राष्ट्रीयता की परिभाषा
“आधुनिक राष्ट्रवाद की यह मुख्य विशेषता है कि बहुत से लोग जो एक राष्ट्रीयता से संगठित हैं, या तो स्वतन्त्र होना चाहते हैं और अपनी इच्छानुसार बनाये राज्य में रहना चाहते हैं, या, बहुत हद तक राजनीतिक स्वायत्ता चाहते हैं जहाँ उन्हें किसी दूसरी राष्ट्रीयता अथवा राष्ट्रीयता अथवा राष्ट्रीयताओं के साथ संगठित कर दिया जाता है।” – डॉ. गार्नर
राष्ट्रीयता शब्द को हम अंग्रेजी भाषा के शब्द Nationality कहते हैं। यह शब्द लैटिन भाषा के शब्द नेशियों (Nation) से निकलता है जिसका मतलब जन्म या जाति से होता है। इस प्रकार राष्ट्रीयता से हमारा तात्पर्य एक ही नस्ल के लोगों वाले समुदाय से होता है। राष्ट्रीयता एक आध्यात्मिक भावना है जो उन लोगों में उत्पन्न होती है। जिनका देश, जाति, इतिहास, भाषा, साहित्य, धर्म, आर्थिक हित और राजनीतिक आकाक्षाएँ एक समान होती हैं। ब्राइस ने लिखा है कि “राष्ट्रीयता वह जनसख्या है जो भाषा एवं साहित्य विचार प्रथाओं और परम्पराओं जैसे बंधनों से परस्पर इस प्रकार बंधी हुयी हो कि वह अपनी ठोस एकता का अनुभव करे तथा उन्हीं आधारों पर बंधी हुयी जनसंख्या से अपने आप को भिन्न समझे।”
सामान्यतः राष्ट्र और राष्ट्रीयता को एक ही समझने की भूल की जाती है। राष्ट्र एक राजनीतिक विचार है जबकि राष्ट्रीयता आध्यात्मिक भावना है। राष्ट्र एक राजनीतिक स्वतन्त्रता तथा सम्प्रभुता की धारणा का प्रतीक है। जबकि राष्ट्रीयता गैर राजनीतिक स्वतन्त्रता तथा सम्प्रभुता की धारणा का प्रतीक है। जबकि राष्ट्रीयता गैर राजनीतिक स्वतन्त्रता तथा सम्प्रभुता की धारणा का प्रतीक है। जबकि राष्ट्रीयता गैर राजनीतिक चेतना है। राष्ट्रीयता की भावना के लिये राष्ट्र का स्वतन्त्र होना आवश्यक नहीं है। एक समुदाय के अन्दर राष्ट्रीयता की भावना तब भी पायी जाती है जब वह राष्ट्र स्वतन्त्र नहीं होता और यही भावना राष्ट्र को स्वतन्त्रता दिलवायी हैं। भारत की स्वतन्त्रता की कहानी इसी भावना का परिणाम है। राजनीतिक स्वतन्त्रता प्राप्त होते ही राष्ट्र को मान्यता प्राप्त हो जाती है।
राष्ट्रीयता एक आन्तरिक एवं आध्यात्मिक भावना है जो मनुष्यों को एक सूत्र में बाँध देती है। राष्ट्रीयता की प्रमुख निम्न परिभाषायें हैं-
भारतीय विचारक डा. बेनी प्रसाद ने राष्ट्रीयता की परिभाषा करते हुये लिख है कि “राष्ट्रीयता की निश्चित परिभाषा करना कठिन है परन्तु यह स्पष्ट है कि ऐतिहासिक क्रम में यह प्रथम अस्तित्व की उस चेतना का प्रतीक है जो सामान्य आदतों, परम्परागत रीति रिवाजो, स्मृतियों, आंकाक्षाओं, अवर्णनीय सांस्कृतिक सम्प्रदायों तथ हितों पर आधारित है।”
ए.ई. जिमन ने लिखा है कि “राष्ट्र ऐसे लोगों का समूह है जो घनिष्ठता अभिन्नता और प्रतिष्ठा की दृष्टि से संगठित है और एक मात्र भूमि से सम्बन्धित है।”
ब्लंटशाली के अनुसार- “एक परम्परागत मनुष्य समाज जिसमें विभिन्न व्यवसाय के व्यक्ति सम्मिलित हों जिनके विचार तथा स्वभाव एक से हों, जिसका जातीय मूल एक हो, जिसकी भाषा रीति रिवाज सभ्यता समान हो और भूमि अथवा निवास स्थान का विचार करके वह समाज यह अनुभव करता हो कि हम एक हैं और अन्य विदेशियों से बिल्कुल भिन्न हैं तो ऐसे मानव समाज को राष्ट्रीय कहेंगे।”
