राजपूतों के उदय और प्रमुख राजपूत वंश
हर्ष की मृत्यु के बाद भारतवर्ष में अराजकता फैल गयी। इस अराजकता का लाभ उठाकर वीर राजपूतों ने समस्त उत्तरी भारत पर अपना अधिकार कर लिया और अनेक छोटे-छोटे स्वतन्त्र राज्य स्थापित कर लिये जो लगभग 647 ई. से 1200 ई. तक रहे। इस सम्पूर्ण काल में भारत में कोई एकछत्र राज्य न था। हर्ष की मृत्यु से लेकर मुसलमान राज्य की स्थापना तक के समय को ‘राजपूत काल’ कहते हैं। प्रमुख राजपूत वंश इस प्रकार हैं-
1. तोमर वंश – दिल्ली में तोमर वंश का राज्य था। इस वंश का पहला राजा अनंगपाल प्रथम तथा इसका अन्तिम शासक अनंगपाल द्वितीय था। इसके कोई पुत्र न था, इसलिये उसने दिल्ली का राज्य अपने धेवते पृथ्वीराज चौहान (अजमेर के शासक) को दे दिया। सन् 1192 में मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को तराइन की दूसरी लड़ाई में हराया और इस राज्य को जीत लिया।
2. चौहान वंश – इस वंश का राज्य अजमेर, सांभर तक के भूभाग पर फैला हुआ था। चौहान वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक विग्रह राज था। अन्य पराक्रमी शासकों में विग्रह राज चतुर्थ एवं पृथ्वीराज तृतीय (पृथ्वीराज चौहान) प्रमुख थे। पृथ्वीराज चौहान, इस वंश का सबसे प्रतापी शासक माना जाता है। उसने 1182 ई. में चन्देल शासक परमाल को पराजित कर साम्राज्य भारत में प्रथम साम्राज्य, सामन्तवाद का का विस्तार किया एवं 1191 ई. में अफगानिस्तान के गौर वंश के शासक मोहम्मद गौरी को तराइन के प्रथम युद्ध में पराजित किया। बाद में गौरी ने तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को परास्त कर भारत में अपना साम्राज्य स्थापित किया।
3. राठौर वंश – कन्नौज में राठौर वंश का शासन था। इस वंश का अन्तिम और प्रसिद्ध राजा जयचन्द राठौर था। पृथ्वीराज उसकी लड़की संयोगिता को स्वयंवर से उठा ले गया, जिससे पृथ्वीराज और जयचन्द में शत्रुता हो गयी।
4. पाल वंश – 765 ई. में राजा गोपाल ने पाल वंश की स्थापना बंगाल में की। उसने 45 वर्ष तक राज्य किया। उसका पुत्र धर्मपाल भी प्रतापी शासक हुआ। उसने विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की। इस वंश के शासकों ने चार शताब्दी तक बंगाल में शासन किया। अन्त में सेन वंशीय शासकों ने इस प्रदेश पर अपना अधिकार कर लिया।
5. परमार वंश- मालवा में परमार वंश का शासन था। इस वंश का प्रसिद्ध राजा भोज था, जिसने सन् 1018 से सन् 1060 तक राज किया। भोज वीर, न्यायप्रिय, विद्याप्रेमी और संस्कृत का प्रसिद्ध विद्वान् था ।
6. चन्देल वंश – यह रियासत यमुना और नर्मदा नदियों के मध्य में स्थित थी। यहाँ चन्देल राजपूतों का राज्य था। वे भवन निर्माण कला के बड़े रसिक थे। उन्होंने मध्य प्रदेश में स्थित खजुराहो के स्थान पर अनेक बड़े सुन्दर मन्दिर बनवाये।
7. सिसौदिया वंश – मेवाड़ राज्य बहुत प्रसिद्ध था। यहाँ सिसोदिया वंश का राज्य था। सन् 1433 से सन् 1468 तक यहाँ राजा कुम्भ राज करता था। वह बड़ा पराक्रमी तथा योग्य शासक था। उसके समय में मेवाड़ ने बहुत उन्नति की। राजा संग्राम सिंह और महाराणा प्रताप इसी वंश में हुए थे।
8. प्रतिहार वंश – इस वंश का संस्थापक नागभट्ट प्रथम था। इसी वंश के शासक नागभट्ट द्वितीय ने कन्नौज पर अपना अधिकार कर लिया था। राजा मिहित भोज इस वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था। वह 840 ई. में शासक बना और 50 वर्ष तक राज्य किया। उसने पूर्वी पंजाब, मालवा, राजपूताना, मगध एवं सौराष्ट्र तक अपना साम्राज्य विस्तार किया।
9. गुहिल वंश – वल्लभी के क्षत्रिय शासक शिलादित्य के पुत्र ‘गुहिल’ के नाम पर इस वंश की स्थापना हुई। मेवाड़ के इस शक्तिशाली राजवंश का प्रथम पराक्रमी शासक कालभोज था जो बप्पा रावल के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध हुआ।
10. सोलंकी वंश – इस वंश का राज्य गुजरात में था। जयसिंह, सिद्धराय एवं कुमार पाल इस वंश के प्रतापी शासक हुए।
11. सेन वंश – इस वंश का शासन सामन्त सेन द्वारा 1050 ई. में बंगाल में स्थापित किया गया। बाद में वल्लभ सेन और लक्ष्मण सेन प्रतापी शासक हुए। गीत गोविन्द के रचयिता जयदेव इसी राज्य के आश्रय में थे। बाद में 1199 में इस राज्य की शाक्त कमजोर हो गयी।
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