समुदाय में समाज के विकास में विद्यालय की भूमिका
समाज के विकास को दृष्टिगत रखते हुए विद्यालय के कार्यक्रमों के नियोजन में निम्नलिखित तथ्य ध्यान में रखने चाहिये-
(1) विद्यालय में सहगामी प्रवृत्तियों की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिये।
(2) विद्यालय सामुदायिक विद्यालय के रूप में कार्य करें।
(3) विद्यालय को एक लघु समाज के रूप में मानकर समाज को उचित दिशा में मार्ग-दर्शन मिलना चाहिये।
(4) विद्यालय में विभिन्न सामाजिक समस्याओं पर समय-समय पर गोष्ठियाँ या वाद-विवाद प्रतियोगिताएँ आयोजित की जानी चाहिये।
(5) विद्यालय का प्रशासन जनतान्त्रिक पद्धति पर आधारित होना चाहिये।
(6) विद्यालय में सामाजिक तथा सांस्कृतिक उत्सवों के आयोजन की व्यवस्था होनी चाहिये ताकि अतीत की मान्यताओं तथा संस्कृतियों को सुरक्षित रखा जा सके।
(7) विद्यालय को चाहिये कि वह समाज के साथ अधिक से अधिक घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करे। अभिभावक-शिक्षक संघ द्वारा यह कार्य किया जाना चाहिये।
(8) विद्यालय में ऐसे विषयों की शिक्षा की व्यवस्था हो, जो समाज की संस्कृति के हस्तान्तरण, समीक्षा तथा विश्लेषण में सहायक हो।
(9) विद्यालय द्वारा बालकों के सामाजिक विकास हेतु प्रयास किया जाना चाहिये ताकि वे सामाजिक जीवन की अनुभूति कर सकें।
(10) विद्यालय द्वारा समाज में व्याप्त बुराइयों, कुरीतियों तथा आडम्बरों के प्रति अन्धविश्वास की भावना दूर कर नवीनता की प्रवृत्ति का विकास करना चाहिये।
(11) विद्यालय द्वारा ऐसे छात्र तैयार किये जाने चाहिये, जो विवेकशील एवं साहसी हों, परिवर्तन करने में सक्षम हों तथा परिवर्तन के फलस्वरूप नवीनता को स्वीकार करने और उन्हें समाज तक पहुँचाने की शक्ति रखते हों।
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