जान स्टुअर्ट मिल के अनुसार, “राष्ट्रीयता मानव जाति का एक भाग कहा जा सकता है। यदि वह सामान्य सहानुभूति द्वारा आपस में सम्बन्धित हो तथा उसी के समान किसी अन्य समुदाय के साथ सहानुभूति न रखता हो तथा आपस में सहयोग की अधिक इच्छा रखते हों और एक ऐसी सरकार के अन्तर्गत रहना चाहते हों जो केवल उन्हीं लोगों की बनीं हों।
उपर्युक्त परिभाषाओं में सबसे अच्छी एवं उपयुक्त परिभाषा गिल क्राइस्ट की है। उन्होंनें लिखा है कि “राष्ट्रीयता एक आध्यात्मिक भावना अथवा सिद्धान्त है जिसकी उत्पत्ति उन लोगों में होती है जो साधारणतया एक जाति के होते हैं, जो एक भूखण्ड पर रहते हैं, जिनकी एक भाषा, एक धर्म एक सा इतिहास, एक सी परम्परायें एवं सामान्य हित होते हैं, तथा जिनके एक से अधिक राजनीतिक समुदाय तथा राजनीतिक एकता के एक से आदर्श होते हैं।
राष्ट्रीयता के मुख्य तत्व
लास्की ने लिखा है कि “राष्ट्रीयता के वियार को परिभाषित करना सरल नहीं है क्योंकि कोई ऐसे निश्चित तत्व नहीं है जिसमें इसकी खोज की जा सके।” राष्ट्रीयता की भावना में विविध तत्वों के आधार पर किसी जन-समूह में एकता का संचार होता है वे तत्व निम्नलिखित हैं-
(1) भौगोलिक एकता (2) सांस्कृतिक एकता (3) जातीय एकता (4) भाषा की एकता (5) धार्मिक एकता (6) ऐतिहासिक परम्पराओं की एकता, (7) राजनीतिक चेतना तथा आकांक्षाओ की एकता, (8) सामान्य आर्थिक हित (9) सामान्य अधीनता (10) सामान्य इच्छा ( 11 ) अन्य तत्व ।
(1) भौगोलिक एकता- जब कोई जनसमूह किसी निश्चित भू-प्रदेश में स्थायी रूप से निवास करने लगता है तो उसे भू-प्रदेश से स्थायी रूप से निवास करने लगता है तो उसे भू-प्रदेश से प्रेम हो जाता है। इसे वह मातृभूमि सम्बोधित करता है एवं उसकी रक्षा के लिये जनसमूह कारखाना है जिनमें हमारे कार्य-कलापों का तमाम विश्व के लाभार्थ सम्पन्न किया जाता है जिसमें श्रम के उन समस्त उपकरणों का संग्रह किया जाता है जिन्हें हम सफलतापूर्वक प्रयुक्त करते हैं।”
(2) सांस्कृतिक एकता- भाषा, साहित्य, रीति-रिवाज, आध्यात्मिक विचार, रहन सहन आदि संस्कृति के आधार तत्व हैं। इन तत्वों की समानता से लोगों के विचारों में एकरूपता आती है। जो राष्ट्रीयता एकता में सहायक होता है जे. एस. मिल के अनुसार, “सांस्कृतिक एकता राष्ट्रीयता का आवश्यक तथा अपरिहार्य तत्व है। एक निश्चित संस्कृति के बिना राष्ट्रीयता की भावना का विकास सम्भव नहीं है”
(3) जातीय एकता – राष्ट्रीयता के निर्माण में जनसमूह के मध्य जातीय एकता का होना एक महत्वपूर्ण तत्व है। राष्ट्र एक जाति में उत्पन्न समूह को कहते हैं। एक जाति में उत्पन्न जनसमूह . के मध्य कई बातों की समता होना विशेषकर सांस्कृतिक स्वाभाविक है। आज की राष्ट्रीयतायें विभिन्न जनसमूहों का सम्मिश्रण ही हो सकती है। जातीय श्रेष्ठता का अभियान उग्र राष्ट्रीयता का प्रतीक है।
