अधिगम की विधियाँ (Methods of Learning)
अधिगम की विधियाँ निम्नलिखित हैं-
(1) पूर्ण तथा अंश विधि (Whole and part method)
पूर्ण विधि का आशय उस विधि से है जिसके द्वारा पूरे विषय को हम अधिगम या सीखते हैं। इस विधि में किसी विषय को शुरू से अंत तक पढ़-पढ़कर सीखते हैं या याद करते हैं। इसके विपरित, अंश विधि का आशय उस विधि से है जिसमें किसी विषय को कई भागों में बाँटकर एक-एक भाग को अलग-अलग करके सीखते या याद करते हैं। एक भाग को याद कर लेने के बाद दूसरे, तीसरे और चौथे भाग को क्रमशः याद करते हैं। जैसे—दस पंक्ति की एक कविता को यदि कोई विद्यार्थी एक ही साथ याद करता है यानी दसों पंक्ति को एक ही साथ प्रत्येक बार पढ़कर याद करता है तो इसे पूर्ण विधि कहेंगे। दूसरी ओर यदि कोई विद्यार्थी उस कविता के दसों पंक्ति को अलग-अलग सीखता या याद करता है यानि एक पंक्ति को याद कर लेता है तब दूसरा पंक्ति याद करता है और इसी प्रकार सभी पंक्ति को याद कर लेता है तो इस विधि को अंश विधि कहेंगे। अधिगम की ये दोनों विधियाँ काफी उपयोगी है। यह कहना बहुत कठिन है कि दोनों विधियों में कौन-सी विधि अधिक उपयुक्त तथा लाभप्रद है। कुछ मनोवैज्ञानिक पूर्ण विधि को अधिक उपयोगी बताते हैं। कारण यह है कि इस विधि से अधिगम करते समय विषय का पुराने चित्र अधिगमकर्त्ता या सीखने वाले के सामने रहा है इस विषय को समझने तथा याद करने में आसानी होती है। लेकिन अंश विधि में विषय का एक खास भाग ही सामने रहता है। इससे सम्पूर्ण भाग को समझने या याद करने की कठिनाई होती है। फिर विषय के प्रत्येक भाग में सम्बन्ध स्थापित करना पड़ता है। इससे समय अधिक लग जाता है लेकिन पूर्ण विधि सम्बन्ध स्थापित करने की आवश्यकता नहीं होता है। अतः इसमें समय कम लगता है।
(2) स्पष्ट तथा गहन विधि (Superficial and in depth method)
स्पष्ट विधि का आशय उस विधि से है जिसमें कोई अधिगमकर्त्ता किसी विषय प्रकरण एवं तथ्य को स्पष्ट रूप से अपने मन-मस्तिष्क में ग्रहण कर लेता है या सीख लेता है। अर्थात् इस विधि में अधिगमकर्त्ता या सीखने वाला जब किसी विषय का अधिगम करता है तो वह उस विषय को अच्छी तरह से अपने जानकारी में ले लेता है। इस विधि में त्रुटि या गलती नहीं होता है। इसके विपरीत, गहन अधिगम या आशय अधिगम की उस विधि से है जिसमें अधिगमकर्त्ता या सीखने वाला जब किसी विषय प्रकरण या तथ्य का अधिगम करता तो वह उस विषय, प्रकरण एवं तथ्य के उस स्तर तक अधिगम करता या इतना गहन अध्ययन करता जिससे उसे विषय का अच्छी जानकारी हो सके।
(3) विराम बनाम अविराम विधि (Spaced Versus Massed Methods)
विराम विधि का तात्पर्य उस विधि से है जिसमें व्यक्ति किसी विषय को आराम ले-लेकर सीखता है। थोड़ी देर तक किसी विषय को याद करता है और थोड़ी देर आराम करता है। इस प्रकार बीच-बीच में आराम लेकर वह समूचे विषय को याद कर लेता है। इसके विपरीत, अविराम विधि में किसी विषय को बिना आराम के ही लगातार सीखते हैं। जैसे—किसी बालक को 30 मिनट में एक कविता याद करने के लिए कहा जाये तो इसे वह दो तरह से याद कर सकता है। एक तरीका यह होगा कि 8 मिनट कविता याद करें और 2 मिनट आराम करें, फिर 8 मिनट याद करें और 2 मिनट आराम करे। इस प्रकार वह 30 मिनट तक कविता याद करें । इस तरीका को विराम विधि कहेंगे। दूसरा तरीका यह होगा कि 30 मिनट तक लगातार वह कविता याद करे और बीच-बीच में जरा भी आराम न करे, तो इसे अविराम विधि कहेंगे।
