कोठारी आयोग या शिक्षा आयोग का मूल्यांकन (गुण एवं दोष)
शिक्षा आयोग के मूल्यांकन की दो कसौटियाँ हो सकती हैं- (1) आयोग के गुणों को परखना, (2) आयोग के दोषों का विश्लेषण करना।
इस प्रकार इसके गुण-दोष निम्नलिखित हैं-
1. शिक्षा आयोग के गुण (Merits of Education Commission)
शिक्षा आयोग को भारतीय ऐतिहासिक शिक्षा परिदृश्य पर सर्वश्रेष्ठ आयोग कहा गया है। इस आयोग ने राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में शिक्षा की मार्मिक व्याख्या तथा सन्तुलित एवं व्यावहारिक सुझाव प्रस्तुत किये हैं। संक्षेप में कहा जा सकता है कि शिक्षा आयोग ने अपने प्रस्तावित निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति यथार्थ रूप में की है “आयोग भारत सरकार को शिक्षा के राष्ट्रीय स्वरूप और उसके सभी स्तरों एवं पक्षों पर शिक्षा के विकास के लिए सामान्य सिद्धान्तों तथा नीतियों के विषय में परामर्श देगा।”
राष्ट्रीय शिक्षा को महत्ता प्रदान करते हुए लिखा है ” अन्य साधन सहायता दे सकते हैं और वास्तव में कभी-कभी उनका अधिक प्रत्यक्ष प्रभाव हो सकता है, किन्तु शिक्षा की राष्ट्रीय प्रणाली ही वह साधन है जो सभी व्यक्तियों तक पहुँच सकती है।”
शिक्षा आयोग के उल्लेखनीय गुण निम्नांकित हैं-
(1) जन-शिक्षा प्रचार एवं प्रसार के लिए व्यावहारिक शिक्षा का स्वरूप प्रस्तुत करना।
(2) वैज्ञानिक प्रयोगों एवं अनुसन्धानों को शिक्षा के क्षेत्र में उपयुक्त स्थान प्रदान करना।
(3) शिक्षा के सर्वांगीण पक्षों में सन्तुलित विकास की रूपरेखा प्रस्तुत करना तथा उसके पुनर्संगठन सम्बन्धी ठोस सुझाव प्रस्तुत करना।
(4) शिक्षा पर और अधिक धन व्यय करने की सिफारिश करना।
(5) सभी छात्रों को प्रजातान्त्रिक समानता के अवसर प्रदान करने के लिए आवश्यक सहायता प्रदान करना ।
(6) संवैधानिक शिक्षा लक्ष्यों की पूर्ति हेतु ठोस कदम उठाना।
(7) माध्यमिक शिक्षा को पूर्ण व्यावसायोन्मुखी बनाकर उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में वृद्धि करना।
(8) शिक्षा के सभी स्तरों के लिए अनुकूल, सन्तुलित पाठ्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत करना।
2. शिक्षा आयोग के दोष (Demerits of Education Committee)
समकालीन विद्वानों ने शिक्षा आयोग में निम्नलिखित दोष बताये हैं-
(1) शिक्षा आयोग के प्रयासों के फलस्वरूप बेसिक शिक्षा का स्वरूप समाप्त हो गया।
(2) अंग्रेजी भाषा पर अतिरिक्त बल देने से भारतीय भाषाओं का विकास अवरुद्ध हो गया।
(3) संस्कृति अध्ययन की पूर्ण उपेक्षा की गयी।
(4) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की शिक्षा पर अनावश्यक बल देने से बालकों का नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास अवरुद्ध हो गया।
(5) प्रारम्भिक शिक्षा के आधार को मजबूत बनाने का सार्थक प्रयास नहीं किया गया।
(6) शिक्षकों को अपेक्षित सुरक्षा प्रदान करने में शिक्षा आयोग पूर्ण असफल रहा।
(7) अनेक महत्त्वपूर्ण सुझावों को धन के अभाव में क्रियान्वित नहीं किया जा सका, अत: शिक्षा की यथास्थिति बनी रही।
(8) इस आयोग के अनेक विदेशी एवं देशी सदस्यों ने आयोग के कार्य में उपेक्षा भाव का प्रदर्शन किया था।
स्वातन्त्र्योत्तर शिक्षा के विकास पर सारगर्भित टिप्पणी करते हुए सैयदेन ने अपनी पुस्तक ‘ऐक्सेस टू हायर एजूकेशन इन इण्डिया’ में लिखा है
“स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में शिक्षा के विकास की गति अत्यधिक तीव्र रही है। सामान्य रूप से इस संख्यात्मक वृद्धि का शिक्षा के सभी स्तरों पर दुष्प्रभाव प्रकट होता है जिसके फलस्वरूप शिक्षकों, भवनों, उनका रख-रखाव तथा अन्य बुनियादी सुविधाओं का गुणवत्ता स्तर निम्नतम हो चला है। इसका ही परिणाम है कि शिक्षा के लिए नियत धनराशि के एक बड़े अंश का प्रयोग शिक्षा के परिमाणात्मक विस्तार के लिए और उसकी तुलना में गुणात्मक उन्नति के उपायों की उपेक्षा करने के लिए किया गया है।”
Important Links…
- सामाजिक एवं पारस्परिक सौहार्द्र का अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं महत्त्व
- जातिवाद की अवधारणा
- साम्प्रदायिकता से क्या आशय है?
- बाल मजदूरी के कारण या बाल श्रम के कारण
- शिक्षा से सम्बन्धित महात्मा गाँधी के तात्कालिक और सर्वोच्च उद्देश्य
- डॉ. राधाकृष्णन् के विचार- हिन्दू धर्म, राजनीति, विज्ञान, स्वतन्त्रता एवं विश्वशान्ति
- गिजूभाई की बालकेन्द्रित शैक्षिक विचारधारा
- आचार्य नरेन्द्र देव समिति के कार्य क्षेत्र का वर्णन कीजिये।
- मुगल काल में प्राथमिक शिक्षा का स्वरूप
- उपनयन संस्कार से क्या आशय है?
- बिस्मिल्लाह रस्म क्या है?
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 तथा विशेषताएँ
- समावर्तन संस्कार | Samavartan Sanskar in Hindi
- पबज्जा संस्कार | Pabzza Sanskar in Hindi
- लॉर्ड मैकाले का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान