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परिवेशीय चर्चा- आवश्यकता, विषय, उद्देश्य, परिवेशीय चर्चा के भाग

परिवेशीय चर्चा
परिवेशीय चर्चा

परिवेशीय चर्चा से आप क्या समझते हैं?

परिवेशीय चर्चा – चारों ओर का परिवेश, परिवार, समाज, देश, पर्व, धरती, पेड़-पौधों, पशु-पक्षी तथा सजीव-निर्जीव आदि सभी के सम्बन्ध में सामान्य परिचय, अनुभव एवं उनके प्रति समुचित समझ के विकास के लिये वार्तालाप अथवा बातचीत की प्रक्रिया को ‘परिवेशीय चर्चा’ कहा जाता है।

परिवेशीय चर्चा की आवश्यकता

बालक अपने परिवेश से अन्तःक्रिया करते हुए विभिन्न प्रकार के अनुभव प्राप्त करता है, जिसके फलस्वरूप उसमें परिवेश के प्रति जागरूकता उत्पन्न होती है। परिवेश के महत्त्व को समझते हुए वह उसके संरक्षण एवं संवर्धन की बात विचारता है। बाल वर बालक की नैसर्गिक प्रकृति एवं सीखने की स्वाभाविक प्रक्रिया को उजागर करने में एक माध्यम का कार्य करता है तथा बालक द्वारा अर्जित ज्ञान को स्वयं के जीवन में उपयोगी बनाने में सहायता प्रदान करता है।

परिवेशीय चर्चा के माध्यम से छात्र-छात्राओं में वैज्ञानिक दृष्टिकोण, अच्छे स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता तथा नैतिक मूल्यों का विकास होता है। साथ ही छात्र-छात्राएँ अपने पारिवारिक एवं सामुदायिक दायित्वों का निर्वहन तथा स्थिर विकास के लिये परिवेश संरक्षण करना भी सीखते हैं।

परिवेशीय चर्चा में किन विषयों को सम्मिलित किया जाता है?

प्रमुख रूप से परिवेशीय वार्तालाप अथवा चर्चाओं को तीन प्रकार की श्रेणियों में विभक्त किया जाता है। इन चर्चाओं की श्रेणियों को क्रमशः प्राकृतिक परिवेशीय चर्चा, भौतिक परिवेशीय चर्चा तथा सामाजिक परिवेशीय चर्चा के नाम से जाना जाता है। कुछ प्रमुख चर्चाओं का वर्णन निम्नलिखित रूप से किया जा रहा है

1. घर-परिवार – घर-परिवार को परिवेशीय विषयों में महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया जाता है क्योंकि बालक के परिवेशीय अध्ययन का प्रारम्भ परिवार से ही होता है। परिवार में रहकर बालक विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों के बारे में ज्ञान प्राप्त करता है। वह अपने परिवार के साथ खेतों पर जाकर विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों एवं जीव-जन्तुओं के बारे में ज्ञान प्राप्त करता है। इसके साथ-साथ बालक परिवार में होने वाली विभिन्न घटनाओं के आधार पर परिवेशीय ज्ञान प्राप्त करता है। साथ ही बालक परिवार में अपने माता-पिता, भाई-बहनों से प्राकृतिक संसाधनों के बारे में भी ज्ञान प्राप्त करता है। इस प्रकार पारिवारिक व्यवस्था बालक के परिवेशीय अध्ययन का प्रमुख केन्द्र है। दूसरे शब्दों में, परिवेशीय अध्ययन की नींव घर-परिवार से ही प्रारम्भ होती है ।

2. स्वच्छता एवं स्वास्थ्य – व्यक्तिगत स्वच्छता के सन्दर्भ में परिवेशीय चर्चा में प्राथमिक स्तर के छात्रों को यह बताया जाता है कि उनको समय से अपने नाखून काटने चाहिये, बालों को सफाई करनी चाहिये, आँखों में अंजन तथा दाँतों के लिये मंजन का प्रयोग करना चाहिये एवं घुले हुए वस्त्र धारण करने चाहिये। परिवेशीय स्वच्छता के अन्तर्गत छात्रों से विद्यालयी परिवेश को स्वच्छ रखना, कक्षा-कक्षों की सफाई करना, कूड़े को निर्धारित स्थान पर फेंकना, अनुपयोगी वस्तुओं को एक स्थान पर रखना तथा विद्यालय में वृक्षारोपण करना आदि के सम्बन्ध में चर्चा की जाती है।

