिए होती है। एक ही राज्य के भिन्न-भिन्न नगरों की भाषा के लहजे में भी भिन्नता देखी जा सकती है। इलाहाबाद की हिन्दी का लहजा आगरा के हिन्दी के लहजे से भिन्न होता है। सांस्कृतिक भिन्नता के साथ-साथ भाषा भी अनेक नये रूप ग्रहण करती है।
- अनुरूपित शिक्षण की विशेषताएँ तथा सिद्धान्त
- कक्षा शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक
- प्रोजेक्ट शिक्षण पद्धति या योजना पद्धति क्या है?
- भूमिका निर्वाह- प्रक्रिया, आवश्यकता और महत्त्व
- अनुरूपण का अर्थ, परिभाषा, धारणा, प्रकार, विशेषताएँ, लाभ तथा सीमाएँ
- सामूहिक परिचर्चा- प्रक्रिया, लाभ, दोष एवं सीमाएँ
इसे भी पढ़े…
- शिक्षार्थियों की अभिप्रेरणा को बढ़ाने की विधियाँ
- अधिगम स्थानांतरण का अर्थ, परिभाषा, सिद्धान्त
- अधिगम से संबंधित व्यवहारवादी सिद्धान्त | वर्तमान समय में व्यवहारवादी सिद्धान्त की सिद्धान्त उपयोगिता
- अभिप्रेरणा का अर्थ, परिभाषा, सिद्धान्त
- अभिप्रेरणा की प्रकृति एवं स्रोत
- रचनात्मक अधिगम की प्रभावशाली विधियाँ
- कार्ल रोजर्स का सामाजिक अधिगम सिद्धांत | मानवीय अधिगम सिद्धान्त
- जॉन डीवी के शिक्षा दर्शन तथा जॉन डीवी के अनुसार शिक्षा व्यवस्था
- जॉन डीवी के शैक्षिक विचारों का शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धतियाँ
- दर्शन और शिक्षा के बीच संबंध
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986