(4) भाषा की एकता- भाषा ही राष्ट्रीय एकता का महत्वपूर्ण तत्व है। ‘फिचे’ का कहना, ‘सामान्य भाषा राष्ट्र के सदस्यों में एकता का मुख्य बन्धन है। भाषा वह माध्यम है जिसके द्वारा हम दूसरों के सामने अपने विचार व्यक्त करते हैं अतएव इस माध्यम की कमी जनता के बीच पर्वती और नदियों से भी बड़ी रूकावटें उत्पन्न कर देती है। रेम्जे म्योर ने भी कहा है कि “राष्ट्र के निर्माण में भाषा जाति की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण होती है।” बर्नाडे जोजफ लिखता है, “भाषा राष्ट्रीयता का सबसे शक्तिशाली तत्व है। कहने का तात्पर्य यह है कि भाषा मानवीय एकता का प्रमुख माध्यम है क्योंकि पारस्परिक सहयोग और सम्पर्क दूसरे के मस्तिष्क की गहराइयों तक पहुँचा जा सकता है। ‘फिक्टे’ ने तो यहाँ तक कह डाला हैं कि, राष्ट्रीयता एक आध्यात्मिक तत्व है। वह परमात्मा के मन की अभिव्यक्ति है, इस एकता का मुख्य बन्धन भाषा से समान साहित्य उच्च विचारों की समान प्रेरणा, लोकगीतों तथा लोकगथाओं की परम्परा और एक समान जीवन दर्शन को जन्म लिता है। इन्हीं तत्वों से राष्ट्रीय दृष्टिकोण का निर्माण होता है जिससे एक के बाद दूसरी पीढ़ी प्रभावित होती रहती है।
परन्तु राष्ट्रीयता के लिये भाषा की एकता पूर्ण रूप से आवश्यक नहीं है। भाषा की एकता से राष्ट्रीय एकता का अथवा भाषा की एकता पूर्ण से आवश्यक नहीं है। भाषा की विविधता के लिये अमेरिका तथा ब्रिटेन के निवासी एक एक ही भाषा का प्रयोग करते हैं तथापि अमेरिकन और अंग्रेज दो अलग-अलग राष्ट्र हैं इसके विपरीत स्विस राष्ट्र में तीन भाषाओं जर्मन, फ्रेंच तथा इटैलियन का प्रयोग किया जाता है। तथापि उसने राष्ट्रीयता प्राप्त कर ली है।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि भाषा एक महत्वपूर्ण राष्ट्र निर्माणकारी तत्व है परन्तु न तो यह राष्ट्र निर्माण के लिये अनिवार्य है न तो स्वयं बिना अन्य तत्वों की सहायता से राष्ट्र का निर्माण ही कर सकती है। परन्तु फिर भी यह निर्विवाद है कि विभिन्न जातियों को एकता के सूत्र में बाँधने की जितनी शक्ति समान भाषा में होती है उतनी अन्य किसी तत्व में नहीं जैसा कि हेज ने कहा कि, “राष्ट्रीयताओं और जातियों का उत्थान-पतन सदा उनकी अपनी भाषाओं के समानान्तर होता है।” उत्थान पतन के
(5) धार्मिक एकता – राष्ट्रीयता के निर्माण में समान धर्म का होना भी पर्याप्त महत्व रखता है। समाज तथा धर्म जनसमूह को एकता के सूत्र में बाँधने का उत्तम साधन है। इस्लाम धर्म ..में मुस्लिम राष्ट्रवाद के विकास में मुस्लिम जन समूहों की अगाध भक्ति उत्पन्न कर उन्हें एकता के सूत्र में बाँध दिया, धार्मिक एकता सदा राष्ट्रीय जीवन के विकास का एक महत्वपूर्ण तत्व है।
