शिक्षा के सैद्धान्तिक आधार
शिक्षा के सैद्धान्तिक आधारों को तीन भागों में विभाजित किया है। ये सभी छात्राध्यापकों को अनिवार्य रूप से पढ़ने होंगे, जिससे विभिन्न शिक्षाविदों, मनोवैज्ञानिक एवं बुद्धिजीवियों के विचारों को छात्राध्यापक समझ सकें एवं आत्मसात् कर सकें। शिक्षा के सैद्धान्तिक आधारों के प्रमुख बिन्दुओं का वर्णन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है-
1. बालकों का अध्ययन (Study of children)
बालकों के अध्ययन के सन्दर्भ में मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रावधान किया गया है, जिससे छात्राध्यापकों में बालकों की विकास सम्बन्धी प्रक्रियाओं को समझने की योग्यता का विकास हो सके। छात्राध्यापक अपनी कक्षा के समस्त छात्रों में से सामान्य, मन्दबुद्धि एवं प्रतिभाशाली छात्रों की पहचान कर सकें। इसके साथ-साथ बाल विकास के सिद्धान्तों के बारे में भी छात्राध्यापकों को ज्ञान होना चाहिये। छात्रों के सर्वांगीण विकास की पृष्ठभूमि को तैयार करने के लिये यह आवश्यक है कि छात्राध्यापक द्वारा छात्रों को पूर्ण रूप से समझा जाय। इसके लिये छात्राध्यापकों को मनोविज्ञान के विभिन्न सिद्धान्तों को समझना एवं उनका प्रयोग करना आवश्यक है। प्रत्येक छात्राध्यापक को बाल विकास एवं शिक्षा मनोविज्ञान का पूर्ण ज्ञान होना चाहिये जिससे वह बालकों में निहित प्रतिभाओं का विकास सरलता से कर सके। इसके लिये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 में पूर्ण व्यवस्था की गयी है। बालकों को समझे बिना शिक्षक अपने दायित्वों का पूर्ण रूप से निर्वहन नहीं कर सकता।
2. समकालीन समाज का अध्ययन (Study of comtemporary society)
इस भाग के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की सामाजिक व्यवस्था एवं शिक्षा प्रणालियों के बारे में ज्ञान कराया जाता है। सामाजिक परम्पराओं, मान्यताओं एवं संस्कृति को समझे बिना एक शिक्षक कुशलता से अपने दायित्वों का पालन नहीं कर सकता। इसलिये पाठ्यक्रम में भारतीय समाज की संरचना, सामाजिक स्तरीकरण, सामाजिक परिवर्तन एवं विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का समावेश किया गया है जिससे छात्र सामाजिक परम्पराओं एवं सामाजिक मूल्यों को समझ सकें तथा समाज की आकांक्षा के अनुरूप अपने दायित्व का निर्वहन कर सकें। दूसरे शब्दों में, समाज से सम्बन्धित व्यापक सामग्री को इस भाग में समाहित किया गया है।
3. शिक्षा सम्बन्धी अध्ययन (Education related study)
इस भाग की अध्ययन सामग्री पूर्णत: शिक्षा सम्बन्धी व्यवस्था से सम्बन्धित होगी। इसमें शिक्षा का अर्थ, शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षा के कार्य एवं शिक्षा सम्बन्धी विभिन्न आयोगों के विचार आदि को सम्मिलित किया जायेगा। इसके साथ-साथ शिक्षा के सम्बन्ध में सरकार की नीतियों एवं सामाजिक सहयोगिता आदि के सन्दर्भ में विस्तृत अध्ययन किया जायेगा। वैदिक कालीन शिक्षा व्यवस्था, मध्यकालीन शिक्षा व्यवस्था एवं आधुनिक शिक्षा व्यवस्था के प्रमुख बिन्दुओं का ज्ञान छात्राध्यापकों को दिया जायेगा। इसके साथ प्रमुख दार्शनिक विचारधाराओं को भी इसमें सम्मिलित किया जायेगा; जैसे- शिक्षा में आदर्शवाद, प्रकृतिवाद, प्रयोजनवाद एवं बाल केन्द्रित शिक्षा व्यवस्था आदि । इस प्रकार इस भाग में छात्राध्यापकों को शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न विचारधाराओं का ज्ञान प्रदान किया जायेगा।
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