सामाजिक घटनाओं पर परिचर्चा

सामाजिक घटनाएँ भी परिवेशीय चर्चा का प्रमुख विषय माना जाता है क्योंकि इनका सम्बन्ध प्रमुख रूप से सामाजिक परिवेश से है। सामाजिक घटनाओं के अभाव में परिवेशीय चर्चा की विषयवस्तु को पूर्ण नहीं माना जा सकता। सामाजिक घटनाओं का सम्बन्ध समाज में होने वाले विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों एवं समाज की परम्पराओं एवं सभ्यता से होता है। प्रत्येक राष्ट्र अपनी संस्कृति का संरक्षण चाहता है। इसके लिये यह आवश्यक है कि प्राथमिक स्तर से ही बालकों को सांस्कृतिक परम्पराओं एवं नियमों का ज्ञान प्रदान किया जाय जैसे- भारतीय संस्कृति का प्रमुख आधार नैतिकता है। इसका प्रभाव शिक्षा, समाज एवं विदेश नीति में भी देखने को मिलता है। इस विषय के अन्तर्गत छात्रों को समाज की संस्कृति एवं स्वस्थ परम्पराओं से चर्चा के माध्यम से परिचित कराया जाता है। उनके संरक्षण एवं ज्ञान हेतु सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेना सिखाया जाता है, सामाजिक बुराइयों का विरोध करना सिखाया जाता है तथा सांस्कृतिक आदर्शों को जीवन में धारण करना सिखाया जाता है। इस प्रकार बालकों को प्राथमिक स्तर से ही सामाजिक घटनाओं एवं परिस्थितियों पर परिचर्चा के माध्यम से अनेक परिवेशीय तत्त्वों का ज्ञान प्रदान किया जाता है।

अनुभवों की चर्चा करना क्यों महत्त्वपूर्ण है?

अनुभव सुनाने की प्रक्रिया श्रवण कौशल के विकास एवं मौखिक अभिव्यक्ति के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है। अनुभव सुनाने की प्रक्रिया छात्र एवं शिक्षक दोनों के द्वारा सम्पन्न होती है। एक स्थिति में छात्र दूसरों के अनुभव का श्रवण करता है। तथा दूसरी स्थिति में अनुभवों को सुनाता है। इस प्रक्रिया में उक्त दोनों कौशलों का विकास तीव्र गति से सम्भव होता है। इसके लिये यह आवश्यक है कि शिक्षकों को छात्रों को अनुभव सुनाने के लिये प्रेरित करना चाहिये तथा समय-समय पर उनको पृष्ठपोषण प्रदान करना चाहिये। इन कौशलों के विकास में शिक्षक को स्वाभाविक रूप से छात्रों की त्रुटियों का सुधार करते हुए एक कुशल श्रोता तथा कुशल प्रवचनकर्ता बनाना चाहिये।

परिवेशीय चर्चा का महत्त्व

अपने परिवेश के बारे में बातें या चर्चा करना अथवा परिवेशीय अध्ययन का महत्त्व निम्नलिखित प्रकार है-

(1) अपने परिवार एवं पास-पड़ोस के सदस्यों, साथियों तथा शिक्षकों के प्रति व्यवहार का ज्ञान कराना।

(2) विभिन्न स्थानों तथा परिस्थिति के अनुसार कक्ष में, खेल में, भोजन में एवं उत्सव आदि में समुचित व्यवहार करना।

(3) स्थानीय क्षेत्र की समुचित जानकारी कराना; जैसे- घर आदि का पता लगाना।

(4) सार्वजनिक स्थान के उपयोग का सामान्य ज्ञान कराना।

(5) देश के महत्त्वपूर्ण महापुरुषों के नाम तथा उनके योगदान के बारे में समुचित जानकारी कराना

