वर्तमान अधिगम पर पूर्ववर्ती अधिगम के प्रभाव (Influence of Prior learning on present learning)
सामान्य रूप से हम किसी के द्वारा अधिगम को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है कि जिसमें अनुभव और प्रशिक्षण के माध्यम से विद्यार्थियों के व्यवहार में काफी हद तक स्थायी एवं प्रभावपूर्ण परिवर्तन लाये जा सकते हैं। अधिगम की इस उपरोक्त परिभाषा का अगर ध्यान से अवलोकन किया जाये तो यह समझने में कठिनाई नहीं होगी कि अधिगम को किसी भी शिक्षण प्रक्रिया के संदर्भ में निम्न तीन प्रकार के तत्वों पर निर्भर रहते हुए पाया जा सकता है-
1. अधिगमकर्त्ता (Learner) या विद्यार्थी जिसके व्यवहार में परिवर्तन लाये जाते हैं।
2. अधिगम अनुभव (Learning Experiences), जिन्हें अधिगमकर्त्ता के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाने के लिये काम में लाया जाता है।
3. मानव एवं भौतिक संसाधन (Men and Material Resources) – जिनकी सहायता से आवश्यकता अधिगम अनुभव अधिगमकर्त्ता के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिये प्रदान किये जाते हैं।
उपरोक्त तत्वों से जुड़ी हुई किसी एक अवस्था में चल रही अधिगम प्रक्रिया की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि इस प्रक्रिया का परिणाम क्या रहा ? दूसरे शब्दों में यह बात इस बात पर निर्भर करती है कि अधिगमकर्त्ता के व्यवहार में जिन स्थायी एवं प्रभावपूर्ण अपेक्षित परिवर्तनों का उद्देश्य सामने रखा गया था उसमें किस सीमा तक सफलता मिल सकी?
अब प्रश्न उठता है कि अधिगम प्रक्रिया में इस प्रकार की सफलता किन-किन बातों पर निर्भर करेगी तथा किन-किन कारणों से प्रभावित होगी। स्पष्ट है कि अधिगम प्रक्रिया में जिन तत्वों का समावेश है उन्हीं को ठीक होने से अधिगम प्रक्रिया में अच्छे परिणामों की प्राप्ति हो सकेगी। दूसरे शब्दों में जिस तरह की प्रकृति इन तत्वों की होगी तथा जिस ढंग से इनके द्वारा अधिगम में अपनी-अपनी भागीदारी निभाई जाएगी, अधिगम प्रक्रिया द्वारा उसी प्रकार की सफलता हमारे हाथ लगेगी।
इस तरह अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इन्हीं तीन तत्वों से जुड़ी हुई अधिगम एवं शिक्षण प्रक्रिया या प्रणाली को साधारणतया निम्न प्रकार के कारकों पर आधारित रहते हुये पाया जाता है
A. विद्यार्थी या अधिगमकर्त्ता से संबंधित कारक
B. अध्यापक से संबंधित कारक
C. विषय-वस्तु से संबंधित कारक
D. प्रक्रिया से संबंधित कारक
आइये इन चार प्रकारों के कारकों के द्वारा अधिगम प्रक्रिया कैसे प्रभावित होती है इस पर विचार किया जायेगा।
किसी भी प्रकार के अधिगम कार्य में अधिगमकर्त्ता या विद्यार्थी की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण रहती है जो कुछ उसे सीखना है तथा जो भी अपेक्षित परिवर्तन व्यवहार में लाने हैं हैं उनका मुख्य नायक विद्यार्थी ही होता है। अतः किसी अधिगम परिस्थिति में विद्यार्थी कितना कुछ सीख सकेगा यह उसकी अपनी मूल प्रकृति, अर्जित अनुभव तथा योग्यताओं तथा सीखने में उसके द्वारा किये जाने वाले प्रयत्नों पर भी निर्भर करेगा। विद्यार्थी से संबंधित ऐसे सभी कार्यों को जो अधिगम की प्रक्रिया और परिणाम दोनों को ही प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है-
1. अधिगमकर्त्ता का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य (Learner’s physical and mental health)- अधिगमकर्त्ता के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर किसी भी अधिगम प्रक्रिया की सफलता बहुत कुछ हद तक निर्भर करती है, विशेषकर सीखने के समय जैसी भी शारीरिक और मानसिक स्थिति विद्यार्थी की होती है, सीखने की प्रक्रिया उसी रूप में आगे बढ़ती है। एक मामूली या सिरदर्द और पेट की तकलीफ सब कुछ अस्त-व्यस्त करने की क्षमता रखती है । विद्यार्थी का सारा ध्यान अपनी परेशानी पर केन्द्रित हो जाता है और पढ़ाई-लिखाई ताक पर रखी रह जाती है। वे विद्यार्थी जिनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता, अक्सर बीमार रहते हैं या मानसिक चिन्ताओं तथा परेशानी का शिकार रहते हैं न तो विद्यालय ही नियमित रूप से आ पाते हैं और न ही अच्छी तरह पढ़ाई-लिखाई में अपना ध्यान और समय दे पाते हैं। परिणामस्वरूप उनसे अच्छे अधिगम परिणामों की आशा नहीं की जा सकती । उनकी तुलना में जो विद्यार्थी शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हैं सीखने के समय जो अपनी पूरी शारीरिक क्षमता और मानसिक चुस्ती का उपयोग कर पाते हैं, अधिगम प्रक्रिया में काफी सरलता प्राप्त कर लेते हैं।