प्राचीन काल में धर्म ही सामाजिक और राष्ट्रीय संगठन का प्रमुख आधार था। एक धर्म के मानने वाले ही राजनीतिक और सामाजिक समुदाय से संगठित होते थे। धार्मिक भावना के फलस्वरूप उत्पन्न एकता ने राष्ट्रीयता की भावना को विशेष रूप से जागृत किया। उदाहरणार्थ यहूदियों को राष्ट्रीय एकता के लिये धर्म ही राष्ट्रीय जीवन का स्रोत रहा है परन्तु जाति की भाँति धर्म को भी राष्ट्रीयता का एक भावानात्मक तत्व मानना उचित नहीं है। धर्मजन्य राष्ट्रीयता के अन्तर्गत अन्य धर्मों के प्रति घृणा की भावना विद्ध राष्ट्रीयता के निर्माण में बाधक सिद्ध होती है। उदाहरणार्थ भारत में धर्मगत साम्प्रादायिकता ने भारतीय राष्ट्रीय एकता को नष्ट किया और अंग्रेजी शासन के विरूद्ध स्वतन्त्रता के आन्दोलन को न केवल अवरूद्ध किया वरन् अन्त में धर्मगत एवं साम्प्रादायिक आधार पर निर्मित मुस्लिम राष्ट्रवाद विकसित करके देश को विभाजित कराया। इसके विपरीत धार्मिक एकता होते हुये भी बंगला देश ने पाकिस्तान से अलग होकर एक नवराष्ट्र का निर्माण किया इसके अलावा स्विट्जरलैण्ड की जनता भिन्न धर्मों को मानने वालों का समूह है। किन्तु स्विस राष्ट्रीय एकता के मार्ग में वह बाधक नहीं है वास्तव में धर्म के नाम पर निर्मित राष्ट्रवाद संकीर्ण है यह एक अन्य श्रद्धा से युक्त होता है। आधुनिक युग में धर्म राजनीति से बिल्कुल अलग हो गया है जैसा कि वर्गेस ने कहा है, “किसी जमाने में समान धर्म राष्ट्रीयता का महान तत्व था किन्तु अब धार्मिक स्वतन्त्रता के सिद्धान्त में धर्म का राष्ट्रीयता के क्षेत्र में बहुत ही कम महत्व रह गया है। “
(6) ऐतिहासिक परम्पराओं की एकता- धार्मिक जातीय तथा प्रादेशिक समानता किसी जनसमूह को भाषा, संस्कृति तथा सामाजिक परम्परा की दृष्टि से एकता के सूत्र में बाँधती है। इससे समान ऐतिहासिक परम्परा का संचार होता है अपने पूर्वजों के आदर्शों तथा कृतियों को बनाये रखना तथा उनका अनुकरण करने की भावना राष्ट्रीय एकता का संचार करने में महत्वपूर्ण योगदान करती है। गौरवपूर्ण इतिहास की स्मृति राष्ट्र को सफलता प्रदान करती है। ‘जे. एस. मिल’ के शब्दों में, “राष्ट्रीयता के निर्माण में सबसे अधिक शक्तिशाली तत्व ऐतिहासिक राजनीतिक घटनाओं की समानता राष्ट्रीय इतिहास और उस पर आधारित समान संस्मरणों का होना अतीत की घटनाओं से सम्बन्धित सामूहिक वर्ग सुख और दुःख आदि बातें।”
(7) राजनैतिक चेतना एवं आकांक्षाओं की एकता- सामान्य राजनैतिक चेतना और आकांक्षायें मनुष्यों को एक सूत्र में बाँध देती हैं। इस तरह की राजनैतिक आकांक्षा प्रायः स्वाधीता की माँग के रूप में उठती है। फलतः राष्ट्रीयता की भावना को बल मिलता है। फ्रीमेन के शब्दों में “आधुनिक राज्यों में एकरूपता लाने वाला मुख्य कारण केन्द्रीभूत शासन संगठन रहा है।” इंग्लैइड के आधुनिक राज्य की स्थापना के स्तम्भों में सुदृढ़ राजतन्त्र राष्ट्रीय न्यायपालिका, कर संग्रह करने की केन्द्रीय व्यवस्था और स्थायी सार्वजनिक सेवाओं के केन्द्रीय तत्व ही थे।
(8) सामान्य आर्थिक हित- आर्थिक हित की समानता सभी प्रकार के हितों को परस्पर जोड़ती है। प्रत्येक राष्ट्र अपने औद्योगिक विकास के लिये कच्चे माल की प्राप्ति का आकांक्षी और तैयार माल के लिये बाजार के रूप में उपनिवेशों की तलाश में था इस साम्राज्यवादी राज्यों के संगठन का प्रमुख आधार आर्थिक हित ही था। एशियाई तथा अफ्रीकी देशों में जो राष्ट्रवाद वर्तमान शताब्दी में विकसित हुआ है उसका मुख्य कारण भी समान आर्थिक हित थे।