(6) नैतिक एवं सामाजिक मूल्यों (सत्य, सहयोग तथा ईमानदारी को व्यवहार में लाने की आदत) का विकास करना।

परिचर्चा के उद्देश्य

परिवेशीय चर्चा अथवा अध्ययन के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(1) छात्र/छात्राओं में प्राकृतिक, भौतिक एवं सामाजिक परिवेश के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न कर उनमें अवलोकन, वर्गीकरण, परीक्षण, विश्लेषण, निष्कर्ष एवं व्याख्या करने की योग्यता को विकसित करना।

(2) परिवेश की आवश्यकता एवं महत्त्व को समझते हुए परिवेश के संरक्षण की भावना का विकास करना।

(3) समाज में व्याप्त बुराइयों यथा-बाल-विवाह, अन्धविश्वास, रूढ़िवादिता, लिंगभेद एवं वर्गभेद आदि की जानकारी द्वारा सतर्क होना एवं इनको दूर करने की प्रवृत्ति का विकास करना।

(4) व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन के उत्तरदायित्वों को समझने, स्वयं के व्यवहार में सद्गुण एवं सद्व्यवहार, स्वच्छता सम्बन्धी अच्छी आदतों, अभिरुचियों तथा जीवन मूल्यों को विकसित करना ।

(5) सुयोग्य नागरिकता, प्रजातन्त्र में आस्था, राष्ट्रीय एकता, भावात्मक एकता, नैतिक मूल्यों का विकास, पन्थ-निरपेक्षता तथा सहभागिता का विकास करना।

(6) जनहितकारी संस्थाओं एवं नागरिक सुविधाओं के उपयोग के प्रति जागरूक बनाना।

(7) स्थानीय व्यवसाय, लघु एवं कुटीर उद्योगों के आधार पर पारिवारिक व्यवसाय का कौशल उत्पन्न करना तथा श्रम के प्रति निष्ठा की भावना विकसित करना।

(8) भारतीय संस्कृति, धरोहर, राष्ट्रीय प्रतीक एवं इतिहास के प्रति सम्मान तथा गौरव की भावना का विकास करना।

(9) न्याय, सुरक्षा, भूमि, अभिलेख एवं प्रशासन की कार्यप्रणाली की पारदर्शिता को समझकर उनका उपयोग करने की क्षमता का विकास करना।

(10) श्रम के प्रति निष्ठा एवं परिवेशजन्य अनुभवों से स्वयं करके सीखने की प्रकृति का विकास करना ।

परिवेशीय चर्चा के भाग

परिवेशीय चर्चा – चारों ओर का परिवेश, परिवार, समाज, देश, पर्व, धरती, पेड़-पौधों, पशु-पक्षी तथा सजीव-निर्जीव आदि सभी के सम्बन्ध में सामान्य परिचय, अनुभव एवं उनके प्रति समुचित समझ के विकास के लिये वार्तालाप अथवा बातचीत प्रक्रिया को परिवेशीय चर्चा कहा जाता है । प्रमुख रूप से परिवेशीय चर्चा को तीन भागों में विभक्त किया गया है- (1) प्राकृतिक परिवेश। (2) भौतिक परिवेश तथा (3) सामाजिक परिवेश ।

1. प्राकृतिक परिवेश- प्राकृतिक परिवेश में पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़ों, पेड़-पौधे, फल तथा सब्जियाँ आदि के जीवन से सम्बन्धित चर्चा की जाती है।

2. भौतिक परिवेश- इसके अन्तर्गत हवा, पानी, बादल, बिजली, वन, नदी, सागर, मौसम, बाँध, तारे, सूरज एवं प्रकाश की चर्चा की जाती है।

3. सामाजिक परिवेश- इसके अन्तर्गत परिवार, पास-पड़ोस, गाँव, नगर, देश, पर्व एवं त्यौहार मनोरंजन के साधन पंचायत, दर्शनीय स्थल, मेले तथा यातायात के साधन आदि की चर्चा की जाती है।

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