2. विद्यार्थी की मूलभूत क्षमता तथा योग्यता (The basis potential of the learner)- शिक्षण अधिगम और परिणाम दोनों ही इस बात से पूरी तरह प्रभावित होते हैं मूल कि सीखने वाले की मूलभूत क्षमताओं तथा योग्यताओं की प्रकृति और स्तर किस प्रकार का है जिनके बलबूते पर वह सीखने की दिशा में आगे बढ़ना चाहता । इस प्रकार की क्षमताएँ तथा योग्यताएँ कुछ निम्न प्रकार की हो सकती हैं-
विद्यार्थी की स्वाभाविक रुचियाँ, अभिरुचियाँ एवं अभिवृत्तियाँ जो उन्हें किसी विशेष विषय या क्रियाओं को सीखने या न सीखने के लिये अभिप्रेरित करती हैं। विद्यार्थी का किसी विषय विशेष या क्षेत्र विशेष से संबंधित अधिगम के लिये पूर्व ज्ञान का कौशल संबंधी स्तर किस प्रकार का है। उसमें कितनी सामान्य बुद्धि है तथा उस विशेष प्रकार के अधिगम के लिये उसमें कितनी समझ, पूर्वज्ञान तथा पूर्व अर्जित कुशलताएँ विद्यमान हैं।
अधिगम विशेष में अर्जन के लिये उसमें मूल रूप से कितनी शक्ति और सामर्थ्य है। शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा संवेगात्मक दृष्टि से कितनी विकसित क्षमताएँ उनके पास हैं, आदि-आदि।
3. महत्त्वाकांक्षा और उपलब्धि अभिप्रेरणा का स्तर (The level of aspiration and achievement motivation)- अधिगमकर्त्ता की महत्त्वाकांक्षा, उपलब्धि और प्रेरणा के स्तर पर भी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया की सफलता काफी सीमा तक निर्भर करती है। अगर किसी विद्यार्थी में किसी भी प्रकार से आगे बढ़ने तथा जिसमें कुछ बन सकने या उपलब्ध करने की कोई महत्त्वाकांक्षा या अभिप्रेरणा ही नहीं है तो वह फिर क्यों किसी बात को सीखने की कोशिश करेगा जो जितना जिस रूप में पाने की इच्छा करता है वह उसी रूप में उसके लिये प्रयत्न भी करना चाहेगा। हाँ यह बात अवश्य है कि उचित सफलता के लिये महत्त्वाकांक्षा और उपलब्धि अभिप्रेरणा के स्तर का न तो अपनी सामर्थ्य और शक्तियों से बहुत अधिक होना अच्छा सिद्ध हो सकता है और न बहुत कम होना। जरूरत से कम और अधिक अभिलाषा और महत्त्वाकांक्षा दोनों का ही अंत निराशा में होता है। एक, इस वजह से कि जितना योग्यता थी उसके मुताबिक आगे बढ़ने की इच्छा ही नहीं पैदा हुई अतः जीवन में जो कुछ बन सकते थे, वह नहीं बन पाये और दूसरे, इस वजह से कि योग्यता से बहुत अधिक चाह पैदा होने से सीखने के क्षेत्र में निराशा ही हाथ लगी। अतः अधिगम प्रक्रिया में अच्छे परिणामों की प्राप्ति महत्त्वाकांक्षा तथा उपलब्धि अभिप्रेरणा के उचित तथा अनुचित स्तर पर बहुत कुछ निर्भर पाई जाती है।
4. जीवन उद्देश्य (Goals of life)- अधिगमकर्त्ता का जीवन के प्रति क्या दृष्टिकोण है तथा वह अपने जीवन में किन लक्ष्यों की प्राप्ति को किस रूप में स्थान देता है, इस बात पर भी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में उसकी रुचि और प्रगति निर्भर करती है। जीवन के प्रति यही दृष्टिकोण उसे किसी विशेष प्रकार की क्रियाओं तथा क्षेत्र विशेष के ज्ञान प्राप्ति की ओर मोड़ सकता है अथवा उससे दूर ले जा सकता है। सीखने में उसकी तल्लीनता, ‘ तथा बाधाओं से लड़ते-लड़ते सीखने के मार्ग पर आगे बढ़ते जाना सब कुछ तभी संभव है जबकि जो कुछ सीखा जा रहा हो वह उसके जीवन दर्शन और जीवन-शैली के अनुरूप हो । अतः सीखने के अच्छे परिणामों की प्राप्ति व्यक्ति विशेष की जीवन शैली और दर्शन से बहुत अधिक जुड़ी हुई मानी जा सकती है।
5. तत्परता एवं इच्छा शक्ति (Readiness and will power)– सीखने वाला किस सीमा तक किस रूप में कोई बात सीखने को इच्छुक या तत्पर है तथा उसमें सीखने के लिये कितनी अच्छी शक्ति है इस बात पर सीखने की प्रक्रिया की सफलता बहुत हद तक निर्भर करती है। अगर कोई सीखने के लिये तैयार ही नहीं है तो फिर सीखने या अधिगम कार्य में सफलता की बात सोचना ही बेकार है । हाँ अगर कोई सीखने को उत्सुक है तथा उसमें हर हालत में सीखने के रास्ते पर चलते रहने की दृढ़ इच्छा शक्ति है तो फिर कोई भी बाधा उसे सीखने की प्रक्रिया में इच्छित सफलता प्राप्त करने से नहीं रोक सकती।
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