(4) आवृत्तिकरण तथा पुनः निरीक्षण विधि (Retitation and Revision Method)
आवृत्तिकरण का तात्पर्य सीखने की उस विधि से है जिसमें किसी विषय को सीख लेने के बाद बिना देखें ही उस विषय को मन-ही-मन दुहराया जाता है। लेकिन आवश्यकता पड़ने पर उसे पुनः देख लिया जाता है। जैसे—कोई बालक एक कविता को पाँच बार पढ़ने के बाद याद कर लेता है। अब वह उस कविता को बिना देखे ही मन-ही-मन दुहराता है। इसी प्रक्रिया को आवृतिकरण कहते हैं। दुहराते समय कभी-कभी कविता के कुछ अंशों को वह भूल जाता है। तब वह कविता को पुनः एक बार देख लेता है कि किन अंशों को वह भूल रहा है। इसी क्रिया को पुनः निरीक्षण कहते हैं। इस प्रकार आवृत्तिकरण तथा पुनः निरीक्षण की क्रियाएँ साथ-साथ चलती हैं इसलिए इन्हें दो अलग-अलग विधिन मानकर, एक ही विधि यानी आवृत्तिकरण- पुनर्निरीक्षण विधि कहा जाता है।
बालकों के शिक्षण में आवृत्तिकरण विधि बहुत उपयोगी साबित हुई है। रोड तथा गेट्स ने अपने प्रयोगों के आधार पर प्रमाणित किया है कि अन्य विधियों की तुलना में आवृत्तिकरण अधिक उपयुक्त विधि है। इसके निम्नांकित कारण हैं-
(5) रटकर सीखने की विधि बनाम समझकर सीखने की विधि (Role Method Versus Understanding Method)
कभी-कभी व्यक्ति किसी विषय को रटकर ही सीखता है । उसे समझने का प्रयास नहीं करता है। आपने प्रायः तोता या मैना को ‘राम-राम’ या ‘सीता-राम’ या कुछ और बोलते सुना और देखा होगा। वे इन वाक्यों के अर्थ को नहीं समझत बल्कि रट कर उन्हें याद कर लेते हैं। कुछ विद्यार्थियों में भी रट कर याद करने की आदत होती है । परीक्षा में आने वाले कुछ ऐसे पाठों को जो उनकी समझ से बाहर होते हैं, रट कर याद कर लेते हैं और कुछ छात्र तो रट्टूमल ही होते हैं। वे हर चीज को रट कर याद करना ही पसंद करते हैं। दूसरी ओर, कुछ छात्र अपने पाठ्य को समझ कर याद करते हैं। अपनी पूर्वअनुभूति तथा साहचर्य का उपयोग करके उस विषय के सार तथ्य को सीख लेते हैं।
(6) आकस्मिक विधि बनाम साभिप्राय विधि (Incidental Method Versus International Method)
साभिप्राय – विधि का तात्पर्य उस विधि से है जिसमें व्यक्ति उद्देश्य या इच्छा के साथ किसी विषय को सीखता है। इस विधि में सीखने वाले की इच्छा या उद्देश्य की प्रधानता होती है। जैसे—जब परीक्षा नजदीक आ जाती है तो विद्यार्थी सम्भावित प्रश्नों के उत्तर अच्छी तरह याद कर लेते हैं। उनके सामने परीक्षा में सफलता प्राप्त करने का उद्देश्य रहता है। इसी कारण वे मन लगाकर पूरी दिलचस्पी के साथ प्रश्नों के उत्तर याद करने लगते हैं।
इसके विपरीत, कभी-कभी हम बहुत-सी बातों को बिना किसी उद्देश्य या इच्छा के भी सीख लेते हैं जैसे- मान लें कि जिस सड़क से आप कॉलेज या स्कूल आते-जाते हैं उसकी दोनों ओर कई साईन बोर्ड लगे हुए हैं। शुरू में आपको उनका आभास मात्र ज्ञान भी नहीं रहता है परन्तु कुछ दिनों के बाद उनका ज्ञान आपको हो जाता और आप बतला सकते हैं कि अमुक साइन बोर्ड अमुक स्थान पर है। अब जरा सोचिए कि साइन बोर्ड का नाम याद करना आपका उद्देश्य नहीं था किन्तु बार-बार उस सड़क से गुजरने और साइन बोर्ड पर नजर पड़ने के कारण इच्छा न रहने पर भी आपने उनके नामों को सीख लिया। सीखने की इस विधि को आकस्मिक विधि कहते हैं।
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