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साम्प्रदायिकता से क्या आशय है? | साम्प्रदायिकता के दुष्परिणाम | साम्प्रदायिकता का समाधान

साम्प्रदायिकता से क्या आशय है
साम्प्रदायिकता से क्या आशय है

साम्प्रदायिकता से क्या आशय है?

हमारे भारतदेश में अनेकवादी (Plaralistic) समाज में मात्र धार्मिक समुदाय ही नहीं है; जैसे हिन्दू, मुस्लिम तथा ईसाई इत्यादि, अपितु यह धर्म या सम्प्रदाय भी अनेक उप-सम्प्रदाय में बँटे हैं; जैसे—श्वेताम्बर तथा दिगम्बर सम्प्रदाय। इसी प्रकार मुस्लिम भी शिया तथा सुन्नी वर्गों में बँटे हैं। ये भिन्न-भिन्न वर्ग तथा सम्प्रदाय धार्मिक उन्माद तथा हिंसा का मुख्य आधार हैं। भारत में समय-समय पर इन सम्प्रदायों तथा वर्गों में परस्पर संघर्ष होता रहा है । इन धार्मिक तथा वर्ग संघर्षो को अशिक्षित अथवा बाहरवादी व्यक्ति अपने स्वार्थ-लाभ के लिये अधिक प्रसारित करते हैं। इन साम्प्रदायिक हिंसा अथवा संघर्षो के परिणाम विस्तृत तथा दीर्घकालीन होते हैं। इनमें जन हानि के साथ-साथ धन हानि पर्याप्त मात्रा में होती है। इसके प्रमुख उदाहरण हैं; बाबरी मस्जिद समस्या, गुजरात के साम्प्रदायिक दंगे इत्यादि । संक्षिप्त रूप से कहा जा सकता है कि साम्प्रदायिक हिंसा प्रमुख रूप से घृणा, द्वेष तथा प्रतिरोध पर आधारित है। परिणामस्वरूप सभी सम्प्रदायों के भाव नकारात्मक ही होते हैं।

साम्प्रदायिकता के दुष्परिणाम

भारत में साम्प्रदायिक हिंसा अथवा तनाव का दीर्घकालिक इतिहास रहा है। स्वतन्त्रता के उपरान्त भारत में इसके अनेक स्वरूप देखे गये हैं, जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-

(1) प्राय: साम्प्रदायिक दंगे धर्म की कट्टरता तथा राजनीति से अधिक प्रेरित होते हैं। मई सन् 1970 में महाराष्ट्र में दंगों के आधार पर मदान आयोग ने कहा कि-“साम्प्रदायिक तनावों के प्रणेता तथा निर्माता, सम्प्रदायवादी तथा राजनीतिज्ञों का एक वर्ग होता है, वे अखिल भारतीय तथा स्थानीय क्रेता जो अपनी राजनीतिक स्थिति को सुदृढ़ बनाने, अपनी प्रतिष्ठा को बढ़ाने तथा अपनी सार्वजनिक क्षति को समृद्ध बनाने के लिये प्रत्येक अवसर का लाभ उठाना चाहते हैं, वे ही किसी घटना को साम्प्रदायिक स्वरूप प्रदान करते हैं। इस प्रकार जनता के समक्ष वे स्वयं को अपने समुदाय के धर्म तथा अधिकारों का संरक्षक बनाते हैं।”

(2) साम्प्रदायिक दंगे दक्षिण तथा पूर्वी भारत की अपेक्षा उत्तर भारत में अधिक होते हैं । जहाँ साम्प्रदायिक दंगे होते हैं उन्हें सम्वेदनशील क्षेत्र कहा जाता है।

(3) राजनैतिक स्वार्थों के अतिरिक्त आर्थिक स्वार्थ भी साम्प्रदायिक हिंसा बढ़ाने में सहायक होते हैं।

(4) ऐसे शहरों, जिनमें साम्प्रदायिक दंगे एक अथवा एक से अधिक बार हो चुके हैं, में इसके पुन: होने की सम्भावना प्रबल होती है।

(5) मुख्यतः साम्प्रदायिक हिंसा समाज विशेष के व्रत त्यौहार के अवसरों पर अधिक होती है ।

(6) वर्तमान समय में साम्प्रदायिक हिंसा में घातक हथियारों का प्रचलन तीव्रता के साथ प्रसारित होता है।

(7) प्रायः साम्प्रदायिक हिंसा ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी क्षेत्रों में अधिक होती है। निश्चय ही भारत में साम्प्रदायिकता एक जटिल समस्या है । इस समस्या के समाधान के लिये सभी वर्गों तथा व्यक्तियों को निजी स्वार्थ को त्यागना होगा तभी इसी जटिल समस्या का समाधान सम्भव है ।

साम्प्रदायिकता का समाधान (Solution of religious bigotry)

यह स्वीकार करने की आवश्यकता है कि व्यक्तिगत, सामूहिक एवं राष्ट्रीय स्तर पर हमारे आधारभूत जीवन मूल्यों, हमारे राष्ट्र की कार्य प्रणाली एवं नव विकासमान राष्ट्रीय लोकाचार के लिये साम्प्रदायिकता सबसे बड़ी समस्या है। यहाँ पर साम्प्रदायिकता रूपी दानव का सामना करने के लिये उपयुक्त और प्रभावपूर्ण रणनीतियाँ अपनाने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय जीवन के छ: प्रमुख क्षेत्रों में समूचे राष्ट्र की ओर से सम्मिलित एवं योजनाबद्ध प्रयास समय की माँग है। साम्प्रदायिकता का समाधान करने के उपाय निम्नलिखित हैं-

(1) उन राजनीतिक दलों तथा संस्थाओं की मान्यता रद्द करना जो अपनी नीतियों तथा कार्यक्रमों के द्वारा साम्प्रदायिकता को प्रोत्साहन देते हैं।

(2) शैक्षिक संस्थाओं में प्रयुक्त होने वाली पाठ्य-पुस्तकों और अन्य पाठ्य सामग्री में से ऐसे आपत्तिजनक अंशों को निकालना जिनसे किसी समुदाय की भावना को ठेस पहुँचती हो।

(3) दूरदर्शन और आकाशवाणी के कार्यक्रमों के माध्यम से साम्प्रदायिक सौहार्द्र और भाईचारा बढ़ाना और ऐसे समाचार तथा विचार प्रसारित न करना जिनसे साम्प्रदायिक पूर्वाग्रहों और घृणा को बढ़ावा मिल सकता हो।

(4) साम्प्रदायिक हिंसा को प्रोत्साहित करने और कर्त्तव्य पालन में कोताही के लिये दोष पाये गये पुलिसकर्मियों को दण्डित करना।

(5) किसी स्थान पर साम्प्रदायिक सौहार्द्र बहाल करने की आवश्यकता पड़ने पर तुरन्त निष्पक्ष कार्यवाही करना।

(6) विभिन्न समुदायों को सांझी सिविल विधि स्वीकार करने के लिये प्रेरित करना।

(7) सभी समुदायों के त्यौहारों और उत्सवों को मिलजुल कर मनाना।

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