(9) सामान्य अधीनता- कभी-कभी मजबूत और सुव्यवस्थित सरकार की अधीनता भी राष्ट्रीयता का सबल कारण होती है। अंग्रेजों के सुद्रढ़ शासन ने कुछ हद तक भारतीय राष्ट्रीयता का संगठन का प्रमुख आधार आर्थिक हित ही था। एशियाई तथा अफ्रीकी देशों में जो राष्ट्रवाद वर्तमान शताब्दी में विकसित हुआ है उसका मुख्य कारण भी समान आर्थिक हित थे।
(9) सामान्य अधीनता- कभी-कभी मजबूत और सुव्यवस्थित सरकार की अधीनता भी राष्ट्रीयता का सबल कारण होती है। अंग्रेजों के सुदृढ़ शासन ने कुछ हद तक भारतीय राष्ट्रीयता का विकास किया है। इसके विपरीत इस प्रकार की राष्ट्रीयता बड़ी भयंकर भी सिद्ध हुई है। उदाहरणस्वरूप हिटलर के अधीन जर्मनी में और मुसोलिनी के अधीन इटली में
(10) सामान्य इच्छा ट्वायनवी मैजनी- आदि राजनैतिक दार्शनिकों ने सामान्य इच्छा को भी राष्ट्रीयता का आधार माना है। लोगों में एक ही प्रकार सोचने की प्रवृत्ति एक साथ रहने का संकल्प और भ्रातृत्व तथा सहयोग की भावना तथा एक राष्ट्र बनने की इच्छा शक्ति के मूल रही है। में
(11) अन्य तत्व- इन प्रमुखों तत्वों के अतिरिक्त अन्य छोटे-छोटे तत्व भी हैं जो राष्ट्रीयता के विकास में सहायक रहे हैं। उदाहरणस्वरूप राष्ट्रीय होना, रक्षात्मक समस्यायें, लोकमत, राष्ट्रीय चिह्न, युद्ध आदि ।
क्या भारत एक राष्ट्र है ?
कई बार वह प्रश्न उठाया जाता है कि राजनैतिक दृष्टि से राष्ट्रीय इकाई होते हुये भी सांस्कृतिक दृष्टि से एक राष्ट्रीय इकाई होते हुये भी सांस्कृतिक दृष्टि से क्या भारत एक राष्ट्र है ? भारत देश के अन्तर्गत जो अनेक धर्म, जातियों, भाषायें, पहिनावे रीति-रिवाज और जीवन क्रम हैं इसको देखकर कुछ पश्चिमी कहते हैं कि ये राष्ट्र न होकर उपमहाद्वीप है।
भारतीय संस्कृति की एक महान विशेषता विभिन्नता में एकता रही है राष्ट्र या राष्ट्रीयता का तात्पर्य धर्म, भाषा या जाति की समानता से नहीं वरन् देश के नागरिकों के मन और मस्तिष्क में विद्यमान आधारभूत एकता की भावना से होता है। इसके उदाहरण 1962 में चीनी आक्रमण, 1965 में पाक आक्रमण और पुनः 1971 में पाक द्वारा आक्रमण के समय एक चुनौती के रूप में सम्पूर्ण देश ने एक इकाई के रूप में आक्रमण का सामना करके दिया। इतना ही नहीं वैदिक युग ही नहीं वैदिक युग से लेकर वर्तमान युग तक एकता इस मत को सरल और स्पष्ट रूप में देखा जा सकता है। केवल भारतीय ही नहीं वरन् विदेशी आलोचक भी इस आधारभूत एकता स्वीकर करते हैं। सर हरबर्ट रिजले कहते हैं कि, “भारत में धर्म, रीति-रिवाज और भाषा तथा सामाजिक और शारीरिक विभिन्नताओं के होते हुए भी, जीवन की एक विशेष एकरूपता कन्याकुमारी से लेकर हिमालय तक देखी जा सकती है वास्तव में भारत एक अलग चरित्र तथा व्यक्तित्व है जिसकी अवहेलना नहीं की जा सकती।” अतः हम यह कह सकते हैं कि भारत निस्सन्देह एक राष्ट्र रहा है और आज भी है।
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